संदर्भ:
● वर्तमान सूचना प्रसार का वैश्विक परिदृश्य तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और भारत इन व्यापक परिवर्तनों से अछूता नहीं है। पारंपरिक राजनीतिक विश्लेषण जो मुख्य रूप से सूचना के माध्यमों पर केंद्रित हैं, सामान्यतः मानव व्यवहार में मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं, लेकिन ये सोशल मीडिया के उदय और उसके संचालन को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। इस समय तत्काल संतुष्टि की चाह मूल रूप से राजनीतिक आख्यानों को बदल रही है और चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। भारत में, स्थानीय भाषाओं में सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग; बड़े पैमाने पर अनियमित डिजिटल आख्यान और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी राजनीतिक वातावरण के साथ-साथ, विघटनकारी गलत सूचना प्रसार को प्रबंधित करने के लिए सतर्कता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
वायरल होने की होड़ और घटता मानव ध्यान
● हालिया अध्ययनों, जो प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं, मानवीय ध्यान अवधि में नाटकीय गिरावट को दर्शाते हैं। यह दो दशक पहले के लगभग 2.5 मिनट से घटकर आज केवल 45 सेकंड रह गया है। यह बदलाव संक्षिप्त सोशल मीडिया कंटेंट की बढ़ती लोकप्रियता में परिलक्षित होता है, जैसे एक मिनट से कम के छोटे वीडियो और 200 वर्णों से कम के संक्षिप्त लेख। इस प्रकार के कंटेंट सामग्री का निर्माण अपेक्षाकृत सरल होता है, जो गहन विश्लेषण की बजाय अधिकतम ऑनलाइन पहुंच और वायरल होने की क्षमता के उद्देश्य से बनाया जाता है, जिसका खामियाजा अक्सर गुणवत्ता को भुगतना पड़ता है। यह प्रवृत्ति अज्ञात लोगों को प्रभावशाली बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है, जो जनता के लगातार कम होते ध्यान का लाभ उठाते हैं।
● सोशल मीडिया एल्गोरिदम इस परिघटना को और भी बढ़ावा देते हैं, क्योंकि वे विषयवस्तु को वायरल होने के लिए किये गए डिज़ाइन को प्राथमिकता देते हैं, भले ही इसकी कीमत तथ्यात्मक रूप से सटीक आख्यानों को चुकानी पड़े। ऐसे में गलत सूचनाएँ तेजी से पूरे विश्व में फैल सकती हैं, उन्हें खंडित करने या ठीक करने के प्रयासों को पीछे छोड़ देती है। हालाँकि यह वास्तविकता राजनीतिक संस्थाओं या हस्तियों से छिपी नहीं है, जो इस नए प्रतिमान की क्षमता को विभिन्न राजनीतिक समूहों के बीच सोशल मीडिया के प्रभाव को रेखांकित करते हैं।
सोशल मीडिया के बदलते आयाम:
● भारत में, हालिया सोशल मीडिया के स्वरूप में एक उल्लेखनीय बदलाव आया है। ऐतिहासिक रूप से, एक प्रमुख राजनीतिक दल का सोशल मीडिया में स्पष्ट रूप से बेहतर और अधिक प्रभावशाली उपस्थिति रहा है, जिसे वर्तमान मीडिया प्लेटफार्मों को शीघ्र अपनाने और उनमें महारत हासिल करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
● यह श्रेय काफी हद तक उनके अग्रदर्शी रूझान और नए जमाने के मीडिया प्लेटफार्मों के कुशल उपयोग को दिया जाता है। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी शुरू में रैलियों और लंबे भाषणों जैसे पारंपरिक तरीकों से जुड़े रहे, इस प्रमुख दल ने फेसबुक, ट्विटर और मैसेजिंग ऐप जैसे प्लेटफार्मों का लाभ उठाकर एक महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की।
● हालांकि, 2019 के आम चुनाव के बाद से, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा भी सोशल मीडिया में निवेश किया गया है। अग्रणी दल के फॉलोअरों की संख्या और जुड़ाव के आंकड़ों में निरंतर वर्चस्व के बावजूद, वहाँ एक स्पष्ट मंथन चल रहा है। इस प्रकार वर्तमान परिदृश्य अधिक प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है, जिसमें विपक्ष अपनी डिजिटल रणनीतियों में प्रगति कर रहा है।
सोशल मीडिया पर वायरल राजनीतिक कंटेंट की शक्ति:
