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Daily-current-affairs / 10 Feb 2022

परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी - समसामयिकी लेख

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की वर्ड्स :- संलयन प्रतिक्रियाएं, ड्यूटेरियम और ट्रिटियम, आईटीईआर, ईस्ट-चाइना, आईटीईआर-भारत, परमाणु ऊर्जा विभाग।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिकों ने परमाणु संलयन ऊर्जा (सूर्य में ऊर्जा के उत्पादन की प्रक्रिया) के उत्पादन में एक नवीन कीर्तिमान स्थापित किया है। परमाणु संलयन ऊर्जा पर खोज मानव की बहुप्रतीक्षित खोजो में से एक है क्योंकि इससे कम कार्बन उत्सर्जित होता है। साथ ही साथ इसके प्रयोग से परमाणु ऊर्जा का सुरक्षित तथा दक्ष उत्पादन (तकनीकी रूप से 100% से अधिक) सुनिश्चित किया जा सकता है।

परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी क्या है?

  • परमाणु संलयन प्रक्रिया में, दो हल्के परमाणु नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं तथा वे इस प्रक्रिया में भारी ऊर्जा निर्गमित करते हैं। इस ऊर्जा का उपयोग करने के लिए डिज़ाइन किए गए उपकरणों को फ्यूजन रिएक्टर के रूप में जाना जाता है।
  • परमाणु संलयन प्रतिक्रियाएं सूर्य और अन्य तारो की ऊर्जा का कारक होती हैं। इस प्रक्रिया में परिणामी एकल नाभिक का कुल द्रव्यमान दो मूल नाभिकों के द्रव्यमान से कम होता है, यही द्रव्यमान अंतराल इस प्रक्रिया में निर्गमित ऊर्जा का कारक होता है।
  • परमाणु संलयन में उपयोग किए जाने वाले मुख्य ईंधन ड्यूटेरियम और ट्रिटियम हैं, दोनों हाइड्रोजन के भारी समस्थानिक हैं। ड्यूटेरियम प्राकृतिक हाइड्रोजन का एक छोटा अंश (केवल 0,0153%,) है, तथा इसे समुद्री जल से सस्ते में निकाला जा सकता है। लिथियम से ट्रिटियम बनाया जा सकता है, यह प्रकृति में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी के लाभ :-

  • निम्न परमाणु अपशिष्ट :- नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में परमाणु वेस्ट का उत्पादन नाभिकीय विखंडन की तुलना में कम होता है। अतः इस प्रक्रिया के उपयोग में वेस्ट निस्तारण की समस्या भी कम होगी। साथ ही साथ इस प्रक्रिया के अपशिष्ट का प्रयोग नाभिकीय शस्त्र के निर्माण में नहीं हो होता है।
  • कार्बन तटस्थ :- संलयन प्रक्रिया से कोई CO2 या अन्य हानिकारक वायुमंडलीय उत्सर्जन नहीं होता है, जिसका अर्थ है कि संलयन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन या ग्लोबल वार्मिंग में योगदान नहीं करता है।
  • 2018 की पुस्तक कॉम्प्रिहेंसिव एनर्जी सिस्टम्स के अनुसार :- "परमाणु संलयन ऊर्जा भविष्य में बेसलोड ऊर्जा के रूप में एक अच्छा विकल्प है, जिसमें कई लाभ हैं। यथा :- संसाधनों की सततता, अंतर्निहित सुरक्षा, लंबे समय तक रहने वाले रेडियोधर्मी अपशिष्ट तथा शून्य कार्बन उत्सर्जन।"
  • परमाणु संलयन ऊर्जा के कई संभावित लाभ हैं, क्योंकि यह बिजली उत्पादन के लिए दीर्घकालिक, सतत, आर्थिक और सुरक्षित ऊर्जा स्रोत का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इसमें प्रयुक्त ईंधन सस्ता है तथा यह प्रचुर मात्रा में प्रकृति में उपलब्ध है। 1 लीटर जल में उपलब्ध ड्यूटेरियम की मात्रा सैद्धांतिक रूप से 300 लीटर जीवाश्म ईंधन के दहन के बराबर ऊर्जा उत्पन्न कर सकती है। अर्थात महासागरों में व्याप्त ड्यूटेरियम लाखों वर्षों तक मानव ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

नाभिकीय संलयन तकनीक की प्रक्रिया :-

  • परमाणु संलयन में दो परमाणु आपस में जुड़कर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। नाभिकीय संलयन के रिएक्टर ईंधन के लिए दो अलग-अलग प्रकार के हाइड्रोजन आइसोटोप (ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) का उपयोग किया जाता है। ड्यूटेरियम मूल हाइड्रोजन है और इसे पानी से आसानी से डिस्टिल्ड किया जा सकता है। ट्रिटियम हाइड्रोजन का आंशिक रेडियोधर्मी समस्थानिक है जिसमें एक प्रोटॉन और दो न्यूट्रॉन होते हैं।
  • ड्यूटेरियम का एक परमाणु और ट्रिटियम का एक परमाणु मिलकर हीलियम -4 परमाणु और न्यूट्रॉन बनाते हैं। इस प्रक्रिया में अधिकांश ऊर्जा, उच्च-ऊर्जा न्यूट्रॉन के रूप में जारी की जाती है।

परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी की क्षमता :-

  • परमाणु संलयन ऊर्जा का प्रयोग उच्च ऊर्जा आवश्यकता वाली अंतरिक्ष यात्राओं में भी किया जा सकता है। मंगल ग्रह से आगे की परियोजनाओं (अंतरिक्ष यात्रियों और कार्गो के परिवहन के उद्देश्य) के लिए लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रणोदन के लिए लेजर इग्नाइटेड (डी, टी) कैप्सूल के माध्यम से संलयन ऊर्जा के प्रत्यक्ष उपयोग की अवधारणा का प्रयोग किया है।
  • परमाणु संलयन सूर्य तथा ब्रह्मांड के अन्य तारो की ऊर्जा का स्रोत है। पृथ्वी पर संलयन ऊर्जा का उपयोग, बढ़ती विश्व जनसंख्या की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यावहारिक तथा सतत अक्षय ऊर्जा का विकल्प प्रदान करेगा।

परमाणु संलयन पर अंतर्राष्ट्रीय पहल :-

  • अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (ITER) : यह वर्तमान विश्व की सबसे महत्वाकांक्षी ऊर्जा परियोजनाओं में से एक है। दक्षिणी फ़्रांस में 35 देशों के सहयोग से विश्व के सबसे बड़े टोकामक, एक चुंबकीय संलयन उपकरण का निर्माण किया जा रहा है। इसका निर्माण, बड़े पैमाने पर कार्बन मुक्त ऊर्जा स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता को सिद्ध करने के लिए, उसी सिद्धांत पर किया जा रहा जो सूर्य तथा अन्य तारो के ऊर्जा का सिद्धांत है। शुद्ध ऊर्जा का उत्पादन करने वाला आईटीईआर पहला संलयन उपकरण होगा।
  • EAST :- प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (ईस्ट) तथा इंटरनल डेजिग्नेशन एचटी-7 यू, चीन के प्रयोगात्मक सुपरकंडक्टिंग टोकामक चुंबकीय संलयन ऊर्जा रिएक्टर है। चीन द्वारा प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (ईएएसटी) को 101 सेकंड के लिए 120 मिलियन सेल्सियस और 20 सेकंड के लिए 160 मिलियन सेल्सियस पर प्लाज्मा तापमान प्राप्त करके रिकॉर्ड तोड़ दिया गया है। यह संलयन रिएक्टर के परीक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसे परमाणु संलयन की उस प्रक्रिया को दोहराने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो प्राकृतिक रूप से सूर्य तथा अन्य तारों में होती है। इसका उद्देश्य नियंत्रित परमाणु संलयन के माध्यम से लगभग अनंत स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करना है। इसे सामान्य भाषा में "कृत्रिम सूर्य" कहा जाता है।
  • ITER-India :- यह प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान के अंतर्गत एक विशेष परियोजना है। यह अधिकार प्राप्त बोर्ड, जिसके अध्यक्ष परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के सचिव होते हैं द्वारा शासित होता है। भारत दिसंबर 2005 में आईटीईआर का पूर्ण सातवां भागीदार बन गया था। आईटीईआर-इंडिया, इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज़्मा रिसर्च (आईपीआर), गांधीनगर, पश्चिमी भारत में स्थित है। यह भारत की एजेंसी है जो आईटीईआर में भारतीय योगदान की डिजाइनिंग, निर्माण तथा वितरण से सम्बंधित है।

