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Daily-current-affairs / 15 Nov 2024

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: बुलडोज़र जस्टिस की आलोचना और नागरिक अधिकारों की रक्षा-डेली न्यूज़ एनालिसिस

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परिचय

13 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें अवैध ध्वस्तिकरण (Demolition) के मामले को लेकरबुलडोज़र जस्टिसकी आलोचना की गई। इस निर्णय ने राज्य सरकारों द्वारा अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों की संपत्ति को दंड स्वरूप ध्वस्त करने की प्रथा पर गंभीर सवाल उठाए। इसे एक ऐतिहासिक निर्णय माना जा रहा है, जो नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

 

बुलडोज़र जस्टिस: एक विवादित प्रथा

भारत मेंबुलडोज़र जस्टिसएक विवादित और चर्चा का विषय बन चुकी प्रथा है, जिसमें अधिकारियों द्वारा अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों की संपत्ति, जैसे अवैध निर्माण या अन्य अपराधों से जुड़ी संपत्तियों को बुलडोज़र और भारी मशीनरी से ध्वस्त किया जाता है। यह कार्य अक्सर बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए और किसी न्यायिक आदेश के बिना किया जाता है।

 

मामले की पृष्ठभूमि: तिबरेवाल आकाश मामला

यह प्रथा 2019 में एक मामले के बाद चर्चा में आई, जब पत्रकार मनोज तिबरेवाल आकाश की उत्तर प्रदेश स्थित उनकी पुश्तैनी संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया। अधिकारियों ने इसे राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार के लिए किया था, लेकिन अदालत ने पाया कि इस प्रक्रिया में कई उल्लंघन हुए थे। अधिकारियों ने बिना लिखित नोटिस जारी किए और निर्धारित सीमा से अधिक भूमि को ध्वस्त किया। यह कार्रवाई पत्रकार के पिता द्वारा सड़क परियोजना में अनियमितताओं की जांच की मांग करने के बाद की गई थी, जिससे इसे एक प्रतिशोधात्मक कदम के रूप में देखा गया।

 

एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) की रिपोर्ट:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने पाया कि इस ध्वस्तीकरण में अत्यधिक कार्रवाई की गई थी। आयोग के अनुसार, जहां केवल 3.7 मीटर भूमि का अतिक्रमण था, वहीं अधिकारियों ने 5 से 8 मीटर भूमि तक को ध्वस्त कर दिया।

 

बुलडोज़र जस्टिस के पक्ष में तर्क:

बुलडोज़र जस्टिस को कुछ लोग अपराधों को रोकने और समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने के एक उपाय के रूप में देखते हैं। यह तर्क देते हैं:

·   अपराधों को रोकना: समर्थक मानते हैं कि अवैध निर्माण या अपराधों से जुड़ी संपत्तियों को ध्वस्त करने से समाज में अपराधी गतिविधियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह अन्य लोगों के लिए एक कड़ा संदेश हो सकता है कि कानून का उल्लंघन करने पर उनका क्या हश्र हो सकता है।

·    त्वरित कार्रवाई: कुछ लोग इसे एक तेज़ और प्रभावी तरीका मानते हैं, जिससे अवैध निर्माणों को तुरंत हटाया जा सकता है। ऐसे मामलों में लंबे समय तक न्यायिक प्रक्रिया से देरी हो सकती है, जबकि तत्काल कार्रवाई जरूरी होती है।

·      जनभावना और न्याय का अहसास: यह तर्क भी है कि बुलडोज़र जस्टिस न्याय की तुरंत और सशक्त व्यवस्था के रूप में लोगों में विश्वास जगाता है, खासकर उन मामलों में जहां न्यायिक प्रक्रिया में समय लगता है और अपराधी दंड से बच जाते हैं।

·        राज्य के सख्त कदम: कुछ लोग इसे राज्य सरकार की ओर से अपराधियों और अवैध गतिविधियों को नियंत्रित करने का एक सख्त और त्वरित कदम मानते हैं। उन्हें लगता है कि इससे भ्रष्टाचार और बुरी आदतों का तेजी से समाधान हो सकता है। इससे अपराधियों के मन में डर पैदा होगा।

·       अवैध निर्माणों का त्वरित हटाना: समर्थक यह भी मानते हैं कि शहरों और महानगरों में अवैध निर्माणों और अतिक्रमणों के खिलाफ कार्रवाई बेहद जरूरी है। इस प्रकार की कार्रवाई से भूमि का सही उपयोग होता है और शहरों की अव्यवस्था को रोका जा सकता है। अवैध इमारतों के ध्वस्तीकरण से जनता की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

 

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: मुख्य बिंदु

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अवैध ध्वस्तीकरण राज्य द्वारा की गई गलत कार्रवाई हो सकती है, जो नागरिकों के संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन करती है। सभी ध्वस्तीकरणों से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में अवैध ध्वस्तीकरण के खिलाफ कई अहम बातें उठाई और यह सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट ने छह प्रमुख कदमों को स्पष्ट किया जो किसी भी संपत्ति के ध्वस्तीकरण से पहले उठाए जाने चाहिए -

