Date : 14/12/2023
प्रासंगिकता: ससामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2- भारतीय राजव्यवस्था -आपराधिक न्याय
कीवर्ड्स: फयूएपीए, 2010 का विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए), व्यक्तिगत स्वतंत्रता
संदर्भ:
- पत्रकार फहद शाह के मामले में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा हाल ही में दिए गए निर्णय से राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मध्य संतुलन का संवेदनशील मुद्दा सामने आया है।
- इस लेख में हम गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) 1967 का राष्ट्रीय सुरक्षा में महत्व और इससे उत्पन्न व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए चुनौती को समझेंगे, साथ ही उच्च न्यायालय द्वारा दिए हालिया निर्णय के निहितार्थों का भी विश्लेषण करेंगे।
क्या है यूएपीए?
- गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967, भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए संकट उत्पन्न करने वाले संगठनों और उनकी गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु अधिनियमित किया गया था।
- इस अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग अलगाववादी संगठनों की पहचान करने और उन्हें गैरकानूनी घोषित करने के लिए किया जाता है।
महत्वपूर्ण प्रावधान-
- यूएपीए की धारा 43-डी (5) के अनुसार, यदि पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अभियुक्त पर लगे आरोपों को 'प्रथम दृष्टया ' सत्य साबित करते हैं तो न्यायालय आरोपी को जमानत नहीं देगा।
- यूएपीए की धारा 18 के तहत, आतंकवादी कार्यों के षड्यंत्र हेतु दंड का प्रावधान हैं। वर्तमान मामले में, इस खंड का प्रयोग षड्यंत्र के प्राथमिक साक्ष्य के रूप एक समाचार पत्र के लेख को आधार बनाया गया है।
- इसके अतिरिक्त, यूएपीए की धारा 13 ऐसी गतिविधियों को नियंत्रित करती है जो किसी गैरकानूनी कार्यों का समर्थन, प्रेरित अथवा सलाह देती हैं ।
फहद शाह मामले की पृष्ठभूमिः
- फहद शाह, पेशे से एक पत्रकार हैं जिनपर भारतीय दंड संहिता, विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) 2010 और यूएपीए की धारा 13 व 18 के तहत आरोप लगाए गए हैं।
- उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में जमानत देने और आंशिक रूप से आरोपों को खारिज करने का निर्णय सुनाया है। उच्च न्यायालय का यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित यूएपीए से जुड़े व्यापक मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
न्यायालय द्वारा उठाए गए मुद्देः
यू. ए. पी. ए. के तहत अपराधों की प्रकृतिः
- यूएपीए कानून के तहत आतंकवादी कार्यों की भाषा अस्पष्ट है।
- इस अस्पष्टता के कारण धारा 18 के तहत ऐसे कार्यों को भी आतंकवादी कार्यों में शामिल किया जा सकता हैं जो वास्तविक हिंसा से संबंधित नहीं होते हैं।
- हालिया मामले में देखा गया है कि किसी लेख को ऑनलाइन प्रकाशित करने जैसे कार्य भी इस कानून के तहत आतंक फैलाने वाले प्रारंभिक या षड्यंत्रकारी कृत्यों के रूप में माने जा सकते हैं।
प्रक्रियात्मक चुनौतियां और जमानत से इनकार
- यूएपीए की धारा 43-डी (5) के तहत ऐसी प्रक्रियात्मक चुनौतियां हैं कि, यदि पुलिस अभियुक्त पर लगे आरोपों को 'प्रथम दृष्टया सच' साबित करती है तो न्यायालय ऐसे मामलों में जमानत नहीं दे सकती है ।
- उच्च न्यायालय का यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर इस प्रावधान के पड़ने वाले प्रभावों पर सवाल उठाता है और इसके व्यापक अनुप्रयोग के खिलाफ चेतावनी देता है।
- फहद शाह का मामला इस बात के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता को संदर्भित करता है कि क्या 'प्रथम दृष्टया सच' दिखाई देने वाले सभी आरोपों में जमानत से इनकार किया जाना अनिवार्य व उचित है ?
आतंकवाद कृत्य के रूप में राष्ट्रीय मानहानिः
- फहद शाह के एक लेख की, आतंकवादी कृत्य के साथ तुलना करने का अभियोजन पक्ष का प्रयास यूएपीए कानून पर प्रश्नचिह्न लगाता है ।
- सरकार ने तर्क दिया था कि इस लेख का उद्देश्य भारत की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाना है , जो कि एक आतंकवादी कृत्य है। लेकिन उच्च न्यायालय ने इस धारणा को खारिज करते हुए कहा कि मानहानि को आतंकवाद के रूप में मानने से आपराधिक कानून विकृत हो जाएगा।
'स्पष्ट और वर्तमान खतरा' परीक्षणः
- इस निर्णय में जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने 'स्पष्ट और वर्तमान संकट' के परीक्षण की अवधारणा का उल्लेख किया है। न्यायालय का कहना है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों और न्यायालय दोनों को गिरफ्तारी और निरंतर नजरबंदी से पहले यह देखना चाहिए कि किसी कृत्य से वर्तमान में स्पष्ट संकट है या नहीं।
- एक सक्रिय संकट तथा अपराध में प्रत्यक्ष रूप से संलिप्त व्यक्ति के बीच अंतर करते हुए, उच्च न्यायालय धारा 43-डी (5) को लागू करने और इसके दुरुपयोग को रोकने हेतु एक सूक्ष्म दृष्टिकोण को लागू करने की वकालत करता है।
क्षतिपूर्ति और जवाबदेहीः
- हालांकि निर्णय में ठोस कानूनी मुद्दों को तो उठाया गया है, लेकिन यह अनुचित गिरफ्तारी और कारावास के लिए मुआवजे तथा जवाबदेही के सवालों को उठाने में विफल रहा है।
- यह निर्णय फहद शाह के मामले में अभियुक्त को मुआवजा देने या हिरासत के दौरान हुई हानि के लिए राज्य को जवाबदेह ठहराने के प्रावधानों के अभाव पर प्रकाश डालता है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मार्गः
- फहद शाह का मामला इस तरह के विधि के समक्ष व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
- यह निर्णय वर्नोन गोंजाल्विस में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के समान राज्य को जवाबदेह ठहराने की प्रतिबद्धता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
वर्नोन गोंजाल्विस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद नवी मुंबई की तलोजा जेल से रिहा कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि आतंकवादी गतिविधियों में उनकी प्रत्यक्ष संलिप्तता के साक्ष्यों का अभाव है। इस मामले में 2017 में एल्गार परिषद सम्मेलन शामिल था; इस पर आरोप था कि यह माओवादियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जिसके कारण कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक पर हिंसा हुई थी।
आगे का रास्ता
- यद्यपि भारत में एक मजबूत आतंकवाद विरोधी कानून की आवश्यकता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में गंभीर विसंगतियों पर भी रोक लगानी चाहिए । मौजूदा यू. ए. पी. ए. कानून में आतंकवाद को एक संज्ञेय अपराध के रूप में संबोधित करने के लिए प्रभावी प्रावधान तो शामिल हैं, लेकिन इसमें कुछ कमियाँ भी हैं जिन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- यू. ए. पी. ए. कानून को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के लिए बनाया गया था, यह एक सख्त कानून साबित हुआ है। इसके तहत आरोपी व्यक्तियों को बरी होने से पहले एक दशक से अधिक समय तक जेल में बिताना पड़ा है, जो इसके दुरुपयोग की संभावना को उजागर करता है। यह अधिनियम, आरोप पत्र दायर करने के लिए विस्तारित समयसीमा और जमानत की कड़ी शर्तों सहित राज्य को भारतीय दंड संहिता की तुलना में अधिक शक्तियां प्रदान करता है। इन प्रावधानों में तार्किकता और सुधार की आवश्यकता है, जिससे राज्य की जिम्मेदार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।
- कार्यपालिका से स्वतंत्र एक संवैधानिक पदाधिकारी स्थापित करने के लिए अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है, जो इस कानून के तहत अभियोजन और जांच के लिए उत्तरदाई हो । इस उद्देश्य के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को नामित करना एक व्यवहार्य समाधान हो सकता है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि आतंकवाद और गैरकानूनी गतिविधियाँ राजनीतिक मुद्दे होते हैं परंतु अधिनियम के प्रभावी होने के लिए, इसका अनुप्रयोग लगातार गैर-राजनैतिक तरीके से होना चाहिए।
निष्कर्ष-
फहद शाह का मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए यू. ए. पी. ए. जैसे आतंकवाद विरोधी कानूनों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को रेखांकित करता है। हालांकि निर्णय एक क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत तो नहीं करता है, लेकिन यह एक अनुस्मारक के रूप में कार्य जरूर करता है जिससे स्पष्ट है कि अदालतें व्यक्तिगत अधिकारों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
यह जवाबदेही सुनिश्चित करने, राज्य के कार्यों पर सवाल उठाने और राष्ट्रीय सुरक्षा व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संवेदनशील संतुलन स्थापित करने के लिए चल रहे प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देता है। जैसे-जैसे कानूनी परिदृश्य विकसित होगा वैसे-वैसे फहद शाह का मामला आतंकवाद विरोधी कानून के संदर्भ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा पर चल रहे विमर्श में एक उदाहरण के रूप में स्थापित होगा ।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
- गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यू. ए. पी. ए.) के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा करें और फहद शाह मामले के विशेष संदर्भ में विश्लेषण करें कि इसका अनुप्रयोग, संभावित रूप से कैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। (10 Marks, 150 Words)
- फहद शाह मामले के आलोक में, यूएपीए की धारा 43-डी (5) द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों की जांच करें, जो अदालतों को जमानत देने से रोकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन पर ऐसे प्रावधानों के प्रभावों का मूल्यांकन भी करें। (15 Marks, 250 Words)
Source- The Hindu