संदर्भ:
- भारत और नेपाल के संबंध सदैव साझा इतिहास, गहरे सांस्कृतिक बंधनों और जटिल राजनीतिक गतिशीलता के सम्मिश्रण से निर्धारित होते रहे हैं। इसके अलावा चीन के संबंध में अपनी विदेश नीति प्राथमिकताओं को आकार देते समय, नेपाल के साथ मजबूत और स्थिर संबंध बनाए रखना भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
नेपाल में राजनीतिक और आर्थिक अशांति:
- अशांति और अनिश्चितता: वर्तमान में नेपाल; अशांति, असंतोष और अनिश्चितता से चिह्नित एक जटिल दौर का अनुभव कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है, कि यह नेपाल के लिए विश्वसनीय राजनीतिक संस्थानों से सुदृढ़ एक पूर्ण लोकतंत्र की ओर संक्रमण तथा कभी न खत्म होने वाली निरंतर यात्रा है। एक नए संविधान को शीघ्रता में अपनाना, जिसने नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल दिया; कई सवाल खड़े किए हैं। यह परिवर्तन उस समय हुआ, जब एक युवा लोकतंत्र के रूप में नेपाल अभी हाल ही में उथल-पुथल की एक श्रृंखला से उभरा था और उसके पास आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए अनुभवी नेताओं और मजबूत संस्थानों का अभाव था।
- धर्मनिरपेक्षता और राजशाही पर बहस: अपना ऐतिहासिक प्रभाव रखने वाली हिंदू परंपराओं से परे, धर्मनिरपेक्ष पहचान अपनाने का नेपाल का निर्णय सदैव से विवादास्पद रहा है। कई लोग सोचते हैं कि क्या नेपाल को अपनी हिंदू पहचान को वापस ले लेना चाहिए, जो उसने एक दशक लंबे विद्रोह को समाप्त करने के लिए राजनीतिक दलों और माओवादियों के बीच बातचीत के दौरान त्याग दी थी। इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीतिक सीमाओं का सम्मान किया जाए और लोकतंत्र की रक्षा के लिए, राजशाही को बहाल करने की मांग भी उठ रही है। संघीय ढांचे की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाया जाता है, इस चिंता के साथ कि यह देश के भीतर अलगाव को जन्म दे सकता है।
बाह्य प्रभाव:
- गठबंधन की गतिशीलता में परिवर्तन: नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में इस समय कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे जा रहे हैं, खासकर वर्तमान प्रधानमंत्री, माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के गठबंधन सहयोगियों के साथ। संसद में सबसे बड़ी पार्टी, मध्यमार्गी नेपाली कांग्रेस (NC) को के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली दूसरी सबसे बड़ी पार्टी द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। ओली, अपने पिछले प्रधान मंत्री कार्यकाल के दौरान, अपने चीन समर्थक और भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते थे। चीनियों ने प्रमुख वामपंथी दलों के बीच नए सिरे से बने गठबंधन का स्वागत किया, जिसकी उन्होंने लंबे समय से वकालत की थी।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: श्रीलंका जैसे ऋण जाल में फंसने की घरेलू चेतावनियों के बावजूद, उच्च-स्तरीय सैन्य यात्राओं और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत सहयोग को पुनर्जीवित करने पर सहमतियों से चिह्नित, नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। नेपाल के विदेश मंत्री का नई दिल्ली से पहले बीजिंग जाने का निर्णय एक महत्वपूर्ण विचलन था, जो नेपाल की बदलती विदेश नीति प्राथमिकताओं को उजागर करता है। चीन का नेपाल में सक्रिय रुख भारत की कीमत पर अपना प्रभाव बढ़ाने का लक्ष्य रखता है।
ऐतिहासिक संदर्भ और सुरक्षा चिंताएं:
- अतीत की अस्थिरता और सीमा पार के खतरे: नेपाल के इतिहास और वर्तमान परिस्थिति को समझने के लिए, अतीत की अस्थिरता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर गौर करना आवश्यक है। राजा बीरेंद्र के शासनकाल के अंतिम वर्षों के दौरान, नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता और लगातार सरकार बदलने से माओवादी विद्रोह को बल मिला। इस अवधि में भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा संचालित तस्करी, हथियारों की तस्करी और सीमा पार आतंकवाद की गतिविधियों में भी वृद्धि देखी गई। दिसंबर 1999 में आईसी 814 विमान अपहरण इन खतरों का एक ज्वलंत उदाहरण था। भारत-नेपाल संबंधों की स्थिरता बनाए रखने के लिए 'दो स्तंभों की नीति' (राजा और बहुदलीय लोकतंत्र का समर्थन) महत्वपूर्ण थी। इस नीति के तहत भारतीय और नेपाली खुफिया एजेंसियों के बीच पाकिस्तानी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए सहयोग को बढ़ावा दिया गया।
