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Daily-current-affairs / 20 Nov 2024

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस): भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए एक आवश्यक साधन -डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण सरकारी तंत्र है। यह 813.5 मिलियन से अधिक लोगों को खाद्यान्न प्रदान करता है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य वितरण कार्यक्रम बन जाता है। पीडीएस का मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है, ताकि भूख और कुपोषण जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सके।

ऐतिहासिक संदर्भ और विकास:

पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई थी, जब खाद्य आपूर्ति में कमी थी और सरकार ने खाद्य नियंत्रण तंत्र लागू किया था। 1943 के बंगाल के अकाल ने औपचारिक खाद्य वितरण प्रणाली की आवश्यकता को उजागर किया। 1992 में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आरपीडीएस) को शुरू किया गया, जिसने दूरदराज के क्षेत्रों में खाद्य वितरण को प्राथमिकता दी। फिर, 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) लागू की गई, जो विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों को लक्षित करती थी। 2013 में, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) ने खाद्य कवरेज को और विस्तार दिया और इसे आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए कानूनी अधिकार बना दिया।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के उद्देश्य:
पीडीएस के प्राथमिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

·        किफायती मूल्य पर आवश्यक खाद्य वस्तुएं उपलब्ध कराना: इसका मुख्य उद्देश्य कमजोर वर्गों की खाद्य असुरक्षा को कम करना है।

·        कीमतों में स्थिरता: सार्वजनिक वितरण प्रणाली आवश्यक खाद्य वस्तुओं के बाजार मूल्य को नियंत्रित करने में मदद करती है, जिससे मूल्य स्थिरता सुनिश्चित होती है।

·        जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकना: पीडीएस खाद्यान्न की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करके बाजार में कालाबाजारी को रोकता है।

·        भूख और कुपोषण को समाप्त करना: इसका लक्ष्य विशेष रूप से वंचित समुदायों में खाद्य असुरक्षा से निपटना है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कार्यकरण:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली चार प्रमुख चरणों में संचालित होती है: खरीद, भंडारण, आवंटन और वितरण।

1.     खाद्यान्न की खरीद
सरकार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के माध्यम से किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खाद्यान्न खरीदती है। यह प्रक्रिया बाजार की कीमतों को स्थिर रखने और खाद्य आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद करती है, खासकर आपातकालीन स्थितियों में। हालांकि, खुली खरीद नीति के तहत अधिशेष स्टॉक के कारण कभी-कभी मूल्य विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं।

2.     खाद्यान्न का भंडारण
खरीद के बाद, खाद्यान्न को एफसीआई द्वारा गोदामों में संग्रहीत किया जाता है। भंडारण एक महत्वपूर्ण कार्य है, लेकिन अपर्याप्त क्षमता और अनुचित भंडारण विधियों जैसी चुनौतियां खाद्यान्न के खराब होने या बर्बाद होने का कारण बन जाती हैं। अकुशल भंडारण प्रबंधन के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण नुकसान हो जाता है।

3.     खाद्यान्न का आवंटन
केंद्र सरकार राज्यों को खाद्यान्न आवंटित करती है, जो फिर उचित मूल्य की दुकानों (एफपीएस) के माध्यम से पात्र लाभार्थियों को वितरित करते हैं। आवंटन राज्य सरकारों द्वारा पहचाने गए लाभार्थियों की संख्या पर निर्भर करता है। बीपीएल परिवारों की गलत पहचान जैसे मुद्दे खाद्य वितरण में अक्षमता पैदा करते हैं।

4.     परिवहन और वितरण
एफसीआई अनाज के अंतरराज्यीय परिवहन को संभालता है, जबकि राज्य सरकारें एफपीएस के माध्यम से उपभोक्ताओं तक अनाज पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। हालांकि, परिवहन के दौरान अनाज का रिसाव और डायवर्जन जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जिससे प्रणाली की दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) का महत्व:

टीपीडीएस का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) श्रेणी के परिवारों को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध हो। यह लक्षित दृष्टिकोण समाज के सबसे कमजोर वर्गों को सब्सिडी देने में मदद करता है। 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) ने भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी तक पीडीएस के कवरेज का विस्तार किया, जिससे उनके लिए भोजन एक कानूनी अधिकार बन गया। एनएफएसए के तहत, 75 % ग्रामीण और 50% शहरी आबादी सब्सिडी वाले भोजन के लिए पात्र हैं।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के समक्ष चुनौतियाँ:
अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

