तारीख Date : 13/12/2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2 – राजव्यवस्था
कीवर्ड्स: भारतीय चुनाव आयोग , सुप्रीम कोर्ट, निष्पक्षता, चुनाव सुधार
संदर्भ :
कुछ समय पूर्व भारतीय चुनाव आयोग में सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार हेतु एक विधेयक प्रस्तावित किया गया था । हालांकि विधेयक द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनों पर बहुत से राजनीतिज्ञों तथा बुद्धिजीवी समाज द्वारा चिंता व्यक्त की गई थी । यह लेख भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और अखंडता की सुरक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, विधेयक से जुड़ी प्रमुख आलोचनाओं और चिंताओं का विश्लेषण करता है।
भारत का निर्वाचन आयोग:
- भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है, जिसे भारत में केंद्र और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं की देखरेख का अधिदेश प्राप्त है।
- भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) 25 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया। अतः इस दिन को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- आयोग के प्रशासनिक कार्यों का संचालन इसके सचिवालय से होता है । यह सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है ।
- भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों की देखरेख के लिए भी उत्तरदायी है।
- भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) का क्षेत्राधिकार राज्यों में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनावों तक विस्तारित नहीं है। भारत का संविधान इन स्थानीय स्तर के चुनावों के प्रबंधन के लिए एक अलग राज्य चुनाव आयोग का प्रवधान करता है।
विधेयक के संबंध में विवाद :
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के जवाब में संघ सरकार ने अगस्त 2023 में एक विधेयक प्रस्तुत किया था, लेकिन इस विधेयक में उल्लेखित दो प्रमुख प्रावधानों के कारण विवाद उत्पन्न हो गया है :
- चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर कैबिनेट मंत्री को सम्मिलित करना: यह प्रावधान चयन प्रक्रिया में कार्यपालिका के प्रभाव में वृद्धि करता है। जिससे संभावित रूप से राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका उत्पन्न होती है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की पदस्थिति को कैबिनेट सचिव के बराबर करना : इस विधेयक में समान वेतन स्तर के साथ उनकी स्थिति को कैबिनेट सचिव के बराबर करने के प्रावधान ने चिंताएं बढ़ा दीं। इससे वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों को समन करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे उनकी जांच और प्रवर्तन शक्तियां बाधित होने की संभावना है।
आलोचना और चिंताएँ:
विधेयक को विपक्षी दलों, सेवानिवृत्त मुख्य चुनाव आयुक्तों और नागरिक समाज समूहों सहित विभिन्न विद्वानों से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। उनके द्वारा इसके निम्नलिखित प्रावधानों के बारे में चिंता व्यक्त की गई है:
क. निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर करना:
- विवाद का एक प्राथमिक बिंदु भारत के चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार चयन समिति की संरचना है। आलोचकों का तर्क है कि इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करना चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर करता है।
- इसी प्रकार मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति को पारंपरिक रूप से राजनीतिक हस्तक्षेप के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय के रूप में देखा गया है। जो एक संतुलित और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करता है। हालांकि, प्रस्तावित प्रावधान सरकार को अनुचित अधिकार प्रदान कर सकता है, जिससे चुनाव आयोग की स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती है।
- चयन समिति में एक कैबिनेट मंत्री को सम्मिलित करने से भी कई चिंताएं उत्पन्न होती हैं :
- इससे नियुक्ति प्रक्रिया के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता प्रभावित हो सकती है।
- जबकि न्यायपालिका के प्रतिनिधित्व के बिना जनता की दृष्टि में इस संस्था की विश्वसनीयता कमजोर हो सकती है।
ख .मुख्य चुनाव आयुक्त के स्तर में कमी
- विवाद का एक और महत्वपूर्ण बिंदु मुख्य चुनाव आयुक्त के स्तर में कमी के प्रावधान से है।
- इस संदर्भ में आलोचकों का तर्क है कि चुनाव आयोग के स्तर में कमी से चुनावी प्रक्रिया के प्रति जन सामान्य के विश्वास में गिरावट हो सकती है।
- इस प्रकार यह प्रावधान चुनाव आयोग की अपनी शक्तियों के प्रभावी प्रयोग के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर सकता है। जबकि लोकतांत्रिक मूल्यों की निरंतरता के लिए एक मजबूत व स्वतंत्र निर्वाचन आयोग आवश्यक है।