संदर्भ:
- चुनावी लोकतंत्र की अखंडता किसी भी जीवंत लोकतांत्रिक समाज की आधारशिला मानी जाती है। भारत में, लोकतांत्रिक सिद्धांतों को संविधान में प्रतिष्ठापित किया गया है ताकि, लोकतांत्रिक लोकाचार को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सर्वोपरि बना रहे। हालाँकि, हाल की घटनाओं, जैसे कि चंडीगढ़ मेयर के चुनाव मामले ने, चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए संभावित चुनौतियों को रेखांकित किया है। इस लेख में, हम भारत के चुनावी लोकतंत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कर रहे हैं, हाल के न्यायिक हस्तक्षेपों के निहितार्थों का विश्लेषण कर रहे हैं और चुनावी प्रणाली की अखंडता की सुरक्षा के समधान सुझाने का प्रयास कर रहे हैं।
- चुनावी लोकतंत्र के लिए चुनौतियाँ:
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- चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन: चंडीगढ़ मेयर का चुनाव मामला निहित स्वार्थों द्वारा चुनावी प्रक्रिया में भ्रष्टकारिता का उदाहरण है। एक राजनीतिक दल से संबद्ध रिटर्निंग अधिकारी द्वारा डाला गया अनुचित प्रभाव प्रणालीगत कमजोरियों को उजागर करता है जो चुनावों की निष्पक्षता को कमजोर करता है।
- धार्मिक ध्रुवीकरण का उदय: भारतीय राजनीति में बढ़ता धार्मिक उत्साह धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। अवसरवाद से प्रेरित राजनीतिक दल चुनावी समर्थन प्राप्त करने के लिए धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाते हैं, कानूनी प्रावधानों और न्यायिक निर्देशों की अवहेलना करते हैं; जो धर्म के आधार पर अपील पर रोक लगाते हैं।
- संस्थागत अखंडता का क्षरण: चुनावी कदाचार के उदाहरण चुनावी ढांचे के भीतर संस्थागत अखंडता के व्यापक क्षरण को रेखांकित करते हैं। चुनावी मानदंडों के उल्लंघनों को संबोधित करने में उच्च न्यायालय सहित अधिकारियों की विफलता लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता के विश्वास को कम करती है।
- न्यायिक हस्तक्षेप और उपचारात्मक उपाय:
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- न्यायपालिका की भूमिका: ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से चुनावी अखंडता की रक्षा करने में सर्वोच्च न्यायालय का सक्रिय रुख लोकतांत्रिक सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में इसकी भूमिका को रेखांकित करता है। चुनावी बांड योजना और चंडीगढ़ मेयर के चुनाव मामले जैसे न्यायिक हस्तक्षेप, कानून के शासन को बनाए रखने और चुनावों की पवित्रता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता को उजागर करते हैं।
- कानूनी सुरक्षा और प्रवर्तन: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 सहित मौजूदा कानूनी प्रावधान, चुनाव कराने के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करते हैं। हालाँकि, चुनावी कदाचार के लिए प्रभावी प्रवर्तन तंत्र और भ्रष्टकारिता को रोकने सहित लोकतांत्रिक मानदंडों को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
- सार्वजनिक जागरूकता और नागरिक सहभागिता: चुनावी लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए नागरिक जागरूकता और सक्रिय नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देना अनिवार्य है। मतदाताओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करके, चुनावी अखंडता के महत्व पर जोर देकर और उत्तरदेयता की संस्कृति को बढ़ावा देकर; विभाजनकारी बयानबाजी और चुनावी कदाचार के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- धार्मिक ध्रुवीकरण को संबोधित करना:
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- कानूनी निषेध और न्यायिक उदाहरण: विधायी प्रावधान, जैसे कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123, चुनावी अभियानों में धर्म के आधार पर कानूनी/न्यायिक अपील पर रोक लगाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों सहित कई न्यायिक उदाहरण धर्मनिरपेक्षता की अनिवार्यता को सुदृढ़ करती हैं और राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के प्रयासों की आलोचना करती हैं।
- मीडिया और नागरिक समाज की भागीदारी: मीडिया मंच और नागरिक समाज संगठन सार्वजनिक चर्चा को आकार देने और विभाजनकारी आख्यानों का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिम्मेदार पत्रकारिता, निष्पक्ष रिपोर्टिंग और समावेशी राजनीति की सिफारिश चुनावी परिणामों पर धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रभाव का प्रतिकार कर सकती है।
- आगे की राह: चुनावी अखंडता सुनिश्चित करना
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- संस्थागत निगरानी को मजबूत करना: चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, भारत के चुनाव आयोग जैसे चुनावी निकायों की स्वायत्तता और जवाबदेही को बढ़ाना आवश्यक है। चुनावी शिकायतों की निगरानी और निवारण के लिए नियामक तंत्र लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता का विश्वास बढ़ा सकते हैं।
- राजनीतिक जवाबदेही और नैतिक नेतृत्व: राजनीतिक दलों को अपनी चुनावी रणनीतियों में नैतिक आचरण और जवाबदेही को प्राथमिकता देनी चाहिए। लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखना, कानूनी मानदंडों का सम्मान करना और समावेशी शासन को बढ़ावा देना सार्वजनिक विश्वास बनाने और चुनावी अखंडता को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य है।
- निरंतर न्यायिक सतर्कता: लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संवैधानिक मूल्यों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका की चुनावी प्रक्रियाओं की सतर्क निगरानी अपरिहार्य है। न्यायिक सक्रियता, न्यायिक मिसाल और संवैधानिक सिद्धांतों के पालन के साथ मिलकर, चुनावी कदाचार और पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप के खिलाफ एक सुरक्षात्मक ढाल के रूप में काम कर सकती है।
निष्कर्ष
- निष्कर्षतः, भारत के चुनावी लोकतंत्र के सामने मौजूद चुनौतियाँ लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए एकीकृत प्रयासों की तत्काल आवश्यकता को चिन्हित करती है। न्यायिक सतर्कता, विधायी सुधार, सार्वजनिक शिक्षा और संस्थागत मजबूती के माध्यम से, भारत अपनी चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को मजबूत कर सकता है। जैसे-जैसे राष्ट्र आगामी चुनावों के करीब पहुंचता है, उसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों के संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए, धार्मिक ध्रुवीकरण का मुकाबला करना चाहिए और समावेशिता और पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहिए।
- उत्तरदायित्व, नागरिक भागीदारी और बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता के प्रति सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देकर, भारत लोकतांत्रिक शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर सकता है और एक निष्पक्ष और प्रतिनिधि राजनीतिक वातावरण सुनिश्चित कर सकता है। इसके अलावा सामूहिक कार्रवाई और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति अटूट समर्पण के माध्यम से ही भारत अपने चुनावी परिदृश्य की जटिलताओं से निपट सकता है और वैश्विक मंच पर लोकतांत्रिक उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में उभर सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत- द हिंदू