आगे की राह :-

  • परमाणु संलयन का भविष्य अनिश्चित है। संलयन के विषय में पिछले दो दशकों से व्यापक प्रयास किये गए हैं, साथ ही साथ इस उद्देश्य के लिए चुंबकीय प्रौद्योगिकियों का प्रयोग भी बढ़ा है। लेजर और कण बीम प्रत्यारोपण पर भी काम किया जा रहा है।
  • यद्यपि इस क्षेत्र में विकास उत्साह जनक है इसकी संभावनाएं भी अधिक हैं परन्तु यह भी अन्य रूप से सत्य है कि इस क्षेत्र में बहुत अधिक काम किया जाना बाकी है।
  • पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, बहुत से लोग यह उम्मीद करते हैं कि परमाणु संलयन दीर्घकालिक स्वच्छ ऊर्जा समाधान होगा। हालाँकि, यह अभी तक अपरिभाषित पर्यावरणीय चिंताओं से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है।

पृथ्वी पर नाभिकीय संलयन तथा सूर्य पर नाभिकीय संलयन में अंतर :-

  • सूर्य की ऊर्जा का स्रोत परमाणु संलयन की प्रक्रिया है। सूर्य के अंदर हाइड्रोजन के अणुओ द्वारा हीलियम का निर्माण किया जाता है, पुनः हीलियम खंडित होते हैं तथा इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा विनिर्मुक्त होती है। यह ऊर्जा मूल रूप से गुरुत्वाकर्षण शक्ति द्वारा नियंत्रित की जाती है। सूर्य का विशाल गुरुत्वाकर्षण इसके ऊर्जा को बाहर जाने से रोकता है। सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 333,000 गुना है इसका अर्थ यह है कि लगभग 1.3 मिलियन पृथ्वी सूर्य के अंदर समा सकती है। सूर्य में कुल 384.6 यॉटावाट (3.846×1026 डब्ल्यू), या 9.192×1010 मेगाटन टीएनटी-प्रति सेकेंड की ऊर्जा उत्पन्न होती है।
  • पृथ्वी पर एक संलयन रिएक्टर छोटे पैमाने पर हाइड्रोजन परमाणुओं को हीलियम परमाणुओं में फ्यूज करता है। यह जो ऊर्जा उत्पन्न करता है उसका प्रयोग, टरबाइन को चालू करने के लिए भाप का उत्पादन करने के लिए किया जाता है जिससे पुनः विद्युत् का उत्पादन किया जाता है। हालाँकि पृथ्वी पर संलयन की प्रतिक्रिया की निरंतरता एक बड़ी चुनौती है। पृथ्वी पर सूर्य की अपेक्षा कम द्रव्यमान तथा गुरुत्वाकर्षण नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया को सीमित करते हैं। इसीलिए वैज्ञानिक हाइड्रोजन को 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान तक गर्म करने के लिए, संलयन प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। हालांकि हम जानते हैं कि कोई भी सामग्री इतने उच्च ताप को बर्दाश्त नहीं कर सकती इसीलिए संलयन रिएक्टर सुपर-हीटेड हाइड्रोजन को शामिल करने के लिए चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किया जाता है। वर्तमान समय में नाभिकीय संलयन रिएक्टर में लगने वाली ऊर्जा की मात्रा रिएक्टर से निर्मुक्त ऊर्जा की मात्रा से कहीं अधिक है।

स्रोत: The Hindu

सामान्य अध्ययन पेपर 3
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी- दैनिक जीवन में विकास और उनके अनुप्रयोग और प्रभाव।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • वैश्विक औसत तापमान बढ़ने और ऊर्जा की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए, परमाणु संलयन ऊर्जा भविष्य की पीढ़ी के लिए एक स्थायी ऊर्जा समाधान हो सकती है। समालोचनात्मक विश्लेषण करें।

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