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Daily-current-affairs / 06 Jun 2024

अफ्रीका के सतत विकास लक्ष्यों को पुनर्जीवित करना: वित्तीय सुधारों और वैश्विक दक्षिण भागीदारी के लिए अनिवार्यता : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

अफ्रीका के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पुनर्जीवित करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता है और वर्तमान वैश्विक वित्तीय व्यवस्था  इस संदर्भ में अपर्याप्त साबित हो रही है। अफ्रीकी संघ (एयू) को इस चुनौती का समाधान करने के लिए अपने प्रयासों को गति देनी चाहिए और वैश्विक दक्षिण देशों के साथ साझेदारी बनानी चाहिए। हालांकि दो दशकों की आर्थिक प्रगति के बाद, अफ्रीका अब ऋण और खाद्य असुरक्षा सहित महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना कर रहा है, जो कोविड-19 महामारी और यूक्रेन-रूस संघर्ष से और बढ़ गई है। अतः वित्तीय सुधारों में एयू का नेतृत्व अफ्रीका के एसडीजी को फिर से संगठित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान चुनौतियाँ

2000 से 2010 तक, उप-सहारा अफ्रीका ने मजबूत आर्थिक विकास का अनुभव किया, जो वार्षिक रूप से औसतन 5 प्रतिशत रहा और महत्वपूर्ण विकासात्मक प्रगति हुई। गरीबी दर 2000 में 56 प्रतिशत से घटकर 2010 में 42.1 प्रतिशत हो गई। हालाँकि, COVID-19 महामारी ने इस प्रगति को गंभीर रूप से  प्रभावित किया और उसके बाद यूक्रेन-रूस युद्ध ने पूरे महाद्वीप में बड़े पैमाने पर खाद्य संकट को जन्म दिया। वर्तमान में, यह क्षेत्र गंभीर ऋण संकट से जूझ रहा है, जिसमें अफ्रीका के आधे से अधिक निम्न-आय वाले देश ऋण संकट में हैं। घाना, जाम्बिया, माली और इथियोपिया पहले ही स्वयं को डिफॉल्ट घोषित कर चुके हैं। वर्ष 2021 में, लगभग 39 मिलियन अफ्रीकी अत्यधिक गरीबी में देखे गए और लाखों लोग अभी भी तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। इस संदर्भ में लगभग 33 अफ्रीकी देशों को बाह्य खाद्य सहायता की आवश्यकता है।

इसके अलावा एसडीजी पर अफ्रीका की प्रगति धीमी और असमान बनी हुई है। अतः त्वरित कार्रवाई और पर्याप्त मात्रा में वित्तीय प्रवाह के बिना, एसडीजी को प्राप्त करना एक मायावी लक्ष्य होगा। 2015 में एसडीजी को अपनाने के बाद से वित्त एसडीजी के कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण बाधा रहा है। 2030 एजेंडा ने सहायता प्रतिबद्धताओं और अभिनव वित्तपोषण साधनों को पूरा करने के साथ-साथ घरेलू संसाधन जुटाने और निजी क्षेत्र के फंडों के दोहन को मजबूत करने पर जोर दिया। हालांकि, कराधान के माध्यम से घरेलू संसाधनों को जुटाना अफ्रीका के अधिकांश विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है।

एसडीजी कार्यान्वयन में वित्तीय बाधाएँ

संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, अफ्रीका को प्रति वर्ष लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के एसडीजी वित्तपोषण अंतर का सामना करना पड़ता है। बढ़ते ऋण बोझ, उच्च उधार लागत और सीमित राजकोषीय प्रबंधन इस चुनौती को और बढ़ा देते हैं। इस आलोक में 2023 तक, सार्वजनिक ऋण से जीडीपी अनुपात 60 प्रतिशत पर पहुंच गया और औसत उप-सहारा अफ्रीकी देश अपने राजस्व का लगभग 12 प्रतिशत ब्याज भुगतान के लिए आवंटित कर रहा था, जिससे विकास व्यय में काफी कमी आई। वैश्विक संकटों ने भी अफ्रीका के निवेश माहौल को असंगत रूप से प्रभावित किया है। महामारी के बाद, वैश्विक ग्रीनफील्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में अफ्रीका की हिस्सेदारी 17 वर्षों में सबसे कम 6 प्रतिशत पर गई, जबकि उच्च आय वाले देशों में उनकी अब तक की सबसे अधिक हिस्सेदारी 61 प्रतिशत रही। अफ्रीका में पूंजी की उच्च लागत अक्षय ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश को बाधित करती है।

आधिकारिक विकास सहायता (ODA) जैसे पारंपरिक आर्थिक स्रोत भी दुर्लभ हो गए हैं। महामारी के बाद रिकॉर्ड ODA स्तरों के बावजूद, यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद दाता देशों में शरणार्थियों की मेजबानी के लिए संसाधनों के डायवर्जन के कारण विकासशील देशों को सहायता प्रवाह में 2 प्रतिशत की गिरावट आई। अफ्रीका के लिए, गिरावट 3.5 प्रतिशत पर और भी अधिक स्पष्ट थी। विकसित देश 2020 तक सालाना 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जलवायु वित्त प्रदान करने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने में भी विफल रहे हैं, जैसा कि कोपेनहेगन जलवायु शिखर सम्मेलन में सहमति हुई थी। इस प्रकार बाहरी समर्थन के बिना, SDG एजेंडा जोखिम में है और अफ्रीका को एक और 'खोये हुआ दशक' का सामना करना पड़ सकता है।

