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Daily-current-affairs / 07 May 2024

नस्लीय पूर्वाग्रह का मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान संबंधी आधार - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -

  • आधुनिक आनुवंशिकी (Genetics) के अनुसार सभी इंसान मूल रूप से एक जैसे हैं। इसके बावजूद अलग-अलग संस्कृतियों और समाजों के लोग एक-दूसरे को कमतर समझते रहे हैं। आधुनिक मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience) के क्षेत्र में लगातार ये शोध हो रहा है कि ऐसा क्यों होता है।

अंतर्निहित पूर्वाग्रह

  • मानव जाति की समानता विज्ञान द्वारा समर्थित है, लेकिन फिर भी मानव मन में दूसरों के प्रति पूर्वाग्रह विद्यमान हैं। ये पूर्वाग्रह अलग-अलग नस्ल और सामाजिक समूहों के लोगों के प्रति हमारी सोच और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। "इम्प्लिसिट एसोसिएशन टेस्ट" (आईएटी) जैसे मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि लोग सीधे तौर पर समानता की बात तो करते हैं, लेकिन अंदरूनी रूप से सामाजिक रूप से मजबूत समूहों के पक्ष में झुकाव रखते हैं। ध्यातव्य है कि आईएटी शब्दों और विचारों को जोड़ने में लगने वाले समय को मापता है।
  • हाल ही में हुए एक अध्ययन में 60,000 से अधिक लोगों की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है। इससे पता चला है कि हमारी जागरूक सोच के उलट हमारे अवचेतन में किसी खास तरह की सोच हो सकती है। यह विरोधाभास मानवीय सोच की जटिलता को दर्शाता है और यह बताता है कि पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए सूक्ष्म तरीकों की आवश्यकता है।
  •  अंतर्निहित पूर्वाग्रह कैसे बनते और मजबूत होते हैं, इस पर और शोध की आवश्यकता है। इससे ऐसे तरीके खोजे जा सकते हैं, जिनकी मदद से फैसलों और सामाजिक व्यवहार पर इन पूर्वाग्रहों को कम किया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका-विज्ञानी मस्तिष्क में पूर्वाग्रहों के बनने की प्रक्रिया को समझ कर ऐसे उपाय सुझा सकते हैं, जिनसे समाज में सभी लोगों के लिए समान व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सके। 

समूह पूर्वाग्रह का बदलता स्वरूप

  • मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस के शोध बताते हैं, कि हमारा मस्तिष्क लोगों को "अपने" और "दूसरों" में बांटने का काम करता है। ये विभाजन सामाजिक पहचान और बाहरी समूहों से अलग दिखने वाले पहलुओं से प्रभावित होता है।  "फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी" नामक पत्रिका में छपे अध्ययन में पाया गया कि लोगों का ध्यान उनके समूह की पहचान के अलग-अलग पहलुओं पर केंद्रित करने से उनके पूर्वाग्रहों में बदलाव आता है। उदाहरण के लिए, शोधकर्ताओं ने लोगों की जाति या उम्र जैसे पहलुओं को उजागर करके दिखाया है कि किसी व्यक्ति की पसंद और पूर्वाग्रह बदल सकते हैं।
  • इसी तरह, न्यूरोइमेजिंग तकनीकें भी हमें यह समझने में मदद करती हैं, कि समूह के पूर्वाग्रह कैसे बदलते हैं। शोधकर्ता मस्तिष्क के उन हिस्सों का अध्ययन करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं, कि सामाजिक सोच और निर्णय लेने से जुड़े ये हिस्से किस तरह समूहों के बीच रवैये और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
  • समूह पूर्वाग्रहों के इस गतिशील स्वरूप को समझना समूहों के बीच सहयोग बढ़ाने और पूर्वाग्रह तथा भेदभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोगों में सामाजिक पहचानों के बदलते स्वरूप के प्रति जागरूकता बढ़ाकर और समूहों के बीच सहानुभूति समझ को प्रोत्साहित करके हस्तक्षेप कार्यक्रमों के जरिए विभाजन को कम किया जा सकता है और सामाजिक एकजुटता को बढ़ाया जा सकता है।

