संदर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाल सगाई के महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करते हुए निर्णय दिया कि बाल सगाई, बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) के अंतर्गत दंड से बचने का एक उपाय है।
· न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि बाल सगाई से स्वतंत्र विकल्प, व्यक्तिगत स्वायत्तता और बचपन की अंतर्निहित गरिमा सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
बाल विवाह कानून को प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता:
- सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 में अधिनियमित बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) के मौजूदा ढांचे में बाल सगाई से संबंधित कानूनी अस्पष्टताओं को उजागर किया।
- यह कानून 18 वर्ष से कम आयु की महिलाओं और 21 वर्ष से कम आयु के पुरुषों को 'बालक' के रूप में वर्गीकृत करता है तथा बाल विवाह की प्रथा को एक सामाजिक कुप्रथा मानते हुए इसे अपराध घोषित करता है।
- बाल विवाह पर रोक लगाने के उद्देश्य से कानूनी प्रावधानों के बावजूद, न्यायालय ने इन प्रथाओं के निरंतर प्रचलन और प्रवर्तन तंत्र की कमी पर ध्यान आकृष्ट किया।
- मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बताया कि सरकार ने व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉ) पर बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) की सर्वोच्चता के संबंध में न्यायिक स्पष्टीकरण के लिए एक नोट प्रस्तुत किया था। हालांकि, इस मुद्दे पर उच्च न्यायालयों के विरोधाभासी निर्णयों के अभाव ने एक व्यापक कानूनी समाधान में बाधा उत्पन्न की। न्यायालय ने उन कानूनी खामियों को दूर करने के लिए विधायी स्पष्टता की आवश्यकता पर बल दिया, जो बाल विवाह जैसी प्रथाओं के निरंतर जारी रहने में सहायक हैं।
नीति सुधार के लिए न्यायिक सिफारिशें:
सर्वोच्च न्यायालय ने बाल विवाह और बाल सगाई के विरुद्ध सरकारी नीतियों को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की हैं:
1. आयु-उपयुक्त यौन शिक्षा का समावेश: न्यायालय ने स्कूल पाठ्यक्रम में सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील यौन शिक्षा को अनिवार्य करने का सुझाव दिया, ताकि बच्चों को उनके अधिकारों और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा सके।
2. बाल विवाह मुक्त गांव अभियान: 'खुले में शौच मुक्त गांव' अभियान की तर्ज पर, न्यायालय ने समुदाय आधारित अभियान चलाने का प्रस्ताव दिया, जिसमें स्थानीय नेताओं की सक्रिय भागीदारी से बाल विवाह की समाप्ति का प्रयास किया जाए।
3. ऑनलाइन रिपोर्टिंग पोर्टल की स्थापना: न्यायालय ने बाल विवाह की घटनाओं की समय पर रिपोर्टिंग और हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिए एक समर्पित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करने की सिफारिश की।
4. मुआवजा योजना का निर्माण: बाल विवाह से बाहर निकलने वाली लड़कियों के लिए न्यायालय ने वित्तीय सहायता योजनाएं विकसित करने का सुझाव दिया, ताकि उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त किया जा सके।
5. वार्षिक बजट आवंटन: न्यायालय ने बाल विवाह रोकथाम और इससे प्रभावित व्यक्तियों की सहायता के लिए समर्पित वित्तीय प्रावधान सुनिश्चित करने पर जोर दिया, जिससे नाबालिगों के अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा हो सके।
भारत में बाल विवाह:
· द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में प्रत्येक पाँच में से एक लड़की और छह में से एक लड़के का विवाह अभी भी कानूनी आयु से पहले हो रहा है। यद्यपि बाल विवाह की दर में धीमी गिरावट आई है, फिर भी 1.4 अरब की आबादी वाले देश में 23.3% की मौजूदा व्यापकता चिंताजनक बनी हुई है।
· भारत के आठ राज्यों में बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जिनमें पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा प्रमुख हैं। इन राज्यों में 20-24 आयु वर्ग की 40% से अधिक महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से पहले हो जाता है।
· इसके विपरीत, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों ने बाल विवाह को कम करने में सराहनीय प्रगति की है, जहां राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के हालिया आंकड़ों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है।
वैश्विक संदर्भ:
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 12 मिलियन लड़कियों का विवाह वयस्कता से पहले कर दिया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 5 का उद्देश्य 2030 तक बाल विवाह और महिला जननांग विकृति जैसी हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करना है।
- दक्षिण एशिया में बाल विवाह की दर 50% से घटकर 30% से नीचे आ गई है, लेकिन प्रगति असमान और अपर्याप्त है।
कानूनी ढांचा:
भारत ने बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन से बचाने के लिए कई कानून लागू किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
1. बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006)
· इस अधिनियम के अनुसार "बच्चा" वह है जो 21 वर्ष से कम आयु का पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला है।
· मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
o बाल विवाह के लिए मजबूर किए गए लड़के और लड़कियों को वयस्क होने के दो वर्ष बाद तक अपने विवाह को रद्द करने का अधिकार प्राप्त है।
o बाल विवाह से उत्पन्न संतान को वैध माना जाएगा।
o यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि बाल हिरासत का निर्णय जिला न्यायालय द्वारा बच्चे के कल्याण को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा।
2. अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम (2006)
- यह अधिनियम बाल विवाह को रोकने में मदद के लिए धर्म की परवाह किए बिना, सभी विवाहों का पंजीकरण 10 दिनों के भीतर अनिवार्य करता है।
3. कानूनी विवाह आयु की समीक्षा के लिए समिति (2020):
जया जेटली की अध्यक्षता में एक समिति का गठन 2020 में किया गया, जिसका उद्देश्य लड़कियों के लिए कानूनी विवाह की आयु 21 वर्ष करने के प्रभावों का अध्ययन करना था। इस समिति ने मातृ मृत्यु दर और महिला स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया।
4. शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009):
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करता है और शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा देकर बाल विवाह को हतोत्साहित करने वाला वातावरण तैयार करता है।
5. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम:
यह अधिनियम किसी नाबालिग के साथ किसी भी यौन गतिविधि को, चाहे सहमति हो या न हो, बलात्कार मानता है, और बच्चों के शोषण से उनकी सुरक्षा को सुदृढ़ करता है।
6. बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021:
इस प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु को 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करना है।
विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने का औचित्य:
विवाह के लिए न्यूनतम आयु बढ़ाना कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
· शिक्षा और रोजगार तक पहुंच: कम उम्र में विवाह अक्सर महिलाओं को शिक्षा और आर्थिक अवसरों तक पहुंच से वंचित कर देता है। विवाह की आयु बढ़ाने से अधिक महिलाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और वित्तीय स्वतंत्रता हासिल करने का अवसर मिल सकता है।
· स्वास्थ्य जटिलताएँ : कम उम्र में विवाह और बाद में गर्भधारण से माताओं और बच्चों दोनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कम उम्र की माताओं को विभिन्न स्वास्थ्य जटिलताओं का अधिक जोखिम होता है, जिनमें प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य चुनौतियाँ, कुपोषण, और यौन संचारित रोगों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता शामिल है।
सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ:
बाल विवाह से निपटने के लिए भारत सरकार ने कई पहल शुरू की हैं:
1. सुकन्या समृद्धि योजना (एसएसवाई) : 2015 में शुरू की गई यह योजना माता-पिता को अपनी बेटियों की शिक्षा और विवाह के खर्च के लिए बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
2. बालिका समृद्धि योजना : इस पहल का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की लड़कियों को प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में उनका नामांकन और ठहराव सुनिश्चित करके सहायता प्रदान करना है, जिससे बेहतर महिला साक्षरता को बढाया जा सके।
3. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ : इस योजना का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से लड़कियों को सामाजिक और वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनाना है। इसके साथ ही, लोगों को जागरूक करना और महिलाओं के लिए कल्याणकारी सेवाओं के वितरण में सुधार करना भी आवश्यक है।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और संबंधित दिशा-निर्देश नाबालिगों को बाल विवाह और सगाई की प्रथाओं के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे की अनिवार्यता को स्पष्ट करते हैं। न्यायालय ने शैक्षिक पहल और सामुदायिक भागीदारी की वकालत करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि बाल संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नाबालिगों के अधिकारों और स्वायत्तता की मान्यता की दिशा में एक सामाजिक बदलाव को बढ़ावा दिया जाए।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए विधायी प्रयासों के बावजूद, इसके जारी रहने में योगदान देने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों का विश्लेषण करें। समुदाय द्वारा संचालित अभियान इस प्रथा को खत्म करने में किस तरह भूमिका निभा सकते हैं? |