की वर्ड्स: ESZs, EPA 1986, WPA 1972; गुजरात के मालधारी और तमिलनाडु के बेट्टाकुरंबा;
संदर्भ-
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सभी संरक्षित क्षेत्रों, वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास 1 किलोमीटर के पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्र स्थापित करने का आदेश दिया है। इस आदेश का केरल के किसानों ने विरोध किया है जो अदालत के आदेश के कारण विस्थापन से भयभीत हैं।
लेख की मुख्य विशेषताएं
इको-सेंसिटिव जोन क्या हैं?
- पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार घोषित किए गए हैं।
- इन्हें राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) में शामिल किया गया था।
- राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों की सीमाओं के 10 किमी को इको-फ्रैजाइल जोन या इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) के रूप में अधिसूचित किया जाना है।
- इस 10 किलोमीटर के नियम को सख्ती से लागू नहीं किया जाना है।
इको-सेंसिटिव जोन में किन गतिविधियों की अनुमति है और क्या प्रतिबंधित है?
इको-सेंसिटिव जोन में प्रतिबंधित गतिविधियाँ-
- वाणिज्यिक खनन
- सॉमिल्स - ये धूल उत्पन्न करते हैं जो जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- लकड़ी आदि का व्यावसायिक उपयोग।
इको-सेंसिटिव जोन में विनियमित गतिविधियाँ
- पेड़ों की कटाई।
- होटल और रिसॉर्ट की स्थापना,
- प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग,
- विद्युत केबलों का निर्माण,
- कृषि प्रणाली में भारी बदलाव
- भारी प्रौद्योगिकी को अपनाना,
- कीटनाशकों का उपयोग
- सड़कों का चौड़ीकरण।
अनुमत गतिविधियाँ
- चल रही कृषि या बागवानी प्रथाएं,
- वर्षा जल संचयन
- जैविक खेती
इको-सेंसिटिव जोन की आवश्यकता
"शॉक अब्सोर्बेर" के रूप में कार्य करते है-
- इन क्षेत्रों के आसपास होने वाली हानिकारक मानवजनित गतिविधियों का प्रभाव इन क्षेत्रों तक ही सीमित रहता है। इस तरह, वे संरक्षित क्षेत्रों (पीए) की रक्षा करते हैं।
संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करते है-
- शहरीकरण के प्रभाव को कम करना।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना।
- यह प्रायोगिक रूप से सिद्ध है कि जानवर इस क्षेत्र से बाहर नही जाते हैं।
- यह दैनिक आजीविका गतिविधियों में बाधा नहीं डालता बल्कि संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के पर्यावरण क्षेत्र को परिष्कृत करने का प्रयास करता है।
इको-सेंसिटिव जोन के खिलाफ चिंताएं-
आजीविका के प्रति असुरक्षा
- चूंकि स्थायी संरचनाओं के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, इस क्षेत्र में रहने वाले लोग अपनी आजीविका गतिविधियों के बारे में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
- हालिया अधिसूचना 4 लाख एकड़ (केरल) को ESZ के तहत रखेगी, इससे किसानों के जीवन पर असर पड़ेगा।
- शहरों में रह रहे कम आय वाले परिवारों के जीवन को प्रभावित कर सकता है जो इन क्षेत्रों में रहते हैं क्योंकि उन्हें विस्थापित करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
- इको-सेंसिटिव जोन के मौजूदा सीमांकन के खिलाफ कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इको-सेंसिटिव जोन की कोई भी व्यापक घोषणा लोगों के अधिकारों की उपेक्षा करेगी। स्थलाकृतिक भिन्नताओं (जैसे एक पहाड़ी के आसपास) के मामले में दूरी की माप में स्पष्टता नहीं होगी।
- इसके अतिरिक्त यह निर्णय भागीदारी नियोजन प्रक्रिया के विरुद्ध है क्योकिं इको-सेंसिटिव जोन के आसपास रहने वाले और इससे प्रभावित होने वाले लोगों से परामर्श नहीं लिया गया है।
निष्कर्ष-
जैव विविधता के संरक्षण और लोगों के आजीविका अधिकारों के बीच सही संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए। तभी संसाधनों का सतत प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकता है। गुजरात के मालधारी और तमिलनाडु के बेट्टाकुरुम्बा का उदाहरण संरक्षण के प्रति सहभागी दृष्टिकोण के लिए एक अच्छा उदाहरण है। मौजूदा संकट में इससे मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
स्रोत - इंडियन एक्सप्रेस
- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन।
मुख्य परीक्षा प्रश्न:
- इको-सेंसिटिव जोन क्या हैं? इको-सेंसिटिव जोन से सम्बंधित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?