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Daily-current-affairs / 08 Sep 2022

भारत की पवन ऊर्जा क्षमता को साकार करना - समसामयिकी लेख

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कीवर्ड्स: भारत में पवन ऊर्जा, अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता, पवन ऊर्जा में चुनौतियां, पवन ऊर्जा में निवेश, कैप्टिव पवन ऊर्जा संयंत्र

संदर्भ:

भारत सरकार और उसकी एजेंसियां अभी तक अप्रयुक्त अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता का दोहन करने के लिए प्रयासरत हैं जबकि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) गुजरात तट पर 5 मेगावाट का एक कैप्टिव प्लांट स्थापित करने के लिए तैयार है।

पृष्ठभूमि :

  • पवन ऊर्जा योजना को क्रियान्वित करने के लिए आरआईएल की सहायक कंपनी रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड ने डेनिश ग्रीन एनर्जी विशेषज्ञ कंपनी के साथ करार किया है जो पहले से ही अपतटीय पवन ऊर्जा में काम कर रही है।
  • इस कदम के साथ आरआईएल अक्षय ऊर्जा में संपूर्ण मूल्य श्रृंखला - सौर फोटोवोल्टिक के निर्माण से लेकर पवन टरबाइन तक, सौर ऊर्जा जनरेटर के लिए विशेष सॉफ्टवेयर तक में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
  • दुर्भाग्य से सरकार इस तरह के कार्यान्वयन और निष्पादन की में अत्यंत मंद गति से कार्य कर रही है। यदयपि सरकार अक्षय ऊर्जा महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रही है परन्तु जमीनी स्तर पर सरकार अक्षय ऊर्जा के समक्ष आने वाले बाधाओं को दूर करने में विफल रही है।

पवन ऊर्जा के विषय में :-

  • वायु के गति का उपयोग कर गतिज ऊर्जा से बिजली उत्पन्न करने की प्रक्रिया पवन ऊर्जा है
  • पवन टरबाइन या पवन ऊर्जा रूपांतरण प्रणाली का उपयोग पवन गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए किया जाता है।
  • हवा पहले टर्बाइन के ब्लेड से टकराती है, जिससे वे घुमाते हैं और उनसे जुड़े टर्बाइन को घुमाते हैं।
  • यह गतिज ऊर्जा को घूर्णन ऊर्जा में परिवर्तित कर , एक शाफ्ट को स्थानांतरित करके जो एक जनरेटर से जुड़ा होता है, और इस तरह विद्युत चुंबकत्व के माध्यम से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करता है।
  • घरों, व्यवसायों, स्कूलों आदि को बिजली ट्रांसमिशन और वितरण लाइनों के माध्यम से भेजी जाती है।
  • पवन से प्राप्त की जा सकने वाली बिजली की मात्रा टरबाइन के आकार और उसके ब्लेड की लंबाई पर निर्भर करती है।

पवन ऊर्जा के प्रकार

  • तटवर्ती पवन ऊर्जा
  • यह भूमि पर स्थित पवन टर्बाइनों के बड़े प्रतिष्ठानों के माध्यम से उत्पन्न होता है।

  • अपतटीय पवन ऊर्जा
  • यह जल निकायों के अंदर पवन टर्बाइनो को स्थापित करने से उत्पन्न होता है यथा - फिक्स्ड-फाउंडेशन टर्बाइन या फ्लोटिंग विंड टर्बाइन।
  • ये विद्युत् उत्पन्न करने के लिए समुद्री हवाओं का उपयोग करते हैं

पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल

राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति:

  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए एक ढांचा प्रदान करना है।
  • इसका उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, पारेषण अवसंरचना और भूमि का इष्टतम और कुशल उपयोग करना है।

राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति:

  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अक्टूबर 2015 में अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में 7,516.6 किमी की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करना था।

भारत में पवन ऊर्जा की संभावना का आकलन

  • राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान ने देश की लगभग 748 गीगावाट की सौर क्षमता का आकलन किया है ;तथा यह भी बताया है कि लगभग 3 प्रतिशत बंजर भूमि को सौर पीवी मॉड्यूल द्वारा कवर किया जा सकता है।
  • इसके अलावा राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान, जमीन से 100 मीटर की ऊंचाई पर हब की ऊंचाई पर 302 गीगावाट की कुल पवन ऊर्जा क्षमता का अनुमान लगाता है।
  • 120 मीटर की ऊंचाई पर हब की ऊंचाई पर यह दोगुना से अधिक 695 GW से अधिक हो गया है।
  • हब ऊंचाई: ऊंचाई जहां पवन टरबाइन का केंद्र टावर के शीर्ष पर बैठता है
  • वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद के अनुसार भारत में 174 गीगावाट अपतटीय पवन संसाधनों की क्षमता है जो गुजरात और तमिलनाडु तटों पर केंद्रित है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा अभी-अभी शुरू हुई है क्योंकि सरकार का लक्ष्य इस वर्ष 4GW क्षमता के लिए निविदाएं आमंत्रित करना है।

भारत में अक्षय ऊर्जा

जून 2022 तक नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री के अनुसार

  • भारत की सभी स्रोतों (बड़े जलविद्युत को छोड़कर) से अक्षय ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 114.07 गीगावाट (GW) थी।
  • विभिन्न चरणों में 60.66 गीगावाट की क्षमता का कार्यान्वयन हो रहा है।
  • 23.14 गीगावाट क्षमता हेतु निविदा पर कार्य किया जा रहा है।
  • यदि इस वर्ष के भीतर कार्यान्वयन के तहत परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं, तो भारत 2022 के अंत तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा।

