संदर्भ :
हाल में बजट के बाद दिए गए साक्षात्कार में, वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन ने मोदी सरकार के तहत एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव का खुलासा किया जैसे रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना की शुरुआत किया जाना, जो प्रत्येक नए कर्मचारी को काम पर रखने के लिए कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। आर्थिक नीति में इस गहन बदलाव का संकेत है कि सरकार पारंपरिक जीडीपी-केंद्रित मॉडल से हटकर रोजगार सृजन के लिए अधिक प्रत्यक्ष दृष्टिकोण अपनाने की ओर प्रयासरत है।
आर्थिक पहलों का ऐतिहासिक संदर्भ
ट्रिकल-डाउन अर्थशास्त्र
एक दशक तक, मोदी सरकार ने वाशिंगटन सर्वसम्मति के ट्रिकल-डाउन मॉडल का पालन किया। इस दृष्टिकोण के अंतर्गत इस बात पर जोर कि वस्तुओं और सेवाओं के कुशल उत्पादन से स्वाभाविक रूप से रोजगार सृजन, आय में वृद्धि और समग्र समृद्धि होगी। यथा जीडीपी से स्वतः ही रोजगार सृजन और बेहतर जीवन स्तर प्राप्त करना संभव हो पाएगा। इसके अंतर्गत निम्नलिखित कदम भी उठाए गए जैसे:-
- मेक इन इंडिया (2014): इसका उद्देश्य बड़ी संख्या में रोजगार सृजन की उम्मीद के साथ विनिर्माण को बढ़ावा देना था।
- कॉर्पोरेट कर कटौती (2019): इसका उद्देश्य उद्योग निवेश को आकर्षित करना था, जिससे आर्थिक गतिविधि में वृद्धि के माध्यम से अधिक रोजगार पैदा हो सके।
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना (2020): निवेश और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने की उम्मीद के साथ, उत्पादन लक्ष्यों के आधार पर कंपनियों को ₹2 लाख करोड़ का वित्तीय प्रोत्साहन दिया गया।
परंतु उपरोक्त पहल से अपेक्षित रोजगार सृजन नहीं हुआ। जिसके मुख्य कारण कंपनियों का श्रम में निवेश किए बिना लाभ बनाए रखा जाना और भर्ती के बजाय उपकरणों को प्राथमिकता दिया जाना मालूम पड़ता है। जिससे नीति प्रोत्साहन और नौकरी वृद्धि के बीच एक विसंगति उजागर होती हुई देखी गई।
रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना
योजना का अवलोकन
केंद्र सरकार प्रधानमंत्री पैकेज के तहत तीन नई "रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन" योजनाओं को लागू करने जा रही है, जिसका उद्देश्य कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में नामांकन बढ़ाना है।
- पहली योजना : यह योजना सभी औपचारिक क्षेत्रों में पहली बार कार्यबल में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में एक महीने का वेतन प्रदान करेगी। इसके अंतर्गत 15,000 रुपये तक का भुगतान तीन किस्तों में किया जाएगा। योग्य होने के लिए, कर्मचारी को प्रति माह 1 लाख रुपये तक कमाना चाहिए। इस पहल से लगभग 2.1 मिलियन युवाओं को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- दूसरी योजना : यह योजना रोजगार के पहले चार वर्षों के दौरान अपने EPFO योगदान के संबंध में कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों को सीधे एक निर्दिष्ट प्रोत्साहन प्रदान करती है। इसका उद्देश्य 3 मिलियन नए कर्मचारियों और उनके नियोक्ताओं को सहायता प्रदान करना है।
- तीसरी योजना : इस योजना का लक्ष्य सभी क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध कराना है। 1 लाख रुपये प्रति माह तक के वेतन पर नियुक्त किए गए प्रत्येक नए कर्मचारी के लिए, सरकार नियोक्ताओं को उनके EPFO अंशदान के लिए दो वर्षों तक 3,000 रुपये प्रति माह तक की प्रतिपूर्ति करेगी। इस उपाय से 5 मिलियन अतिरिक्त कर्मचारियों को काम पर रखने को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
कौशल कार्यक्रम
पांच वर्षों में 2 मिलियन युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए एक नई केंद्र प्रायोजित पहल शुरू की जाएगी। इस कार्यक्रम में परिणामों पर ध्यान केंद्रित करते हुए हब-एंड-स्पोक मॉडल (एक प्रणाली जो मार्गों के नेटवर्क को सरल बनाती हैं यथा यह यात्रियों और माल ढुलाई दोनों के सहायक के रूप में कार्य करती हैं।) के माध्यम से 1,000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों का उन्नयन किया जाएगा।
शीर्ष कंपनियों में इंटर्नशिप
500 शीर्ष कंपनियों में पांच वर्षों में 100 मिलियन युवाओं के लिए इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करने के लिए एक व्यापक योजना शुरू की जाएगी। 12 महीने तक चलने वाली यह इंटर्नशिप प्रोग्राम, विभिन्न व्यवसायों और रोजगार के अवसरों में वास्तविक दुनिया का अनुभव प्रदान करेगी। इस इंटर्नशिप प्रोग्राम के अंतर्गत, इंटर्न को 5,000 रुपये का मासिक भत्ता और 6,000 रुपये की एकमुश्त सहायता मिलेगी। कंपनियां प्रशिक्षण लागतों के लिए जिम्मेदार होंगी और अपने सीएसआर(CSR- CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) फंड से इंटर्नशिप खर्च का 10% योगदान देंगी।
