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Daily-current-affairs / 21 Sep 2024

सिंधु जल संधि - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ

भारत ने जनवरी 2023 से पाकिस्तान को चौथी बार नोटिस जारी कर 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) पर पुन: बातचीत की मांग तेज कर दी है, जिसमें पाकिस्तान के बातचीत के लिए तैयार होने तक स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की बैठकें आयोजित करने की बात कही गई है। यह प्रयास उस गतिरोध के बाद हो रहा है, जिसे कभी एक मॉडल जल-साझाकरण समझौता माना जाता था।

संधि का अवलोकन

     यह संधि 19 सितंबर 1960 को कराची में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा हस्ताक्षरित की गई थी।

     संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ--रिवर परियोजनाओं के माध्यम से जलविद्युत उत्पादन करने की अनुमति है, बशर्ते कि वे विशिष्ट डिजाइन और संचालन मानदंडों का पालन करें। पाकिस्तान को इन परियोजनाओं के डिजाइनों को चुनौती देने का अधिकार है।

     "पूर्वी नदियाँ" सतलुज, ब्यास और रावी को सामूहिक रूप से संदर्भित करती हैं, जबकि "पश्चिमी नदियाँ" सिंधु, झेलम और चिनाब को दर्शाती हैं। "नदियों" शब्द का प्रयोग सभी छह नदियोंसतलुज, ब्यास, रावी, सिंधु, झेलम और चिनाब के लिए किया गया है।

विवाद निवारण तंत्र

     द्विपक्षीय वार्ता: विवादों को पहले भारत और पाकिस्तान के बीच चर्चाओं के माध्यम से संबोधित किया जाता है, जो आमतौर पर स्थायी सिंधु आयोग (PIC) के तहत होते हैं, जिसमें दोनों देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

     तटस्थ विशेषज्ञ: यदि वार्ता असफल होती है, तो कोई भी पक्ष विवाद के तकनीकी पहलुओं का मूल्यांकन करने और सिफारिशें देने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मांग कर सकता है।

     स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA): यदि तटस्थ विशेषज्ञ की सलाह के बाद भी विवाद हल नहीं होता, तो कोई भी देश मामले को PCA में ले जा सकता है, जो संधि की व्याख्या और प्रवर्तन से संबंधित विवादों का समाधान करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण है।

     अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी: विश्व बैंक, जो संधि का हस्ताक्षरकर्ता और गारंटर है, चर्चाओं की सुविधा प्रदान करने और संधि के प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने में भूमिका निभाता है।

IWT की प्रमुख प्रावधान

     जल आवंटन:

     पूर्वी नदियाँ: भारत को सतलुज, ब्यास और रावी के जल पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं।

     पश्चिमी नदियाँ: पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब के जल पर विशेष अधिकार प्राप्त हैं, जबकि भारत इन नदियों का उपयोग जलविद्युत परियोजनाओं के लिए कर सकता है, बशर्ते वे संधि के तहत निर्धारित शर्तों का पालन करें।

     रन-ऑफ--रिवर परियोजनाएं: भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ--रिवर जलविद्युत परियोजनाएं विकसित करने की अनुमति है, बशर्ते वे पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर न्यूनतम प्रभाव डालने के लिए निर्धारित डिजाइन और संचालन मानदंडों का पालन करें।

     सूचना साझाकरण: दोनों देशों को नदी प्रणाली से संबंधित जल प्रवाह, परियोजनाओं और योजनाओं के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे पारदर्शिता और सहयोग को बढ़ावा मिले।

     बांधों का निर्माण: बांधों और भंडारण परियोजनाओं के निर्माण के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं, जिसमें भंडारण क्षमता और संचालन प्रोटोकॉल की सीमा शामिल है।

IWT पर भारत और पाकिस्तान की स्थिति

     भारत की स्थिति:

     संधि के प्रति प्रतिबद्धता: भारत संधि और उसके प्रावधानों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर देता है और दावा करता है कि उसने हमेशा संधि के दिशा-निर्देशों का पालन किया है।

     विकास का अधिकार: भारत का कहना है कि उसे पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं का विकास करने का अधिकार है, बशर्ते ये परियोजनाएं संधि के डिज़ाइन और संचालन के मानदंडों को पूरा करती हों।

     जल सुरक्षा चिंताएँ: भारत जल सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर चिंतित है और जलवायु परिवर्तन जैसी समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिए संधि में समायोजन की वकालत करता है।

