सन्दर्भ:
महिला सशक्तिकरण समावेशी विकास और स्थानीय लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसी उद्देश्य से पंचायती राज प्रणाली में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया गया, ताकि महिलाएँ प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा सकें। हालाँकि, "सरपंच पति" की समस्या एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जहाँ निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति या अन्य पुरुष रिश्तेदार शासन का वास्तविक संचालन करते हैं। इससे महिलाओं की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता बाधित होती है और आरक्षण का पूरा लाभ समाज तक नहीं पहुँच पाता।
- इस समस्या को हल करने के लिए केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय ने कई सुधारात्मक प्रयास शुरू किए हैं। इनमें "सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान" और सामुदायिक रेडियो व डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से जागरूकता अभियान शामिल हैं। "सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान" महिला पंचायत प्रतिनिधियों के लिए एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम है। वहीं, सामुदायिक रेडियो और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग महिला पंचायत सदस्यों को जागरूक करने और उन्हें शासन प्रक्रिया में प्रभावी भूमिका निभाने के लिए किया जा रहा है।
सरपंच पति : महिला नेतृत्व में बाधा
- सरपंच पति प्रथा से तात्पर्य उस प्रथा से है जिसमें निर्वाचित महिला सरपंच का पति सत्ता संभालता है और उसकी ओर से निर्णय लेता है । यह समस्या गहरी पितृसत्तात्मक संरचनाओं, निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में शिक्षा की कमी और अपर्याप्त संस्थागत समर्थन के कारण उत्पन्न होती है ।
- पंचायतों में चुनी गई कई महिलाओं के पास शासन और निर्णय लेने का पूर्व अनुभव नहीं होता। उचित प्रशिक्षण के अभाव में, वे अक्सर प्रशासनिक कार्यों, वित्तीय प्रबंधन और बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के लिए पुरुष रिश्तेदारों पर निर्भर हो जाती हैं । जबकि कुछ पुरुष अच्छे इरादों से अपनी पत्नियों की सहायता करने का दावा करते हैं, यह राजनीतिक आरक्षण के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है - जो महिलाओं को स्वतंत्र नेतृत्व करने में सक्षम बनाना है।
प्रॉक्सी नेतृत्व से निपटने के लिए सरकार की पहल:
1. सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान: महिला नेताओं के लिए क्षमता निर्माण
स्थानीय शासन में महिला नेताओं को सशक्त बनाने के लिए पंचायती राज मंत्रालय ने सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान शुरू किया है। इस पहल का उद्देश्य है:
· नेतृत्व कौशल और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना।
· शासन, बजट, संघर्ष प्रबंधन और डिजिटल साक्षरता पर व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करना।
· महिला नेताओं को कानूनी जानकारी देना, ताकि वे लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा और कार्यस्थल उत्पीड़न से निपट सकें।
इस अभियान के तहत कानूनी प्रशिक्षण मैनुअल तैयार किया गया है, जिसमें महिलाओं को उनके अधिकारों और उपलब्ध कानूनी संसाधनों की जानकारी दी जाती है। इसमें निम्नलिखित मुद्दों पर कानूनों और रिपोर्टिंग तंत्र की जानकारी शामिल है:
· घरेलू हिंसा और बाल शोषण।
· लैंगिक भेदभाव, बाल विवाह और भ्रूण हत्या।
· कार्यस्थल पर उत्पीड़न और मानव तस्करी।
· साइबर अपराध, ऑनलाइन उत्पीड़न और डिजिटल सुरक्षा।
कानूनी और प्रशासनिक जागरूकता को मजबूत करके , यह पहल सुनिश्चित करती है कि वे अपने समुदायों की प्रभावी ढंग से सेवा करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हों।
2. सामुदायिक रेडियो और मीडिया सहभागिता के माध्यम से जागरूकता अभियान
प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ-साथ, सरकार ने सरपंच पति प्रथा को चुनौती देने के लिए सामुदायिक रेडियो, सार्वजनिक सेवा फिल्मों, मीडिया आउटरीच और शैक्षिक संगोष्ठियों के माध्यम से व्यापक जागरूकता अभियान शुरू किए हैं। इन अभियानों का उद्देश्य महिला सरपंचों के वास्तविक नेतृत्व को बढ़ावा देना और प्रॉक्सी नेतृत्व की प्रवृत्ति को समाप्त करना है।
पंचायती राज राज्य मंत्री एस.पी. सिंह बघेल ने राज्यसभा में जानकारी दी कि "जन जन तक जानकारी" जैसी पहल बिहार, कर्नाटक और महाराष्ट्र के 15 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चलाई जा रही है।
