संदर्भ:
जम्मू और कश्मीर (J&K) में चल रहे आतंकवादी हमले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से उत्पन्न खतरे को रेखांकित करते हैं। दशकों के संघर्ष और भारत की ओर से हाल ही में सुरक्षा उपायों और कूटनीतिक प्रयासों सहित विभिन्न नीतिगत दृष्टिकोणों के बावजूद, चुनौती अभी भी अनसुलझी है।
भारत-पाकिस्तान संबंध: ऐतिहासिक अवलोकन
- 1947 से 2001 तक शत्रुता की अवधि (Phase of Hostility) : 1947 में हुए विभाजन के बाद से, कश्मीर पर संघर्ष 1947, 1965 और 1971 में युद्धों में परिणत हो गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र द्वारा हस्तक्षेप किए गए और तनाव कम करने के प्रयासों के तहत ताशकंद और शिमला समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। 1984 में, भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। 1998 में दोनों देशों द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों और 1999 में कारगिल युद्ध ने शत्रुता को और बढ़ा दिया। 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले ने तनाव को और भी गहरा कर दिया।
- शांति प्रयासों का चरण (2001-2008) लाहौर घोषणा और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी की शांति पहल जैसी प्रयत्नों सहित, 2004 से आरंभ हुई समग्र संवाद प्रक्रिया द्वारा इस अवधि में द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास किया गया। यद्यपि, 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया।
- निष्क्रिय संबंधों का चरण (2008-2015) भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति और वर्ष 2015 में पाकिस्तान के लिए तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा सहित इस अवधि में सार्थक संवाद एवं विश्वास निर्माण के उपायों का अभाव रहा।
- पुनः शत्रुतापूर्ण घटनाक्रम (2015-2019) सीमा पार हमलों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसी परियोजनाओं से उत्पन्न तनावों ने इस दौर को चिन्हित किया। 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा बालाकोट में हवाई हमले और कूटनीतिक संकट पैदा हो गए।
जम्मू और कश्मीर में हाल ही में हिंसा में वृद्धि और पाकिस्तान की भूमिका
- नवीनतम घटनाएं : जून महीने में जम्मू और कश्मीर में चार आतंकी हमलों की एक श्रृंखला के बाद, सुरक्षा बलों के सात जवान शहीद हो गए हैं। इन हमलों को पाकिस्तान की संलिप्तता से जोड़ा गया है जो सापेक्षिक शांति के काल के बावजूद क्षेत्र में हिंसा के पुनरुत्थान को दर्शाता है।
- क्षेत्रीय स्थिरता पर हमलों का प्रभाव : यह स्थिति जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने सहित भारत की दृढ़ नीतियों की प्रभावशीलता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है। यद्यपि इस कदम का उद्देश्य पाकिस्तान के प्रभाव को कम करना था, तथापि यह सीमा पार आतंकवाद को रोकने में विफल रहा है।
पाकिस्तान की रणनीतिक गणना
- आतंकवाद रणनीति का पुनर्गठन : बाहरी दबावों और आंतरिक चुनौतियों के बावजूद, जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन देने में पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है। पाकिस्तानी नेतृत्व, आंतरिक अस्थिरता और भू-राजनीतिक बदलावों का सामना करते हुए, अपनी आतंकवादी गतिविधियों को लगातार समायोजित कर रहा है। इसमें अंतरराष्ट्रीय जांच के जवाब में रणनीति को बदलना शामिल है, उदाहरण के लिए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा की गई कार्रवाई, जबकि भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख बनाए रखना।
- अनुच्छेद 370 का निरस्तरण : अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, जिसने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था, का उद्देश्य इस क्षेत्र को भारत के साथ और अधिक निकट से एकीकृत करना है। हालांकि, इसने जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय को चुनौती देने वाली पाकिस्तानी मांग को समाप्त नहीं किया है। क्षेत्र में अस्थिरता में पाकिस्तान कारक की निरंतर प्रकृति को दर्शाती हिंसा, स्थायी शांति और विकास के प्रयासों को जटिल बनाती है।
राजनयिक चुनौतियाँ और द्विपक्षीय संबंध
- असंगत द्विपक्षीय संवाद : द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से तनाव को कम करने के प्रयास असंगत रहे हैं, जो समय-समय पर तनाव और सुलह के छिटपुट प्रयासों से चिन्हित हैं। "आतंक और वार्ता साथ नहीं चल सकते" का नारा भारत में जनभावना को दर्शाता है, जो कभी-कभी पर्दे के पीछे के संवाद के बावजूद कूटनीतिक युद्धाभ्यास को सीमित करता है।
- पाकिस्तान में आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता : पाकिस्तान में असैनिक नेताओं और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच तनाव सहित आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता, संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों को और जटिल बनाती है।
- व्यापार और आर्थिक सहयोग का निलंबन : 2019 में भारत के नीतिगत परिवर्तनों के बाद व्यापार और राजनयिक संबंधों को निलंबित करने से, पाकिस्तान में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा और आर्थिक सहयोग बाधित हुआ है। उद्योग जगत और नवाज शरीफ जैसे राजनीतिक नेताओं के व्यापार को फिर से शुरू करने के आह्वान के बावजूद, पाकिस्तान की सेना भारत के साथ संबंधों के सामान्यीकरण के विरुद्ध है।
