सन्दर्भ:
हाल ही में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी द्वारा घोषणा की गई कि भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त व्यवस्था को लेकर एक समझौता किया है। इस समझौते का उद्देश्य 2020 में चीनी अतिक्रमण के बाद उपजे सीमा मुद्दों को हल करना है।
- 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद स्थापित वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एक विवादास्पद क्षेत्र बना हुआ है, जिसकी स्पष्ट सीमा निर्धारित नहीं है। भौतिक रेखा की अनुपस्थिति से सीमा प्रबंधन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे दोनों देशों के लिए गश्त अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। गश्ती अधिकार सैनिकों को विवादित क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति स्थापित करने का अवसर प्रदान करते हैं। हालिया समझौते का उद्देश्य देपसांग मैदानों और डेमचोक क्षेत्रों में इन अधिकारों को पुनर्स्थापित करना है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा प्रबंधन सुदृढ़ होगा।
समझौते का विवरण:
- गश्ती अधिकारों की बहाली: इस समझौते के तहत भारतीय सैनिकों को देपसांग मैदानों और चार्डिंग में विशिष्ट बिंदुओं (पीपी 10 से 13) और डेमचोक में नाले क्षेत्र पर गश्त करने की अनुमति दी गई है। यह बहाली 2020 से पहले की प्रथाओं की पुनर्स्थापना है, जिसमें दोनों देशों के बीच गश्त के मानदंड स्थापित थे। इस समझौते को भविष्य में सीमा पर विघटन, डी-एस्केलेशन और विसैन्यीकरण की दिशा में एक आधार के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ वर्तमान में दोनों पक्षों के लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं।
- संलग्नता की शर्तें: समझौते में आमने-सामने की मुठभेड़ों के दौरान संयम और संचार को प्रोत्साहित किया गया है ताकि तनाव को बढ़ने से रोका जा सके। 2005 के सीमा समझौते के दिशा-निर्देशों के तहत मुठभेड़ों के दौरान सैन्य आचरण पर जोर दिया गया है, जिसमें दोनों पक्षों से शिष्टाचार बनाए रखने और उत्तेजक कार्रवाइयों से बचने का आग्रह शामिल है।
- प्रगति और निगरानी: अधिकारियों ने संकेत दिया है कि समझौते का क्रियान्वयन एक सप्ताह से दस दिनों के भीतर शुरू हो सकता है। विदेश सचिव ने 2020 में देखी गई झड़पों की पुनरावृत्ति से बचने हेतु निगरानी के महत्व पर बल दिया है। इसमें सावधानीपूर्वक निगरानी शामिल है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोनों पक्ष सहमत प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं, और “विश्वास करें लेकिन सत्यापित करें” की नीति को सुदृढ़ किया जा सके।
भारत-चीन संबंधों पर समझौते के प्रभाव:
1. तनाव में कमी: यह समझौता उस क्षेत्र में तनाव कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जहाँ दोनों देशों ने भारी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है। इससे 2020 में गलवान जैसी झड़पों की पुनरावृत्ति की संभावना कम हो गई है, जिससे सीमा पर अधिक स्थिर और सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा मिला है।
2. राजनयिक संबंधों की बहाली: समझौते का सफल क्रियान्वयन भारत और चीन के बीच उच्च स्तरीय राजनयिक संबंधों को पुनः स्थापित करने में सहायक हो सकता है, विशेष रूप से ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर सहयोग को बढ़ावा देगा।
3. आर्थिक और व्यापारिक संबंध: सैन्य संबंधों के सामान्य होने से दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में सुधार का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। संभावित विकासों में उड़ानों की बहाली, भारत में चीनी निवेश में वृद्धि, और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने जैसे कदम शामिल हैं।
4. क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव: भारत-चीन के स्थिर संबंध एशिया में अन्य क्षेत्रीय विवादों के समाधान के लिए एक सकारात्मक उदाहरण स्थापित कर सकते हैं। यह चीन की सीमा नीतियों के प्रति पड़ोसी देशों की धारणाओं को बदलने और अधिक सहयोगात्मक क्षेत्रीय माहौल को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
5. दीर्घकालिक क्षेत्रीय विवाद समाधान का मार्ग: यह समझौता देपसांग और डेमचोक जैसे 'सीमा मुद्दों' को सुलझाने के लिए आधार तैयार करता है। इन मामलों पर सफल वार्ता व्यापक भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान को एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान कर सकती है।
भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने में चुनौतियाँ:
LAC समझौते में प्रगति के बावजूद, भारत-चीन सीमा विवाद को पूरी तरह हल करने में कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
1. ऐतिहासिक मतभेद और विरासत के मुद्दे:
सीमा विवाद का इतिहास जटिल है, जिसका आरंभ 1962 के युद्ध से होता है। 'विरासत के मुद्दों' की मौजूदगी, जैसे देपसांग मैदान और डेमचोक क्षेत्रों में विवाद, प्रभावी समाधान को चुनौतीपूर्ण बनाती है।
2. एकतरफा चीनी कार्रवाई:
चीन का वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति को बदलने का प्रयास, जैसे भारतीय क्षेत्र में सैन्य घुसपैठ, अतीत में तनाव को बढ़ा चुका है, जिससे विवाद समाधान प्रयासों में बाधा उत्पन्न होती है।
