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Daily-current-affairs / 06 Mar 2025

मोटापे को पुनर्परिभाषित करना: लैंसेट आयोग का नया दृष्टिकोण और भारत के लिए निहितार्थ

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सन्दर्भ:

मोटापा (Obesity) आज वैश्विक स्तर पर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुका है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। हाल के वर्षों में भारत में मोटापे के मामलों में तेज़ वृद्धि देखी गई है। परंपरागत रूप से, मोटापे के आकलन के लिए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) को एक प्रमुख उपकरण माना जाता रहा है। हालाँकि, नवीनतम शोध यह संकेत देते हैं कि केवल BMI के आधार पर स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का आकलन करना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह शरीर में वसा (Fat Distribution) के वितरण और चयापचय स्वास्थ्य (Metabolic Health) की सटीक जानकारी नहीं देता।

  • इस सीमा को ध्यान में रखते हुए, "लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी कमीशन" ने मोटापे की एक अधिक समग्र और वैज्ञानिक परिभाषा प्रस्तुत की है, जिसमें शारीरिक संरचना , वसा वितरण, चयापचय प्रोफ़ाइल (Metabolic Profile) जैसे कई मापदंडों को शामिल किया गया है। यह पहल ऐसे समय में आई है जब GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट (जैसे ओज़ेम्पिक) जैसे नए चिकित्सीय विकल्प मोटापे के प्रबंधन के लिए अधिक प्रभावी और प्रमाण-आधारित समाधान प्रदान कर रहे हैं।

निदान उपकरण के रूप में बीएमआई की सीमाएं:

बीएमआई लंबे समय से मोटापे के निदान के लिए मानक रहा है। इस प्रणाली के तहत:

        बीएमआई <18.5 कम वजन

        बीएमआई 18.5–24.9 सामान्य

        बीएमआई 25–29.9 अधिक वजन

        बीएमआई ≥30 मोटापा

हालांकि, इस पद्धति में कुछ कमियां भी हैं, जिनकी वजह से कई बार ऐसे लोगों को मोटा मान लिया जाता है जो असल में स्वस्थ होते हैं (Overdiagnosis) और कुछ लोग असली में मोटापे से पीड़ित होते हैं लेकिन उन्हें सामान्य माना जाता है। उच्च मांसपेशी द्रव्यमान (High Muscle Mass) वाले कुछ व्यक्तियों का बीएमआई 30 से अधिक हो सकता है, जबकि वे चयापचय रूप से पूरी तरह स्वस्थ होते हैं, इसके विपरीत, सामान्य या कम बीएमआई वाले कुछ व्यक्तियों के शरीर में भी अत्यधिक आंतरिक वसा (Excess Internal Fat) हो सकती है, जो मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है।

यह समस्या भारत में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ भारतीयों में पेट के आसपास वसा (Abdominal Obesity) जमा होने की प्रवृत्ति अधिक है। इसका परिणाम यह है कि:

बीएमआई 30 से कम होने के बावजूद, भारतीयों में टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों का जोखिम काफी बढ़ जाता है। इन विशिष्टताओं को पहचानते हुए, भारत ने 2009 में अपने बीएमआई कट-ऑफ (BMI Cut-off) को संशोधित किया:

  • मोटापे की सीमा को 30 से घटाकर 25 किया गया, ताकि भारतीय संदर्भ में जोखिम का बेहतर आकलन किया जा सके।
  • यह संशोधन भी मोटापे की वास्तविक जटिलता को पूरी तरह नहीं दर्शा सका, क्योंकि यह केवल वज़न और ऊंचाई पर आधारित था। इसने वसा वितरण चयापचय स्वास्थ्य (Metabolic Health), और शारीरिक कार्यक्षमता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल नहीं किया, जिससे अधिक समग्र और वैज्ञानिक रूपरेखा की आवश्यकता महसूस हुई।

लैंसेट आयोग की मोटापे की नई परिभाषा :

लैंसेट आयोग अब नैदानिक मोटापे (Clinical Obesity) को एक दीर्घकालिक बीमारी (Chronic Disease) के रूप में परिभाषित करता है, जो बीएमआई या सह-मौजूदा बीमारियों (Co-morbidities) की परवाह किए बिना शरीर के अंगों के कार्य को प्रभावित करती है।

इस नए ढांचे में कई शारीरिक और चयापचय पैरामीटर (Physical & Metabolic Parameters) शामिल किए गए हैं, जैसे:

             बीएमआई कमर परिधि (Waist Circumference)

             कमर-से-कूल्हे अनुपात (Waist-to-Hip Ratio)

             कमर-से-ऊंचाई अनुपात (Waist-to-Height Ratio)

