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Daily-current-affairs / 03 May 2024

समावेशी समृद्धि की ओरः भारत में आर्थिक असमानता पर पुनर्विचार - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ

आर्थिक असमानता की मौजूदा बहस में, फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के कार्य ने खासकर भारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण चर्चा छेड़ दी है।  पिकेटी और उनके साथी अर्थशास्त्रियों ने भारत के आर्थिक परिदृश्य में परेशान करने वाले रुझानों को दिखाते हुए पाया है, कि वर्तमान समय में असमानता ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से भी ज्यादा बढ़ गई है। देश की कुल संपत्ति और आमदनी का एक बड़ा हिस्सा शीर्ष 1% आबादी के पास है, परिणामतः संपत्ति कर जैसे उपायों के जरिए धन के पुनर्वितरण की मांग जोर पकड़ रही है।

अर्थव्यवस्था का बढ़ता दायरा

पिकेटी और उनके सहयोगियों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों की जांच करने पर भारत के आर्थिक विकास में सूक्ष्म रुझान दिखाई देते हैं। आय और संपत्ति की असमानता 1980 के दशक से तेजी से बढ़ी, यह भारत द्वारा बाजार सिद्धांतों को धीरे-धीरे अपनाने के साथ वृद्धितर हुई है। इस अवधि में, नीचे के 50% लोगों के पास राष्ट्रीय आय के हिस्से में नाटकीय रूप से गिरावट आई, जबकि शीर्ष 10% द्वारा नियंत्रित हिस्से में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। हालांकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या आय के हिस्से में इस गिरावट का मतलब समाज के निचले तबके के लोगों के लिए वास्तविक आय या जीवन स्तर में गिरावट से है।

अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का मानना है कि गरीबों की आमदनी कम हो रही है, लेकिन वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की रिपोर्ट बताती है कि वास्तव में पिछले 30 वर्षों में गरीबों (आबादी का निचला 50%) की वास्तविक आमदनी (खर्चें के हिसाब से) काफी बढ़ी है।  इसका तात्पर्य है कि भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ है और गरीबों के रहन-सहन में सुधार हुआ है, भले ही राष्ट्रीय आय में उनका हिस्सा कम हो गया हो।  हालांकि अमीरी-गरीबी के बीच अंतर काफी व्यापक है। गरीब को बाज़ार की प्रतिस्पर्धा में बराबरी का मुकाबला करने की आजादी कम है, यही उनकी तरक्की रोकता है।

आर्थिक स्वतंत्रता में बाधाएं

भारत में आय का इतना अधिक अंतर आर्थिक स्वतंत्रता में बाधाओं को दर्शाता है, जो बाजार में समान रूप से भाग लेने से रोकती हैं। सैद्धांतिक रूप से, एक स्वतंत्र बाजार लोगों को आकर्षक अवसरों का दोहन करने के लिए प्रोत्साहित करता है, लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल है। पूंजी तक सीमित पहुंच और शिक्षा की ऊंची लागत जैसी बाधाएं निम्न-आय वाले वर्गों के लोगों की गतिशीलता को रोकती हैं, जिससे असमानता बनी रहती है। इस स्थिति में, समाधान उच्च आय वालों पर अधिक कर लगाने में नहीं है, बल्कि उन बाधाओं को दूर करने में है, जो वंचितों की आर्थिक स्वतंत्रता को सीमित करती हैं।

 

वित्त और शिक्षा जैसे क्षेत्रों का उदारीकरण आर्थिक गतिशीलता को बढ़ावा देने का एक कारगर रास्ता है। पूंजी तक आसान पहुंच और कौशल हासिल करने में आने वाली रुकावटों को कम करके, वंचित समुदाय उच्च-भुगतान वाले क्षेत्रों में अधिक प्रभावी ढंग से जुड़ सकते हैं, इसके परिणामस्वरूप आय का अंतर स्वाभाविक रूप से कम हो जाएगा। हालांकि, इन उपायों की प्रभावशीलता संपत्ति के अधिकारों को संबोधित करने जैसे सवालों पर निर्भर करती है, जो असमान रूप से वंचितों के खिलाफ हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि, गरीबों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाना, समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए एक पूर्वापेक्षा है।

संपत्ति की अपरिहार्य असमानता

भारत में संपत्ति वितरण का तरीका बहुत असमान है। बाजार अर्थव्यवस्था में असमानता एक विशेषता होती ही है, लेकिन भारत में कुछ ही लोगों के हाथों में बहुत अधिक धन जमा होना व्यवस्था की खामियों को दर्शाता है, कि बाजार की अकुशलता को। धनी वर्ग को मिलने वाले विशेषाधिकार इस असमानता को और बढ़ाते हैं, यह विशेषाधिकार उन्हें प्रतिस्पर्धा से बचाते हैं, जो उनके दबदबा को कम कर सकती है। अतः, इन विशेषाधिकारों को खत्म करना संपत्ति की खाई को पाटने और अर्थव्यवस्था को सबके लिए समान बनाने हेतु जरूरी कदम है।

