संदर्भ
आबादी की स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं और विभिन्न सामाजिक समूहों में यह काफी भिन्न हो सकती हैं। इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियाँ तैयार की जाती हैं। इन ज़रूरतों में वे ज़रूरतें शामिल हैं जो व्यक्तियों द्वारा सीधे अनुभव की जाती हैं (महसूस की गई ज़रूरतें) और वे ज़रूरतें विशेषज्ञों द्वारा पहचानी जाती है। हाल के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य पर इसकी धीमी अनुक्रियाशील ने इसे आलोचना योग्य बना दिया हैं।
अवलोकन
- 2024 के बजट में भारत का स्वास्थ्य व्यय 1.4% से बढ़कर 1.9% हो गया है, परंतु अन्य देशों के तुलना करने पर यह काफी कम मालूम पड़ता हैं जैसे की - 2021 में भूटान का स्वास्थ्य पर खर्च भारत के मुकाबले 2.5 गुना ज़्यादा था जबकि श्रीलंका का तीन गुना ज़्यादा था। कई ब्रिक्स देशों (पुरानी सूची) ने भारत की तुलना में 14-15 गुना अधिक खर्च किया था।
- भारत में चिकित्सा मुद्रास्फीति की दर सबसे अधिक 14% है, उसके बाद चीन (12%), इंडोनेशिया (10%), वियतनाम (10%) और फिलीपींस (9%) का स्थान है।
- देश के 58% अस्पताल निजी क्षेत्र में हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 70% परिवारों और ग्रामीण क्षेत्रों में 63% परिवारों के लिए निजी चिकित्सा क्षेत्र स्वास्थ्य देखभाल का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य की आवश्यकताएँ क्यों?
गरीबी से व्युत्पन्न रोग के कारण
- गरीबी एवं गंदगी से तपेदिक, मलेरिया, कुपोषण, मातृ मृत्यु एवं भोजन और पानी से होने वाले संक्रमण (जैसे, टाइफाइड, हेपेटाइटिस, डायरिया रोग) जैसे रोग होते हैं।
- मुख्य रूप से ये रोग गरीब और कमजोर लोगों को प्रभावित करते हैं।
- इन मुद्दों को संबोधित करने में आजीविका चुनौति एवं सरकार के मदद की नितांत आवश्यकता हो जाती हैं।
मध्यम वर्ग संबंधी मुद्दे
- पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित समस्याएँ, जिनमें वायु और जल प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन, अपर्याप्त जल निकासी और असुरक्षित भोजन और भोजनालय शामिल हैं।
- अन्य चिंताओं में सड़क यातायात दुर्घटनाएँ, जलवायु परिवर्तन और पुरानी बीमारियाँ शामिल हैं।
- ये मुद्दे गरीबों को भी प्रभावित करते हैं, लेकिन इन्हें उतनी प्राथमिकता नहीं दी जा सकती।
उपचारात्मक देखभाल संबंधी ज़रूरतें
- प्राथमिक देखभाल: सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों द्वारा गरीबों के लिए सबसे सस्ती और सुलभ उपचरात्मक देखभाल संभव हो सकता है।
- द्वितीयक देखभाल: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और स्वास्थ्य पेशेवरों की लगातार उपेक्षा किया जाना, एक समस्या बनी हुई है।
- तृतीयक देखभाल: आयुष्मान भारत के तहत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) का संबोधन किया जाना, काफी मददगार साबित हो रहा हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों का ऐतिहासिक संदर्भ
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (2005): इसका उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करना था, जो 2002 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति से अलग था, जिसने मुख्य तौर पर व्यावसायीकरण को बढ़ावा दिया।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (2013): प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में सुधार लाने, और इसके अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में विश्वास बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- बुनियादी ढांचे में वृद्धि: उप-केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) की संख्या में वृद्धि हुई हैं।
- फोकस में बदलाव (2018 के बाद): आयुष्मान भारत के तहत PMJAY जैसी सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं (PFHI) पर जोर दिया गया।
निजी स्वास्थ्य सेवा
PFHI योजनाओं का सीमित कवरेज
- भारत की स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ, जैसे PMJAY, केवल अस्पताल में भर्ती होने के खर्चों को कवर करती हैं, सभी स्वास्थ्य देखभाल लागतों को नहीं।
- महामारी विज्ञान के आंकड़ों के आधार पर, पीएमजेएवाई में 12 करोड़ परिवारों के नामांकन के साथ, केवल लगभग 2.5 करोड़ लोगों को सालाना अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।
निजी क्षेत्र को आउटसोर्सिंग
- सरकार माध्यमिक और तृतीयक देखभाल सेवाओं को बाजार दरों पर निजी प्रदाताओं से आउटसोर्स करती है।
- यह आउटसोर्सिंग माध्यमिक और तृतीयक सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करने में विफलता को इंगित करती है।
- अंत: सरकारी योजनाओं से आच्छादित नहीं होने वाली 100 करोड़ आबादी महंगी, व्यावसायिक चिकित्सा देखभाल की तलाश करने के लिए मजबूर है।
निजी क्षेत्र पर प्रभाव
- निजी अस्पताल बाजार पर हावी हैं, जो बाजार दरों पर सेवाएं प्रदान करते हैं
- सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य देखभाल को कमजोर करके, निजी अस्पताल यह सुनिश्चित करते हैं कि आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनकी सेवाओं पर निर्भर है।
स्वास्थ्य केंद्रों में परिवर्तन की जरूरत
