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Daily-current-affairs / 07 Sep 2023

भारत में बेरोजगारी : एक समग्र विश्लेषण - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 08-09-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3 - अर्थव्यवस्था- बेरोजगारी

कीवर्ड: ILO, वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS), सामान्य प्रधान और सहायक स्थिति (UPSS), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), COVID-19

सन्दर्भ :

  • बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है जो किसी भी राष्ट्र के प्रदर्शन को बहुत प्रभावित कर सकता है। इसे प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि बेरोजगारी को कैसे परिभाषित किया जाता है और कैसे मापा जाता है, विशेषत: भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में।

बेरोजगारी को परिभाषित करना

बेरोजगारी का पर्याय बेकारी नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) बेरोजगारी को एक व्यक्ति के नौकरी से बाहर होने, नौकरी लेने के लिए उपलब्ध होने और सक्रिय रूप से काम की तलाश में लगे रहने के रूप में परिभाषित करता है। इसमें तीन प्रमुख मानदंड शामिल हैं:

  1. नौकरी से बाहर: किसी व्यक्ति के पास औपचारिक रोजगार की कमी होनी चाहिए।
  2. काम के लिए उपलब्ध: उन्हें रोजगार लेने के लिए इच्छुक और सक्षम होना चाहिए।
  3. सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश: नई नौकरी के अवसरों की तलाश के लिए सक्रिय प्रयासों से बेरोजगारी की पहचान होती है।

इस परिभाषा में उन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया गया है जिन्होंने रोजगार खो दिया है और सक्रिय रूप से नए अवसरों की तलाश नहीं करते हैं।

बेरोजगारी के प्रकार

  1. प्रच्छन्न बेरोजगारी: आवश्यकता से अधिक लोगों का किसी कार्य में संलग्न होना जो प्रायः असंगठित या कृषि क्षेत्रों में पाया जाता है।
  2. संरचनात्मक बेरोजगारी: यह बेरोजगारी कौशल और नौकरी की उपलब्धता के मध्य असमन्वय से उत्पन्न होती है। कई लोग अपने कौशल के अनुरूप नौकरियां ढूंढने के लिए संघर्ष करते हैं, जिसके लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  3. मौसमी बेरोजगारी: यह तबउत्पन्न होती है जब लोगों के पास विशिष्ट मौसम के दौरान काम की कमी होती है, जो कृषि मजदूरों के मध्य एक सामान्य बेरोजगारी है।
  4. अल्प बेरोजगारी: इसमें लोगों को उचित अनुबंध के बिना अनौपचारिक रूप से नियोजित किया जाता है, जिससे कार्य रिकॉर्ड बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  5. तकनीकी बेरोजगारी: तकनीकी प्रगति के कारण नौकरियाँ सीमित हो जाती हैं, उदाहरण के लिए स्वचालन से नौकरी केअवसरों का काम होना ।
  6. चक्रीय बेरोजगारी: यह आर्थिक चक्रों से जुड़ी बेरोजगारी है इसमें के मंदी के दौरान बेरोजगारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के दौरान घटती है। भारत में चक्रीय बेरोजगारी अपेक्षाकृत कम है।
  7. घर्षणात्मक बेरोजगारी: यह नई नौकरी की तलाश करते समय या नौकरी के परिवर्तन करते समय उतपन्न अस्थायी बेरोजगारी है । यह स्वैच्छिक है क्योंकि श्रमिक बेहतर अवसर तलाशते हैं।

बेरोजगारी मापना

  • इसमें कई महत्वपूर्ण घटक शामिल हैं:
  • श्रम बल: इसमें ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो किसी अर्थव्यवस्था में या तो कार्यरत हैं या बेरोजगार हैं।
  • श्रम बल से बाहर: इसमें ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो न तो कार्यरत हैं और न ही सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं, जैसे छात्र या अवैतनिक घरेलू काम में लगे व्यक्ति, इस श्रेणी में आते हैं।
  • बेरोजगारी दर: इसकी गणना बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या और श्रम बल के अनुपात के रूप में की जाती है। नौकरी की उपलब्धता और व्यक्तियों के नौकरी चाहने वाले व्यवहार जैसे कारकों के आधार पर इस दर में उतार-चढ़ाव हो सकता है।

