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Daily-current-affairs / 27 Nov 2024

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में बदलाव -डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:
भारत की वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की मुहिम को दक्षता, नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए अभिनव नीतियों द्वारा मजबूती प्रदान की जा रही है। इस परिवर्तन के केंद्र में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना है, जिसे 2020 में आत्मनिर्भर भारत  पहल के तहत शुरू किया गया था। प्रमुख उद्योगों में विकास को प्रोत्साहित करने हेतु डिज़ाइन की गई यह योजना वित्तीय प्रोत्साहनों को बढ़े हुए उत्पादन, निर्यात और घरेलू मूल्य संवर्धन जैसे मापनीय परिणामों से जोड़ती है।

·        इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, पीएलआई योजना का उद्देश्य आयात निर्भरता को कम करना, पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करना और भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत करना है। ₹1.97 लाख करोड़ (USD 24 बिलियन) की वित्तीय प्रतिबद्धता के साथ, यह पहल देश के विनिर्माण परिदृश्य को नया आकार देने के साथ-साथ रोजगार और निर्यात को भी बढ़ावा दे रही है।

पीएलआई योजना का दायरा: लक्षित क्षेत्र

पीएलआई योजना 14 प्रमुख क्षेत्रों को लक्षित करती है, जिन्हें भारत के औद्योगिक और आर्थिक विकास के लिए उनकी रणनीतिक प्रासंगिकता के आधार पर चुना गया है। इनमें शामिल हैं:

1.     बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (एलएसईएम)

2.     फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरण और थोक दवाएं

3.     ऑटोमोटिव और उन्नत ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी

4.     दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद

5.     नवीकरणीय ऊर्जा और सौर पीवी मॉड्यूल

6.     ड्रोन और ड्रोन घटक

7.     खाद्य प्रसंस्करण

8.     सफेद सामान (एसी और एलईडी)

9.     वस्त्र एवं परिधान

10.     विशेष स्टील

11.     आईटी हार्डवेयर

12.    रसायन और पेट्रोरसायन

13.     उन्नत बैटरी भंडारण

14.   तकनीकी वस्त्र

इन क्षेत्रों का चयन रणनीतिक रूप से घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करने, निर्यात को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से किया गया है। यह चयन आत्मनिर्भर भारत  के दृष्टिकोण के अनुरूप है और भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को सशक्त करता है।

बजटीय आवंटन और रणनीतिक निवेश:

भारत के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, सरकार ने पीएलआई योजना के लिए 1.97 लाख करोड़ का आवंटन किया है। मोबाइल विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स, और ऑटोमोटिव घटकों जैसे प्रमुख उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने, निवेश आकर्षित करने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए लक्षित बजटीय सहायता प्राप्त हुई है। प्रदर्शन-आधारित यह दृष्टिकोण प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के साथ ही धन के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है।

पीएलआई योजना की उपलब्धियां:

पीएलआई योजना ने भारत के औद्योगिक उत्पादन और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है:

  • ₹1.46 लाख करोड़ का निवेश (अगस्त 2024 तक)
  • समर्थित क्षेत्रों से ₹12.5 लाख करोड़ का उत्पादन मूल्य सृजित।
  • ₹4 लाख करोड़ का निर्यात, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य प्रसंस्करण का अहम योगदान।
  • प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 9.5 लाख नौकरियों का सृजन।

ये उपलब्धियां केवल आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाती हैं बल्कि आयात पर निर्भरता कम करने में भी योजना की भूमिका को दर्शाती हैं।

क्षेत्रवार सफलता:

·  ड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण:
पीएलआई योजना ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र को मोबाइल फोन के शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक में बदल दिया है।

  • 2014-15 में उत्पादन 5.8 करोड़ यूनिट से बढ़कर 2023-24 में 33 करोड़ यूनिट हो गया। आयात में काफी कमी आई  और मोबाइल फोन का निर्यात 5 करोड़ यूनिट से अधिक हो गया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में 254% की वृद्धि से उद्योग को मजबूती मिली।

·  फार्मास्यूटिकल्स और मेडिकल डिवाइस:
भारत ने वैश्विक स्तर पर तीसरे सबसे बड़े फार्मास्यूटिकल उत्पादक के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है।

  • अब फार्मास्यूटिकल उत्पादन का 50% निर्यात से आता है। पेनिसिलिन  जैसी आवश्यक थोक दवाओं के लिए आयात पर निर्भरता कम हुई। सीटी स्कैनर और एमआरआई मशीनों जैसे महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों का घरेलू उत्पादन सक्षम हुआ।

·  ऑटोमोटिव और उन्नत प्रौद्योगिकी वाहन:
ऑटोमोटिव पीएलआई पहल ने शुरुआती उम्मीदों से अधिक ₹67,690 करोड़ का निवेश आकर्षित किया।