सुरक्षा की अनिवार्यताएं और आतंकवाद निरोधी रणनीतियाँ
- सीमा सुरक्षा को मजबूत करना : भारत का जवाब काफी हद तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा उपायों को मजबूत करने पर केंद्रित रहा है। इसमें सीमा सुरक्षा मजबूत करना और आतंकवाद रोधी क्षमताओं को बढ़ाना शामिल है।
- सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोणों की सीमाएँ : हालाँकि, सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण को पाकिस्तान के व्यवहार में स्थायी परिवर्तन लाने में सीमाओं का सामना करना पड़ता है, विशेषकर चीन-पाकिस्तान के सैन्य गठबंधन और उनके संबंधों के परमाणु आयाम को देखते हुए।
व्यापक आतंकवाद निरोधी रणनीति (A Comprehensive Counter-Terrorism Strategy)
- भविष्य की दिशा (Looking Ahead) : भारत के आतंकवाद निरोधी दृष्टिकोण को पाकिस्तान के खिलाफ दंडात्मक उपायों और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने वाली कूटनीतिक पहलों के बीच एक संतुलन बनाना चाहिए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता पर बल दिया है, जो निरंतर विकसित होती सुरक्षा चुनौतियों के समाधान के लिए नीतिगत सुधारों का सुझाव देता है।
रणनीतिक स्तंभ (Strategic Pillars)
- पड़ोस प्रथम नीति (Neighbourhood First Policy): यह नीति शांतिपूर्ण द्विपक्षीय समाधानों और आतंकवाद के उन्मूलन के माध्यम से पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के महत्व को रेखांकित करती है। इसमें पाकिस्तान से रचनात्मक वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का आह्वान किया गया है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण (National Security Stance): भारत को अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरों के खिलाफ दृढ़ कार्रवाई करनी चाहिए।
- धार्मिक कूटनीति (Religious Diplomacy): धार्मिक परंपराओं के साथ सार्थक जुड़ाव भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है। करतारपुर कॉरिडोर जैसी पहल, जो पाकिस्तान में गुरुद्वारा करतारपुर साहिब तक भारतीय श्रद्धालुओं की पहुंच को सुगम बनाती है, इस प्रकार की सकारात्मक कूटनीति का उदाहरण है।
- रणनीतिक अवसरों का लाभ उठाना (Leveraging Strategic Opportunities): पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में विरोध प्रदर्शनों की रिपोर्ट कानून-व्यवस्था की चुनौतियों और संभावित शरणार्थी संकट का संकेत देती हैं। हालांकि, ये विरोध प्रदर्शन क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने और भारत के प्रभाव को मजबूत करने का अवसर भी प्रस्तुत करते हैं।
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) का पुनरुद्धार (Revival of SAARC): अतीत की चुनौतियों के बावजूद, भारत के बढ़ते वैश्विक कद और पाकिस्तान के घटते प्रभाव को देखते हुए सार्क के पुनरुद्धार की संभावना है। यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल जैसी पहलों से उत्पन्न क्षेत्रीय रणनीतिक चिंताओं को कम करने में सहायक हो सकता है।
- कूटनीतिक वार्ता के लिए शर्तें (Conditions for Dialogue): भारत पाकिस्तान के साथ औपचारिक वार्ता के लिए शर्तों पर जोर देता है, जिसमें आतंकवाद को रोकने और कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए एक वास्तविक प्रतिबद्धता शामिल है। भारत ठोस कार्रवाई के माध्यम से सुरक्षा चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता पर बल देता है ताकि सार्थक वार्ता आगे बढ़ सके।
- यह व्यापक रणनीति दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने और क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने में सहायक हो सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
जम्मू और कश्मीर में हिंसा का बार-बार चक्र भारत-पाकिस्तान संघर्ष की स्थायी प्रकृति को प्रदर्शित करता है। दशकों से किए गए प्रयासों, हालिया नीतिगत बदलावों और कूटनीतिक वार्ताओं के बावजूद, स्थायी शांति हासिल करना अभी भी कठिन है। भावी रणनीति एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की मांग करती है जो मजबूत सुरक्षा उपायों को द्विपक्षीय तनावों के मूल कारणों को संबोधित करने के उद्देश्य से निरंतर कूटनीतिक प्रयासों के साथ जोड़ता है। केवल ऐसी व्यापक रणनीति के माध्यम से ही दोनों देश आतंकवाद के प्रभाव को कम करने और अधिक स्थिर क्षेत्रीय वातावरण को बढ़ावा देने की आशा कर सकते हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
प्रश्न 1: प्रमुख संघर्षों और समझौतों को बताते हुए 1947 के बाद से भारत-पाकिस्तान संबंधों के ऐतिहासिक चरणों का विश्लेषण कीजिए । क्षेत्रीय स्थिरता पर इन संबंधों के प्रबंधन में भारत की रणनीतियों का मूल्यांकन करें। (10 अंक, 150 शब्द) प्रश्न 2: सीमा पार आतंकवाद और भारत की पड़ोसी प्रथम नीतिके प्रभाव जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत-पाकिस्तान संबंधों में वर्तमान चुनौतियों और कूटनीतिक पहलों का आकलन करें। क्षेत्र में स्थायी शांति को बढ़ावा देने के लिए संभावित रणनीतियों पर चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द) |
Source - Indian express