संदर्भ-
पिछले दशक में भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसमें महिला उद्यमियों की भागीदारी भी लगातार बढ़ रही है। सरकार की पहलें जैसे स्टार्टअप इंडिया और वित्तीय सहायता योजनाएं, महिला-नेतृत्व वाले व्यवसायों को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभा रही हैं। आज भारत में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त लगभग आधे स्टार्टअप्स में कम से कम एक महिला निदेशक है, जो उद्यमिता में लैंगिक समावेशिता की ओर एक सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है।
हालांकि इन प्रगति के बावजूद, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। सामाजिक मानदंड, वित्तीय सीमाएं, और मेंटरशिप की सीमित उपलब्धता महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स की वृद्धि में बाधा बनती हैं। भले ही कई महिलाओं ने सफलतापूर्वक व्यवसाय स्थापित किए हैं, लेकिन भारत में कुल स्टार्टअप्स में महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स की हिस्सेदारी अभी भी कम है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर नीति समर्थन, वित्तीय सुलभता और महिलाओं की व्यवसाय में पारंपरिक भूमिका की धारणा में बदलाव की आवश्यकता है।
स्टार्टअप इकोसिस्टम और महिलाओं की भूमिका:
स्टार्टअप एक नवस्थापित व्यवसाय होता है, जो सीमित संसाधनों के साथ किसी उत्पाद या सेवा को विकसित करने का लक्ष्य रखता है। भारत में उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) कुछ मानदंडों के आधार पर स्टार्टअप्स को मान्यता देता है, जैसे कि समय सीमा (10 साल से अधिक पुराना नहीं होना), टर्नओवर (₹100 करोड़ से अधिक नहीं), और नवाचार की क्षमता।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में 1.6 लाख से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स हैं, जिनमें से लगभग 73,000 में कम से कम एक महिला निदेशक है। महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स द्वारा जुटाई गई फंडिंग के मामले में भारत अमेरिका के बाद वैश्विक स्तर पर दूसरे स्थान पर है। फिर भी, इन उपलब्धियों के बावजूद, भारत में केवल 7.5% स्टार्टअप्स ही महिला-नेतृत्व वाले हैं, जो यह दर्शाता है कि लैंगिक असमानताएं अभी भी एक बड़ी चुनौती हैं।
महिला उद्यमी भारत की आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
- आर्थिक प्रभाव: महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने से 3 करोड़ से अधिक महिला-नेतृत्व वाले उद्यम बन सकते हैं, जिससे 15 से 17 करोड़ रोजगार सृजित हो सकते हैं (नीति आयोग)। साथ ही, अधिक महिलाओं को कार्यबल में शामिल करने से भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 1.5 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी हो सकती है (विश्व बैंक)।
- लैंगिक समानता: वर्तमान में भारत में केवल 19.2% महिलाएं कार्यबल में भाग लेती हैं, जबकि पुरुषों की भागीदारी 70.1% है (ILO)। महिला उद्यमी इस रोजगार अंतर को कम करने और मानव संसाधनों के बेहतर उपयोग में सहायक होती हैं।
- स्थानीय बाजारों का विकास: महिला-नेतृत्व वाले व्यवसाय, विशेष रूप से जो डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं, ग्रामीण विकास और शहरी रोजगार में योगदान करते हैं, और वैश्विक ग्राहकों से जुड़कर बाजारों का विस्तार करते हैं।
- सामाजिक परिवर्तन और प्रेरणा: महिला उद्यमी अन्य महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे लैंगिक समानता की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव आता है।
महिला उद्यमियों के लिए सरकारी समर्थन:
महिलाओं की उद्यमिता में भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने कई नीति पहल और वित्तीय योजनाएं शुरू की हैं:
• स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना (SISFS) – स्टार्टअप्स को शुरुआती चरण की फंडिंग प्रदान करती है।
• स्टार्टअप्स के लिए फंड ऑफ फंड्स (FFS) – स्टार्टअप्स को पूंजी तक पहुंच में मदद करता है।
• क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS) – स्टार्टअप्स को फंड देने वाले उधारदाताओं के लिए जोखिम कवरेज प्रदान करता है।
• महिला उद्यमियों के लिए क्षमता विकास कार्यक्रम – 10 राज्यों में 1,300 से अधिक महिला उद्यमियों को प्रशिक्षण और मार्गदर्शन प्रदान कर चुका है।
• मुद्रा योजना (महिला उद्यमी योजना): ₹10 लाख तक के बिना गारंटी के ऋण प्रदान करती है, जिससे छोटे व्यवसायों को सहयोग मिलता है।
• महिला उद्यमिता प्लेटफॉर्म (WEP) – नीति आयोग द्वारा: यह प्लेटफॉर्म मेंटरशिप, संसाधन और फंडिंग के अवसरों को एकत्र करता है।
• प्रधानमंत्री विरासत का संवर्धन (PM-विकास) योजना: अल्पसंख्यक महिलाओं के आजीविका सुधार पर केंद्रित है।
वे क्षेत्र जहां महिला उद्यमी सफल हो रही हैं
• रिटेल और ई-कॉमर्स (बिजनेस-टू-कंज़्यूमर मॉडल, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म)
• एजुकेशन टेक्नोलॉजी (एडटेक)