यह तर्क कि सिर्फ संपत्ति कर लगाकर असमानता दूर की जा सकती है, जो एक पक्षीय है। ऐसा करने से गरीबों का ही नुकसान हो सकता है। संपत्ति कर लगाने से निवेश पर मिलने वाला मुनाफा कम हो जाता है, जिससे नौकरियां कम मिलती हैं और वेतन नहीं बढ़ता। इससे सबसे ज्यादा गरीब तबका प्रभावित होता है। साथ ही, धनी लोगों की संपत्ति, ज्यादातर उत्पादक चीजों में लगी होती है, जिनसे अर्थव्यवस्था चलती है। इसलिए, यह कहना उचित नहीं है कि अमीरों की संपत्ति दूसरों के जीवन-यापन को खराब करती है।

संपत्ति कर का प्रभाव

सम्पत्ति कर लगाने के विचार की गहराई से जांचने पर पता चलता है कि इसका आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण पर विपरीत असर पड़ सकता है। यह कर निवेश और उद्यमशीलता को कम आकर्षक बनाता है, परिणामतः नवाचार और उत्पादकता भी कम हो जाती है।  साथ ही, इस कर का बोझ असमान रूप से मजदूरों और जमीन मालिकों पर पड़ता है, जिससे आमदनी में असमानता और बढ़ती है एवं विकास कमजोर पड़ जाता हैं।  सम्पत्ति कर असमानता कम करने के बजाय, अमीरों और गरीबों के बीच के फासले को और बढ़ा सकता है।  दूसरे शब्दों में, यह कर जिस समस्या को सुलझाने की कोशिश कर रहा है, वही समस्या और गंभीर बना देता है।

संपत्ति कर के विषय में सोचने का नजरिया बदलना जरूरी है।  नीति निर्माताओं को अमीरों को सजा देने वाले टैक्स की जगह आर्थिक आज़ादी को बढ़ावा देने वाले उपायों पर ध्यान देना चाहिए। अगर नीति निर्माता हाशिये पर रहने वाले समुदायों को बाजार में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सशक्त बनाते हैं, तो इससे एक ऐसा आर्थिक वातावरण तैयार होगा जिसमें सभी शामिल हो सकें और जो निरंतर विकास को बढ़वा दे। लेकिन ऐसा करने के लिए व्यापक सुधारों की जरूरत है। ऐसी व्यवस्था को खत्म करना होगा जो कुछ लोगों को आगे बढ़ने से रोकती है और ऐसा वातावरण बनाना होगा जहां हर किसी के पास तरक्की करने का मौका हो।

निष्कर्ष

भारत में आर्थिक असमानता पर विमर्श धन और आय के वितरण को आकार देने वाले कारकों की जटिल क्रिया को रेखांकित करता है। यद्यपि धन कर जैसे उपायों के माध्यम से धन के पुनर्वितरण की मांग सतही तौर पर आकर्षक लग सकती है, लेकिन गहन विश्लेषण इस तरह के दृष्टिकोण की अंतर्निहित सीमाओं और अनपेक्षित परिणामों को प्रकट करता है। इसके बजाय, हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जिससे वे बाजार में समान आधार पर प्रतिस्पर्धा कर सकें।
अंतर्निहित असमानताओं को दूर करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें गतिशीलता की बाधाओं को दूर करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संरचनात्मक सुधार शामिल हों। दंडात्मक उपायों पर आर्थिक सशक्तिकरण को प्राथमिकता देकर, नीति निर्माता समाज के सभी वर्गों के लिए अधिक न्यायसंगत और समृद्ध भविष्य के लिए आधार तैयार कर सकते हैं। अंततः, असमानता का मुकाबला करने का मार्ग समृद्ध लोगों को दंडित करने में नहीं है, बल्कि हाशिए पर पड़े लोगों को एक गतिशील और समावेशी अर्थव्यवस्था में अपनी पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए सशक्त बनाने में है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    थॉमस पिकेटी और उनके सह-लेखकों द्वारा भारत में आय और धन की असमानता के रुझानों पर चर्चा करें। भारतीय समाज के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर इन प्रवृत्तियों के प्रभाव का मूल्यांकन करें और अंतर्निहित असमानताओं को दूर करने के लिए नीतिगत उपायों का प्रस्ताव करें। (10 marks, 150 words)

2.    भारत में आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए एक उपकरण के रूप में धन कराधान को लेकर बहस ने महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है। समाज के विभिन्न वर्गों पर इसके प्रभाव पर विचार करते हुए, आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण दोनों पर धन कर लागू करने के संभावित प्रभावों का विश्लेषण करें। भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास को बढ़ावा देने और असमानता को कम करने के लिए वैकल्पिक रणनीतियों का सुझाव दें। (15 marks, 250 words)

स्रोत- हिंदू