भारत में बेरोजगारी का मापन

  • अमेरिका और भारतीय संदर्भों की तुलना: अमेरिका और भारत दोनों बेरोजगारी दर को मापते हैं यद्यपि उनकी आर्थिक संरचना और तरीके काफी भिन्न हैं। अमेरिका अधिक औद्योगिकीकृत है, जबकि भारत के पास पर्याप्त विशाल अनौपचारिक क्षेत्र है, जो बेरोजगारी को मापने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों को विशिष्ट बनाता है।
  • भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में, सामाजिक मानदंड व्यक्तियों के रोजगार तलाशने के निर्णयों को प्रतिबंधित कर सकते हैं, जिससे बेरोजगारी मापना जटिल हो जाता है। 2009-10 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के एक सर्वे से पता चला कि घरेलू काम में लगी महिलाओं के एक बड़े अनुपात ने काम करने की इच्छा व्यक्त की, अगर उनके घरों में अवसर उपलब्ध हों। हालाँकि, इन महिलाओं को बेरोजगार नहीं माना जाता है क्योंकि वे सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में नहीं हैं। यह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वास्तविक बेरोजगारी की स्थिति को मापने में सक्रिय नौकरी की तलाश पर केंद्रित परिभाषा की सीमाओं पर प्रकाश डालता है।
  • भारत में, अनौपचारिक रोज़गार का क्षेत्र व्यापक है, और व्यक्ति अक्सर पूरे वर्ष विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। जो देश में बेरोजगारी माप को चुनौतीपूर्ण बना देता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति एक सप्ताह के लिए बेरोजगार हो सकता है लेकिन अगले महीने आकस्मिक श्रम में नियोजित हो सकता है, और वर्ष के अधिकांश समय के लिए किसान के रूप में नियोजित हो सकता है। सवाल उठता है: क्या उन्हें बेरोजगार के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए अथवा नही ।

भारत में बेरोजगारी का मापन

भारत में व्यक्तियों की रोजगार की स्थितियों को वर्गीकृत करने के लिए दो प्रमुख घटकों का उपयोग किया जाता है जिसमें सामान्य प्रधान और सहायक स्थिति (यूपीएसएस) तथा वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) शामिल हैं :

  • सामान्य प्रधान और सहायक स्थिति (यूपीएसएस): किसी व्यक्ति की प्रमुख रोजगार स्थिति पिछले वर्ष में उनकी प्राथमिक आर्थिक गतिविधि से निर्धारित होती है। हालाँकि, सहायक भूमिका वाले लोगों को अभी भी नियोजित कार्यबल के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है यदि वे कम से कम 30 दिनों तक आर्थिक गतिविधियों में शामिल रहे हों।
  • उदाहरण: एक व्यक्ति जो पांच महीने तक बेरोजगार था लेकिन पिछले वर्ष सात महीने तक आकस्मिक मजदूर के रूप में काम करता हो , उसे सहायक स्थिति (यूपीएसएस) के अनुसार नियोजित माना जाएगा।
  • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस): सीडब्ल्यूएस पिछले सप्ताह के दौरान किसी व्यक्ति की रोजगार स्थिति पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक छोटी संदर्भ अवधि अपनाता है। इस छोटी समय सीमा के परिणामस्वरूप यूपीएसएस की तुलना में बेरोजगारी दर अधिक हो सकती है।
  • उदाहरण: किसी व्यक्ति को सीडब्ल्यूएस में नियोजित माना जाता है यदि उसने सर्वेक्षण से पहले के सात दिनों के दौरान कम से कम एक दिन और कम से कम एक घंटा काम किया हो।
  • वर्तमान दैनिक स्थिति: यह बेरोजगारी बेरोजगारी को मापने का एक अन्य तरीका है लेकिन भारत में इसका उपयोग बहुत कम किया जाता है।
  • बेरोजगारी माप के लिए कुछ अन्य संकेतकों का भी उपयोग किया जाता है जैसे आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) और कार्यकर्ता जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर)।

