सन्दर्भ:
हाल ही में, भारत सरकार ने 25 नवंबर, 2024 को वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन (ONOS) योजना लॉन्च की। यह एक अहम पहल है जिसका उद्देश्य देश के सार्वजनिक संस्थानों में विद्वतापूर्ण जर्नल्स (शोध पत्रिकाओं) तक समान पहुंच प्रदान करना है। इस योजना के लिए 2025-2027 के दौरान तीन वर्षों में ₹6,000 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। इसका लक्ष्य है कि शैक्षणिक और शोध संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स तक पहुंचने में होने वाली वित्तीय कठिनाइयों को दूर किया जाए। हालांकि, यह योजना ज्ञान तक पहुंच बढ़ाने की क्षमता रखती है, लेकिन साथ ही यह सवाल उठाती है कि क्या सब्सक्रिप्शन आधारित मॉडल टिकाऊ है और क्या इसे अधिक खुली प्रकाशन प्रणालियों (Open Systems) की ओर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।
ONOS का परिचय:
ONOS योजना की शुरुआत 2018-2019 के आसपास प्रस्तावित की गई थी और यह विचार तेजी से इसलिए आगे बढ़ा क्योंकि विद्वतापूर्ण जर्नल्स के सब्सक्रिप्शन की लागत अत्यधिक थी। इस योजना के तहत, सरकार सामूहिक रूप से इन संसाधनों तक पहुंच के लिए बातचीत करेगी ताकि शोध और शिक्षा के लिए वित्तीय बाधाएं समाप्त की जा सकें।
1. उद्देश्य:
ONOS का उद्देश्य सभी सार्वजनिक संस्थानों, जैसे विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों, को वित्तीय स्थिति से परे जर्नल्स तक पहुंच प्रदान करना है। यह छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए ज्ञान को लोकतांत्रिक बनाने में मदद करेगा।
2. बजट:
तीन वर्षों (2025-2027) के लिए ₹6,000 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस राशि से चिकित्सा, इंजीनियरिंग, सामाजिक विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों के 30 बड़े अंतरराष्ट्रीय जर्नल प्रकाशकों के लिए सब्सक्रिप्शन शुल्क का भुगतान किया जाएगा।
3. लक्षित संस्थान:
योजना का लक्ष्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय, शोध संस्थान और सरकारी वित्त पोषित शैक्षणिक संस्थान हैं, जो अक्सर जर्नल्स की सदस्यता लेने में असमर्थ रहते हैं। इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शोध को सभी संस्थानों के लिए सुलभ बनाना है।
वैश्विक स्तर पर ओपन एक्सेस (Open Access) की ओर बढ़ता रुझान:
शोध प्रकाशन का पारंपरिक सब्सक्रिप्शन आधारित मॉडल तेजी से ओपन एक्सेस (OA) प्रकाशन से चुनौती का सामना कर रहा है, जो शोध लेखों को मुफ्त में उपलब्ध कराता है। इस वैश्विक बदलाव को ध्यान में रखते हुए ONOS को भी परखा जाना चाहिए।
1. ओपन एक्सेस का बढ़ता प्रभाव:
Web of Science के अनुसार, वर्तमान में 53% वैज्ञानिक शोध पत्र OA के तहत प्रकाशित हो रहे हैं। यह आंकड़ा 2018-2019 के मुकाबले काफी बढ़ा है, जब ONOS को पहली बार प्रस्तावित किया गया था। OA मॉडल्स, जो शोध को मुफ्त में उपलब्ध कराने को प्राथमिकता देते हैं, ने काफी समर्थन प्राप्त किया है। यह प्रवृत्ति सब्सक्रिप्शन आधारित मॉडल्स की वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठाती है।
2. वैश्विक अनिवार्यता:
शोध फंडिंग एजेंसियां, जैसे अमेरिकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति कार्यालय और यूरोपीय संघ की Horizon Europe पहल, अब सार्वजनिक धन से किए गए शोध को मुफ्त में उपलब्ध कराने की मांग कर रही हैं। यह दिखाता है कि आने वाले समय में अधिक शोध मुफ्त में उपलब्ध होगा, जिससे ONOS जैसी सब्सक्रिप्शन योजनाओं की प्रासंगिकता पर सवाल उठता है।
सब्सक्रिप्शन मॉडल की चुनौतियां:
ONOS के जरिए शैक्षणिक संसाधनों तक सस्ती पहुंच की गारंटी दी जा सकती है, लेकिन सब्सक्रिप्शन मॉडल के कई बुनियादी मुद्दे हैं जो इसकी दीर्घकालिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
1. उच्च लागत:
वर्तमान में भारतीय सार्वजनिक संस्थान हर साल लगभग ₹1,500 करोड़ जर्नल्स की सदस्यता पर खर्च करते हैं। ONOS के तहत यह राशि और बढ़ सकती है, जिससे करदाताओं पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
