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Daily-current-affairs / 10 Jan 2024

भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य में शल्य चिकित्सा देखभाल का उपेक्षित परिदृश्य

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संदर्भ:

 भारत में शल्य चिकित्सा देखभाल लंबे समय से सार्वजनिक स्वास्थ्य का उपेक्षित क्षेत्र रहा है। यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों द्वारा सामने आने वाली व्यापक चुनौतियों को भी दर्शाता है। 1.4 बिलियन से अधिक आबादी का देश होने के बावजूद भारत में, पिछले सात दशकों से शल्य चिकित्सा देखभाल पर अपेक्षित ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है, और 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में भी इसे अपर्याप्त महत्व दिया गया है।

वर्तमान परिदृश्य:

 यद्यपि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किये हैं, लेकिन भारत की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली उन शल्य चिकित्सा (सर्जरी) को "मामूली" के रूप में वर्गीकृत करती है, जिनके लिए सामान्य या स्पाइनल एनेस्थीसिया की आवश्यकता नहीं होती है। वित्तीय वर्ष 2019-2020 में, 14 मिलियन से अधिक मामूली सर्जरी दर्ज की गई, जो उस समय तक किये गए सभी सर्जरी का एक चौथाई भाग है। विशेषज्ञों का तर्क है कि यह आंकड़ा शल्य चिकित्सा देखभाल की वास्तविक आवश्यकता को अनिवार्य बनाता है।

वैश्विक स्तर पर शल्य चिकित्सा संबंधी लैंसेट आयोग (LCoGS); जनसंख्या को आधार मानकर सर्जिकल (शल्य चिकित्सा) देखभाल का आकलन करने के लिए छह प्रमुख संकेतकों की सिफारिश करता है। इन संकेतकों में शामिल हैं:

समय पर भौगोलिक पहुंच,

सर्जनों, प्रसूति विशेषज्ञों और एनेस्थेटिस्ट का कार्यबल घनत्व,

 सर्जिकल मात्रा,

  पेरिऑपरेटिव मृत्यु दर,

  निर्धनता का जोखिम, और

अत्यधिक व्यय की संभावना।

 न्यूज़ीलैंड जैसे देशों से भारत की तुलना करने पर, सर्जिकल दरों में असमानता स्पष्ट दिखती है, क्योंकि जहाँ न्यूज़ीलैंड में प्रति 1,00,000 लोगों पर 166 सर्जरी का अनुमान है, वहीं भारत में यह आंकड़ा 3,646 सर्जरी दर्शाता है।

पहुंच में बाधाएं:

 भारत में लाखों बच्चों और वयस्कों के लिए सर्जरी तक पहुंच का अधिकार उनकी स्थितियों की गंभीरता और वित्तीय क्षमताओं से परे है। एक रिपोर्ट का अनुमान है कि 90% से अधिक ग्रामीण भारतीयों के पास जरूरत पड़ने पर सर्जरी तक पहुंच की कमी है। इस गंभीर स्थिति के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं:

समय पर पहुंच:

 ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन सीमित है, जिससे लोगों को शहरी क्षेत्रों में स्थित अस्पतालों तक पहुंचने में कठिनाई होती है। मरीजों को अक्सर महंगे निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है, जो उनकी वित्तीय स्थिति पर अतिरिक्त बोझ डालता है।

  संसाधनों की उपलब्धता:

यदि व्यक्ति किसी प्रकार स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच भी जाते हैं, तब भी उपचार के लिए आवश्यक संसाधनों की अपर्याप्तता होती है। इस संदर्भ में सर्जिकल, एनेस्थीसिया और प्रसूति (एसओए) कार्यबल में कमी, विशेष रूप से गैर-महानगरीय क्षेत्रों में, एक महत्वपूर्ण चुनौती है।

असमानताएँ:

 भौगोलिक भिन्नताएं और वित्तीय क्षमताओं के अतिरिक्त अन्य असमानताएं अपेक्षित सर्जरी की क्षमता को कम करती हैं। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रमुख सर्जरी 7% से कम कवरेज के साथ उपलब्ध हैं।

   देखभाल की गुणवत्ता:

सुरक्षित परिणामों के लिए गुणवत्तायुक्त सर्जिकल देखभाल अनिवार्य है, जो सर्जनों के प्रशिक्षण, उपकरणों की उपलब्धता और उचित पेरिऑपरेटिव देखभाल जैसे कारकों पर निर्भर करती है।

 वित्तीय प्रभाव:

 सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का अभाव और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सीमित सर्जिकल-देखभाल क्षमताओं के कारण कई लोगों को निजी अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, ग्रामीण भारत में 60% से अधिक सर्जरी रोगियों पर अधिक वित्तीय दबाब पड़ता है।

शल्य चिकित्सा (सर्जरी) में व्याप्त कमियों को दूर करने की पहल:

