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Daily-current-affairs / 05 Mar 2024

विश्वविद्यालय रैंकिंग प्रणाली की जटिलताएँ - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -

हमेशा से, वैश्विक उच्च शिक्षा परिदृश्य को आकार देने में विश्वविद्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि किस विश्वविद्यालय में शिक्षा का स्तर कैसा है; इस हेतु विश्वविद्यालयों को उत्कृष्टता क्रम में कई संस्थानों द्वारा रैंकिंग प्रदान की जाती है। टाइम्स हायर एजुकेशन (टीएचई), क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस), अकादमिक रैंकिंग ऑफ वर्ल्ड यूनिवर्सिटीज (एआरडब्ल्यूयू) और U.S. न्यूज़ एंड वर्ल्ड रिपोर्ट दुनिया भर में सबसे प्रभावशाली रैंकिंग प्रणालियाँ हैं। ये प्रणालियाँ शिक्षण की गुणवत्ता, अनुसंधान आउटपुट, प्रतिष्ठा, उद्योग साझेदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को शामिल करते हुए बहुआयामी मानदंडों के आधार पर विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन करती हैं।

रैंकिंग प्रणालियों की आलोचना

  • एलिजाबेथ गैड की आलोचना के अनुसार, यदि हम विश्वविद्यालय की रैंकिंग और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की मापन प्रणाली के बीच समानताओं को देखें तो रैंकिंग प्रणाली इन संस्थानों को एकल-आयामी स्कोर तक सीमित कर देती हैं। जिस तरह सकल घरेलू उत्पाद किसी देश की संपूर्ण समृद्धि को दर्शाने में विफल रहता है, उसी तरह रैंकिंग प्रणाली समाज में विश्वविद्यालयों की बहुआयामी भूमिकाओं को पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर पाती है।

अनुसंधान उत्कृष्टता में उद्धरण(Citations)

  • अनुसंधान उत्कृष्टता के उपाय के रूप में उद्धरणों पर निर्भरता ने अकादमिक हलकों में बहस छेड़ दी है। यद्यपि उद्धरण विभिन्न विद्वानों के काम के प्रभाव को दर्शाते हैं, लेकिन इनमे बदलाव और इन्हे विकृत भी किया जा सकता है। विश्वविद्यालयों द्वारा अपनी रैंकिंग में सुधार करने के लिए उद्धरणों की संख्या को रणनीतिक रूप से बढ़ाने के उदाहरण इस प्रक्रिया की शुचिता के बारे में सवाल उठाते हैं।
  • उदाहरण के लिए, 2020 में, बीलेफेल्ड विश्वविद्यालय ने रैंकिंग में काफी तेजी से वृद्धि की थी, इस विश्वविद्यालय ने पिछले दो वर्षों में यहाँ के कुल उद्धरणों के 20% में योगदान देने वाले लगभग 10 पेपर प्रकाशित किए थे। इसी तरह, चेन्नई में सविता डेंटल कॉलेज ने कथित तौर पर अपनी रैंकिंग में सुधार करने के लिए उद्धरणों में हेरफेर किया, 2023 में साइंस रिपोर्ट द्वारा इसका दावा किया गया था।

हितों के टकराव पर चिंताएँ

  • रैंकिंग के संकलन और प्रकाशन में निजी उद्यमों की भागीदारी ने हितों के टकराव के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। अध्ययनों से ऐसे उदाहरण सामने आये हैं जहां रैंकिंग एजेंसियों के साथ घनिष्ठ संबंधों वाले विश्वविद्यालयों ने अपनी रैंकिंग में महत्वपूर्ण सुधार किया, यह मूल्यांकन प्रक्रिया में संभावित पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
  •  कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के इगोर चिरिकोव के एक अध्ययन से पता चलता है, कि क्यूएस से संबंधित अनुबंध वाले विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में लगातार सुधार देखा गया। "विश्व 100 प्रतिष्ठा नेटवर्क"( The World 100 Reputation Network) जैसे कुलीन सदस्यता समूहों का प्रभाव विश्वविद्यालयों और रैंकिंग संस्थाओं के बीच परस्पर जुड़े हितों को और स्पष्ट करता है।