     वार्ता की प्राथमिकता: भारत विवादों को बातचीत के माध्यम से सुलझाने का पक्षधर है और ऐतिहासिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के बजाय द्विपक्षीय चर्चाओं को प्रोत्साहित करता रहा है।

     पाकिस्तान की स्थिति:

     जल अधिकारों की रक्षा: पाकिस्तान सिंधु, झेलम और चिनाब के जल पर अपने अधिकारों की कड़ी सुरक्षा करता है, इसे अपनी कृषि और आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण मानता है।

     भारतीय परियोजनाओं पर आपत्तियां: पाकिस्तान ने विभिन्न भारतीय परियोजनाओं पर आपत्तियां जताई हैं, यह तर्क देते हुए कि वे संधि की शर्तों का उल्लंघन करती हैं और उसकी जल आपूर्ति के लिए खतरा हैं।

     तटस्थ विशेषज्ञों और PCA की भागीदारी: पाकिस्तान ने तटस्थ विशेषज्ञों की भागीदारी की मांग की है और भारतीय परियोजनाओं से संबंधित विवादों को हल करने के लिए स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) के माध्यम से मध्यस्थता की मांग की है।

     पुन: बातचीत में रुचि: पाकिस्तान ने क्षेत्रीय तनावों के बीच अपनी जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संधि के कुछ पहलुओं पर पुन: बातचीत करने की इच्छा व्यक्त की है

आगे का रास्ता

     वार्ता को सुदृढ़ करना: दोनों देशों को खुली और रचनात्मक चर्चा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि चिंताओं का समाधान किया जा सके और विश्वास का निर्माण हो सके। स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की नियमित बैठकें इस प्रयास में सहायक हो सकती हैं।

     समकालीन चुनौतियों का समाधान: संधि को जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और बदलती जल आवश्यकताओं जैसी आधुनिक चुनौतियों के अनुकूल बनाना चाहिए। इसमें स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं और संयुक्त परियोजनाओं की खोज शामिल हो सकती है।

     पारदर्शिता में सुधार: जल डेटा और परियोजना जानकारी साझा करने में पारदर्शिता को बढ़ावा देने से गलतफहमियों को कम करने में मदद मिल सकती है। जल प्रवाह और उपयोग पर नियमित अपडेट अधिक सहयोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

     विवाद समाधान को मजबूत करना: तटस्थ विशेषज्ञों और PCA को शामिल करने की स्पष्ट प्रक्रियाओं सहित मौजूदा विवाद समाधान तंत्र को बढ़ाने से विवाद समाधान के लिए एक अधिक प्रभावी ढांचा तैयार हो सकता है।

     सहयोगात्मक जल प्रबंधन परियोजनाएं: भारत और पाकिस्तान जल संरक्षण, बाढ़ प्रबंधन और जलविद्युत उत्पादन के लिए संयुक्त पहल पर विचार कर सकते हैं, जो दोनों देशों को लाभ पहुंचाएंगी।

     अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना: अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, जैसे विश्व बैंक, को चर्चाओं की सुविधा प्रदान करने और तकनीकी सहायता प्रदान करने में शामिल करना जटिल मुद्दों को संबोधित करने में सहायक हो सकता है।

     जनसाधारण की भागीदारी: स्थानीय हितधारकों, किसानों और नदी प्रणालियों पर निर्भर समुदायों को शामिल करने से मूल्यवान दृष्टिकोण प्राप्त हो सकते हैं और सहयोगात्मक प्रयासों के लिए जमीनी समर्थन प्राप्त हो सकता है।

निष्कर्ष

सिंधु जल संधि को पुनर्जीवित करने के लिए रचनात्मक संवाद, आधुनिक चुनौतियों के अनुकूलन और सहयोगात्मक जल प्रबंधन पहलों की आवश्यकता है। पारदर्शिता को बढ़ावा देकर और स्थानीय हितधारकों को शामिल करके, भारत और पाकिस्तान साझा जल संसाधनों के लिए एक स्थायी और परस्पर लाभकारी दृष्टिकोण की दिशा में काम कर सकते हैं।

संभावित प्रश्न (UPSC मुख्य परीक्षा के लिए)

1.    सिंधु जल संधि 1960 का भारत-पाकिस्तान संबंधों में महत्व स्पष्ट कीजिए यह वर्षों में कैसे विकसित हुई है? (250 शब्द, 15 अंक)

2.    सिंधु जल संधि के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिए l ये प्रावधान भारत और पाकिस्तान के जल अधिकारों को कैसे संबोधित करते हैं? (150 शब्द, 10 अंक)