• हेल्थटेक और वेलनेस
• सस्टेनेबल और सोशल एंटरप्राइजेज
इस वृद्धि के बावजूद, महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स के अधिग्रहण की संख्या 2021 में 45 से घटकर 2024 में केवल 16 रह गई, जो व्यवसायों के स्केलिंग में आने वाली चुनौतियों को दर्शाता है। हालांकि, 2024 में पांच महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध (IPO) हुए, जिनमें मोबिक्विक, उषा फाइनेंशियल, टुनवाल, इंटीरियर्स एंड मोर, और लॉसीखो शामिल हैं, जो कुछ क्षेत्रों में बढ़ते अवसरों को दर्शाता है।
महिला उद्यमिता और लैंगिक मानदंड
• आर्थिक स्वतंत्रता: महिला-नेतृत्व वाले व्यवसाय परिवार की आय और आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान करते हैं।
• निर्णय लेने की शक्ति: अधिक वित्तीय योगदान से महिलाओं की घरेलू और व्यवसायिक निर्णयों में भूमिका मजबूत हो सकती है।
• रूढ़ियों को तोड़ना: सफल महिला उद्यमी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनती हैं।
हालांकि, चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। कई महिला उद्यमी कार्य और घरेलू जिम्मेदारियों की दोहरी भूमिका निभाने के दबाव का सामना करती हैं। आर्थिक स्वतंत्रता हमेशा सामाजिक सशक्तिकरण में परिवर्तित नहीं होती क्योंकि पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएं अभी भी गहराई से जुड़ी हुई हैं।
महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ
- वित्तीय संसाधनों तक पहुंच:
o महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स को पुरुषों की तुलना में कम निवेश प्राप्त होता है।
o कई निवेशक लैंगिक पूर्वाग्रह के कारण महिला उद्यमियों में निवेश करने से बचते हैं। - सामाजिक और पारिवारिक दबाव:
o महिलाओं से अक्सर यह अपेक्षा की जाती है कि वे व्यवसाय की तुलना में परिवार को प्राथमिकता दें।
o परिवार का समर्थन न मिलना और सामाजिक अपेक्षाएं उद्यमिता की महत्वाकांक्षाओं को हतोत्साहित करती हैं। - नियम और बाजार से जुड़ी चुनौतियाँ:
o महिला उद्यमी अक्सर जटिल कानूनी नियमों और अनुपालन बोझ का सामना करती हैं।
o सप्लाई चेन में रुकावटें, कुशल कार्यबल की कमी, और सीमित बाजार पहुंच व्यवसाय की वृद्धि में बाधा बनते हैं। - तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में सीमित भागीदारी:
o महिला उद्यमी प्रायः सूक्ष्म उद्यमों (micro-enterprises) में केंद्रित होती हैं, न कि तकनीक, विनिर्माण और वित्त जैसे उच्च-विकास क्षेत्रों में।
o शहरी भारत में केवल 18.42% उद्यम महिलाओं के स्वामित्व में हैं। - जरूरत-आधारित बनाम अवसर-आधारित उद्यमिता:
o कई महिलाएं रोजगार के अवसरों की कमी के कारण उद्यमिता की ओर मुड़ती हैं, न कि व्यापार में वास्तविक रुचि के कारण।
o इससे उनके उद्यमों की स्केलेबिलिटी (विस्तार क्षमता) और दीर्घकालिक स्थायित्व सीमित हो जाता है।
स्टार्टअप इकोसिस्टम में महिलाओं की भूमिका मजबूत करने के लिए कदम
- वित्तीय पहुंच बढ़ाना:
o महिलाओं पर केंद्रित वेंचर कैपिटल फंड्स की स्थापना की जानी चाहिए।
o सरल ऋण प्रक्रियाएं और कम ब्याज दरें अधिक महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं। - कौशल विकास और मेंटरशिप:
o प्रशिक्षण कार्यक्रमों को व्यवसाय रणनीति, वित्तीय साक्षरता और डिजिटल कौशल पर केंद्रित किया जाना चाहिए।
o अधिक मेंटरशिप नेटवर्क बनाए जाने चाहिए जो महिला उद्यमियों को अनुभवी व्यापार नेताओं से जोड़ सकें। - नीतिगत सुधार:
o सरकार को ऐसे नीतिगत कदम उठाने चाहिए जो महिला-नेतृत्व वाले व्यवसायों के लिए अनुपालन बोझ को कम करें।
o बेहतर मातृत्व लाभ और कार्यस्थल पर चाइल्डकेयर समर्थन महिलाओं को कार्य और परिवार के बीच संतुलन बनाने में मदद कर सकते हैं। - बाजार तक पहुंच और नेटवर्किंग:
o महिला उद्यमियों को B2B साझेदारी, सरकारी खरीद कार्यक्रमों और वैश्विक बाजारों तक बेहतर पहुंच की आवश्यकता है।
o महिला उद्यमिता प्लेटफॉर्म (WEPs) जैसी पहलें बाजार विस्तार में सहायक हो सकती हैं। - STEM में भागीदारी को प्रोत्साहन:
o अधिक महिलाओं को प्रौद्योगिकी और नवाचार-आधारित क्षेत्रों में प्रवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
o STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में महिलाओं के लिए छात्रवृत्तियां और फंडिंग लैंगिक अंतर को कम करने में मदद कर सकती हैं।
निष्कर्ष
भारत में महिला उद्यमिता बढ़ रही है, लेकिन अब भी संरचनात्मक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्टार्टअप इंडिया जैसी पहल ने समावेशी वातावरण तैयार किया है, फिर भी लैंगिक पूर्वाग्रह, वित्तीय बाधाएं और सामाजिक मानदंड महिला उद्यमियों की पूरी क्षमता को सीमित करते हैं।
मुख्य प्रश्न: "भारत में महिला उद्यमिता केवल एक आर्थिक आवश्यकता नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक उपकरण भी है।" महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स के लैंगिक समानता और सामाजिक गतिशीलता पर प्रभाव की आलोचनात्मक समीक्षा करें। |