होम > Daily-current-affairs

Daily-current-affairs / 15 Jan 2024

भारत में पुलिस व्यवस्था का रूपांतरण: चुनौतियां, सुधार और आगे का रास्ता

image

सन्दर्भ:

     हाल ही में जयपुर में तीन दिवसीय पुलिस सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मलेन में देश भर के शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने भाग लिया। इसमें विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कानून प्रवर्तन में समकालीन चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने देश में कुशल पुलिस व्यवस्था के बढ़ते महत्व को रेखांकित किया। हालांकि, कार्यपालिका के ईमानदार इरादों के बावजूद, आज भी पुलिस व्यवस्था में कई बाधाएं हैं, इनमें से सबसे मुख्य है: जनता का पुलिस बल में अत्यधिक अविश्वास होना।

सार्वजनिक विश्वास और छविः

     भारत की स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी, पुलिस आम जनों का विश्वास अर्जित करने में विफल रही है। इस समय कई सन्दर्भों में पुलिस बल के बारे में जनता की धारणा खराब बनी हुई है, जिस कारण नागरिक अत्यधिक संकट में भी पुलिस से मदद मांगने से डरते हैं। पुलिस व्यवस्था में सुधार के विभिन्न प्रयासों में 1977 के राष्ट्रीय पुलिस आयोग (एनपीसी) की सिफारिशें, 1998 में रिबेरो समिति और 2006 में प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश आदि सभी शामिल हैं।

अतीत में सुधार के प्रयास:

       राष्ट्रीय पुलिस आयोग (एनपीसी) - 1978-82:

     इस आयोग ने राष्ट्रीय पुलिस व्यवस्था की व्यापक समीक्षा की।

   इनकी मुख्य सिफ़ारिश दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में संशोधन किया जाना था।

       रिबेरो समिति - 1998:

     पुलिस सुधार प्रगति की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसका गठन किया गया था।

     इसका उद्देश्य एनपीसी की लंबित सिफारिशों को लागू करना है।

       पद्मनाभैया समिति - 2000:

     अगस्त 2000 में 240 सिफ़ारिशों के साथ इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

     इस रिपोर्ट की 154 सिफ़ारिशें स्वीकार की गईं थी।

       मलिमथ समिति - 2002-03:

     इस समिति द्वारा केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसी की स्थापना सहित 158 सुधारों की सिफारिश की गई।

       मॉडल पुलिस अधिनियम - 2006:

     इस अधिनियम के माध्यम से कार्यात्मक स्वायत्तता, व्यावसायिकता और जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित किया गया।

       वर्तमान विधायी विकास:

     इस समय मानसून सत्र के दौरान संसद में तीन नए आपराधिक कानून पेश किए गए।

     ब्रिटिश शासन के दौरान बनाए गए आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

     वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा समय पर न्याय दिलाने पर जोर दिया गया है।

       केंद्रीय गृह मंत्री का दृष्टिकोण:

     वर्ष 1860 से अपरिवर्तित कानूनों को अद्यतन करने की तात्कालिकता को रेखांकित किया गया है।

     न्याय वितरण में तेजी लाने वाले नए कानूनों को प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है।

केंद्र और राज्यों के बीच मतभेदः

     भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के संबंध में केंद्र और विपक्ष के नेतृत्व वाले कुछ राज्यों के बीच व्याप्त मतभेद इस सन्दर्भ में एक मुख्य समस्या है। राज्य आई. पी. एस. को 'स्थायी अवरोधक' के रूप में देखते हैं और स्थानीय लोगों की वफादारी को प्राथमिकता देते हैं। यह मतभेद भविष्य में और भी बढ़ सकती है, अतः सौहार्दपूर्ण संघीय शासन बनाए रखने के लिए एक अपेक्षित समाधान की आवश्यकता है।

प्रौद्योगिकी प्रगतिः

     संभावित रूप से निम्न स्तरों पर शिक्षित भर्ती के कारण, एक सकारात्मक पहलू के रूप में; पुलिस बल तेजी से प्रौद्योगिकी-प्रेमी बनता जा रहा है। हालांकि, इस सन्दर्भ में एक सवाल हमेशा से प्रासंगिक रहा है, कि - क्या ये भर्ती, जो अक्सर बेरोजगारी दर अधिक होने के कारण शामिल होते हैं, उन्हें अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का उचित अवसर मिलेगा, या क्या आईपीएस अधिकारियों का वर्चस्व कायम रहेगा?

गुणवत्तापूर्ण पुलिसिंग के लिए संरचनात्मक सुधार:

     वर्तमान में पुलिस बल के भीतर उच्च और निम्न रैंक के बीच के अंतर को कम करने के लिए इस व्यवस्था का पुनर्गठन आवश्यक है। यह परिवर्तन पुलिसिंग की बेहतर गुणवत्ता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जहां ज्ञान, सत्यनिष्ठा और वास्तविक सहानुभूति एक साथ उपलब्ध हों। इस क्षेत्र में सार्थक परिवर्तन के लिए, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सभी रैंकों के बीच निरंतर सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए शिक्षा और मार्गदर्शन को प्राथमिकता देनी चाहिए।

राजनीतिक हस्तक्षेप:

