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Daily-current-affairs / 30 Jan 2022

‘निगरानी : निजता के लिए खतरा’ - समसामयिकी लेख

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की-वर्ड्स : पेगासस, स्पाईवेयर, निगरानी, निजता का अधिकार, न्यूयॉर्क टाइम्स।

चर्चा में क्यों?

अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपी एक रिपोर्ट ने भारत में सियासी पारा बढ़ा दिया है, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत सरकार ने जुलाई 2017 में इजरायल के एनएसओ समूह के पेगासस सॉफ्टवेयर को खरीदा जिससे भारत सरकार द्वारा महत्वपूर्ण पदों पर काबिज भारतीय नागरिकों की लक्षित निगरानी की गई। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इज़राइल के पूर्व प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के मध्य एक उच्च-स्तरीय वार्ता हुयी थी, जिसमें पेगासस सॉफ्टवेयर के साथ ही एक फिलिस्तीनी संगठन को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में होने वाले मतदान को लेकर भी गहरी मंत्रणा हुयी थी।

पृष्ठभूमि :-

  • न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इजरायल के एनएसओ समूह द्वारा निर्मित पेगासस स्पाईवेयर को इजरायल सरकार के अनुमोदन के बाद भारत सरकार को बेंचा गया। भारत सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि उसने पेगासस स्पाईवेयर का उपयोग कर लगभग 1,000 भारतीय नागरिकों के फोन नंबर की निगरानी करवाई।
  • इनमें से 300 नंबरों का सत्यापन किया जा चुका है। जिनमें 22 फोन एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा फोरेंसिक विश्लेषण के अधीन थे और टोरंटो विश्वविद्यालय की सिटीजन लैब द्वारा की गई समीक्षा में इसकी पुष्टि हुयी है।
  • न्यूयॉर्क टाइम्स की प्रकाशित इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के बीच मजबूत संबंध के पीछे मुख्य उत्प्रेरक यह रक्षा सौदा ही था। लगभग 2 बिलियन डॉलर की लागत वाले इस रक्षा समझौते में पेगासस सॉफ्टवेयर, एक मिसाइल सिस्टम और "परिष्कृत हथियारों और खुफिया तकनीकी की खरीद शामिल थी।
  • प्रकाशित रिपोर्ट में मजबूत तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं। जिससे इन दावों की विश्वसनीयता बढ़ गयी है।
  • भारतीय नागरिक एक शातिर, घृणित और असभ्य निगरानी अभियान का हिस्सा थे जिसे भारत और इजरायल सरकार की संयुक्त सहमति से क्रियान्वित किया गया।
  • लक्षित निगरानी अभियान में संभावित व्यक्तियों की सूची में वरिष्ठ पत्रकारों, राजनेताओं, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्ययाधीश और पूर्व चुनाव आयुक्त जैसे प्रबुद्ध नागरिक के शामिल होने के कारण मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक सुरक्षा चिंताओं की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है।

पेगासस क्या है?

पेगासस इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित एक स्पाइवेयर है जिसे विशेषज्ञ साइबर हथियार कहते हैं। यह एक प्रकार का मैलवेयर है जिसे स्पाइवेयर के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

पेगासस को उपयोगकर्ताओं की गुप्त और निजी जानकारियों तक उपकरण के माध्यम से पहुंच प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिस जासूस द्वारा इस स्पाइवेयर का उपयोग किया जाता है उसको यह सारी व्यक्तिगत जानकारियाँ डेटा के रूप में उपलब्ध करवा देता है।

पेगासस स्पाइवेयर का मामला पहली बार 2016 में सुर्खियों में तब आया था, जब अरब के एक कार्यकर्ता को एक संदिग्ध संदेश मिला। जिसके बाद उसका संदेह जासूसी की ओर गया।

माना जा रहा था कि पेगासस आईफोन यूजर्स को लक्षित (टारगेट) कर रहा है। गहन अनुसंधान के कई दिनों बाद एप्पल ने आईओएस का एक अद्यतन संस्करण जारी किया, जिसमें कथित तौर पर सुरक्षा खामियों को दूर करने का दावा किया गया था, जिसका उपयोग पेगासस फोन हैक करने के लिए कर रहा था।

भारत में निगरानी को नियंत्रित करने वाला कानून :-

  • भारत में संचार निगरानी मुख्य रूप से दो कानूनों के तहत होती है- टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 । टेलीग्राफ अधिनियम कॉलों के अवरोधन से संबंधित है, जबकि आईटी अधिनियम सभी इलेक्ट्रॉनिक संचार की निगरानी से निपटने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 :- टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) में कहा गया है “किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की घटना पर, या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में, केंद्र सरकार या राज्य सरकार या इस संबंध में विशेष रूप से अधिकृत केंद्र या राज्य के किसी भी अधिकारी द्वारा निगरानी की जा सकती है।
  • आईटी अधिनियम, 2000 :- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 और सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के अवरोधन, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिए सुरक्षा उपायों की प्रक्रिया) नियम, 2009 को इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लिए कानूनी ढांचे को आगे बढ़ाने के लिए अधिनियमित किया गया था। आईटी एक्ट के तहत डेटा के सभी इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन को इंटरसेप्ट किया जा सकता है। इसलिए, पेगासस जैसे स्पाइवेयर को कानूनी रूप से इस्तेमाल करने के लिए, सरकार को आईटी अधिनियम और टेलीग्राफ अधिनियम दोनों को लागू करना होगा।
  • यद्यपि टेलीग्राफ अधिनियम सार्वजनिक सुरक्षा के हित में (जैसे-सार्वजनिक आपातकाल की घटना) निर्धारित शर्त के साथ छूट देता है। जिसके अंतर्गत कानून के तहत शक्तियों के दायरे को विस्तृत कर नागरिकों की निगरानी की जा सकती है।

