सन्दर्भ:
- निजी निवेश किसी भी देश की आर्थिक संवृद्धि और विकास का एक प्रमुख चालक है। इसमें बुनियादी ढांचा, मशीनरी और भवन जैसे अचल पूंजी निर्माण हेतु प्रयुक्त संसाधनों के आवंटन को शामिल किया जाता है। सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) निजी निवेश का एक प्रमुख माप है, जो अर्थव्यवस्था के भीतर अचल पूंजी के स्टॉक में वृद्धि को दर्शाता है। वर्तमान भारत में, निजी निवेश का प्रक्षेपवक्र आर्थिक समृद्धि और जीवनयापन मानकों के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है।
निजी सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) को समझना:
- निजी सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF), निजी क्षेत्र की अचल पूंजी के विस्तार में, निवेश करने की इच्छा दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण संकेतक है। इसमें विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में निजी संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले निवेश शामिल हैं। ये निवेश अर्थव्यवस्था के भीतर उत्पादकता बढ़ाने, आर्थिक उत्पादन को गति देने और नवाचार को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं। इसके अलावा, निजी जीएफसीएफ आर्थिक वातावरण में व्यवसायों के विश्वास और भविष्य में निवेश पर उनके लाभ की सम्भावना को प्रबल बनाता है।
- GFCF इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आर्थिक विकास और जीवन स्तर में सुधार के उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। उत्पादन और उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर, अचल पूंजी में निवेश; रोजगार, आय सृजन और समग्र आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करता है। विकसित अर्थव्यवस्थाएं प्रति व्यक्ति उच्च स्तर की अचल पूंजी प्रदर्शित करती हैं, जो दीर्घकालिक समृद्धि और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में निवेश की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।
निजी निवेश के रुझान: भारत का परिदृश्य
- भारत में, निजी निवेश का प्रक्षेपवक्र, विभिन्न आर्थिक कारकों और नीतिगत सुधारों से प्रभावित होकर उतार-चढ़ाव का गवाह बना है। विगत कुछ दशकों का विश्लेषण किया जाए, तो यह स्पष्ट हो जाता है, कि 1980 के दशक के उत्तरार्ध और 1990 के दशक के प्रारंभ में भारत सरकार द्वारा किए गए आर्थिक उदारीकरण सुधारों के पश्चात् निजी निवेश को गति प्राप्त हुआ। इन सुधारों ने निजी क्षेत्र के विश्वास को मजबूत किया और सार्वजनिक निवेश के पारंपरिक वर्चस्व को चुनौती दी। उदारीकरण के बाद, निजी निवेश में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई, जिसने GDP के प्रतिशत के रूप में सार्वजनिक निवेश को पीछे कर दिया।
- यद्यपि, यह सकारात्मक प्रवृत्ति टिकाऊ नहीं रही। 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट से पूर्व की अवधि में निजी निवेश की वृद्धि अपने चरम पर पहुंच गई थी, जो GDP के लगभग 27% के आसपास थी। हालाँकि, 2011-12 के बाद से निजी निवेश में निरंतर गिरावट आई है, जो 2020-21 तक घटकर GDP के 19.6% पर पहुँच गई। यह गिरावट निजी क्षेत्र की पूंजी निर्माण और आर्थिक विस्तार में भागीदारी को बाधित करने वाली अंतर्निहित चुनौतियों और विसंगतियों की संकेतक है।
निजी निवेश में गिरावट को प्रभावित करने वाले कारक:
- निजी निवेश में गिरावट के लिए व्यापक आर्थिक परिस्थितियाँ से लेकर नीतिगत अनिश्चितता तक के बहुआयामी कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालांकि कुछ अर्थशास्त्री इस गिरावट का श्रेय निजी उपभोग व्यय को देते हैं। तथापि निजी उपभोग व्यय और निजी निवेश के बीच संबंध की गतिशीलता जटिल है, और इस संबंध में अर्थशास्त्रियों के परस्पर विरोधाी दृष्टिकोण मौजूद हैं।
