संदर्भ -
कोरियाई प्रायद्वीप में हाल के घटनाक्रमों ने विश्व स्तर पर संघर्ष संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया है, इन घटनाओं के परिणामस्वरूप उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। प्योंगयांग में आर्क ऑफ रीयुनिफिकेशन को ध्वस्त करना और उत्तर कोरिया द्वारा उत्तेजक कार्रवाइयां इस प्रायद्वीप की स्थिरता के संबंध एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है। यह बदलाव क्षेत्रीय सुरक्षा और प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता के लिए विभिन्न चुनौतियां पेश करता है।
ऐतिहासिक संदर्भ
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कोरियाई प्रायद्वीप के विभाजन के परिणामस्वरूप विपरीत विचारधाराओं और भू-राजनीतिक गठबंधनों ने कोरियाई युद्ध(1950-1953) की पृष्ठभूमि तैयार की थी। इस संघर्ष ने उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच वैचारिक आधार पर विभाजन को जन्म दिया, जो तत्कालीन व्यापक शीत युद्ध विभाजन को दर्शाता है। हालांकि सक्रिय शत्रुता की समाप्ति के बावजूद, वैचारिक और भू-राजनीतिक मतभेद बने हुए हैं, जो प्रायद्वीप के समकालीन परिदृश्य को आकार दे रहे हैं।
- अब तक उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के प्रयास छिटपुट ही रहे हैं, जिन्हें 1994 की सहमत रूपरेखा और 2003 की छह-पक्षीय वार्ता जैसे समझौतों द्वारा समझ जा सकता है। हालांकि, बाद के परमाणु परीक्षणों और मिसाइल प्रक्षेपणों ने रणनीतिक क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिए उत्तर कोरिया के दृढ़ प्रयासों को रेखांकित किया है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चुनौती लगातार बढ़ रही है।
हाल की घटनाओं में वृद्धि
- उत्तर कोरिया ने हालिया प्रायद्वीप में पुनर्मिलन के प्रयासों को धूमिल किया है, और दक्षिण कोरिया का एक विरोधी के रूप में औपचारिक वर्गीकरण किया, यह घटनाएं लंबे समय से चले आ रहे एकीकरण के उद्देश्यों से प्रस्थान को दर्शाती हैं। सुप्रीम पीपुल्स असेंबली में किम जोंग उन के संबोधन ने उत्तर कोरिया के रुख में एक रणनीतिक बदलाव को प्रदर्शित किया है, जिसने उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच संबंधों मे खटास को और बढ़ा दिया है।
- उन्नत मिसाइल प्रणालियों की तैनाती और हाइपरसोनिक हथियारों का परीक्षण उत्तर कोरिया की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने और क्षेत्रीय रूप से शक्ति संतुलन को बदलने के प्रयासों को रेखांकित करता है। उत्तर कोरिया की इन कार्रवाइयों के खिलाफ दक्षिण कोरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान ने प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं, इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ने के साथ संघर्ष की संभावना के बारे में चिंताएँ बढ़ गई है।
क्षेत्रीय सुरक्षा और प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता
- कोरियाई प्रायद्वीप में बढ़ता तनाव व्यापक भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव और शक्ति प्रतिद्वंद्विता की पृष्ठभूमि निर्मित कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस सहित प्रमुख हितधारकों की भागीदारी, इस क्षेत्र में हितों एवं गठबंधनों की जटिलता को और बढ़ा रहा है।
- चीन और रूस के साथ उत्तर कोरिया के गहरे होते संबंध क्षेत्रीय सुरक्षा और नवीन भू-रणनीतिक पुनर्गठन का संकेत देते हैं। उत्तर कोरिया और रूस के जुड़ाव के साथ चीन का दृढ़ समर्थन यहाँ बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित करता है। ध्यातव्य हो कि ये दोनों देश वैश्विक अनिश्चितता के बीच अपनी रणनीतिक अनिवार्यताओं को पूरा कर रहे हैं।
- दक्षिण कोरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के बीच बनते सैन्य गठबंधन और संयुक्त अभ्यास उत्तर कोरियाई आक्रामकता को रोकने और क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने का प्रयास कर रहे है। हालांकि, कोरियाई प्रायद्वीप की अस्थिर प्रकृति और बढ़ते मतभेद की संभावना को देखते हुए संघर्ष में वृद्धि का खतरा बना हुआ है।
कोरियाई संघर्ष में भारत की स्थिति
- भारत का दृष्टिकोणः भारत ने उत्तर कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों पर तटस्थ रुख बनाए रखते हुए इसके परमाणु और मिसाइल परीक्षणों का लगातार विरोध किया है। उल्लेखनीय है कि कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान भारत ने संघर्षरत पक्षों के बीच संघर्ष विराम समझौते की मध्यस्थता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- उत्तर और दक्षिण कोरिया के साथ भारत के संबंधः दक्षिण कोरिया के साथ भारत के संबंधों को मई 2015 में एक 'विशेष रणनीतिक साझेदारी' तक बढ़ाया गया था, जो द्विपक्षीय संबंधों की गहराई को दर्शाता है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति, दक्षिण कोरिया की दक्षिणी नीति के साथ संरेखित है, जो तत्काल क्षेत्रों से परे आर्थिक सहयोग और रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देती है। इसी तरह, उत्तर कोरिया के साथ भारत के 47 वर्षों से अधिक के राजनयिक संबंध, गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की विरासत को दर्शाते हैं।
आगे की राहः
- कोविड-19 के बाद विकसित हो रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए, उत्तर कोरिया अपनी नाजुक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने को प्राथमिकता दे सकता है। कोरियाई प्रायद्वीप पर प्रमुख हितधारकों के बीच बातचीत फिर से शुरू कराने के साथ, भारत शांति और सुरक्षा प्रयासों में रचनात्मक रूप से योगदान दे सकता है।
- उत्तर कोरियाई नेतृत्व के साथ निरंतर जुड़ाव भारत को बातचीत को सुविधाजनक बनाने और क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल स्थिति प्रदान करता है। जैसे-जैसे परिस्थितियां बदलेगी, भारत की सक्रिय भागीदारी कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दे सकती है।
निष्कर्ष
कोरियाई प्रायद्वीप में बढ़ता तनाव 21वीं सदी में क्षेत्रीय सुरक्षा और प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता की जटिलताओं को रेखांकित करता है। पुनर्मिलन से जुड़े प्रतीकों को नष्ट करना और उत्तर कोरिया की उत्तेजक कार्रवाइयां स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करती हैं, जिससे डी-एस्केलेशन के लिए एक समन्वित और राजनयिक दृष्टिकोण की आवश्यकता प्रतीत होती है।
चूंकि दोनों देश प्रतिस्पर्धी हितों और रणनीतिक अनिवार्यताओं को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए बातचीत और राजनयिक जुड़ाव के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है। क्षेत्रीय सुरक्षा और प्रमुख शक्ति गतिशीलता के लिए दूरगामी प्रभावों के साथ कोरियाई प्रायद्वीप वैश्विक भू-राजनीति में एक प्रमुख बिंदु बना हुआ है। अंतर्निहित शिकायतों को दूर करने और शांतिपूर्ण समाधान को आगे बढ़ाने के लिए एक ठोस प्रयास संघर्ष को टालने और क्षेत्र में स्थायी स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
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Source - The Hindu