भारत में बेरोजगारी की स्थिति

  • राज्य द्वारा संचालित राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा तैयार और नवंबर 2022 में जारी अलग-अलग तिमाही आंकड़ों के अनुसार, जुलाई-सितंबर तिमाही में बेरोजगारी दर पिछली तिमाही के 7.6% से घटकर 7.2% हो गई।
  • ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जो जुलाई के लिए सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों का संदर्भ देती है, जुलाई 2023 तक भारत में कुल बेरोजगारी दर 7.95 प्रतिशत है।

बेरोजगारी मापन में चुनौतियाँ

बेरोजगारी मापन को अंतर्निहित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर भारत जैसी कृषि अर्थव्यवस्थाओं में:

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था जटिलता: भारत में अनौपचारिक रोजगार की व्यापकता है जिससे व्यक्ति प्रायः बेरोजगारी और रोजगार की स्थिति में बदलाव करते हैं, जिससे माप संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में छिटपुट रोजगार के अवसरों और रोजगार की अनौपचारिक प्रकृति के कारण शहरी क्षेत्रों की तुलना में बेरोजगारी दर कम हो सकती है।
  • मापन में व्यापार-बंद (Trade-Offs ): भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मापन ढांचे के लिए व्यापार-बंद (ऐसी स्थिति जहां एक विकल्प चुनने के लिए दूसरे विकल्प के कुछ पहलुओं का त्याग करना पड़ता है )की आवश्यकता होती है। लंबी संदर्भ अवधि के परिणामस्वरूप बेरोजगारी दर कम हो सकती है, जबकि छोटी अवधि के परिणामस्वरूप उच्च दर हो सकती है।
  • उदाहरण: एक छोटी संदर्भ अवधि, जैसे सीडब्ल्यूएस में एक सप्ताह की समय सीमा, बेरोजगारी दर में उतार-चढ़ाव को पकड़ सकती है लेकिन व्यापक रोजगार तस्वीर का सटीक रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती है।

लॉकडाउन का प्रभाव

भारत में COVID-19 लॉकडाउन ने बेरोजगारी मापन के लिए एक अनूठी चुनौती उत्पन्न की थी क्योंकि लॉकडाउन का आर्थिक व्यवधान आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) बेरोजगारी दर में तुरंत प्रतिबिंबित नहीं हुआ था इसका दीर्घकालिक प्रभाव बाद के सर्वेक्षणों में देखा गया था। जिन व्यक्तियों ने लॉकडाउन के दौरान नौकरी खो दी, उन्हें छह महीने के भीतर रोजगार मिलने पर बेरोजगार के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, जिससे माप और जटिल हो जाती है।

बेरोजगारी के कारण

भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

  • विशाल जनसँख्या ।
  • व्यावसायिक कौशल की कमी या कामकाजी आबादी का निम्न शैक्षिक स्तर।
  • श्रम प्रधान क्षेत्र, विशेष रूप से विमुद्रीकरण के बाद निजी निवेश में मंदी से पीड़ित हैं
  • कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता, कृषि श्रमिकों के लिए वैकल्पिक अवसरोंका आभाव और सेवा क्षेत्र में सीमित रोजगार तीनों क्षेत्रों के बीच संक्रमण को कठिन बनाती है।
  • कानूनी जटिलताएँ, अपर्याप्त राज्य समर्थन, छोटे व्यवसायों के लिए कम बुनियादी ढाँचा, वित्तीय और बाज़ार संपर्क ऐसे उद्यमों को लागत और अनुपालन में वृद्धि के कारण अव्यवहार्य बनाते हैं।
  • बुनियादी ढांचे की अपर्याप्त वृद्धि और विनिर्माण क्षेत्र में कम निवेश द्वितीयक क्षेत्र की रोजगार क्षमता को सीमित कर रहा है।
  • आवश्यक शिक्षा या कौशल की कमी के कारण देश का विशाल कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, और यह डेटा रोजगार के आंकड़ों में दर्ज नहीं किया जाता है।
  • संरचनात्मक बेरोजगारी का मुख्य कारण स्कूलों और कॉलेजों में प्रदान की जाने वाली शिक्षा उद्योगों की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार नहीं है।
  • प्रतिगामी सामाजिक मानदंड जो महिलाओं को रोजगार लेने/जारी रखने से रोकते हैं।