1.     भूमि अभिलेखों और मानचित्रों की जांच

2.     अतिक्रमणों का सही सर्वेक्षण

3.     अतिक्रमणकर्ताओं को लिखित नोटिस देना

4.     आपत्तियों की सुनवाई और आदेश जारी करना

5.     स्वेच्छिक हटाने के लिए उचित समय देना

6.     यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त भूमि का कानूनी अधिग्रहण

 

सुप्रीम कोर्ट के विचार: 'बुलडोज़र जस्टिस' की आलोचना

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में कई अहम कानूनी सिद्धांतों की समीक्षा की और बुलडोज़र जस्टिस के खिलाफ गंभीर चिंताएँ व्यक्त कीं। यह निम्नवत हैं -

·      कानून का शासन: कोर्ट ने यह बताया कि राज्य को भी कानून का पालन करना अनिवार्य है। बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना लोकतंत्र और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। अगर ऐसा हुआ तो इससे संवैधानिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास कम हो जायेगा।

·        अपराधी की निर्दोषता की अवधारणा: कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराए बिना उसकी संपत्ति का ध्वस्तीकरण करना निर्दोषता की अवधारणा का उल्लंघन है।

·        आश्रय का अधिकार: अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आवास का अधिकार मानव गरिमा का हिस्सा है, और किसी को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकारों का हिस्सा है।

·      शक्तियों का दुरुपयोग: कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में बुलडोज़र जस्टिस एक प्रकार से सत्ता का दुरुपयोग हो सकता है, जिसमें किसी विशेष व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्रवाई की जाती है। इससे समुदाय विशेष के मन में अलगाववाद की भावना बढ़ सकती है। 

·       समाज में भय का निर्माण: कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी त्वरित कार्रवाइयों से समाज में भय और असुरक्षा का माहौल बन सकता है, जिससे न्याय का अहसास कमजोर होता है।

·      न्याय की देरी से बचने के उपाय: हालांकि कोर्ट ने न्याय की प्रक्रिया में देरी की समस्या को स्वीकार किया, लेकिन यह भी कहा कि इससे निपटने के लिए बुलडोज़र जस्टिस के बजाय न्यायिक प्रक्रिया को बेहतर और तेज़ किया जाए।

·       साक्ष्य और प्रमाण की अनुपस्थिति: कोर्ट ने यह भी माना कि अवैध ध्वस्तीकरण के मामलों में यह जरूरी है कि अधिकारियों के पास उचित साक्ष्य और प्रमाण हो, और बिना इस सब के किसी भी कार्रवाई को निषिद्ध किया जाना चाहिए।

 

आगे का मार्ग:

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो "बुलडोज़र जस्टिस" के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ खड़ा है। यह न्याय, संविधान और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसके माध्यम से कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य की कोई भी कार्रवाई न्यायिक प्रक्रिया और कानूनी अधिकारों के खिलाफ नहीं हो सकती।

·      सुधारात्मक निगरानी: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर स्वतंत्र निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी अधिकारी कानून का उल्लंघन कर सके।

·     कानूनी सुधार: अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि कानूनी सुधारों की आवश्यकता है, ताकि नागरिकों को राज्य के अवैध कार्यों से सुरक्षा मिल सके और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जा सके।

 

UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रमुख बातें:

1.     बुलडोज़र जस्टिस का मुद्दा: यह प्रथा अवैध निर्माणों और अपराधियों की संपत्ति को बिना न्यायिक आदेश और कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त करने की है, जो अक्सर सत्ता के दुरुपयोग का कारण बनती है।

2.     सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: 13 नवम्बर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध ध्वस्तीकरण की प्रथा की आलोचना की और इसे संविधान और नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन बताया।

3.     कानूनी प्रक्रिया का पालन: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी संपत्ति के ध्वस्तीकरण से पहले कानूनी प्रक्रिया, जैसे कि नोटिस, आपत्तियों की सुनवाई और उचित समय दिया जाना चाहिए।

4.     बुलडोज़र जस्टिस के खिलाफ तर्क: कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया न्याय की देरी के बजाय न्यायिक प्रक्रिया को सुधारने का आग्रह करती है। किसी की संपत्ति बिना उचित कानूनी आधार के ध्वस्त नहीं की जा सकती।

5.     सुधारात्मक निगरानी और कानूनी सुधार: कोर्ट ने स्वतंत्र निगरानी तंत्र स्थापित करने और कानूनी सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया, ताकि नागरिकों को राज्य की अवैध कार्रवाइयों से बचाया जा सके।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

'बुलडोज़र जस्टिस' निर्दोषता की अवधारणा और आवास के अधिकार का उल्लंघन कैसे करता है? सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के संदर्भ में इस पर चर्चा करें।