निगरानी पर प्रतिबंध से संबंधित प्रावधान :-

  • टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) और संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में प्रदान किए गए युक्तियुक्त प्रतिबंधों के अतिरिक्त, आईटी अधिनियम की धारा 69 में भी प्रावधान किया गया है– जो डिजिटल जानकारी पर निर्बन्धन, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिए अपराध की जांच करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के अनुसार- सरकार केवल कुछ स्थितियों जैसे भारत के राष्ट्रीय हित, भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था, या किसी अपराध के लिए उकसाने को रोकने आदि के मामलों में कॉल को इंटरसेप्ट कर सकती है। जो संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए गए युक्तियुक्त निर्बंधन के अनुरूप है।
  • ये युक्तियुक्त निर्बन्धन भी तभी लगाए जा सकते हैं, जब कोई मामला सार्वजनिक आपातकाल से, या सार्वजनिक सुरक्षा से सम्बंधित हो।
  • इसके अतिरिक्त, धारा 5 (2) में शामिल प्रावधान कहता है कि यह युक्तियुक्त निर्बन्धन पत्रकारों के विरुद्ध लागू नहीं किया जा सकता है, जब तक कि अधिनियम की उप-धारा के तहत उनके प्रसारण को प्रतिबंधित नहीं किया गया हो।
  • पब्लिक यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ मामले (1996) में, सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी की ओर इशारा करते हुए कुछ दिशानिर्देश जारी किए। न्यायालय ने कहा कि निर्बन्धन में शामिल अधिकारी निर्बन्धन संबंधी कारणों का पर्याप्त रिकार्ड नहीं रख रहे थे। न्यायालय द्वारा जारी किये गये विभिन्न दिशा-निर्देशों में एक समीक्षा समिति के गठन का प्रावधान भी शामिल है, जो टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत किए गए प्राधिकरणों को देखेगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों ने 2007 में टेलीग्राफ नियम और 2009 में आईटी अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित नियमों में नियम 419A को प्रस्तुत करने का आधार निर्मित किया।
  • नियम 419A में कहा गया है कि गृह मंत्रालय में भारत सरकार का सचिव स्तर का अधिकारी केंद्र के मामले में निर्बन्धन के आदेश दे सकता है, और राज्य सरकार के मामले में एक सचिव स्तर का अधिकारी जो गृह विभाग का प्रभारी होता है, ऐसे निर्देश जारी कर सकता है।
  • के केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ वाद के निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने निगरानी की आवश्यकता को समुचित महत्व देते हुए निजता के अधिकार को संरक्षित किये जाने पर बल दिया। न्यायालय ने कहा -निगरानी कानूनी रूप से वैध होनी चाहिए और सरकार के वैध उद्देश्य की पूर्ति में शामिल होनी चाहिएI साथ ही अपनाए गए साधन निगरानी की आवश्यकता के अनुरूप होने चाहिए और निगरानी के किसी भी दुरुपयोग को रोकने के लिए समुचित प्रक्रियाएं भी होनी चाहिए।

निगरानी बनाम निजता का अधिकार

राज्य की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए निगरानी एक आवश्यक उपकरण है जो अपराधों की रोकथाम और जांच में सहायता करता है। हालाँकि, निगरानी के लिए आदेशों की अनदेखी करते हुए किसी भी डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति में, राज्य के पास नागरिकों के निजी जीवन तक पहुंच का असीमित अधिकार नहीं है।

फ़ोन टैपिंग एक व्यक्ति की निजता में गंभीर हस्तक्षेप है। अत्यधिक परिष्कृत संचार प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, बिना किसी हस्तक्षेप के घर या कार्यालय की गोपनीयता में सेंधमारी कर व्यक्ति की निजता का हनन करना एक अतिसंवेदनशील मामला है।

निसंदेह प्रत्येक सरकार, चाहे वह कितनी भी लोकतांत्रिक क्यों न हो, अपने खुफिया संगठन के अंतर्गत राष्ट्रीय हितों के मद्देनज़र गुप्त रूप से जासूसी संबंधी कई गतिविधियों को संचालित करती है, लेकिन इसके साथ नागरिकों के ‘निजता के अधिकार’ का संरक्षण भी किया जाना अति आवश्यक हैI

आगे की राह :

  • राज्य एजेंसियां जासूसी के माध्यम से नागरिकों के निजता को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं। इन सबके बीच निर्वाचित प्रतिनिधि अनजान बने रहने की दलील दे रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांत के विपरीत है। इन खुलासों से संबंधित सच्चाई का पता लगाने के लिए जेपीसी या सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में या किसी अन्य विश्वसनीय तंत्र द्वारा जांच होनी चाहिए। सरकार को सबसे पहले इन सभी प्रश्नों पर खुलकर अपना पक्ष रखना चाहिए कि क्या किसी भारतीय एजेंसी ने पेगासस को खरीदा है?
  • निगरानी संबंधी अवसंरचनात्मक ढांचे में कमियों को दूर करने के लिए एक व्यापक ‘डेटा संरक्षण कानून’ समय की आवश्यकता है।
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3
  • आंतरिक सुरक्षा

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • "चुनाव आयोग, राजनेताओं, सर्वोच्च न्यायालय और संवेदनशील जांच करने वाले अधिकारियों की जासूसी करना लोकतंत्र के लिए एक ख़तरा है"। कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)