ईएलआई का औचित्य और उद्देश्य
प्रत्यक्ष रोजगार सृजन
ईएलआई योजना कर कटौती और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन जैसे अप्रत्यक्ष प्रोत्साहनों से एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही, यह नए कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए कंपनियों को प्रत्यक्ष वित्तीय मदद भी प्रदान करती है। इस दृष्टिकोण का मुख्य उद्देश्य रोजगार का सृजन अधिक से अधिक करते हुए ट्रिकल-डाउन अर्थशास्त्र की पिछली विफलताओं को संबोधित करना भी है।
पिछली नीतियों के साथ तुलनात्मक विश्लेषण
उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना सीमांत उत्पादन लागत (यह किसी व्यवसाय को स्पष्ट बताती है कि एक और अधिक उत्पाद बनाने एवं एक और सेवा देने में कितना अधिक खर्च करना पड़ेगा।) को कम करके उत्पादन बढ़ाने पर केंद्रित थी। इसके विपरीत, ईएलआई सीमांत श्रम लागत को कम करने के प्रयास के साथ, फर्मों को रोजगार सृजित करने के लिए प्रोत्साहित करता हैं। मुख्य रूप से ईएलआई योजना आर्थिक उत्पादन के साथ प्रत्यक्ष रोजगार देने जैसे लाभों पर ध्यान केंद्रित करके पीएलआई योजना का पूरक है।
ईएलआई के निहितार्थ और संभावित प्रभाव
ईएलआई के लाभ
- रोजगार सृजन की संभावना: इस योजना को व्यापक रूप से अपनाने से छोटे, मध्यम और बड़े उद्यमों में सार्थक रोजगार सृजन की संभावना बढ़ सकती है। हालांकि ईएलआई अकेले नौकरियों में भारी वृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता है यथा यह मशीनरी की तुलना में श्रम को तरजीह देने के लिए फर्म-स्तर के निर्णयों को प्रभावित कर सकता है।
- सामाजिक स्थिरता की संभावना: अधिक रोजगार अवसर पैदा करके, ईएलआई योजना बेरोजगारी के दबाव वाले मुद्दे को संबोधित करती है, सामाजिक स्थिरता और सद्भाव में योगदान देती है। यह बढ़ती असमानता और संभावित सामाजिक अशांति जैसे बेरोजगारी विकास के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करती है।
- क्षेत्र की स्वतंत्रता: उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, जो विशिष्ट उद्योगों के लिए बनाई गई है। इसके विपरीत रोजगार से जुड़े प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू होती है। यह व्यापक प्रयोज्यता, गलत आवंटन या पक्षपात से संबंधित मुद्दों को रोकती है जो मुख्य रूप से तब उत्पन्न हो सकते हैं जब प्रोत्साहन विशेष उद्योगों में सिर्फ केंद्रित हो।
आलोचनाएँ और चिंताएँ
- उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को कमज़ोर करना: आलोचकों का तर्क है कि ELI योजना तकनीकी प्रगति पर श्रम को प्राथमिकता देकर उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को कमज़ोर कर सकता है। हालाँकि यह भी विदित हैं कि, पूंजी और जीडीपी में वृद्धि से रोजगार सृजन और आर्थिक असमानता को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है, अंत: श्रम प्रोत्साहन की ओर बदलाव संभावित रूप से आवश्यक हो गया है।
- रोजगार और राजनीतिक प्रस्तावों पर प्रभाव: नौकरियों की कमी ने राजनीतिक दबावों से प्रेरित स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों को आरक्षित करने के प्रस्तावों जैसे चरम उपायों को जन्म दिया है। ठोस समाधान पेश किए बिना ऐसे उपायों की आलोचना करना अनुत्पादक है। उपरोक्त संदर्भ में देखा जाए तो नौकरियों की कमी को दूर करने के लिए पारंपरिक सुधारों से परे अभिनव विचारों की आवश्यकता है।
नीतिगत बदलाव के रूप में ELI
ELI, ट्रिकल-डाउन अर्थशास्त्र से प्रत्यक्ष रोजगार सृजन हस्तक्षेपों की ओर एक ठोस नीतिगत बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। हालाँकि नौकरियों के सृजन में इसकी प्रभावशीलता अभी देखा जाना बाकी है, परंतु यह पूंजी-श्रम असंतुलन और बेरोज़गारी विकास को संबोधित करने की दिशा में एक कदम जरूर माना जा सकता है।
निष्कर्ष
ईएलआई योजना की शुरूआत मोदी सरकार की आर्थिक नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, जो जीडीपी-केंद्रित मॉडल की सीमाओं को पहचानती है और प्रत्यक्ष रोजगार प्रोत्साहन की आवश्यकता को संबोधित करती है। हालांकि ईएलआई सभी रोजगार संबंधी मुद्दों को हल नहीं कर सकती, लेकिन यह पिछले दृष्टिकोणों से एक महत्वपूर्ण बदलाव और अधिक प्रभावी रोजगार सृजन रणनीतियों की ओर बढ़ना जरूर दर्शाती है। ईएलआई को अपनाने का निहितार्थ आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के बीच का अंतर देखा गया है। इसलिए इसका मुख्य उद्देश्य रोजगार परिणामों और आर्थिक समानता में सुधार की दिशा में नीतिगत फोकस को फिर से जोड़ना है।
यूपीएससी मेन्स के लिए संभावित प्रश्न
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स्रोत: द हिंदू