बेरोजगारी का प्रभाव

किसी भी देश में बेरोजगारी का अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है:

  • बेरोजगारी की समस्या गरीबी की समस्या को जन्म देती है।
  • सरकार पर अतिरिक्त उधार का बोझ पड़ता है क्योंकि बेरोजगारी के कारण उत्पादन में कमी आती है और लोगों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खपत कम हो जाती है।
  • बेरोजगार व्यक्ति आसानी से असामाजिक तत्वों के बहकावे में आ सकते हैं। इससे उनका देश के लोकतांत्रिक मूल्यों से विश्वास समाप्त हो जाता है।'
  • लंबे समय से बेरोजगार लोग पैसा कमाने के लिए गैरकानूनी और गलत गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं जिससे देश में अपराध बढ़ता है।
  • बेरोजगारी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है क्योंकि जिस कार्यबल को संसाधनों को उत्पन्न करने के लिए लाभप्रद रूप से नियोजित किया जा सकता था वह वास्तव में शेष कामकाजी आबादी पर निर्भर हो जाता है, जिससे राज्य के लिए सामाजिक-आर्थिक लागत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, बेरोजगारी में 1% की वृद्धि से सकल घरेलू उत्पाद में 2% की कमी आती है।
  • प्रायः देखा जाता है कि बेरोजगार लोग नशीली दवाओं और शराब के आदी हो जाते हैं या आत्महत्या का प्रयास करते हैं, जिससे देश के मानव संसाधनों को नुकसान होता है।

रोजगार वृद्धि के लिए सरकार के प्रयास:

  • आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई): यह योजना आत्मनिर्भर भारत पैकेज 3.0 के हिस्से के रूप में 1 अक्टूबर, 2020 को शुरू की गई, एबीआरवाई नियोक्ताओं को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करते हुए और कोविड-19 महामारी के दौरान रोजगार हानि को संबोधित करते हुए नई नौकरियां प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना (पीएमआरपीवाई): 1 अप्रैल 2016 को शुरू हुई, पीएमआरपीवाई नियोक्ताओं को रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसके अंतर्गत 31 मार्च, 2019 तक पंजीकृत लाभार्थियों को उनकी पंजीकरण तिथि से तीन साल तक लाभ मिलता रहेगा, जिसे 31 मार्च, 2022 तक बढ़ाया जाएगा।
  • राष्ट्रीय कैरियर सेवा (एनसीएस) परियोजना: यह परियोजना राष्ट्रीय रोजगार सेवा को, नौकरी मिलान, कैरियर परामर्श, व्यावसायिक मार्गदर्शन, कौशल विकास पाठ्यक्रमों की जानकारी, प्रशिक्षुता और इंटर्नशिप सहित विभिन्न कैरियर-संबंधी सेवाओं की पेशकश करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा): मनरेगा ग्रामीण परिवारों को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देता है।
  • गरीब कल्याण रोजगार अभियान (पीएमजीकेआरए): 20 जून, 2020 को शुरू किये गये, इस 125-दिवसीय अभियान का उद्देश्य कोविड-19 महामारी के कारण वापस लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों और प्रभावित ग्रामीण आबादी को तत्काल रोजगार और आजीविका के अवसर प्रदान करना है। यह 50,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ छह राज्यों के 116 चयनित जिलों में बुनियादी ढांचे के विकास और आय सृजन गतिविधियों पर केंद्रित है।
  • आजीविका - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम): विश्व बैंक के समर्थन से जून 2011 में शुरू किए गए एनआरएलएम का उद्देश्य स्थायी आजीविका सुधार और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुंच के माध्यम से ग्रामीण गरीब परिवारों की आय में वृद्धि करना है।
  • पं.दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई): राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के हिस्से के रूप में 25 सितंबर 2014 को घोषित, डीडीयू-जीकेवाई ग्रामीण गरीब परिवारों की आय में विविधता लाने और ग्रामीण युवाओं की कैरियर आकांक्षाओं को पूरा करने पर केंद्रित है।
  • पीएम-स्वनिधि योजना: 1 जून, 2020 को शुरू की गई प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना, कोविड-19 लॉकडाउन से प्रभावित शहरी स्ट्रीट विक्रेताओं को संपार्श्विक-मुक्त कार्यशील पूंजी ऋण (collateral-free working capital loans ) प्रदान करती है।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई): 8 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई, पीएमएमवाई गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु और सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख तक का ऋण प्रदान करती है, जिसे मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ये ऋण विभिन्न वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई): कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) की प्रमुख योजना पीएमकेवीवाई, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा कार्यान्वित की जाती है और कौशल विकास पर केंद्रित है।
  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना: हाल ही में, वित्त मंत्री ने 13 प्रमुख क्षेत्रों में पीएलआई योजनाओं के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय की घोषणा की। इन योजनाओं का लक्ष्य राष्ट्रीय विनिर्माण चैंपियन बनाना और भारत के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना है।