             मांसपेशी द्रव्यमान और वसा वितरण (Muscle Mass & Fat Distribution)

             अंगों का कार्य और चयापचय स्वास्थ्य (Organ Function & Metabolic Health)

यह दृष्टिकोण, पहले की केवल BMI आधारित स्व-निदान (Self-Diagnosis) पद्धति से बिल्कुल अलग है। अब मोटापे का निर्धारण केवल संख्या से नहीं, बल्कि चिकित्सकीय जांच  और लक्षणों के विस्तृत आकलन के बाद किया जाएगा, जिनमें शामिल हैं:

             सांस फूलना और स्लीप एप्निया

             उच्च ट्राइग्लिसराइड स्तर और अन्य चयापचय विकार

             गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग

             क्रोनिक थकान और जोड़ों का दर्द

 

प्री-क्लिनिकल मोटापा (Pre-Clinical Obesity) :

                   इस नई परिभाषा में "अधिक वजन" शब्द को हटा दिया गया है, और उसकी जगह "प्री-क्लिनिकल मोटापा" की श्रेणी बनाई गई है।

                   इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनके शरीर में अतिरिक्त वसा (Excess Fat) है, लेकिन अभी कोई गंभीर चयापचय विकार या अंग क्षति नहीं दिखी है।

                   कुछ लोगों में यह प्री-क्लिनिकल मोटापा समय के साथ क्लिनिकल मोटापे में बदल सकता है, जबकि कुछ लोग मेटाबॉलिक रूप से स्वस्थ बने रह सकते हैं।

                   इस नई सोच का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अब फोकस उपचार से पहले रोकथाम पर होगा अर्थात् जीवनशैली में बदलाव आहार सुधार और नियमित स्वास्थ्य निगरानी पर ज़्यादा फोकस किया जाएगा।

भारत के संशोधित मोटापा दिशानिर्देश :

भारत ने अपनी आबादी की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप लैंसेट आयोग की सिफारिशों को अपनाया है। वर्गीकरण में अब निम्नलिखित शामिल हैं:

             स्टेज 1 मोटापा - बीएमआई 23 से ऊपर , चयापचय संबंधी विकार

             स्टेज 2 मोटापा - बीएमआई 23 से ऊपर , मोटापे से संबंधित अतिरिक्त स्वास्थ्य जटिलताओं के साथ

हालांकि भारत में बीएमआई अपनी व्यापकता के कारण निदान के लिए प्रवेश बिंदु बना हुआ है , लेकिन अब चिकित्सकों को मोटापे के निदान की पुष्टि करने से पहले कमर की परिधि और कमर-से-ऊंचाई के अनुपात जैसे अतिरिक्त कारकों का आकलन करना आवश्यक हो गया है।

भारत में मोटापा: एक बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता:

एनएफएचएस-5 (2019-21) के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग चार में से एक भारतीय वयस्क मोटापे से ग्रस्त है और यह दर तेज़ी से बढ़ रही है। विश्व मोटापा संघ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बचपन में मोटापे की दर में सबसे तेज़ वार्षिक वृद्धि होती है, पिछले 15 वर्षों में यह दर दोगुनी हो गई है और तीन दशकों में तीन गुनी हो गई है। इस संकट में कई कारक योगदान करते हैं:

      पोषण संबंधी चुनौतियां : विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (2024) रिपोर्ट के अनुसार 55% भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते हैं और 40% को पर्याप्त पोषक तत्वों का सेवन नहीं मिलता है

      अस्वास्थ्यकर आहार : उच्च वसा, उच्च चीनी और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (HFSS और UPF) का बढ़ता सेवन इसका प्रमुख कारण है।

      गतिहीन जीवनशैली : विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 50% भारतीय अनुशंसित (Recommended) शारीरिक गतिविधि स्तर को पूरा करने में विफल रहते हैं

      आनुवंशिक प्रवृत्ति : पतले-मोटे भारतीय परिकल्पना से पता चलता है कि सामान्य बीएमआई के बावजूद कई भारतीयों में शरीर में वसा का प्रतिशत अधिक है, जिससे उनमें मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

      बढ़ता रोग भार : चार में से एक भारतीय वयस्क मधुमेह या प्री-डायबिटिक है , जिसमें मोटापा एक प्रमुख योगदान कारक है।

मोटापे का आर्थिक प्रभाव:

मोटापा सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है; इसके महत्वपूर्ण आर्थिक परिणाम भी हैं।

      2019 में , भारत में मोटापे से संबंधित स्वास्थ्य देखभाल लागत $28.95 बिलियन (जीडीपी का 1.02%) अनुमानित की गई थी