 भारत की सर्जिकल देखभाल प्रणाली में व्याप्त अंतराल को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर  के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। इस दिशा मने कई नागरिक पहल और उप-राष्ट्रीय कार्यक्रम, जैसे  एसोसिएशन फॉर रूरल सर्जन्स ऑफ इंडिया, ईएमआरआई ग्रीन हेल्थ सर्विसेज, आपातकालीन चिकित्सा देखभाल और ट्रॉमा सेंटर आदि उल्लेखनीय हैं। साथ ही SEARCH और JSS जैसे कई संगठन दूरदराज के वंचित आबादी समूहों की भी सेवा करते हैं।

अन्य बातों के अलावा, व्यक्तिगत सर्जनों और ग्लोबल सर्जरी इंडिया हब जैसे समूहों ने तकनीकी नवाचारों और अनुसंधान नेटवर्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका उद्देश्य सर्जिकल देखभाल को बढ़ाना है। हालांकि ये पहल सराहनीय हैं, तथापि व्यवस्थगत अंतराल अभी भी विद्यमान हैं, जिसके लिए मौजूदा असमानताओं को समाप्त करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

सर्जिकल देखभाल में कार्य योजना की आवश्यकता:

सर्जिकल देखभाल की अपर्याप्त क्षमता में योगदान देने वाला एक बुनियादी कारण, समस्याओं के पहचान की कमी है। सर्जिकल देखभाल तक आम लोगों की पहुंच, सर्जरी के कारण रोकी जा सकने वाली बीमारियों का बोझ और सर्जरी का आर्थिक नुकसान अभी भी भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य चर्चा का अभिन्न अंग नहीं बन पाया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के अनुसार यह उपेक्षा स्वास्थ्य नीति निर्माण और सरकार की योजना में स्पष्टतः दृष्टिगोचर है।

समस्याओं को पहचान कर समाधान करना:

 भारत में सर्जिकल देखभाल की स्थिति में सुधार के लिए कई प्रयास किये जा सकते हैं, जैसे:

 राष्ट्रीय सर्जिकल प्रसूति एनेस्थीसिया योजनाएँ (एनएसओएपी): अफ्रीका और दक्षिण एशिया के अन्य देशों से प्रेरणा लेते हुए, भारत को एनएसओएपी या समकक्ष नीतियों को शुरू करने और लागू करने की आवश्यकता है। ये योजनाएं सर्जिकल देखभाल पहुंच, कार्यबल विकास और बुनियादी ढांचे में सुधार संबंधित रूपरेखा प्रदान करेंगी।

डेटा निगरानी और मूल्यांकन: सर्जिकल देखभाल संकेतकों की निगरानी और मूल्यांकन के लिए डेटा संग्रह में निवेश आवशयक है। व्यापक डेटा की कमी लम्बे समय से इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बाधा रही है। अतः समर्पित डेटा संग्रह तंत्र बनाने के साथ-साथ मौजूदा सर्वेक्षणों और प्रणालियों में सर्जिकल देखभाल डेटा को एकीकृत करने से भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

 सार्वजनिक जागरूकता: सार्वजनिक स्वास्थ्य के मूलभूत पहलू के रूप में सर्जिकल देखभाल के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना आवश्यक है। इन प्रयासों का उद्देश्य सर्जिकल देखभाल को मुख्यधारा वाले स्वास्थ्य नीति में एकीकृत करने सहित बढ़ती बीमारी के बोझ तथा उसके कारण उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों को रोकना है।

 यूनिवर्सल हेल्थकेयर कवरेज: यूनिवर्सल हेल्थकेयर कवरेज का विस्तार सर्जिकल देखभाल चाहने वाले व्यक्तियों पर वित्तीय बोझ को कम कर सकता है। इसमें मुफ्त या रियायती शल्य चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

निष्कर्ष:

     भारत में सर्जिकल देखभाल का वर्तमान परिदृश्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का प्रतीक है। हालांकि जमीनी स्तर पर यहाँ की सराहनीय पहल कार्य कर रहे हैं,फिर भी  व्यवस्थगत अंतराल बना हुआ है। यह अंतराल सर्जिकल देखभाल को व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य पहुँच में एकीकृत करने के एक ठोस प्रयास की आवश्यकता पर बल देते हैं। सर्जरी तक पहुंच के अधिकार को एक बुनियादी आवश्यकता के रूप में पहचानना और व्यापक नीतियों और रणनीतियों को लागू करना भारत में व्याप्त असमानताओं को दूर करने और सर्जिकल देखभाल की समग्र स्थिति में सुधार लाने के लिए अनिवार्य होगा।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

 

  1. अपर्याप्त पहुंच, संसाधन की कमी और भौगोलिक असमानताओं जैसे कारकों पर जोर देते हुए, भारत में सर्जिकल देखभाल में आने वाली बाधाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इन चुनौतियों का समाधान करने और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की समग्र प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए व्यापक नीतिगत उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)
  2. वैश्विक बेंचमार्क की तुलना में भारत में सर्जिकल दरों में असमानता की जांच करें। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इस असमानता के प्रभाव का आकलन करें और प्रभावी निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए सर्जिकल देखभाल में मौजूद अंतराल को समाप्त करने के लिए संभावित रणनीतियों पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)

 

 

स्रोत: – The Hindu