2. शोधकर्ताओं का शोषण:
शोधकर्ता मुफ्त में अपने लेख लिखते हैं, समीक्षाएं करते हैं और संपादकीय कार्यों में भाग लेते हैं, लेकिन प्रकाशक इन पर भारी शुल्क लगाकर मुनाफा कमाते हैं।
3. कॉपीराइट संबंधी समस्याएं:
मौजूदा मॉडल में लेखक अपने शोध का कॉपीराइट प्रकाशकों को सौंप देते हैं। इससे लेखक अपने कार्य पर नियंत्रण खो देते हैं। हाल ही में Taylor & Francis और Microsoft के बीच हुए विवाद ने यह बात सामने आई कि प्रकाशकों ने शोध सामग्री का उपयोग AI मॉडल को प्रशिक्षित करने में किया, लेकिन लेखकों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया।
आत्मनिर्भर प्रकाशन की ओर कदम:
ONOS भारत को एक आत्मनिर्भर प्रकाशन प्रणाली विकसित करने का अवसर देता है। यह योजना अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स तक पहुंच में सुधार कर सकती है, लेकिन साथ ही यह भारत को अपनी खुद की प्रकाशन प्रणाली बनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
1. देशी प्लेटफॉर्म का विकास:
भारत का बड़ा शोध समुदाय अपने प्लेटफॉर्म विकसित कर सकता है, जो अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों पर निर्भरता को कम करेगा।
2. खुले और सस्ते मॉडल:
भारतीय सरकार भारतीय शोध को संग्रहित करने के लिए ओपन एक्सेस प्लेटफॉर्म में निवेश कर सकती है। इससे शोध को अधिक सस्ता और सुलभ बनाया जा सकता है।
3. भारतीय जर्नल्स को बढ़ावा देना:
शोध पत्रिकाओं की गुणवत्ता और वैश्विक पहुंच को सुधारने के लिए भारत को संपादकीय प्रक्रियाओं और अनुसंधान अधोसंरचना में निवेश करना चाहिए। इससे भारत का शैक्षणिक और प्रकाशन क्षेत्र मजबूत होगा।
कॉपीराइट और ओपन एक्सेस पर ध्यान:
ONOS योजना का प्रभाव और अधिक हो सकता है यदि यह कॉपीराइट समस्याओं का समाधान करे और ओपन एक्सेस को बढ़ावा दे।
1. कॉपीराइट की सुरक्षा:
शोधकर्ताओं को अपने काम पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए कॉपीराइट अधिकार दिए जाने चाहिए।
2. ग्रीन ओपन एक्सेस:
ग्रीन ओपन एक्सेस मॉडल, जिसमें लेखक अपने काम को संस्थागत संग्रहण में संग्रहीत करते हैं, को ONOS के तहत प्रोत्साहित किया जा सकता है।
डिजिटल संरक्षण और दीर्घकालिक पहुंच
जैसे-जैसे जर्नल्स डिजिटल होते जा रहे हैं, शोध के दीर्घकालिक संरक्षण को सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
1. संरक्षण की चुनौती:
अध्ययनों से पता चला है कि 28% शोध लेख, जो डिजिटल ऑब्जेक्ट आइडेंटिफ़ायर्स (DOIs) से जुड़े हैं, संरक्षित नहीं हैं।
2. स्व-संग्रहण:
शोधकर्ताओं को अपने कार्य को संस्थागत संग्रहण में संग्रहीत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
आगे की राह
1. ओपन एक्सेस को प्राथमिकता :
भारत को ग्रीन ओपन एक्सेस मॉडल को अपनाना चाहिए, जिसमें शोध प्रकाशन के साथ ही मुफ्त उपलब्ध हो।
2. स्वदेशी प्रकाशन को समर्थन :
भारत को आत्मनिर्भर प्रकाशन तंत्र विकसित करना चाहिए।
3. बौद्धिक संपदा की रक्षा :
नीतियां ऐसी होनी चाहिए कि शोधकर्ताओं को उनके काम का नियंत्रण मिले।
निष्कर्ष
ONOS योजना भारत में शैक्षणिक प्रकाशन के क्षेत्र में एक बड़ा निवेश है। लेकिन दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करने के लिए, भारत को खुले प्रकाशन मॉडल और स्वदेशी प्रकाशन तंत्र विकसित करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। कॉपीराइट, डिजिटल संरक्षण और दीर्घकालिक स्थिरता जैसे मुद्दों का समाधान करके, भारत एक अधिक न्यायसंगत और प्रभावी शैक्षणिक शोध प्रणाली बना सकता है।
मुख्य प्रश्न: वैश्विक स्तर पर ओपन एक्सेस (Open Access) और स्व-संग्रहण (Self-Archiving) की ओर बढ़ते रुझान को देखते हुए, ‘वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन’ (ONOS) योजना की स्थिरता और प्रासंगिकता का अगले कुछ वर्षों में आकलन करें। क्या भारत को आत्मनिर्भर प्रकाशन मॉडलों में अधिक निवेश करना चाहिए? |