संदर्भ:
- भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मामले के निर्णय ने नागरिकों और विशेषज्ञों के बीच निराशा उत्पन्न है। इस निराशा का मुख्य कारण सांख्यिकीय सिद्धांतों के दायरे में, चुनावी प्रक्रियाओं की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने में उनके अनुप्रयोग को दर्शाता है। विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं के समानांतर, इंडियाना द्वारा पाई (Pi) के मान को विधायी बनाने का प्रयास इस मौलिकता को रेखांकित करता है, कि विज्ञान, गणित और सांख्यिकी में सत्य को विधायी या न्यायिक निकायों द्वारा मनमाने ढंग से अनिवार्य नहीं किया जा सकता।
- VVPAT-आधारित EVM लेखा परीक्षा के संदर्भ में, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को एक समान लागू करके, सांख्यिकीय नमूनाकरण सिद्धांत को जांच के दायरे में लाया जा रहा है। हालाँकि वीपीएटी सत्यापन इस बात की पुष्टि करता है, कि मत डाले गए वोट के अनुसार ही रिकॉर्ड किए गए हैं। तथापि यह ईवीएम की खराबी या हेरफेर के जोखिम को समाप्त नहीं करता है, जिसके लिए सांख्यिकीय सिद्धांतों के साथ संरेखित एक मजबूत लेखा परीक्षा तंत्र की आवश्यकता होती है।
अदालत के निर्देश और चुनौतियां:
- न्यायालय का निर्णय, भले ही सुविचारित हो, लेकिन लेखापरीक्षा प्रक्रिया की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करने में यह अभी भी विफल रहा है। ई. वी. एम. की संख्या को निर्दिष्ट किए बिना एक समान नमूना आकार निर्धारित करके निर्णय लेना, सांख्यिकीय नमूना सिद्धांत के मूलभूत सिद्धांतों की अनदेखी करता है। इसके अलावा, एक दोषपूर्ण ईवीएम की स्थिति में अगले चरणों पर स्पष्टता की कमी ऑडिट प्रोटोकॉल की अस्पष्टता को भी उजागर करता है।
- आलोचकों का तर्क है, कि निर्धारित नमूना आकार आत्मविश्वास के वांछित स्तर के साथ संभावित विसंगतियों का पता लगाने के लिए अपर्याप्त है। सांख्यिकीय विश्लेषण के आधार पर, अदालत द्वारा दोषपूर्ण ईवीएम का पता लगाने में विफल रहने की संभावना अस्वीकार्य रूप से अधिक है, जो वीवीपीएटी सत्यापन के उद्देश्य को अप्रभावी बनता है। यद्यपि भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने ईवीएम और वीवीपीएटी की गिनती के बीच असंतुलित उदाहरणों की कमी का हवाला दिया है, यह दावा वर्तमान ऑडिट ढांचे में निहित प्रणालीगत खामियों को दूर करने में विफल रहा है।
चुनावी खामियां और वीवीपीएटी-आधारित लेखा परीक्षा:
- चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के लिए, उस स्तर के वीवीपीएटी-आधारित लेखा परीक्षा प्रणाली को लागू करना अनिवार्य है, जो उच्च स्तर की सटीकता के साथ विसंगतियों का पता लगाने में सक्षम हो। इसमें ईवीएम की संख्या और लेखा परीक्षा प्रक्रिया के दौरान पहचाने गए दोषपूर्ण इकाइयों के त्वरित समाधान हेतु एक स्पष्ट प्रोटोकॉल स्थापित करना आवश्यक है। इस सन्दर्भ में ऐच्छिक रूप से कुछ नमूनों पर निर्भर होने के बजाय, जो सटीकता की कोई गारंटी नहीं देते हैं; चुनावी प्रक्रिया में आम जनों का विश्वास उत्पन्न करने के लिए एक सांख्यिकीय रूप से सुसंगत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
- प्रस्तावित EVM-VVPAT प्रबंधन दृष्टिकोण मतगणना के दिन प्रारंभिक मिलान करने की सिफारिश करता है, जहां EVM गणना पर आधारित परिणाम एक सुधारात्मक प्रयास हो सकता है। किन्तु, यदि मिलान सही नहीं हो तो उस स्थिति में, समग्र ईवीएम के लिए वीवीपीएटी पर्चियों की मैन्युअल गणना की जानी चाहिए, जिसके परिणाम वीवीपीएटी गणना के आधार पर निर्धारित किए जाएंगे। यह दृष्टिकोण न केवल सांख्यिकीय सिद्धांतों को बनाए रखता है बल्कि लेखा परीक्षा प्रक्रिया में दक्षता और सटीकता के मध्य भी संतुलन बनाता है।
- EVM-VVPAT प्रबंधन से पहले यह गौर करना आवश्यक है, कि स्वतंत्र, निष्पक्ष, समावेशी, सुगम और प्रलोभन मुक्त निर्वाचन के लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था की आधारशिला होने के नाते यह शांतिपरक और विकासमान प्रतिफलों की एक पूर्व-शर्त है। ये आधारभूत संकल्पनाएं इस समझ को अभिव्यक्त करती हैं कि संप्रभुता पर देश के लोगों का हक है और यह (संप्रभुता) उनसे निःसृत होती है। इसके अलावा समावेशन का अर्थ असमानताओं को, विशेष रूप से महिलाओं, दिव्यागंजनों, वरिष्ठ नागरिकों, युवा मतदाताओं और हाशिए की आबादी समायोजित करना भी है।
निष्कर्ष:
- इस प्रकार, ईवीएम-वीपीएटी मामले पर हालिया निर्णय, सांख्यिकी और गुणवत्ता नियंत्रण के मूलभूत सिद्धांतों के साथ चुनावी प्रक्रियाओं के महत्व को रेखांकित करता है। हालाँकि चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा को सुरक्षित रखने का विचार सराहनीय है, लेकिन वर्तमान दृष्टिकोण पहले से स्थापित सांख्यिकीय मानदंडों के कारण इस उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल रहता है। इसके साथ ही साथ, लेखा परीक्षा प्रोटोकॉल को संशोधित करने की भी तत्काल आवश्यकता है, ताकि एक सांख्यिकीय रूप से सुदृढ़ और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित की जा सके जो नागरिकों और हितधारकों के बीच समान रूप से विश्वास बनाए रख सके।
- अपवाद-आधारित प्रबंधन दृष्टिकोण को अपनाने और सांख्यिकीय नमूनाकरण सिद्धांतों का पालन करके, भारत एक मजबूत वीवीपीएटी-आधारित लेखा परीक्षा प्रणाली स्थापित कर सकता है। यह प्रणाली किसी भी विसंगति का पता लगाने और उसे उच्च स्तर की सटीकता के साथ संबोधित करने में सक्षम है। उक्त उपायों के माध्यम से ही हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि प्रत्येक वोट का अपना विशेष महत्त्व है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत- द हिंदू