संदर्भ
ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस (GANHRI) द्वारा भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की मान्यता को लगातार दूसरे वर्ष के लिए स्थगित कर दिया गया है, जिससे आयोग की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर चिंताएँ बढ़ गई हैं। यह स्थगन इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि यह एनएचआरसी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने या मतदान से वंचित करता है, साथ ही यह वैश्विक मानवाधिकार चर्चा में आयोग की मान्यता के महत्व को रेखांकित करता है। ध्यातव्य है कि 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत स्थापित, एनएचआरसी भारत में मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मान्यता देने वाली एजेंसी: जीएएनएचआरआई और इसकी मान्यता उपसमिति (एससीए)
जीएएनएचआरआई में लगभग 120 राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों का प्रतिनिधित्व है। यह प्रत्येक पांच वर्ष में पेरिस सिद्धांतों के आधार पर इन निकायों की समीक्षा करने के साथ इन्हे मान्यता प्रदान करता है। मान्यता उपसमिति (SCA) सदस्य संस्थानों को 'A' और 'B' समूहों में श्रेणीबद्ध करती है, जो इन सिद्धांतों के पूर्ण या आंशिक अनुपालन को इंगित करता है। 29 नवंबर, 2023 तक, 120 संस्थानों को मान्यता प्राप्त थी, जिनमें से 88 को 'A' दर्जा प्राप्त था, यह दर्जा पूर्ण अनुपालन को दर्शाता है।
पेरिस सिद्धांत: प्रभावी कार्यप्रणाली के मापदंड
1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए पेरिस सिद्धांत, राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करते हैं ताकि संस्थानों की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता सुनिश्चित हो सके। इन सिद्धांतों में सार्वभौमिक मानवाधिकार मानदंडों पर आधारित व्यापक जनादेश, सरकारी प्रभाव से स्वायत्तता, कानून द्वारा सुनिश्चित स्वतंत्रता, सदस्यता में बहुलता , पर्याप्त संसाधन और जांच शक्तियाँ शामिल हैं। इसके अलावा, ये सिद्धांत आयोगों की विभिन्न स्रोतों से शिकायतें प्राप्त करने की क्षमता को भी दर्शाते है, जिससे व्यक्तियों, गैर-सरकारी संगठनों और ट्रेड यूनियनों से शिकायतें प्राप्त की जा सकें।
मान्यता खोने के प्रभाव
एनएचआरआई की मान्यता की स्थिति का सीधा प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मंचों, जैसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और इसके सहायक निकायों में भागीदारी पर पड़ता है। 'A' दर्जा वाले संस्थान मतदान अधिकार और GANHRI की पूर्ण सदस्यता के लिए पात्र होते हैं, जबकि 'B' दर्जा वाले संस्थानों की भागीदारी सीमित होती है। बिना मान्यता के, एनएचआरसी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता और जीएएनएचआरआई के भीतर शासन संबंधी पदों को धारण नहीं कर सकता, परिणामस्वरूप भारत की अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सहभागिता प्रभावित होती है।
स्थगन के कारण और संबंधित चिंताएँ
भारत की मान्यता स्थगित करने का निर्णय एससीए बैठक के दौरान उठाई गई चिंताओं से उपजा है, इन चिंताओं में पिछले रिपोर्टों में हाइलाइट किए गए मुद्दे शामिल हैं। जिसमें नियुक्तियों में पारदर्शिता, हितों के टकराव और आयोग के भीतर अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी है। इसके अलावा, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच सहित कई मानवाधिकार संगठनों ने भारत में नागरिक संस्थानों पर बढ़ते प्रतिबंधों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव पर चिंता व्यक्त की। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भी इन चिंताओं को दोहराया, जिसमें अल्पसंख्यकों, मीडिया और नागरिक समाज पर हमलों पर बल दिया गया।
भारत की मान्यता संबंधित इतिहास और समीक्षा प्रक्रिया
1993 में अपनी स्थापना के बाद से, एनएचआरसी, जीएएनएचआरआई कई आवधिक मान्यता समीक्षाओं से गुजरा हैं। 1999 में प्रारंभिक मान्यता प्राप्त करने के बाद, आयोग को 2016 और 2023 में विभिन्न कारणों से मान्यता स्थगन का सामना करना पड़ा। इन कारणों में एनएचआरसी कर्मचारियों के भीतर राजनीतिक संबद्धताओं और लाँगिक प्रतिनिधित्व पर चिंताएँ शामिल हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, आयोग ने बाद की समीक्षाओं में 'A' दर्जा प्राप्त किया, जो मान्यता मानदंडों को संबोधित करने की इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
निष्कर्ष
भारत के एनएचआरसी की मान्यता का लगातार दूसरे वर्ष स्थगन अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों और सिद्धांतों का पालन करने के महत्व को रेखांकित करता है। जीएएनएचआरआई और मानवाधिकार संगठनों द्वारा उठाई गई चिंताओं को संबोधित करना एनएचआरसी की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण है। मान्यता प्रक्रिया के साथ भारत की सहभागिता न केवल इसकी मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है बल्कि वैश्विक मानवाधिकार समुदाय में इसकी स्थिति को भी दर्शाता है। कमियों को दूर करने और पेरिस सिद्धांतों का पालन करने के लिए ठोस प्रयास एनएचआरसी की मान्यता सुरक्षित करने और मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को पुन: पुष्टि करने के लिए आवश्यक हैं।
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स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस