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Daily-current-affairs / 27 Jul 2024

सर्वोच्च न्यायालय राज्यपालों द्वारा संघवाद के कथित उल्लंघन की जांच करेगा- डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस बात की जांच करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या राज्यपाल महत्वपूर्ण विधेयकों को अनिश्चित काल के लिए विलंबित करके अंततः उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजकर राज्यों के विधायी मामलों में संघ के हस्तक्षेप को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे देश का संघीय ढांचा कमजोर हो रहा है। यह हस्तक्षेप केरल राज्य द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में आया है, जिसने अपने राज्यपाल पर विधेयकों को अनुचित रूप से विलंबित करने और बाद में उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजने का आरोप लगाया है, जो केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करते हैं।

याचिका की पृष्ठभूमि

केरल राज्य सरकार ने राज्यपाल द्वारा विधेयकों को दो साल तक रोके रखने के आचरण को उजागर करके इस मुद्दे को सबसे आगे लाया और फिर उनमें से सात को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। इन विधेयकों में राज्य सहकारी समितियों, लोकायुक्त और विश्वविद्यालय कानूनों में संशोधन शामिल थे। राष्ट्रपति ने केंद्र की सलाह पर काम करते हुए इनमें से चार विधेयकों पर अपनी सहमति नहीं दी, जबकि उनमें से कोई भी केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित नहीं था।

केरल द्वारा मुख्य तर्क

केरल राज्य ने तर्क दिया कि राज्यपाल को संवैधानिक मानदंडों के अनुसार किसी भी आपत्ति के लिए विशिष्ट कारणों के साथ विधेयकों को तुरंत राज्य विधानसभा को वापस कर देना चाहिए था। इसके बजाय, राज्यपाल की निष्क्रियता ने केरल के लोगों को कल्याणकारी कानून के लाभों से वंचित कर दिया। केरल ने तर्क दिया कि राज्यपाल के कार्यों ने केंद्र को राज्य के विधायी क्षेत्र के भीतर विशेष रूप से मामलों पर निर्णय लेने की अनुमति दी।

विधेयकों को आरक्षित करने की राज्यपाल की शक्ति

केरल ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति के विचार के लिए किसी विधेयक को आरक्षित करने की राज्यपाल की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 213 के प्रावधान में उल्लिखित विशिष्ट परिस्थितियों तक सीमित है। राज्य ने दावा किया कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर अनिश्चित काल तक रोके रहना और बाद में बिना कोई कारण बताए या संवैधानिक समयसीमा का पालन किए राष्ट्रपति को भेजना राज्य की विधायी प्रक्रिया को बाधित करता है।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

पीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने उन परिस्थितियों की जांच करने की अदालत की मंशा व्यक्त की, जिनके तहत राज्यपाल राष्ट्रपति को विधेयक भेज सकते हैं। अदालत ने केरल के राज्यपाल के अतिरिक्त सचिव और गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किए। अगली सुनवाई 20 अगस्त को निर्धारित है।

व्यापक निहितार्थ और अन्य राज्य

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अन्य राज्यों को भी प्रभावित करने वाले व्यापक संवैधानिक मुद्दे को संबोधित करता है। अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर एक समान याचिका पर गृह मंत्रालय और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के सचिव को भी नोटिस जारी किया, जिसमें तर्क दिया गया था कि राज्यपाल की निष्क्रियता लोकतांत्रिक शासन को कमजोर करती है।

राज्यपाल के कार्यालय से जुड़े हालिया विवाद

तमिलनाडु

     राज्यपाल ने राज्य सरकार द्वारा तैयार किए गए राज्यपाल के संबोधन के कुछ हिस्सों को पढ़ने से इनकार कर दिया।

     राज्यपाल ने NEET विधेयक को मंजूरी देने से इंकार कर दिया, जो तमिलनाडु को NEET से छूट देने का प्रयास करता है।

पश्चिम बंगाल

     पश्चिम बंगाल विधानसभा ने एक विधेयक पारित करने के बाद राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव हुआ, जिसका उद्देश्य राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से राज्यपाल को हटाकर मुख्यमंत्री को यह पद देना था।

केरल

     राज्यपाल ने राज्य में बिना किसी पूर्व घोषणा के दौरा किया।

     राज्यपाल ने उन मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी, जिन्होंने कथित तौर पर राज्यपाल के कार्यालय की गरिमा को कम किया।

     राज्य सरकार के साथ विधेयकों की मंजूरी को लेकर विवाद में लगे रहे।

झारखंड

     राज्यपाल ने भारत निर्वाचन आयोग की मुख्यमंत्री को चुनावी मानदंडों के उल्लंघन के लिए अयोग्य ठहराने की सलाह पर कार्रवाई नहीं की, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में लंबे समय तक राजनीतिक अनिश्चितता रही।

महाराष्ट्र

     राज्यपाल ने राज्यपाल का शासन जल्दबाजी में हटा दिया और एक ऐसे मुख्यमंत्री को शपथ दिलाई जिसे बहुमत समर्थन नहीं था।

राजस्थान

     राज्यपाल ने सरकार को बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा सत्र बुलाने में अनुचित देरी की।

संवैधानिक और कानूनी ढांचा

केरल की याचिका में राज्यपाल के कार्यों से कथित रूप से उल्लंघन किए गए कई संवैधानिक प्रावधानों को प्रकट किया गया:

1.    अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार): राज्य ने तर्क दिया कि अनुमति को मनमाने ढंग से रोके जाने से समानता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

2.    अनुच्छेद 200 (विधेयकों को अनुमति देने की प्रक्रिया): इस अनुच्छेद में राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को अनुमति देने की प्रक्रिया का विवरण दिया गया है।

3.    अनुच्छेद 201 (राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित विधेयकों के संबंध में प्रक्रिया): इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित विधेयकों की प्रक्रिया का विवरण दिया गया है, जिसमें राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर कार्य करने की आवश्यकता शामिल है।

केरल का तर्क था कि राष्ट्रपति द्वारा अनुमति देने से इनकार करना, बिना किसी कारण के, मनमाना था और इन संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन था।

सर्वोच्च न्यायालय की जांच के लिए प्रमुख कानूनी प्रश्न:

1.    राज्यपाल कब वैध रूप से विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज सकते हैं?

2.    राज्य विधेयकों को अनुमति देने से रोकने में राज्यपाल के विवेक की सीमा क्या है?

3.    क्या राज्यपाल के कार्यों को राज्य के विधायी मामलों में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप का एक साधन माना जा सकता है?

निष्कर्ष

राज्य विधेयकों को मंजूरी देने और उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजने में राज्यपालों की कार्रवाइयों की जांच करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारत में संघवाद की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। न्यायालय के निष्कर्षों का संघ और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन के साथ-साथ राज्यों के भीतर लोकतांत्रिक शासन के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। यह मामला संविधान द्वारा राज्य के तीन अंगों के बीच परिकल्पित नाजुक संतुलन और विधायी प्रक्रिया में राज्यपाल की भूमिका पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. राज्य विधेयकों को विलंबित करने और राष्ट्रपति को भेजने में राज्यपालों की कार्रवाइयों द्वारा कथित रूप से उल्लंघन किए गए संवैधानिक प्रावधान क्या हैं, जैसा कि केरल ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका में उजागर किया है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. राज्य विधेयकों को मंजूरी देने और उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजने में राज्यपालों की कार्रवाइयों की जांच करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारत में संघ और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन को संभावित रूप से कैसे प्रभावित करता है? (15 अंक, 250 शब्द)

Source - The Hindu