1.     रिसाव और भ्रष्टाचार
पीडीएस में रिसाव एक गंभीर समस्या है। गरीबों के लिए आवंटित खाद्यान्न दूसरे के हाथ में चला जाता है या खुले बाजार में बेच दिया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, आवंटित अनाज का लगभग 28% हिस्सा इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है, जिससे 69,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है। फर्जी राशन कार्ड सहित वितरण प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।

2.     लाभार्थी पहचान में अकुशलता
सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिए पात्र लाभार्थियों की पहचान में खामियाँ हैं। वर्गीकरण में त्रुटियाँ और बीपीएल पहचान में धोखाधड़ी के कारण अक्षमताएँ उत्पन्न हुई हैं। कुछ गैर-ज़रूरतमंद परिवारों को लाभ मिला है, जबकि ज़रूरतमंद परिवारों तक अनाज नहीं पहुचा  है।

3.     अपर्याप्त भंडारण और बुनियादी ढांचा
एफसीआई की भंडारण क्षमता अपर्याप्त है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्यान्न खराब हो जाता है। इसके अतिरिक्त, परिवहन बुनियादी ढांचा भी हमेशा विश्वसनीय नहीं होता है, जिससे अनाज की हानि और डायवर्सन की समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

4.     क्षेत्रीय असमानताएँ
पीडीएस की प्रभावशीलता राज्यों के हिसाब से अलग-अलग है। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने अपनी व्यवस्थाओं में सुधार किया है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों को कम डिजिटलीकरण और अन्य बुनियादी ढांचे की समस्याओं के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार:

·        आधार लिंकिंग और डिजिटलीकरण: पीडीएस को आधार से जोड़ने से धोखाधड़ी को कम करने में मदद मिली है और यह सुनिश्चित किया गया है कि खाद्यान्न सही लाभार्थियों तक पहुंचे। अभिलेखों का डिजिटलीकरण पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार करता है।

·        प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी): डीबीटी योजना के तहत लाभार्थियों को सीधे नकद हस्तांतरण किया जाता है, जिससे उन्हें किसी भी बाजार से खाद्यान्न खरीदने की स्वतंत्रता मिलती है। यह प्रणाली लीकेज और भ्रष्टाचार को कम करने में मदद करती है।

·        एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड: इस पहल से लाभार्थियों को देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा मिलती है, जिससे पोर्टेबिलिटी में वृद्धि होती है और प्रवासी श्रमिकों के लिए पहुंच सुनिश्चित होती है।

·        उचित मूल्य की दुकानों का कम्प्यूटरीकरण: उचित मूल्य की दुकानों में पॉइंट ऑफ सेल (PoS) मशीनों की शुरुआत से अनाज वितरण स्वचालित हो गया है और रिकॉर्ड-कीपिंग में सुधार हुआ है। इससे पारदर्शिता में वृद्धि हुई है और गलतियाँ कम हुई हैं।

·        खाद्य कूपन प्रणाली: कुछ राज्यों में खाद्य कूपन की शुरुआत की गई है, जिनका उपयोग  बुनियादी अनाज के बजाय विभिन्न प्रकार के पौष्टिक खाद्य पदार्थों को खरीदने के लिए किया जा सकता है। यह मॉडल लाभार्थियों के लिए अधिक विविध और पौष्टिक आहार सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भारत की खाद्य सुरक्षा रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो वंचित और कमजोर वर्गों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्रदान करती है। इसका उद्देश्य भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा से निपटना है। हालांकि, इसके संचालन में लीकेज, लाभार्थियों की पहचान में गलतियाँ और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसी चुनौतियाँ हैं, फिर भी आधार लिंकिंग, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) और 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड' जैसे सुधारों ने पारदर्शिता और दक्षता में सुधार किया है। इन सुधारों ने खाद्यान्न वितरण को विश्वसनीय और सुगम बनाया है, लेकिन पीडीएस को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए और सुधारों की आवश्यकता है। सही तरीके से लागू किए गए सुधार पीडीएस को भारत में खाद्य सुरक्षा और कुपोषण में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

"महत्वपूर्ण सुधारों के बावजूद, भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) कार्यप्रणाली में रिसाव और भ्रष्टाचार प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं।इस कथन के प्रकाश में, पी.डी.एस. में अक्षमताओं को कम करने पर डिजिटलीकरण और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डी.बी.टी.) के प्रभाव का मूल्यांकन करें।