प्रणालीगत वित्तीय सुधारों की आवश्यकता

यद्यपि इस दौरान ODA महत्वपूर्ण बना हुआ है, तथापि यह अकेले पर्याप्त नहीं होगा। अफ्रीका में SDG को वित्तपोषित करने के लिए संसाधन जुटाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना में गहन प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है, जो पुरानी हो चुकी है और अफ्रीका के हितों की पूर्ति करने में विफल है। इसके अतिरिक्त कोविड महामारी ने उत्तर और दक्षिण के बीच असमानता को उजागर किया, जिसमें विकसित उत्तर बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करने में सक्षम था। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से विशेष आहरण अधिकार (SDR) का बड़ा हिस्सा प्राप्त कर रहा था। इसके विपरीत, अफ्रीकी देशों में राजकोषीय स्थान की कमी थी, और इस क्षेत्र के लिए औसत प्रोत्साहन पैकेज सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.5 प्रतिशत था। अफ्रीकी देशों को IMF के SDR का केवल 3 प्रतिशत प्राप्त हुआ।

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में सुधार की मांग जोर पकड़ रही हैं क्योंकि यह स्पष्ट हो रहा है कि अफ्रीका का अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में कम प्रतिनिधित्व है। ऋण अनुबंधों, आर्थिक शर्तों, क्रेडिट रेटिंग, एसडीआर आवंटन, कर मानदंडों और अंतरराष्ट्रीय निकायों में सीमित प्रतिनिधित्व और मतदान अधिकारों में निहित पूर्वाग्रह अफ्रीका की आर्थिक प्रगति में बाधा डालते हैं। अफ्रीकी संघ (एयू) का जी20 के स्थायी सदस्य के रूप में प्रवेश प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण था, जिसने वैश्विक मंचों पर ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े महाद्वीप को प्रतिनिधित्व प्रदान किया। हालाँकि, अफ्रीका को वित्तीय सुधारों को आगे बढ़ाने और केवल नियम-पालक बनने के बजाय आर्थिक न्याय और समान भागीदारी की वकालत करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

एयू की रणनीतिक प्राथमिकताएँ और पहल

फरवरी 2024 में एयू शिखर सम्मेलन में, अफ्रीका ने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के लिए कई प्राथमिकताओं को रेखांकित किया जो उसके हितों की पूर्ति करती हैं। इनमें ऋण संकट का समाधान करना, अधिक अनुदान और रियायती निधि प्राप्त करना, अफ्रीकी वित्तीय संस्थानों को एसडीआर को फिर से चैनल करना, वैश्विक निकायों में अफ्रीकी आवाज़ और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाना और हरित-विकास औद्योगिकीकरण एजेंडे के लिए प्रतिबद्ध होना शामिल है। इसके अलावा, अफ्रीकी बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों (AFMI), जैसे कि अफ्रीकी निर्यात-आयात बैंक और अफ्रीकी वित्त निगम, ने सहयोग बढ़ाने और अफ्रीका की वित्तपोषण चुनौतियों का समाधान करने के लिए 'अफ्रीका क्लब' या अफ्रीकी बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों का गठबंधन बनाया है।

एयू की पहल महत्वपूर्ण है, लेकिन वैश्विक दक्षिण देशों के साथ साझेदारी बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जी20 में एयू का प्रवेश समय पर हुआ है, क्योंकि भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जी20 के लिए एजेंडा तय कर रहे हैं। भारत, विशेष रूप से, एक मजबूत सहयोगी रहा है, जो एयू की स्थायी जी20 सदस्यता की वकालत करता रहा है और वैश्विक दक्षिण की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करता रहा है। इन देशों के साथ घनिष्ठ साझेदारी अफ्रीका की स्थिति को मजबूत करेगी और प्रणालीगत वित्तीय सुधारों को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।

निष्कर्ष

अफ्रीका के लिए एक और 'खोया हुआ दशक' रोकने और महाद्वीप के सतत विकास लक्ष्यों को पुनः संरेखित करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता है। वर्तमान वैश्विक वित्तीय व्यवस्था अपर्याप्त है, जिसके लिए गहन प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है। एयू को इन सुधारों की वकालत करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक दक्षिण के देशों के साथ घनिष्ठ साझेदारी करनी चाहिए। अफ्रीका के विकास का भविष्य संसाधनों के सफल जुटाव और अधिक न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की स्थापना पर निर्भर करता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. अफ्रीका में सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कार्यान्वयन में प्रमुख वित्तीय बाधाओं पर चर्चा करें। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना में व्यवस्थित सुधार इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं?(10 अंक, 150 शब्द)
  2. वैश्विक मंच पर वित्तीय सुधारों और आर्थिक न्याय की वकालत करने में अफ्रीकी संघ (एयू) की भूमिका का विश्लेषण करें। वैश्विक दक्षिण देशों के साथ साझेदारी एसडीजी को प्राप्त करने की दिशा में अफ्रीका की प्रगति को कैसे बढ़ा सकती है?(15 अंक, 250 शब्द)

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