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Daily-current-affairs / 11 Mar 2022

महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता - समसामयिकी लेख

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की-वर्डस :- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, शिक्षा की कमी, संरक्षक, विरासत और विवाह कानून, महिला साक्षरता स्तर, प्रगतिशील कानून, वित्तीय साक्षरता, ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स, विश्व आर्थिक मंच।

चर्चा में क्यों?

महिलाएं सामाजिक कारणों से बैंकिंग प्रणाली के दायरे से बाहर रहती हैं। महिलाओं में वित्तीय साक्षरता का अभाव वित्तीय संस्थाओं तक उनके पहुंच के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।

संदर्भ :-

  • भारत में महिलाएं 29 प्रतिशत श्रमशक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो 2004 में 35 प्रतिशत था। भारत में महिलाओं द्वारा किए गए आधे से अधिक काम अवैतनिक हैं और लगभग सभी कार्य अनौपचारिक और असुरक्षित हैं।
  • व्यापारिक नेतृत्वकर्ता सहित अधिकांश क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अच्छा नहीं है। लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं कृषि श्रमिक हैं, वे भारत में केवल 9 प्रतिशत भूमि को नियंत्रित करती हैं। महिलाएं औपचारिक वित्तीय व्यवस्था से भी बाहर हैं।
  • भारत की लगभग आधी महिलाओं के पास अपने उपयोग के लिए कोई बैंक या बचत खाता नहीं है और 60 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर कोई मूल्यवान संपत्ति नहीं है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं का योगदान मात्र 17% है, जो 37% के वैश्विक औसत से काफी कम है।
  • इस वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम #ब्रेक द बायस है। लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में की गई तमाम प्रगति के बावजूद, दुनिया भर में लगभग सभी व्यवसायों में लैंगिक विभेद बना हुआ है जो विभिन्न रूपों में प्रदर्शित होता रहता है।
  • महिलाओं की 'मुक्ति' उनकी वित्तीय स्वतंत्रता में अंतर्निहित है। वित्तीय सशक्तिकरण से लैंगिक अंतर को तेजी से पाटने में सहायता मिलेगी। हालांकि, वैश्विक स्तर पर लगभग 35 प्रतिशत महिलाएं आर्थिक रूप से बहिष्कृत हैं।

महिलाओं के आर्थिक रूप से कम सशक्तिकृत होने के कारण :-

  • महिलाओं की संस्थागत वित्त तक पहुंच में कमी शिक्षा की कमी प्रमुख कारकों में से एक है। पर्याप्त साक्षरता के बिना, महिलाओं के लिए अपने जीवन में औपचारिक वित्त की भूमिका को समझना कठिन कार्य है। कम वित्तीय जागरूकता के चलते महिलाएं अक्सर वित्तीय संस्थानों से बचत और ऋण उत्पादों का लाभ उठाने के प्रति अनिच्छुक दिखाई पडती है।
  • वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के लिए कुछ स्तर की बुनियादी शिक्षा आवश्यक है। हालांकि, महिला साक्षरता पर परिदृश्य उत्साहजनक नहीं है।

शिक्षा में लैंगिक असमानता के यूनेस्को के ई-एटलस के अनुसार, वैश्विक स्तर पर, 6 से 11 वर्ष आयु वर्ग के 8% लड़कों की तुलना में, 10% लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रहना पड़ता है। यदि मौजूदा प्रवृत्ति जारी रहती है, तो लगभग 8 मिलियन लड़कों की तुलना में 6 से 11 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 16 मिलियन लड़कियों को प्राथमिक विद्यालय में जाने का अवसर कभी प्राप्त नहीं होगा।

  • दूसरी बाधा यह है कि लड़कियों के आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने से पहले, अक्सर उनकी इच्छा के विरुद्ध, उनकी शादी कर दी जाती है। यह प्रारंभिक मातृत्व के साथ, उन्हें पूरी तरह से पति या ससुराल के परिवार पर निर्भर बना देता है। इसलिए यदि पति की नौकरी छूट जाती है या फसल खराब हो जाती है, तो उसकी पत्नी का जीवन आर्थिक रूप से प्रभावित हो जाता है।
  • तीसरा, कई देशों में महिलाओं के पास आवश्यक आईडी प्रूफ नहीं है जिसके बिना वे वित्तीय संस्थानों तक नहीं पहुंच सकती हैं।
  • चौथा, कई विकासशील और कम आय वाले देशों में, महिलाओं को ऐसे बैंक में जाने की अनुमति नहीं है, जहां आम तौर पर अधिक पुरुष कर्मचारी कार्यरत होते हैं। महिलाओं का भी अक्सर अपनी संपत्ति पर नियंत्रण नहीं होता है क्योंकि वे अपने पुरुष रिश्तेदारों द्वारा नियंत्रित होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, उनके तथाकथित 'संरक्षक' के रूप में, उनके परिवारों के बुजुर्ग पुरुष उन्हें कोई खाता खोलने या बैंक से ऋण लेने से प्रतिबंधित करते हैं। वे उसके गहने गिरवी रख सकते हैं, लेकिन उसके नाम पर खाता नहीं खोला जाता है। इसलिए, भले ही भूमि के अलावा महिलाओं के पास अन्य संपत्ति स्वामित्व हों, पर इन संपत्ति पर वास्तविक नियंत्रण पुरुषों का ही होता है।
  • पांचवां, उत्तराधिकार और विवाह कानून एक और बाधा हैं। पितृसत्तात्मक समाज में पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार पुत्रों को ही होता है। हालांकि अब कई देशों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कानूनों में बदलाव किया गया है या उनमें बदलाव किया जा रहा है।
  • अंत में, चूंकि महिलाओं के पास वित्तीय स्वतंत्रता की कमी है, क्रेडिट सूचना ब्यूरो के लिए महिलाओं का वित्तीय इतिहास तैयार करना मुश्किल है जो वित्तीय संस्थानों को महिलाओं को उधार देने से रोकता है।