● सोशल मीडिया पर वायरल राजनीतिक कंटेंट सामग्री का प्रभाव इस बात का प्रमाण है, कि राजनीतिक आख्यानों को कितनी तेजी से तैयार किया जा सकता है और प्रसारित किया जा सकता है। हालिया उदाहरण में किसी लोकप्रिय व्लॉगर का एक वीडियो शामिल था, जो जल्दी ही वायरल हो गया और विभिन्न मंचों पर व्यापक चर्चा शुरू हो गई। इस वीडियो ने नई जानकारी प्रस्तुत नहीं की, बल्कि सामान्य राजनीतिक आरोपों को वायरल होने के लिए डिज़ाइन किए गए प्रारूप में फिर से प्रसारित किया। इस दृष्टिकोण ने वीडियो के विभिन्न हिस्सों को आसानी से छोटे और देखने योग्य उस दर्शक वर्गों में संपादित करने की अनुमति दी, जो जनता के कम ध्यान को आकर्षित करते थे।
● इस कंटेंट सामग्री की वायरल प्रकृति के कारण मूल वीडियो से प्राप्त 'शॉर्ट्स' का विस्फोट हुआ। इन शॉर्ट्स फिल्मों ने जटिल तर्कों को सरल बनाया, तथ्यों की अनदेखी की और संदर्भ को नजरअंदाज कर दिया, जिससे एक वर्णनात्मक कंटेंट का सृजन हुआ जिसका मुकाबला करने के लिए प्रमुख राजनीतिक दल को संघर्ष करना पड़ा। यह घटना दर्शाती है कि कैसे सोशल मीडिया एल्गोरिदम और कम होती ध्यान अवधि, विशिष्ट प्रकार की कंटेंट सामग्री को आश्चर्यजनक माध्यमों में व्यवस्थित रूप से प्रसारित करने में सक्षम बनाती है।
सोशल मीडिया भूमिकाओं की गतिशीलता:
● इस समय सोशल मीडिया पर राजनीतिक आख्यानों का प्रचार करने के तरीके में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा सकता है। पहले परंपरागत रूप से, राजनीतिक हस्तियां बात करने के बिंदु निर्धारित करती थीं, और स्वतंत्र सामग्री निर्माता उन्हें प्रसारित करते थे। अब, यह गतिशीलता तेजी से बदल रही है। स्वतंत्र सोशल मीडिया प्रभावित करने वाले अब वायरल कंटेंट सामग्री स्वयं से बना रहे हैं, जिसे राजनीतिक दल प्रसारित करते हैं। यह रणनीति विपक्ष के सोशल मीडिया दृष्टिकोण में विशेष रूप से स्पष्टतः दिख जाती है, जहां प्रभावशाली कंटेंट सामग्री उत्पन्न करने के लिए स्वतंत्र प्रभावकों पर निर्भरता अधिक स्पष्ट हो गई है।
● यद्यपि इस व्युत्क्रम के निहितार्थ व्यापक हैं। मीडिया में नियंत्रण और संतुलन का क्षरण, जो पहले से ही एक चिंता का विषय है, तेजी से होने की संभावना है। सामग्री निर्माण के लोकतंत्रीकरण, कम होते ध्यान अवधि को भुनाने के लिए डिज़ाइन किए गए एल्गोरिदम के साथ मिलकर, ने इस प्रतिस्पर्धा को समान कर दिया है। इसके अलावा सोशल मीडिया खर्च के लिए वित्तीय संसाधन तत्काल संतोषजनक सामग्री का उत्पादन करने की क्षमता की तुलना में कम महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषण में चुनौतियां:
● वर्तमान की नई वास्तविकता राजनीतिक रुझानों और परिणामों के विश्लेषण को जटिल बनाती है। राजनीतिक भाषणों और अभियानों का विश्लेषण करने के पारंपरिक तरीके अब पर्याप्त नहीं हैं। पारंपरिक संदेशों को तेजी से सोशल मीडिया कथाओं द्वारा रेखांकित किया जा रहा है, जो लाखों लोगों को प्रभावित करते हुए तुरंत उत्पन्न और फैल सकते हैं। इस बदलाव के लिए राजनीतिक गतिशीलता को समझने के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जहां सोशल मीडिया आख्यानों पर नियंत्रण राजनीतिक सफलता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष:
● निष्कर्षतः, संक्षिप्त सोशल मीडिया कंटेंट सामग्री की लोकप्रियता राजनीतिक परिणामों को गहराई से प्रभावित करने की क्षमता रखती है। कम मानवीय ध्यान अवधि को पूरा करने वाली वायरल सामग्री उत्पन्न करने की क्षमता राजनीतिक परिदृश्य को फिर से आकार दे रही है, जिससे राजनीतिक संस्थाओं के लिए इन परिवर्तनों के अनुकूल होना अनिवार्य हो गया है। तथापि अभी भी मानव ध्यान आकर्षित करने की लड़ाई जारी है और जो दल इस उथल-पुथल भरे वातावरण में महारत हासिल करता है, वह एक दीर्घकालिक लाभ प्राप्त कर सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: 1. भारत में राजनीतिक आख्यानों और चुनाव परिणामों पर संक्षिप्त सोशल मीडिया सामग्री के उदय के प्रभाव पर चर्चा करें। इस प्रवृत्ति ने राजनीतिक संचार और प्रचार की पारंपरिक गतिशीलता को कैसे बदल दिया है? (10 अंक, 150 शब्द) 2. गलत सूचना के प्रसार के लिए मानव ध्यान के कम होने और लघु-रूप वाली सोशल मीडिया सामग्री की बढ़ती लोकप्रियता के निहितार्थ का विश्लेषण करें। डिजिटल युग में वायरल, तथ्यात्मक रूप से गलत सामग्री के प्रभावों को प्रबंधित करने और कम करने के लिए राजनीतिक संस्थाएं और नियामक क्या रणनीति अपना सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द) |
स्रोत- द हिंदू