     इस समय राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना कोई भी पुलिस व्यवस्था पर चर्चा नहीं की जा सकती है। वर्तमान सन्दर्भ में पुलिस बल का राजनीतिकरण एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है, जो राजनीतिक दबावों से कानून प्रवर्तन को अलग करने के प्रयासों को जटिल बनाता है। अतः पुलिस बल के लिए वास्तविक स्वतंत्रता और स्वायत्तता प्राप्त करना लोकतांत्रिक प्रणाली में व्यापक परिवर्तन लाने की एक अनिवार्य आवश्यकता है।

सुधार के कुछ उपाय:

       स्मार्ट पुलिसिंग:

     पुलिस बल को सख्त, संवेदनशील, आधुनिक, सतर्क, जवाबदेह, विश्वसनीय, उत्तरदायी, तकनीक-प्रेमी और अच्छी तरह से प्रशिक्षित होने की आवश्यकता है। कानून के साथ नागरिकों के अनुपालन पर सम्मानजनक और जवाबदेह युक्त सम्बन्ध पुलिसिंग के सकारात्मक प्रभाव को उजागर करते हैं।

       बॉडी कैमरे का उपयोग:

     शरीर पर धारण किये जाने वाले कैमरे पुलिस-नागरिक संबंधों का एक वस्तुनिष्ठ रिकॉर्ड प्रदान कर सकते हैं, जो दोनों पक्षों की जवाबदेही को बढ़ावा देता है। इस सन्दर्भ में प्रकाश सिंह का दिशानिर्देश उल्लेखनीय है।

       निरीक्षण समितियाँ:

     पुलिस कार्यों का मूल्यांकन करने तथा उनके नैतिक और कानूनी मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र नागरिक निरीक्षण समितियां स्थापित की जानी चाहिए। सामुदायिक नेताओं वाली ये समितियाँ कानून प्रवर्तन को जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

       नैतिकता और शिक्षा पर प्रशिक्षण:

     पुलिस बल की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नैतिक व्यवहार, मानवाधिकार और सामुदायिक संबंधों आदि पर निरंतर प्रशिक्षण आवश्यक है। यह प्रशिक्षण अधिकारियों को विभिन्न परिस्थितियों में उचित और सक्षम रूप से प्रतिक्रिया देने के लिए सक्षम बनाता है।

       पुलिस शिकायत प्राधिकरण:

     पुलिस कदाचार की शिकायतों की जांच के लिए राज्य और जिला स्तर पर स्वतंत्र प्राधिकरण स्थापित किए जाने चाहिए। वर्ष 2006 का मॉडल पुलिस अधिनियम, ऐसे प्राधिकरणों की स्थापना की सिफारिश करता है, जिसमें सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, पुलिस अधिकारी और सार्वजनिक प्रशासक शामिल हों।

       पारदर्शिता:

     पुलिस संचालन में जनता का विश्वास कायम करने के लिए निर्णय लेने में पारदर्शिता आवश्यक है। इस प्रकार का नैतिक आचरण और नागरिक संपर्क पुलिसिंग प्रथाओं में आवश्यक बदलावों के लिए उचित सुझाव देने में योगदान करते हैं।

       सामुदायिक जुड़ावः

     पुलिस के प्रयासों में समुदायों को सक्रिय रूप से शामिल करने से विश्वास, समझ और स्थानीय अंतर्दृष्टि को बढ़ावा मिलता है। सामुदायिक सहभागिता यह सुनिश्चित करती है कि कानून प्रवर्तन रणनीतियाँ समुदाय-विशिष्ट मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करती हैं इससे पुलिस कर्मियों और नागरिकों के बीच सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा मिलता है।

       विधायी बदलावः

     राष्ट्रीय पुलिस आयोग और पद्मनाभैया समिति जैसी कुछ पिछली समितियों ने महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। विधायी परिवर्तन, विशेष रूप से 2006 के मॉडल पुलिस अधिनियम द्वारा सुझाए गए, पुलिस एजेंसी के भीतर कार्यात्मक स्वायत्तता, व्यावसायिकता और जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

निष्कर्ष:

     भारत में वर्तमान पुलिस व्यवस्था को बदलना एक जटिल कार्य है जिसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। जबकि तकनीकी प्रगति और समकालीन सुधार, सार्वजनिक विश्वास, राजनीतिक हस्तक्षेप और पदानुक्रमित असमानताओं जैसे गहरे मुद्दों को संबोधित कर सकते हैं। नीति निर्माताओं, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और जनता को व्यापक सुधारों को लागू करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। यही सहभागिता लोकतांत्रिक मूल्यों, जवाबदेही और नागरिकों की सेवा तथा सुरक्षा के लिए पुलिस बल की वास्तविक प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.       राष्ट्रीय पुलिस आयोग, विभिन्न समितियों की सिफ़ारिशों और 2006 के मॉडल पुलिस अधिनियम जैसे विधायी विकास सहित सुधार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद भारतीय पुलिस बल में जनता के विश्वास की ऐतिहासिक कमी कैसे बनी हुई है? चर्चा कीजिए।  (10 अंक, 150 शब्द)

2.       भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस)  और कानून प्रवर्तन में सहयोग केंद्र और कुछ विपक्ष के नेतृत्व वाले राज्यों के बीच विकसित होते संबंधों के संदर्भ में, बढ़ती कलह संघीय शासन को कैसे प्रभावित कर सकती है और इस मुद्दे को सामंजस्यपूर्ण तरीके से संबोधित करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत – The Hindu