पुरुषों के समान अवसर सुनिश्चित करना :-

हाल के दिनों में महिलाओं के वित्तीय समावेशन की दिशा में कुछ प्रगति हुई है। लेकिन यह प्रगति असमान और भौगोलिक रूप से विषम रही है।

  • इसलिए महिलाओं के साक्षरता स्तर में सुधार करना और उनके वित्तीय समावेशन को बढ़ाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
  • दूसरे महिलाओं के वेतन को सीधे उनके बैंक खातों (डीबीटी) में जमा करने से उनका आर्थिक सशक्तिकरण होगा। इधर, डीबीटी की ओर बढ़ने में सरकार के प्रयास उल्लेखनीय रहे हैं।
  • आधार कार्ड की शुरुआत एक और उल्लेखनीय प्रयास है। सरकार द्वारा बालिकाओं के लिए विशेष बैंक खातों की शुरूआत जैसे, सुकन्या समृद्धि योजना भी प्रशंसनीय कदम है। कुछ बैंक महिलाओं द्वारा लिए गए आवास और शिक्षा ऋण के लिए रियायती ब्याज दर भी प्रदान करते हैं।
  • ऐसी स्थितियों में, जहां महिलाएं बैंक कार्यालयों में नहीं जा सकती, एजेंट द्वारा संचालित बैंकिंग उनकी सहायता कर सकती है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल बैंकिंग की सर्वव्यापकता के साथ बैंकिंग कार्यों की सुविधा और सुगमता में वृद्धि हुयी है, जो महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी साबित हो सकती है।
  • हालांकि, प्रगतिशील कानूनों का कार्यान्वयन अक्सर आसान नहीं होता है। कई पुरातन कानूनों को ऐसे कानूनों से बदलना होगा जो समकालीन वास्तविकताओं के अनुरूप हों और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नए या संशोधित कानूनों को उन अधिकारियों द्वारा उचित रूप से लागू किया जाना है जो महिलाओं के प्रति पक्षपाती नहीं हैं।
  • जागरूकता यहां बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुंचने के उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना होगा। अधिक से अधिक लैंगिक समानता लाने के लिए पुरुषों में भी अधिक जागरूकता और ज्ञानोदय का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • इस कार्य में एनजीओ महत्वपूर्ण भूमिका सकते हैं। महिलाओं के लिए खाता खोलने के लिए बैंकों को विशेष अभियान चलाना चाहिए। डाकघरों में महिलाओं द्वारा खाता खोलने के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए घर-घर डाकियों को भेजना चाहिए और उन्हें प्रेरित भी किया जाना चाहिए। वित्तीय साक्षरता या जागरूकता से भी महिलाओं को वित्तीय फ्रॉड या गलत ढ़ंग से धन उगाहने वाली योजनाओं के चंगुल से बचाया जा सकता है।

आगे की राह :-

महिलाओं के विकास और समर्थन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जिसका कृषि, परिवारों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कई गुना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एफएओ की रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर' के अनुसार ‘महिलाएं कृषि में पुरुषों की तुलना में 20-30% ज्यादा पैदावार हासिल कर सकती हैं। इस प्रकार महिलाओं पर ध्यान देना राष्ट्रहित में है।

प्रासंगिक डेटा और सूचना की उपलब्धता, महिलाओं के लिए वित्तीय उत्पादों और सेवाओं को डिजाइन करने में सहायक होगी, साथ ही उनके वित्तीय समावेशन में वृद्धि करेंगी।

ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी किया जाता है। इसे पहली बार 2006 में लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति को बेंचमार्क करने के लिए पेश किया गया था।

यह ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 का 15वां संस्करण था, जो कोविड-19 को आधिकारिक तौर पर महामारी घोषित किए जाने के एक साल बाद थोड़ी विलम्ब से जारी किया गया।यह एक सूचकांक है जिसे लैंगिक समानता को मापने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

निम्नलिखित चार आयामों के आधार पर वैश्विक लिंग सूचकांक देशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है :-

  • आर्थिक भागीदारी और अवसर
  • शिक्षा प्राप्ति
  • स्वास्थ्य और उत्तरजीविता
  • राजनीतिक अधिकारिता

  • सामान्य अध्ययन पेपर 2 :- स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
  • सामान्य अध्ययन पेपर 3 :- समावेशी विकास और इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • भारत लैंगिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त कर, 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक वृद्धि दर्ज कर सकता है। इस संदर्भ में भारत में महिलाओं के कम वित्तीय समावेशन के कारकों पर चर्चा करते हुए, महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उपाय सुझाइये।

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