पूर्वाग्रह का न्यूरोबायोलॉजिकल आधार

  •  मस्तिष्क की इमेजिंग जांचों ने पूर्वाग्रह के पीछे के तंत्रों को उजागर किया है। इनमें मस्तिष्क का वो हिस्सा (एमिग्डाला) भी शामिल है, जो खतरे को पहचानता है और डर पैदा करता है। इन अध्ययनों में पाया गया है कि बाहरी समूह के लोगों को देखते वक्त एमिग्डाला ज्यादा सक्रिय हो जाता है, इससे यह पता चलता है कि पूर्वाग्रह का एक जैविक आधार भी होता है।
  • साथ ही, सुलह-समझौता करने वाली बातों को सुनते समय दिमाग के कॉर्टेक्स (बाहरी हिस्सा) का सक्रिय होना इस बात का संकेत देता है कि दिमाग भावनाओं और आवेगों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। इससे पता चलता है कि मानव मस्तिष्क में पूर्वाग्रह संबंधी काफी जटिल प्रक्रिया है। पूर्वाग्रह को समझने के लिए जीव विज्ञान और संस्कृति के आपसी प्रभाव को समझना जरूरी है।
  • पूर्वाग्रह के न्यूरोबायोलॉजिकल आधार को समझने से हम पूर्वाग्रह कम करने और समाज में सद्भाव बढ़ाने के उपाय खोज सकते हैं। शोधकर्ता खतरे को पहचानने और भावनाओं को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के हिस्सों को लक्षित करके रणनीति बना सकते हैं। इससे हम निर्णय लेने की प्रक्रिया में पूर्वाग्रह के प्रभाव को कम कर सकते हैं, और सामाजिक व्यवहार को अधिक न्यायपूर्ण बना सकते हैं।

सीखी हुई धारणाएं और उन्हें खत्म करना

  •  हमारा दिमाग आसपास के माहौल और समाज से सीखते हुए कुछ चीजों को सच मान लेता हैं, भले ही वे पूरी तरह सही हों। उदाहरण के लिए, बचपन से किसी खास समुदाय के बारे में सुनना उनके प्रति गलत धारणाएं बना सकता है।
  • हालांकि, इन धारणाओं को बदला जा सकता है। अलग-अलग तरह के लोगों से मिलना, उनकी कहानियां सुनना और उनके नजरिए को समझने से हमारी सोच में बदलाव सकता है।
  • इसीलिए विविधता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा और समाजिक कार्यक्रम जरूरी हैं। ये कार्यक्रम हमें दूसरों के नजरिए से सोचने और सहानुभूति रखने की सीख देते हैं, इससे समाज में समानता लाने में मदद मिलती है।

सुलह के निहितार्थ

  • समाज में सामंजस्य स्थापित करने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए पूर्वाग्रह के पीछे के कारणों को समझना महत्वपूर्ण है। यदि हम पूर्वाग्रह को जन्म देने वाली मनोवैज्ञानिक और जैविक प्रक्रियाओं को समझते हैं, तो हम विभिन्न समुदायों के बीच सहानुभूति और सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं। इससे समाज में विभाजन कम करने और आपसी सम्मान एवं सहयोग को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष

  • निष्कर्ष के तौर पर, पूर्वाग्रह एक जटिल और बहुआयामी परिघटना है जो जीव विज्ञान और संस्कृति दोनों में निहित है। इसके अंतर्निहित तंत्रों और गतिकी को समझना इसके प्रभावों को कम करने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी रणनीतियों को विकसित करने के लिए आवश्यक है। अंतःविषय अनुसंधान और लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से, समाज अधिक समान और समावेशी भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    न्यूरोबायोलॉजिकल और संज्ञानात्मक तंत्र मानव संज्ञान में निहित पूर्वाग्रह और इन-ग्रुप प्राथमिकताओं को आकार देने के लिए कैसे परस्पर क्रिया करते हैं? ( 10 Marks, 150 Words)

2.    सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देने और विविध समाजों में पूर्वाग्रह को कम करने के उद्देश्य से हस्तक्षेपों के लिए पूर्वाग्रह पर तंत्रिका वैज्ञानिक अनुसंधान के क्या निहितार्थ हैं? ( 15 marks, 250 words) 

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