वर्तमान सुरक्षा जोखिम:
- अतीत के विपरीत, आज चीन नेपाल में भारत के खिलाफ सक्रिय रूप से काम करता है। चीन द्वारा सीमा पार भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देना, जिसे बीजिंग "अच्छा आतंकवाद" मानता है, एक गंभीर सुरक्षा जोखिम है। पाकिस्तान, इस अवसर को देखते हुए, क्षेत्र को और अस्थिर करने के लिए चीन के साथ गठबंधन करता है। हालांकि भारत के पास क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका) और अन्य हिंद-प्रशांत समूहों में सहयोगी हैं, लेकिन अगर अस्थिर नेपाल में एक नया 'ग्रेट गेम' शुरू होता है, तो इन गठबंधनों पर निर्भरता पर्याप्त नहीं हो सकती है।
भारत की कूटनीतिक रणनीति:
- निम्न प्रोफ़ाइल बनाए रखना: भारत ने समझदारी से नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचते हुए निम्न प्रोफ़ाइल बनाए रखी है। हालाँकि, नेपाल के कुछ वर्गों द्वारा भारत से दो विवादास्पद मुद्दों पर सलाह देने का दबाव है: क्या नेपाल को अपनी हिंदू पहचान पर वापस जाना चाहिए और क्या राजशाही को बहाल किया जाना चाहिए ? भारत को इन सवालों के जवाब देने में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि विरोधाभासी संदेश न जाए।
- समग्र विकास का रोडमैप: भारत नेपाल के साथ संबंधों को स्थिर करने के लिए एक परिवर्तनकारी और सतत विकास एजेंडा प्रस्तावित कर सकता है। इस रोडमैप को स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और पोषण, बाल विकास, लैंगिक समानता और रोजगार सृजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान देना चाहिए। इन क्षेत्रों को संबोधित करके, भारत बीआरआई के तहत चीनी परियोजनाओं के लिए एक आकर्षक विकल्प प्रदान कर सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि आर्थिक सहयोग नेपाली लोगों के कल्याण को प्राथमिकता देता है।
द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाना
● उच्च-स्तरीय वार्ता:
- भारत की ओर से उच्च-स्तरीय वार्ता सकारात्मकता का संचार कर सकती है और प्रमुख क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है। प्रमुख परियोजनाओं पर सभी दलों की सहमति को बढ़ावा देना निरंतरता और समयबद्ध परिणाम सुनिश्चित करेगा, यहाँ तक कि राजनीतिक अस्थिरता के बीच भी। दोनों देशों के उद्योगों के बीच परस्पर संबंध मजबूत करने से जनसांख्यिकीय चुनौतियों का समाधान हो सकता है और नेपाल के भीतर समानता और संप्रभुता की भावना को बढ़ावा मिल सकता है।
● सामान्य सभ्यतागत धरोहरों का लाभ उठाना:
- भारत को उन साझा सभ्यतागत धरोहरों का लाभ उठाना चाहिए जो भारत-नेपाल संबंधों को विशिष्ट बनाते हैं। इसमें दोनों राष्ट्रों को जोड़ने वाले सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक संबंध शामिल हैं। इन साझा मूल्यों पर जोर देकर, भारत सद्भावना और पारस्परिक सम्मान को बढ़ावा दे सकता है, जिससे अक्सर द्विपक्षीय संबंधों को जटिल बनाने वाले "बड़े भाई-छोटे भाई" के रवैये को दूर किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
- जून में पदभार संभालने वाली नई दिल्ली सरकार के सामने भारत-नेपाल संबंधों को स्थिर करने की चुनौती है। इस संबंध को जटिल बनाने वाली असंख्य चिंताओं का समाधान करने के लिए कूटनीतिक कौशल और नवीन विकास रणनीतियों के सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता है। समग्र विकास का रोडमैप प्रस्तुत करके और उच्च-स्तरीय वार्ता बनाए रखने के द्वारा, भारत नेपाल के साथ अधिक स्थिर और सहयोगात्मक संबंध विकसित कर सकता है, बाहरी प्रभावों का मुकाबला कर सकता है और दीर्घकालिक क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है। नेपाल के साथ एक मजबूत और अधिक लचीला सहयोगात्मक संबंध बनाने की जवाबदेही भारत पर ही है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: 1. पूर्ण लोकतंत्र में परिवर्तन के दौरान नेपाल के सामने आने वाली आंतरिक राजनीतिक चुनौतियों की जांच करें। इन चुनौतियों का भारत के साथ उसके संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ा है? (10 अंक, 150 शब्द) 2. नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में बाहरी प्रभावों, विशेषकर चीन की भूमिका पर चर्चा करें। इन प्रभावों के आलोक में भारत को नेपाल के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने और स्थिर करने के लिए अपनी कूटनीतिक रणनीति कैसे अपनानी चाहिए? (15 अंक, 250 शब्द) |
स्रोत- द हिन्दू