इन अभियानों के मुख्य उद्देश्य:
· ग्रामीण समुदायों को स्वतंत्र महिला नेतृत्व के महत्व के बारे में शिक्षित करना।
· प्रॉक्सी नेतृत्व के कानूनी और प्रशासनिक दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
· महिला प्रतिनिधियों के अधिकारों और सरकार की डिजिटल गवर्नेंस पहलों को बढ़ावा देना। सरकारी योजनाओं और डिजिटल गवर्नेंस पहलों को बढ़ावा देना ,जैसे:
o स्वामित्व (गांवों का सर्वेक्षण और गांवों के डिजिटल मानचित्रण के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ मानचित्रण)।
o ई- ग्राम स्वराज ,मेरी पंचायत और पंचायत निर्णय (पारदर्शी निर्णय लेने के लिए ऑनलाइन पोर्टल)।
o ऑनलाइन ऑडिट (स्थानीय शासन में वित्तीय जवाबदेही के लिए एक डिजिटल मंच)
ये संचार रणनीतियाँ सार्वजनिक धारणाओं को बदलने, महिला नेताओं के लिए अधिक सम्मान सुनिश्चित करने और समुदायों को प्रॉक्सी नेतृत्व को अस्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
नीतिगत सिफारिशें और संस्थागत सुदृढ़ीकरण:
पंचायती राज संस्थाओं में महिला नेतृत्व को और मजबूत करने के लिए , सरकारी सलाहकार समिति ने कई प्रमुख सुधारों का प्रस्ताव दिया है :
1. प्रॉक्सी नेतृत्व के विरुद्ध सख्त कानूनी और प्रशासनिक उपाय:
o प्रॉक्सी शासन के सिद्ध मामलों के लिए दंड लागू करना ।
o पुरुष रिश्तेदारों को गैरकानूनी तरीके से अधिकार का प्रयोग करने से रोकने के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत करना ।
2. सतत क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
o चुनाव के बाद कम से कम दो वर्षों तक त्रैमासिक शासन प्रशिक्षण कार्यक्रम ।
o स्थानीय शासन को आधुनिक बनाने के लिए एआई उपकरण और डिजिटल साक्षरता मॉड्यूल की शुरूआत ।
3. निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता:
o महिला नेताओं द्वारा स्वतंत्र निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम 12वीं कक्षा की शिक्षा अनिवार्य करना ।
4. वित्तीय और तकनीकी सशक्तिकरण:
o सरपंचों के मानदेय में वृद्धि (उदाहरण के लिए, राजस्थान में वर्तमान में केवल 4,500 प्रतिमाह दिया जाता है)।
o स्वतंत्र शासन गतिविधियों के लिए स्मार्टफोन और आधिकारिक परिवहन सुविधाएं प्रदान करना ।
5. संस्थागत समर्थन और मुखबिरी तंत्र:
o मार्गदर्शन के लिए महिला सरपंचों के व्हाट्सएप समूहों में सरकारी अधिकारियों को शामिल करना ।
o राजनीतिक दुरुपयोग को रोकते हुए प्रॉक्सी नेतृत्व की सूचना देने के लिए मजबूत मुखबिरी तंत्र की स्थापना करना ।
6. परिवार और समुदाय के समर्थन को प्रोत्साहित करना
o महिला नेताओं द्वारा स्वतंत्र निर्णय लेने के समर्थन हेतु स्थानीय अधिकारियों और समुदायों को संवेदनशील बनाना ।
o यह सुनिश्चित करना कि पुरुष रिश्तेदारों को आधिकारिक पंचायत बैठकों से बाहर रखा जाए ताकि महिलाएं अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें।
निष्कर्ष: शासन में वास्तविक महिला सशक्तिकरण की ओर एक मार्ग
सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान, सामुदायिक रेडियो जागरूकता अभियान और डिजिटल गवर्नेंस पहल भारत में "सरपंच पति" प्रथा को समाप्त करने और पंचायती राज संस्थाओं में वास्तविक महिला नेतृत्व सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। हालाँकि, इन प्रयासों की सफलता दीर्घकालिक नीति प्रतिबद्धता, निरंतर क्षमता निर्माण और मजबूत संस्थागत सुरक्षा उपायों पर निर्भर करती है।
महिलाओं के नेतृत्व में बाधा डालने वाली संरचनात्मक रुकावटों, सामाजिक पूर्वाग्रहों और संस्थागत अंतरालों को दूर करके, भारत अधिक समावेशी, सहभागी और लैंगिक समान लोकतंत्र की ओर अग्रसर हो सकता है। जब महिला नेताओं को सही समर्थन और स्वतंत्रता मिलती है, तो गवर्नेंस की गुणवत्ता में सुधार होता है और महिलाओं, बच्चों और हाशिए पर पड़े समुदायों के मुद्दों पर अधिक प्रभावी रूप से ध्यान दिया जाता है।
मुख्य प्रश्न: 73वें संविधान संशोधन का उद्देश्य स्थानीय शासन में आरक्षण के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण था। इस संदर्भ में, महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पर इस संशोधन के प्रभावों का विश्लेषण करें। साथ ही, प्रॉक्सी नेतृत्व और पितृसत्तात्मक मानदंडों सहित उनकी राजनीतिक भागीदारी में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का मूल्यांकन करें। |