      यदि कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया तो 2030 तक यह बोझ बढ़कर प्रति व्यक्ति 4,700 (जीडीपी का 1.57%) हो जाने की उम्मीद है। इसका आर्थिक प्रभाव स्वास्थ्य देखभाल पर बढ़ते खर्च, उत्पादकता में कमी और मोटापे से संबंधित बीमारियों के बढ़ते प्रसार से उत्पन्न होता है।

भारत में मोटापे से निपटने के उपाय:

भारत में मोटापे की समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति आवश्यक है

1.   जन जागरूकता एवं शिक्षा :

o   मोटापे को दीर्घकालिक बीमारी के रूप में स्वीकार करना, कि केवल एक व्यक्तिगत समस्या के रूप में।

o   मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से इसके संबंध को उजागर करने के लिए सघन जागरूकता अभियान चलाना।

2.   शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देना :

      साइकिल लेन, पार्क और खुले जिम जैसी सुविधाओं का विकास करना।

      कार्यस्थल कल्याण कार्यक्रम के माध्यम से नियमित शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित करना।

3.   अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों का विनियमन :

o    एचएफएसएस (High Fat, Sugar, Salt) और यूपीएफ (Ultra Processed Foods) पर उच्च कर लगाना।

o    फलों और सब्जियों जैसे स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों के लिए सब्सिडी

o    खाद्य उद्योग में नैतिक विपणन प्रथाएँ।

4.   नियमित स्वास्थ्य निगरानी और निवारक देखभाल :

      बीएमआई, कमर परिधि और वसा प्रतिशत की नियमित जांच को बढ़ावा देना।

      लोगों को आदर्श वजन और कमर माप की जानकारी देना।

5.   चिकित्सा हस्तक्षेप :

      मोटापा-रोधी दवाओं के जिम्मेदार उपयोग के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश

      गंभीर मामलों में, डॉक्टरी निगरानी में वजन घटाने की सर्जरी (Bariatric Surgery) की अनुमति देना।

6.   स्कूल-आधारित हस्तक्षेप :

o    स्कूलों में स्वस्थ आहार और व्यायाम को बढ़ावा देना

o    संतुलित पोषण सुनिश्चित करने के लिए कैंटीन भोजन विकल्पों को विनियमित करना

7.   अंतर-मंत्रालयी समन्वय :

o    स्वास्थ्य, वित्त, शिक्षा, कृषि और शहरी नियोजन मंत्रालयों के बीच सहयोग

o    पारंपरिक पोषण कार्यक्रमों के स्थान पर " सुपोषण अभियान" शुरू करना

8.   अनुसंधान एवं साक्ष्य-आधारित नीतियां :

      मोटापे की प्रवृत्तियों पर नियमित महामारी विज्ञान अध्ययन करना।

      स्वास्थ्य कर्मियों को मोटापे की रोकथाम और प्रबंधन पर विशेष प्रशिक्षण देना।

9.   कॉर्पोरेट एवं उद्योग उत्तरदायित्व :

      ऑनलाइन खाद्य वितरण प्लेटफार्मों को स्वास्थ्यप्रद विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करना

      मोटापे के प्रति जागरूकता पहल के लिए सीएसआर निधि का उपयोग करना

निष्कर्ष:

भारत में मोटापा अब केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक तेजी से उभरता सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट बन चुका है। लैंसेट आयोग द्वारा मोटापे की पुनर्परिभाषा इस चुनौती को समझने और प्रबंधित करने की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव है। भारत के संशोधित दिशा-निर्देश वैज्ञानिक और व्यवहारिक दोनों दृष्टिकोणों को मिलाकर एक समग्र ढांचा प्रदान करते हैं, जिससे निदान और उपचार अधिक प्रभावी होगा। हालांकि, मोटापे से लड़ाई केवल चिकित्सा उपचार तक सीमित नहीं हो सकती। इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति, शहरी नियोजन , शिक्षा और कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व  को जोड़ने वाली एक एकीकृत रणनीति की आवश्यकता है।

इसलिए, रोकथाम, प्रभावी उपचार और नीतिगत सुधार को मिलाकर ही भारत मोटापे की इस महामारी पर काबू पा सकता है और अपने नागरिकों के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकता है।

 

मुख्य प्रश्न: भारत में मोटापे को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में पहचाना जा रहा है। भारत में मोटापे की बढ़ती दरों में योगदान देने वाले सामाजिक-आर्थिक और जीवनशैली कारकों पर चर्चा करें। इस बढ़ती चिंता को दूर करने के लिए क्या नीतिगत उपाय किए जा सकते हैं?