विश्व में, नवीकरणीय ऊर्जा के विभिन्न क्षेत्रको में में भारत का स्थान इस प्रकार है:

  • पवन ऊर्जा में चौथा
  • सौर ऊर्जा में पांचवां
  • अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता में चौथा।

पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने में चुनौतियां

भूमि अधिग्रहण कानून के अभाव में भूमि अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती है।

  • संसाधन क्षमता की एकाग्रता के कारण वर्तमान और भविष्य की अधिकांश परियोजनाएं कन्याकुमारी-तिरुनेलवेली-तूतीकोरिन बेल्ट के आसपास और तमिलनाडु की तरफ पालघाट दर्रे के नीचे तक सीमित हैं ।
  • यह स्थितियां पवन ऊर्जा में बिजली परियोजनाओं के लिए भूमि लागत को बढ़ादेती है जिससे भूमि की लागत पवन ऊर्जा परियोजना का सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध हुई हैं।
  • उत्पन्न विद्युत् का वितरण एक अन्य बड़ी समस्या है क्योंकि भारत के अधिकांश नवीकरणीय प्रतिष्ठान तमिलनाडु और गुजरात में कुछ सबस्टेशनों के आसपास घनीभूत हैं, जिनका उपयोग विद्युत् के इवैक्युएशन के काम आते हैं।
  • पारेषण और ग्रिड क्षमता में दशकों से कम निवेश के कारण कई परियोजनाएं रद्द कर दी गई हैं।
  • पवन ऊर्जा की प्रक्रिया पौधे ,स्थानीय वन्यजीवों को प्रभावित कर सकते हैं उदाहरण- टरबाइन ब्लेड में उड़कर पक्षी मारे गए हैं।

परियोजनाओं के वित्तपोषण की आवश्यकता है

  • इन परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण सहज नहीं है क्योंकि अक्षय परियोजनाओं का वित्तपोषण 'उत्पादन के भुगतान' के आधार पर किया जाता है।अतः अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पन्न विद्युत् के विद्युत् खरीद समझौतों (पीपीए) के साथ केंद्र समर्थित परियोजनाओं को तो वित्तपोषित किया जाता है परन्तु स्वतंत्र और राज्य स्तर की परियोजनाओं के लिए धन जुटाना मुश्किल होता है।
  • भारत के लंबे समय से घाटे में चल रही डिस्कॉम द्वारा ऋणदाताओं को भुगतान में देरी एक और समस्या है।
  • क्रिसिल के एक अनुमान के अनुसार, अक्षय ऊर्जा उत्पादकों की औसत प्राप्य राशि मार्च 2022 तक 180 दिन थी।
  • चालू वित्त वर्ष के अंत तक इसके घटकर 140 दिन होने की उम्मीद है क्योंकि केंद्र सरकार डिस्कॉम की मदद कर रही है।
  • राज्यों से निवेश और पहल की कमी ने परियोजनाओं में देरी की है और उपलब्ध क्षमता का कम उपयोग किया है।

आगे की राह

  • राज्यों को अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
  • तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों ( जिनमें उच्च सौर और पवन क्षमता है) में इन अक्षय ऊर्जा स्रोतों को आवशयक प्राकृतिक संसाधन (जैसे कोयला या तेल) के रूप में मानने की आवश्यकता है।
  • उच्च क्षमता वाले राज्यों को 'व्यापारी उत्पादक' मानसिकता स्वीकारने की आवश्यकता है तथा यहाँ अक्षय ऊर्जा को उत्पाद और राजस्व स्रोत के रूप में देखा जाना चाहिए।
  • जहां मांग निहित है वहां बिजली को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए ग्रिड और पारेषण क्षमता में अधिक निवेश, राज्य की अर्थव्यवस्थाओं को बदल सकता है।
  • कर को कम किया जाना चाहिए।
  • भारत में, जीएसटी कानून बिजली और बिजली की बिक्री को जीएसटी से छूट देता है।
  • इसके विपरीत, पवन ऊर्जा उत्पादन कंपनियां परियोजना की स्थापना के लिए वस्तुओं और/या सेवाओं की खरीद के लिए जीएसटी का भुगतान करते समय इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं कर सकती हैं।

निष्कर्ष

  • पवन आधारित उत्पादन क्षमता में वृद्धि को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए, नीति निर्माताओं को भूमि आवंटन और ग्रिड कनेक्शन परियोजनाओं सहित परमिट देने की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
  • इसलिए पवन ऊर्जा उत्पादन में सरकारी नीतियों पर फिर से विचार करने की तत्काल आवश्यकता है जिससे भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता को अधिकतम करने के लिए निजी क्षेत्रक के साथ तालमेल बिठाकर परियोजनाओं को पूर्व नियोजित, कुशल और समयबद्ध तरीके से स्थापित किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू बिजनेस लाइन

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2:
  • बुनियादी ढांचा: ऊर्जा, बंदरगाह, सड़कें, हवाई अड्डे, रेलवे आदि, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, जुटाने, संसाधनों, विकास, विकास और रोजगार से संबंधित मुद्दे।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र के समक्ष चुनौतियों का उल्लेख कीजिए और भारत की पवन ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के उपाय सुझाइए। भारत में तटवर्ती और अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता की वर्तमान स्थिति पर भी चर्चा कीजिए। 

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