तारीख Date : 21/11/2023
प्रासंगिकता :जीएस पेपर 3 - पर्यावरण
की-वर्ड: जैव ईंधन उत्पादन, पैलेटाइजेशन (Palletisation), डीबीटी, बायो सीएनजी, सर्कुलर इकोनॉमी, चावल की सीधी बुआई (डीएसआर) तकनीक
संदर्भ-
कृषि में प्रचलित प्रथा; पराली जलाना, पिछले कुछ दशकों से लगातार बढ़ी है, जिससे कई पर्यावरणीय और स्वास्थ्य चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। इस लेख में, मुख्य रूप से हम पराली जलाने के मूल कारणों और इसके व्यापक परिणामों पर चर्चा कर रहे हैं, साथ ही इस हानिकारक कृषि पद्धति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से एक बहुआयामी योजना का सुझाव भी दे रहे हैं।
पराली जलाना क्या है?
- उत्तर पश्चिम भारत; विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में, अक्टूबर और नवंबर में पराली जलाने का आम चलन है, जिसमें धान्य खाद्यान्न फसलों की कटाई के बाद बची हुई पराली (फसल अवशेष) को जला दिया जाता है।
- इस विधि का उपयोग दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ, सितंबर के अंत से नवंबर तक गेहूं की बुआई के लिए खेतों को साफ करने के लिए किया जाता है।
- हालाँकि विभिन्न फसलों की संयुक्त कटाई वाले क्षेत्रों में यह प्रथा आवश्यक है, जहां फसल अवशेष लम्बे समय के लिए छोड़ दिए जाते हैं।