- कुछ अर्थशास्त्री यह तर्क देते हैं, कि मजबूत निजी उपभोग व्यय कारोबारों में मांग वृद्धि का विश्वास उत्पन्न करती है, जिससे वे भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए अचल पूंजी में निवेश करने हेतु प्रोत्साहित होते हैं। दूसरी ओर, कुछ अर्थशास्त्री इस बात का तर्क देते हैं कि कमजोर निजी उपभोग व्यय से अतिरिक्त क्षमता का निर्माण हो सकता है, जो बदले में निवेश को कम कर सकता है।
- हालांकि, भारत के ऐतिहासिक आंकड़े उपभोग और निवेश के बीच एक विपरीत संबंध का सुझाव देते हैं, जो दर्शाता है कि उपभोग व्यय में गिरावट ने कई बार निजी निवेश को प्रोत्साहित किया है। यह विरोधाभास आर्थिक गतिशीलता की जटिलता और उपभोग पैटर्न और निवेश निर्णयों के मध्य के परस्पर संबंधों को रेखांकित करता है।
कम निजी निवेश के प्रभाव:
- निजी निवेश में कमी के व्यापक प्रभाव क्षणिक आर्थिक संकेतकों से परे दीर्घकालिक वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं। निजी निवेश में स्थिरता या गिरावट आर्थिक विस्तार को खतरे में डाल सकती है, साथ ही उत्पादन और उत्पादन वृद्धि की क्षमता को सीमित कर देती है। नतीजतन, आर्थिक विकास की गति बाधित होती है, जिससे रोजगार के अवसर, आय सृजन और जीवन स्तर कम हो जाता है।
- इसके अलावा, निजी निवेश की कमी की भरपाई के लिए सरकारी निवेश पर निर्भरता कई चुनौतियों को जन्म देती है, जैसे कि निजी क्षेत्र की भागीदारी कम होना और संसाधन आवंटन में संभावित अक्षमता। जहाँ सरकारी निवेश अल्पकालिक आर्थिक चुनौतियों को कम कर सकता है, वहीं सार्वजनिक व्यय पर निरंतर निर्भरता निजी क्षेत्र के निवेश में निहित बाजार की गतिशीलता और नवाचार को बाधित कर सकती है।
निष्कर्ष:
- निष्कर्षतः, निजी निवेश का प्रक्षेपवक्र, जैसा कि सकल स्थिर पूंजी निर्माण में परिलक्षित होता है, आर्थिक विकास और संवृद्धि के लिए अनिवार्य है। भारत में निजी निवेश में गिरावट कम उपभोक्ता व्यय से लेकर नीतिगत अनिश्चितताओं तक की अंतर्निहित चुनौतियों को रेखांकित करती है। इन चुनौतियों के समाधान हेतु पूंजी निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए एक अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों, निवेश प्रोत्साहनों और संरचनात्मक संवर्द्धन को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए किया जानेवाला निरंतर प्रयास अर्थव्यवस्था की पूरी क्षमता का उपयोग करने, नवाचार को बढ़ावा देने और जनता के जीवन स्तर में सुधार के लिए अनिवार्य हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: 1. "भारत में निजी निवेश के प्रक्षेप पथ का विश्लेषण करते हुए, 2011-12 के बाद से इसमें गिरावट में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा करें। उपभोग व्यय और निजी निवेश के बीच संबंधों पर विरोधाभासी विचार आर्थिक गतिशीलता की जटिलता को कैसे रेखांकित करते हैं? निजी को पुनर्जीवित करने के लिए नीतिगत उपायों का प्रस्ताव करें निवेश और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।" (10 अंक, 150 शब्द) 2. "भारत की आर्थिक वृद्धि और विकास पर घटते निजी निवेश के निहितार्थों की जांच करें। निजी निवेश में कमी की भरपाई के लिए सरकारी निवेश पर निर्भरता आर्थिक नीति निर्माताओं के लिए चुनौतियां और व्यापार-बंद कैसे पैदा करती है? निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए रणनीतियों का सुझाव दें व्यापक आर्थिक स्थिरता और समावेशी विकास सुनिश्चित करते हुए पूंजी निर्माण।"(15 अंक, 250 शब्द) |
स्रोत- द हिंदू