भावी रणनीति

  • श्रम प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना: रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए, खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी विनिर्माण, कपड़ा और परिधान जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों को बढ़ावा देना आवश्यक हैं।
  • उद्योगों का विकेंद्रीकरण: विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार को प्रोत्साहित करना, हर क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह दृष्टिकोण ग्रामीण-से-शहरी प्रवासन दबाव को भी कम कर सकता है।
  • उद्यमिता संवर्धन: विशेष रूप से युवाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है क्योंकि उद्यमी रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • महिला श्रम बल भागीदारी: सामाजिक बाधाओं को तोड़ने और नौकरी बाजार में महिलाओं के प्रवेश और निरंतर भागीदारी को सुनिश्चित करने के उपायों को लागू करना आवश्यक है।
  • कुशल कार्यबल विकास: कुशल श्रम शक्ति तैयार करने के लिए शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन और उसे रोजगार उन्मुख बनना अत्यावश्यक है।
  • प्रभावी कार्यक्रम कार्यान्वयन: मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप और स्टैंड-अप इंडिया जैसी मौजूदा पहलों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना रोजगार सृजन के लिए महत्वपूर्ण है।
  • राष्ट्रीय रोजगार नीति (एनईपी): एक व्यापक राष्ट्रीय रोजगार नीति (एनईपी) विकसित करना आवश्यक है, जिसमें बहुआयामी हस्तक्षेप शामिल हो जो श्रम और रोजगार क्षेत्र से परे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को संबोधित करता हो।

निष्कर्ष

बेरोजगारी राजनीतिक और आर्थिक संदर्भों में एक महत्वपूर्ण कारक है, विशेषकर भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में। प्रभावी नीति निर्धारण और श्रम बल के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए बेरोजगारी माप की जटिलताओं को समझना आवश्यक है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. बेरोजगारी को परिभाषित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा उपयोग किए जाने वाले तीन प्रमुख मानदंड क्या हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. भारत में अनौपचारिक रोज़गार की व्यापकता बेरोज़गारी को मापने के लिए कैसे चुनौतियाँ उत्पन्न करती है, और भारत में व्यक्तियों की कामकाजी स्थितियों को वर्गीकृत करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दो प्रमुख उपाय क्या हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

Source- The Hindu