3. सामरिक चिंताएँ और राष्ट्रवादी भावनाएँ:
विवादित क्षेत्रों का सामरिक महत्व और प्रबल राष्ट्रवादी भावनाएँ किसी भी सरकार के लिए समझौता करना चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
4. सैन्य निर्माण और बुनियादी ढाँचे का विकास:
दोनों देशों द्वारा LAC पर सैन्य उपस्थिति और बुनियादी ढांचे का विस्तार विवाद को जटिल बनाता है, जिससे स्थायी समाधान कठिन होता जा रहा है।
5. विश्वास की कमी और आपसी संदेह:
गलवान घाटी में 2020 की झड़पों के बाद भारत और चीन के बीच विश्वास की कमी एक अस्थिर वातावरण बनाती है, जो दीर्घकालिक समाधान प्रयासों को जटिल बना देती है।
6. बफर जोन में असंतुलन:
सैनिकों की वापसी के दौरान बफर जोन के निर्माण के कारण भारत ने अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्र खो दिया है, जिससे असंतुलन उत्पन्न हुआ है, जो तनाव को बढ़ाता है और समाधान को कठिन बनाता है।
प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों के बारे में:
· डेमचोक:
लद्दाख में एलएसी के सबसे दक्षिणी हिस्से के पास स्थित इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व 1962 के समय से है, जब यह चीनी घुसपैठ का स्थल था। डेमचोक पहले भी भारतीय नागरिक बुनियादी ढांचे के विकास में चीनी अवरोधों का गवाह रहा है।
· देपसांग मैदान:
विवादित अक्साई चिन क्षेत्र के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित देपसांग अपने समतल भूभाग के कारण सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ सेना और वाहनों की आवाजाही आसान है। 2009 के बाद से इस क्षेत्र में चीनी सैन्य उपस्थिति में वृद्धि देखी गई है।
· गलवान घाटी:
जून 2020 में हुई हिंसक झड़पों के कारण यह घाटी भारत के दारबुक-श्योक-डीबीओ (डीएसडीबीओ) रोड के निकटता के कारण रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, जोकि डीबीओ में एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे की ओर जाती है। घाटी का सुविधाजनक स्थान दोनों देशों के सैन्य अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारतीय प्रयास:
1. रणनीतिक वैश्विक गठबंधन:
o क्वाड: भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया से मिलकर बना चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने का काम करता है। इसके उद्देश्यों में समुद्री मार्गों की सुरक्षा और संयुक्त सैन्य अभ्यास के माध्यम से सामूहिक सुरक्षा को बढ़ाना शामिल है।
o I2U2: भारत, इजरायल, यूएई और अमेरिका से मिलकर बना यह समूह आर्थिक संबंधों को बढ़ाने और साझा हितों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। इसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाओं की खोज करते हुए व्यापार और निवेश को मजबूत करना है।
o आईएनएसटीसी (अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा): रूस, भारत और ईरान द्वारा 2000 में शुरू किया गया आईएनएसटीसी हिंद महासागर से उत्तरी यूरोप तक व्यापार को सुगम बनाता है तथा चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का मुकाबला करने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
o आईएमईसी (भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा): इस गलियारे का उद्देश्य भारत से यूरोप तक बहु-मॉडल संपर्क स्थापित करना है, तथा चीनी-नियंत्रित मार्गों के लिए एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करके वैश्विक व्यापार नेटवर्क में भारत के प्रभाव को बढ़ाना है।
2. हीरे की माला रणनीति:
· चीन की "मोतियों की माला" रणनीति के जवाब में, भारत ने "हीरे की माला" रणनीति अपनाई है। इसके तहत भारत अपने समुद्री हितों की सुरक्षा के लिए नौसैनिक ठिकानों को मजबूत करने के साथ-साथ वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ सैन्य गठबंधन बना रहा है। यह रणनीति चीनी-नियंत्रित मार्गों के विकल्प के रूप में वैश्विक व्यापार नेटवर्क में भारत की भूमिका को बढ़ावा देती है।
3. उन्नत सीमा अवसंरचना:
· भारत ने चीन के साथ अपनी सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी लाई है, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की पहल से अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ी है। बेहतर बुनियादी ढांचे से सैनिकों की तेजी से आवाजाही और रसद सहायता संभव हो पाती है।
4. पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना:
· भारत के दृष्टिकोण में क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ावा देना भी शामिल है, विशेषकर दक्षिण एशिया में। भूटान के साथ सहयोग और नेपाल के साथ बिजली निर्यात के लिए समझौतों जैसी पहलों का उद्देश्य विकास परियोजनाओं के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है।
भारत-चीन संदर्भ में प्रमुख शब्दावलियाँ
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निष्कर्ष:
भारत-चीन एलएसी समझौता द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, आगे की चुनौतियाँ अभी भी बहुत बड़ी हैं। सीमा विवाद की जटिलताओं के स्थायी समाधान के लिए निरंतर बातचीत और रणनीतिक सहयोग आवश्यक होगा।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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