संदर्भ:
- हिमालय क्षेत्र में स्थित सियाचीन ग्लेशियर, जिसे अक्सर विश्व के सर्वोच्च और शीतलतम युद्धक्षेत्र के रूप में जाना जाता है, पाकिस्तान और चीन के निकटवर्ती होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हिमनद प्रदेश, चार दशकों से भी अधिक समय से भारतीय सशस्त्र बलों की उपस्थिति के साथ, स्थायी संघर्ष और भू-राजनीतिक जटिलताओं का साक्षी है। 13 अप्रैल, 1984 को, भारत ने पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य गतिविधियों को विफल करने और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत के तहत ग्लेशियर पर पहले से ही कब्जा कर लिया है। इस अभियान ने कठोर मौसम की परिस्थितियों और कूटनीतिक पेचीदगियों से निपटते हुए एक दीर्घकालिक और चुनौतीपूर्ण सैन्य प्रयास की शुरुआत की।
ऑपरेशन मेघदूत' के 40 वर्ष:
सियाचिन का रणनीतिक महत्व:
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सियाचिन ग्लेशियर: रणनीतिक महत्व और भू-राजनीतिक संदर्भ:
- हिमालय की दुर्गम काराकोरम पर्वतमाला में स्थित सियाचिन ग्लेशियर एक भू-रणनीतिक स्थल है। पश्चिम में पाकिस्तान और पूर्व में चीन से घिरा; यह क्षेत्र विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला है, जिसमें अति-उच्चावच दर्रे और कठोर बंजर भू-दृश्य, सैन्य अभियानों के लिए जटिल चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों ही ऐतिहासिक विभाजन समझौतों की भिन्न व्याख्याओं और अपनी रणनीतिक आवश्यकताओं के आधार पर सियाचिन ग्लेशियर पर अपना दावा प्रस्तुत करते हैं। पाकिस्तान की इस विवादित क्षेत्र में चीन के साथ भौतिक संपर्क स्थापित करने की आकांक्षा क्षेत्र में तनाव को बढ़ाती है और ग्लेशियर के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करती है।
- 1970 और 1980 के दशक के दौरान, पाकिस्तान द्वारा विदेशी पर्वतारोहण अभियानों को समर्थन देने, और मानचित्रण के दायरे में अपने क्षेत्रीय दावों को सुदृढ़ करने के संभावित प्रयासों को लेकर भारत की सुरक्षा चिंताओं को उजागर करती है। इनहीं सारी घटनाक्रमों के प्रत्युत्तर में और खुफिया सूचनाओं से संचालित होकर, भारत ने 1984 में "ऑपरेशन मेघदूत" नामक एक पूर्व-आक्रमणकारी सैन्य अभियान चलाया। इस निर्णायक अभियान का नेतृत्व भारतीय थल सेना और भारतीय वायुसेना द्वारा किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप अंततः सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का नियंत्रण स्थापित संभव हो सका।
ऑपरेशन मेघदूत: कार्यान्वयन और चुनौतियां:
- ऑपरेशन मेघदूत की नींव कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार के नेतृत्व में सूक्ष्म पुनर्अवलोकन अभियानों द्वारा रखी गई, जिन्होंने अभियान हेतु महत्वपूर्ण भौगोलिक और सैन्य (GEOINT) सूचनाएँ प्रदान कीं। 13 अप्रैल, 1984 को, भारतीय सैन्य बलों ने एक साहसी युद्ध-कौशल का प्रदर्शन करते हुए बिलाफोंड ला पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, जिससे इस हिमनद क्षेत्र पर नियंत्रण का दावा किया गया। यह एक दीर्घकालिक सैन्य गतिरोध की शुरुआत थी, जो विषम मौसम परिस्थितियों और जटिल तार्किक (लॉजिस्टिक) बाधाओं से युक्त थी।
- उत्तरोत्तर वर्षों में, भारतीय सैनिकों ने ग्लेशियर पर पूरे क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति सुदृढ़ की और पाकिस्तानी समकक्षों के साथ सामयिक सशस्त्र संघर्षों में लगे रहे। -60 डिग्री सेल्सियस तक गिरने वाला कठोर वातावरण सैनिकों की सहनशीलता और कार्यात्मक दक्षता के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत करता था। भारत के सैन्य अभियानों का दायरा विस्तृत होकर रणनीतिक हवाई आपूर्ति, टोही मिशन और हवाई समर्थन अभियानों को शामिल करने लगा, जिसमें विविध प्रकार के हेलीकॉप्टरों और परिवहन विमानों का उपयोग किया गया।
कार्यात्मक विकास और तकनीकी प्रगति:
- दशकों से, ऑपरेशन मेघदूत ने तकनीकी एकीकरण और रणनीतिक क्षमताओं में उल्लेखनीय प्रगति का अनुभव किया है। भारतीय सेना ने ऊंचाई वाले युद्ध की चुनौतियों का सामना करने के लिए आवास निर्माण, संचार बुनियादी ढांचे और सामरिक गतिशीलता समाधानों में अभिनव दृष्टिकोण अपनाया है। VSAT तकनीक की शुरूआत ने ज़मीनी सैनिकों के लिए वास्तविक समय की स्थितिजन्य जागरूकता में क्रांतिकारी बदलाव लाया है, जिसने बेहतर टेलीमेडिसिन क्षमताओं को सक्षम किया है और दूरस्थ क्षेत्रों में आवश्यक चिकित्सा हस्तक्षेप ने सैनिक कल्याण और उत्तरजीविता में वृद्धि की है। साथ ही बेहतर सैनिक संपर्क की सुविधा को सुदृढ़ता भी प्रदान की है।
- हालाँकि सियाचिन के दुर्गम और विषम वातावरण द्वारा उत्पन्न रणनीतिक चुनौतियों ने विशेष उपकरणों के रणनीतिक समावेश की आवश्यकता को जन्म दिया। ऑल-टेरेन वाहनों (एटीवी) ने ऊबड़-खाबड़ इलाकों में सैनिकों की गतिशीलता को मजबूत किया है, जबकि चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टरों ने सबसे दूरस्थ स्थानों तक भी आपूर्ति और उपकरणों के कुशल परिवहन को सुनिश्चित किया है। इसके अतिरिक्त, रसद ड्रोन की तैनाती ने पुनःपूर्ति प्रयासों को सुव्यवस्थित किया है, जो पारंपरिक जमीन-आधारित संचालन से जुड़े जोखिमों को कम करता है। इन प्रगति ने सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सैनिकों की परिचालनात्मक लचीलेपन को भी मजबूत किया है।
सियाचिन संघर्ष: स्थायी गतिरोध और रणनीतिक परिणाम
- कूटनीतिक संकेतों और रुक-रुक कर होने वाली वार्ताओं के बावजूद, सियाचिन संघर्ष भारत-पाकिस्तान तनावों का प्रतीक है। वास्तविक ग्राउंड पोजिशन लाइन (AGPL) की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं और व्यापक रणनीतिक विचारों के कारण, इस क्षेत्र को सेनामुक्त करने के प्रयास विफल रहे हैं। सियाचिन की रक्षा के लिए भारत का अडिग रुख, पाकिस्तान और चीन से मिलीभगत के खतरों का मुकाबला करने में इसकी केंद्रीयता को रेखांकित करता है, जो क्षेत्र में बदलते सुरक्षा परिदृश्य को दर्शाता है।
- व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य, चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हालिया तनावों से और जटिल हो गया है, जिसने सियाचिन के रणनीतिक महत्व को और बढ़ा दिया है। 1963 में पाकिस्तान द्वारा चीन को सौंपी गई शक्सगाम घाटी से ग्लेशियर की निकटता, क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन के संदर्भ में इसके व्यापक प्रभाव को रेखांकित करती है। इसलिए, सियाचिन भारत की रणनीतिक गणनाओं में एक केंद्र बिंदु बना हुआ है, जो लगातार बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के बीच स्थायी सुरक्षा आवश्यकताओं को दर्शाता है।
निष्कर्ष
- निष्कर्षतः, सियाचिन ग्लेशियर दक्षिण एशिया के सुरक्षा परिदृश्य को आकार देने वाले स्थायी विवादों और रणनीतिक आवश्यकताओं का प्रतीक है। चार दशकों से अधिक समय से चल रहा ऑपरेशन मेघदूत, जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की रक्षा के लिए भारत की अटूट प्रतिबद्धता का संकेतक है। अत्याधुनिक तकनीकी प्रगति और कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद, सियाचिन इस समय अनसुलझे संघर्षों और व्यापक क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का प्रतीक बना हुआ है। सियाचिन की रणनीतिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यापक वार्ता और क्षेत्र में स्थायी शांति एवं स्थिरता लाने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में सियाचिन द्वारा उत्पन्न रणनीतिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मूलभूत सुरक्षा हितों की पारस्परिक मान्यता से प्रेरित रचनात्मक वार्ता एक स्थायी समाधान की दिशा में संभावित मार्ग प्रदान करती है। सैन्यकरण में कमी और विश्वास-निर्माण के उपायों पर सहयोगात्मक प्रयास क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: 1. पिछले कुछ दशकों में सियाचिन ग्लेशियर का रणनीतिक महत्व कैसे विकसित हुआ है, खासकर पाकिस्तान और चीन से जुड़े क्षेत्रीय भू-राजनीतिक गतिशीलता के संदर्भ में? (10 अंक, 150 शब्द) 2. ऑपरेशन मेघदूत के दौरान प्रमुख परिचालन चुनौतियां क्या थीं, और भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर की अत्यधिक ऊंचाई वाली स्थितियों में संचालन को बनाए रखने के लिए तकनीकी और तार्किक रूप से कैसे अनुकूलन किया? (15 अंक, 250 शब्द) |
स्रोत - द हिंदू