संस्थागत बहिष्कार के उदाहरण

  • हार्वर्ड, येल और यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय सहित प्रमुख संस्थानों ने पारंपरिक रैंकिंग प्रणालियों के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया है, और इसके विरोध में बहिष्कार भी किया है। ये उदाहरण मूल्यांकन के लिए उपयोग किए जाने वाले मानदंडों और शैक्षणिक प्राथमिकताओं एवं मूल्यों पर रैंकिंग के प्रभावों के बारे में विश्वविद्यालयों और रैंकिंग एजेंसियों के बीच मौलिक असहमति को उजागर करते हैं।
  •  2022 में, हार्वर्ड और येल विश्वविद्यालय ने U.S. News & World Report की रैंकिंग का बहिष्कार किया था, जिसमें कानून की पढ़ाई करने वाले छात्रों के वांछित कैरियर और रैंकिंग द्वारा प्रोत्साहित करियर के बीच संघर्ष का हवाला दिया गया था। नीदरलैंड में यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय इसी तरह के कारणों से 2023 में विश्व रैंकिंग से हट गया, यह रैंकिंग कार्यप्रणाली के साथ संस्थागत मोहभंग की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है।

डेटा सुरक्षा के मुद्दे

  • रैंकिंग भागीदारी में अक्सर रैंकिंग एजेंसियों के साथ संवेदनशील संस्थागत डेटा साझा किया जाता है। रैंकिंग प्लेटफ़ॉर्म द्वारा लगाए गए नियम और शर्तें इस डेटा के उपयोग और वितरण के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करते हैं, जिससे गोपनीयता और बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में चिंता बढ़ जाती है।
  • उदाहरण के लिए, रैंकिंग प्राप्त करने वाले विश्वविद्यालयों को रैंकिंग संगठन को अपने डेटा पर व्यापक अधिकार देने की आवश्यकता होती है, जिससे डेटा सुरक्षा और गोपनीयता से समझौता होता है। गोपनीय जानकारी के दुरुपयोग या अनधिकृत पहुंच की संभावना विश्वविद्यालयों और उनके हितधारकों के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करती है।

निष्कर्ष

विश्वविद्यालय की रैंकिंग ने निस्संदेह शैक्षिक नीतियों और संस्थागत रणनीतियों को प्रभावित किया है लेकिन उनकी अंतर्निहित सीमाएं और संबंधित जोखिम इनके पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर जोर देते हैं। हितधारकों को वर्तमान रैंकिंग प्रणालियों की कमियों को दूर करने और अकादमिक उत्कृष्टता के मूल्यांकन के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण तलाशने के लिए पारदर्शी बातचीत में शामिल होना चाहिए।

विश्वविद्यालय रैंकिंग के प्रसार ने उच्च शिक्षा परिदृश्य को नया रूप दिया है, प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है, और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित किया है। हालांकि, रैंकिंग प्रणालियों के प्रभुत्व ने विवादों को भी जन्म दिया है और उनकी वैधता, अखंडता और प्रभाव के विषय में बुनियादी प्रश्न सवाल उठाए जा रहे हैं। विभिन्न विश्वविद्यालय रैंकिंग भागीदारी की जटिलताओं को स्पष्ट कर रहे  हैं, अतः अकादमिक अखंडता, पारदर्शिता और नैतिक आचरण के सिद्धांतों को बनाए रखना अनिवार्य है। सहयोगात्मक संवाद को बढ़ावा देकर और विविध दृष्टिकोण अपनाकर, उच्च शिक्षा समुदाय अकादमिक उपलब्धि और सामाजिक प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए अधिक न्यायसंगत और समावेशी उपायों की दिशा में प्रयास कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

1.    विश्वविद्यालयों की रैंकिंग, समाज में विश्वविद्यालयों की बहुआयामी भूमिकाओं को कैसे कमतर आँकती है। रैंकिंग प्रणालियों और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मूल्यांकन के बीच क्या समानताएं देखी जा सकती हैं (10 Marks, 150 Words)

2.    शोध उत्कृष्टता के मापक के रूप में उद्धरणों पर भरोसा करने के क्या निहितार्थ हैं, और उद्धरण हेरफेर के उदाहरणों ने विश्वविद्यालय रैंकिंग प्रक्रियाओं की अखंडता के बारे में चिंताओं को कैसे उजागर किया है? (15 Marks, 250 Words)

 

Source- The Hindu