- फरवरी 2018 में, उप-केन्द्रों के रूप में PHCs, CHCs और HWCs के रूप में 1,50,000 नए संस्थानों की स्थापना का दावा किया गया। हालांकि इनमें से कई पहले से ही अस्तित्व में थे (RHS 2015)।
- सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी, जिन्हें न्यूनतम प्रशिक्षण प्राप्त होता है, उनसे उपचारात्मक देखभाल प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है, जिससे इन केन्द्रों की भूमिका बुनियादी उपचारों तक सीमित हो जाती है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के खतरे
विविध सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ
भारत विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे
- संक्रामक रोग:
- तपेदिक, मलेरिया और अन्य वेक्टर जनित रोग।
- टाइफाइड, हेपेटाइटिस और डायरिया जैसी खाद्य और जल जनित बीमारियाँ।
- क्रोनिक गैर-संचारी रोग (एनसीडी)
- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी रोग और कैंसर।
- जीवनशैली से जुड़ी स्थितियों का बढ़ता प्रचलन।
स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में असमानताएँ।
- कम सुविधा वाले क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य अवसंरचना।
स्वास्थ्य वित्तपोषण और बीमा
- सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए सीमित कवरेज और अपर्याप्त निधि।
- चिकित्सा देखभाल के लिए उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय।
उभरती और फिर से उभरती बीमारियाँ
- कोविड-19 और अन्य उभरते संक्रमणों जैसी बीमारियों से खतरा।
- प्रकोपों के प्रबंधन और नियंत्रण में चुनौतियाँ।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ
- सीमित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के साथ मानसिक स्वास्थ्य विकारों का बढ़ता प्रचलन।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के बारे में कलंक और जागरूकता की कमी।
स्वास्थ्य असमानताएँ
- स्वास्थ्य परिणामों को प्रभावित करने वाली सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक असमानताएँ।
- हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए देखभाल तक पहुँचने में बाधाएँ।
कमज़ोर और ग़रीबों की ज़रूरतें
- कमज़ोर और ग़रीब आबादी के लिए, बुनियादी प्राथमिक और द्वितीयक उपचारात्मक देखभाल ज़रूरी है।
- जब बुनियादी आजीविका सुरक्षित नहीं होती है, तो रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्धन गौण हो जाता है।
स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में विश्वास की कमी
विश्वास के मुद्दे निम्न कारणों से उत्पन्न होते हैं:
- निजी क्षेत्र: वाणिज्यिक हितों से प्रेरित।
- सार्वजनिक क्षेत्र: भीड़भाड़ और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा।
- व्यवस्था को कमज़ोर करने में सरकार की भूमिका
- सरकार द्वितीयक और तृतीयक सार्वजनिक क्षेत्र की देखभाल को मज़बूत करने में विफल रही है।
- निजी क्षेत्र के विस्तार को प्राथमिकता दी जा रही है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों का कमजोर होना।
- भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए आवश्यक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को अब उपचारात्मक देखभाल केंद्रों के रूप में पुनः उपयोग में लाया जा रहा है।
- यह बदलाव स्वास्थ्य कार्यक्रमों में उनकी मूल भूमिका और जमीनी स्तर की स्वास्थ्य देखभाल से उनके जुड़ाव को कमज़ोर करता है।
निष्कर्ष
भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र गंभीर नीतिगत समस्या का सामना कर रहा है, जिसकी पहचान सार्वजनिक क्षेत्र के भीतर माध्यमिक और तृतीयक देखभाल सुविधाओं को मजबूत करने में महत्वपूर्ण निवेश की कमी से होती है। उपचारात्मक देखभाल के लिए निजी क्षेत्र पर सरकार की निर्भरता इस मुद्दे को और बढ़ा देती है, जिससे कई लोगों को अपनी जेब से ज़्यादा खर्च उठाना पड़ता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कमज़ोर हो जाती है। इसके अतिरिक्त, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों को उपचारात्मक देखभाल प्रदाताओं में बदलने से निवारक और प्रोत्साहन सेवाएँ देने में उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है। PMJAY जैसी सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ, जो केवल अस्पताल में भर्ती होने को कवर करती हैं, स्वास्थ्य आवश्यकताओं के व्यापक स्पेक्ट्रम को संबोधित करने में विफल रहती हैं। नीतियों का यह गलत संरेखण, सार्वजनिक सुविधाओं की अक्षमताओं और निजी देखभाल की व्यावसायिक प्रेरणाओं के कारण जनता के विश्वास के क्षरण के साथ मिलकर एक खंडित और अप्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का परिणाम है जो आबादी की व्यापक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्ष करती है।
यूपीएससी मेन्स के लिए संभावित प्रश्न 1. भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार पर हाल के नीतिगत उपायों के प्रभाव का मूल्यांकन करें। इन चुनौतियों का समाधान करने में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की भूमिका पर चर्चा करें और अधिक प्रभावी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए संभावित सुधारों का सुझाव दें।" 250 शब्द 2. उपयुक्त उदाहरणों के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार के प्रयासों की व्याख्या करें। 150 शब्द |
स्रोत: द हिंदू