  • 85 से अधिक कंपनियों को प्रोत्साहन के लिए मंजूरी दी गई। उन्नत ऑटोमोटिव घटकों और इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा मिला।

·  अक्षय ऊर्जा और सौर पीवी मॉड्यूल:
भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र पीएलआई योजना का प्रमुख लाभार्थी रहा है।

  • 4,500 करोड़ के शुरुआती परिव्यय के साथ पहले चरण में महत्वपूर्ण घरेलू विनिर्माण क्षमता स्थापित हुई। दूसरे चरण में 19,500 करोड़ के निवेश से 65 गीगावाट सौर पीवी विनिर्माण क्षमता का लक्ष्य।

·  दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद:
भारत ने दूरसंचार उत्पादों में 60% आयात प्रतिस्थापन हासिल किया।

  • 4जी और 5जी दूरसंचार उपकरणों के प्रमुख निर्यातक के रूप में उभरा। वैश्विक प्रौद्योगिकी फर्मों ने देश में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित कीं, जिससे दूरसंचार अवसंरचना और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला मजबूत हुई।

·  ड्रोन और ड्रोन घटक:
ड्रोन उद्योग ने एमएसएमई और स्टार्ट-अप द्वारा संचालित कारोबार में सात गुना वृद्धि देखी।

  • इस तीव्र वृद्धि ने भारत को ड्रोन निर्माण में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया। उद्योग में निवेश और रोजगार के अवसरों में इजाफा हुआ।

व्यापक आर्थिक और सामरिक निहितार्थ:

  • घरेलू क्षमताओं का निर्माण:
    पीएलआई योजना ने उच्च-तकनीक क्षेत्रों, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा, में आयात पर निर्भरता कम करके भारत के विनिर्माण आधार को सुदृढ़ किया है, जिससे औद्योगिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिला है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि:
    योजना के तहत भारत का निर्यात ₹4 लाख करोड़ को पार कर चुका है। यह इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव घटकों जैसे क्षेत्रों में वैश्विक बाजार में उल्लेखनीय सुधार को दर्शाता है।
  • रोजगार सृजन: 9.5 लाख नौकरियों का सृजन इस योजना की समावेशिता को रेखांकित करता है। कुशल और अकुशल कार्यबल के लिए बढ़ते अवसर भारत की रोजगार संबंधी चुनौतियों का समाधान करने में सहायक हैं।
  • निवेश आकर्षित करना:
    वैश्विक और घरेलू फर्मों से पर्याप्त निवेश ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, औद्योगिक नवाचार और क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित किया है।

 

चुनौतियाँ और आगे की राह:

  • बुनियादी ढांचा और कार्यबल विकास:
    योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कुशल लॉजिस्टिक्स, बिजली आपूर्ति और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे मजबूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है। उच्च-तकनीक उद्योगों की बढ़ती मांगों को पूरा करने हेतु कार्यबल प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा:
    भारत को चीन जैसे स्थापित केंद्रों और दक्षिण-पूर्व एशिया के उभरते देशों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। निरंतर नवाचार और नीतिगत सुधार से प्रतिस्पर्धा में बढ़त बनाए रखना आवश्यक है।
  • स्थिरता:
    हरित विनिर्माण की दिशा में बदलाव महत्वपूर्ण है। नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुकूल है। इसके लिए निरंतर नीतिगत समर्थन आवश्यक है।
  • विनियामक सहायता:
    सुव्यवस्थित विनियम और व्यापार सुगमता में सुधार, पीएलआई योजना द्वारा संचालित विकास की गति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उन्नत व्यापार नीतियों से भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बेहतर तरीके से एकीकृत हो सकेगा।

 

निष्कर्ष:

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भारत के विनिर्माण क्षेत्र को नया आकार देने वाली एक परिवर्तनकारी नीति साबित हुई है। यह योजना महत्वपूर्ण उद्योगों को लक्षित करके उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाती है, निर्यात में वृद्धि करती है और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को सुदृढ़ करती है। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उपलब्धियों के साथ, यह योजना देश की वैश्विक विनिर्माण नेतृत्व की क्षमता को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है। जैसे-जैसे भारत आत्मनिर्भरता की ओर अपनी यात्रा जारी रखेगा, बुनियादी ढांचे, कौशल विकास और स्थिरता से संबंधित चुनौतियों का समाधान करना महत्वपूर्ण होगा। पीएलआई योजना ने औद्योगिक विस्तार के लिए एक मजबूत नींव रखी है, जिससे समावेशी और टिकाऊ आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हुई है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लक्षित करती है। ऐसी लक्षित औद्योगिक नीति से उत्पन्न चुनौतियों और अवसरों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें