संदर्भ:
हाल ही में नीति आयोग द्वारा किए गए अध्ययन में भारतीय कृषि क्षेत्र की वृद्धि को बहुआयामी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। अध्ययन में विभिन्न उप-क्षेत्रों की उल्लेखनीय वृद्धि को उजागर किया है, जोकि भारत की कृषि में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों का संकेत है। इसके साथ ही यह अध्ययन इस वृद्धि की स्थिरता और समावेशिता पर गंभीर प्रश्न भी उठाता है, जो दीर्घकालिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
कृषि विकास में उपलब्धियां:
कृषि के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में वृद्धि:
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- रिपोर्ट के अनुसार कृषि के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। 2004 से पहले औसत वृद्धि दर 2.9% थी, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के कार्यकाल के दौरान यह दर 3.7% तक पहुंच गई। यह वृद्धि कृषि क्षेत्र की संकटग्रस्त स्थिति की सामान्य धारणा को चुनौती देती है, विशेष रूप से एक ऐसे देश में जहां कृषि बड़े पैमाने पर जनसंख्या के लिए प्राथमिक आजीविका का साधन है।
- रिपोर्ट के अनुसार कृषि के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। 2004 से पहले औसत वृद्धि दर 2.9% थी, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के कार्यकाल के दौरान यह दर 3.7% तक पहुंच गई। यह वृद्धि कृषि क्षेत्र की संकटग्रस्त स्थिति की सामान्य धारणा को चुनौती देती है, विशेष रूप से एक ऐसे देश में जहां कृषि बड़े पैमाने पर जनसंख्या के लिए प्राथमिक आजीविका का साधन है।
उप-क्षेत्र प्रदर्शन:
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- पशुधन (5.8%), मत्स्य पालन (9.2%) और बागवानी (3.9%) में उल्लेखनीय वृद्धि दर कृषि अर्थव्यवस्था के विविधीकरण को दर्शाती है। बदलती उपभोक्ता मांगों से प्रेरित और सक्रिय सरकारी पहलों द्वारा समर्थित, इन क्षेत्रों ने न केवल किसानों की आय में वृद्धि की है, साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा किए हैं और आर्थिक विकास में योगदान दिया है।
- पशुधन (5.8%), मत्स्य पालन (9.2%) और बागवानी (3.9%) में उल्लेखनीय वृद्धि दर कृषि अर्थव्यवस्था के विविधीकरण को दर्शाती है। बदलती उपभोक्ता मांगों से प्रेरित और सक्रिय सरकारी पहलों द्वारा समर्थित, इन क्षेत्रों ने न केवल किसानों की आय में वृद्धि की है, साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा किए हैं और आर्थिक विकास में योगदान दिया है।
उत्पादन में वृद्धि:
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- अनाज के उत्पादन में 2004-05 में 185.2 मिलियन टन से बढ़कर 2022-23 में 303.6 मिलियन टन तक उल्लेखनीय पायी गयी, जो कृषि उत्पादकता में महत्वपूर्ण सुधार का संकेत देती है। यह प्रगति कृषि प्रौद्योगिकी, उन्नत सिंचाई विधियों और बेहतर इनपुट प्रबंधन के परिणामस्वरूप संभव हुई है।
- अनाज के उत्पादन में 2004-05 में 185.2 मिलियन टन से बढ़कर 2022-23 में 303.6 मिलियन टन तक उल्लेखनीय पायी गयी, जो कृषि उत्पादकता में महत्वपूर्ण सुधार का संकेत देती है। यह प्रगति कृषि प्रौद्योगिकी, उन्नत सिंचाई विधियों और बेहतर इनपुट प्रबंधन के परिणामस्वरूप संभव हुई है।
कृषि विकास की चुनौतियाँ:
स्थिर उपभोग बनाम उत्पादन में वृद्धि :
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- अध्ययन में एक महत्वपूर्ण चिंता यह है कि उत्पादन के आंकड़ों और अनाज की घरेलू खपत में स्पष्ट अंतर है। जबकि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है, स्थिर खपत के स्तर से यह पता चलता है कि उत्पादित खाद्य पदार्थों का बड़ा हिस्सा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध नहीं हो रहा है। यह स्थिति डेटा संग्रह की सटीकता और मौजूदा कृषि नीतियों की खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों को हल करने की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।
- अध्ययन में एक महत्वपूर्ण चिंता यह है कि उत्पादन के आंकड़ों और अनाज की घरेलू खपत में स्पष्ट अंतर है। जबकि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है, स्थिर खपत के स्तर से यह पता चलता है कि उत्पादित खाद्य पदार्थों का बड़ा हिस्सा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध नहीं हो रहा है। यह स्थिति डेटा संग्रह की सटीकता और मौजूदा कृषि नीतियों की खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों को हल करने की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।
उप-क्षेत्रों के बीच असमानताएँ:
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- पारंपरिक फसल कृषि की वृद्धि दर (2.3%) मत्स्यपालन के मुकाबले धीमी है, जो इस क्षेत्र की संभावित उपेक्षा को दर्शाती है। पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि उत्पादन वाले राज्यों में वृद्धि दर 2% से 3.4% के बीच रही है। यह स्थिरता उन किसानों के लिए जोखिम पैदा करती है, जो पारंपरिक फसलों पर निर्भर हैं, क्योंकि उन्हें अन्य उप-क्षेत्रों में हो रही प्रगति से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
- पारंपरिक फसल कृषि की वृद्धि दर (2.3%) मत्स्यपालन के मुकाबले धीमी है, जो इस क्षेत्र की संभावित उपेक्षा को दर्शाती है। पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि उत्पादन वाले राज्यों में वृद्धि दर 2% से 3.4% के बीच रही है। यह स्थिरता उन किसानों के लिए जोखिम पैदा करती है, जो पारंपरिक फसलों पर निर्भर हैं, क्योंकि उन्हें अन्य उप-क्षेत्रों में हो रही प्रगति से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
लाभों का असमान वितरण:
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- अध्ययन में यह पाया गया कि केवल 53% किसान पशुधन से आय प्राप्त करते हैं, जबकि केवल 6.5% किसान बागवानी में कार्यरत हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि कृषि विकास के लाभ सभी किसानों के लिए समान रूप से उपलब्ध नहीं हैं। अधिकांश किसान अब भी पारंपरिक फसलों पर निर्भर हैं, जिन्हें तकनीकी सहायता और बाजार पहुंच का समान स्तर नहीं मिला है। इसके कारण कृषि समुदाय में असमानताएं बढ़ती जा रही हैं।
- अध्ययन में यह पाया गया कि केवल 53% किसान पशुधन से आय प्राप्त करते हैं, जबकि केवल 6.5% किसान बागवानी में कार्यरत हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि कृषि विकास के लाभ सभी किसानों के लिए समान रूप से उपलब्ध नहीं हैं। अधिकांश किसान अब भी पारंपरिक फसलों पर निर्भर हैं, जिन्हें तकनीकी सहायता और बाजार पहुंच का समान स्तर नहीं मिला है। इसके कारण कृषि समुदाय में असमानताएं बढ़ती जा रही हैं।
बाजार की गतिशीलता और कमजोरियाँ:
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- उच्च मूल्य वाली फसलों और पशुधन की ओर बढ़ना सकारात्मक है, लेकिन यह किसानों को बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाता है। कुछ उच्च मांग वाले उत्पादों पर निर्भरता जोखिम बढ़ा सकती है, खासकर जब उपभोक्ता प्राथमिकताएं बदलती हैं या वैश्विक बाजार की स्थितियां बदलती हैं। यदि किसानों के पास प्रभावी जोखिम प्रबंधन रणनीतियाँ नहीं हैं, तो वे अचानक मूल्य गिरावट या मांग में बदलाव के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
- उच्च मूल्य वाली फसलों और पशुधन की ओर बढ़ना सकारात्मक है, लेकिन यह किसानों को बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाता है। कुछ उच्च मांग वाले उत्पादों पर निर्भरता जोखिम बढ़ा सकती है, खासकर जब उपभोक्ता प्राथमिकताएं बदलती हैं या वैश्विक बाजार की स्थितियां बदलती हैं। यदि किसानों के पास प्रभावी जोखिम प्रबंधन रणनीतियाँ नहीं हैं, तो वे अचानक मूल्य गिरावट या मांग में बदलाव के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
कृषि क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने वाली सरकारी योजनाएं कृषि में विकास को बढ़ावा देने में कई सरकारी योजनाएं सहायक रही हैं: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) लॉन्च: 2016 उद्देश्य: बुवाई से पूर्व से लेकर कटाई के बाद के जोखिमों को कवर करने वाला किफायती फसल बीमा उपलब्ध कराना। प्रभाव: यह किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि से बचाता है, आय को स्थिर करता है तथा कृषि गतिविधियों में निवेश को प्रोत्साहित करता है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) लांच: 24 फरवरी, 2019 उद्देश्य: भूमिधारक किसानों को प्रति वर्ष ₹6,000 प्रदान करना। प्रभाव: इससे किसानों को खर्च प्रबंधन में मदद मिलती है, उत्पादकता में सुधार होता है और अनौपचारिक ऋण पर निर्भरता कम होती है। संशोधित ब्याज अनुदान योजना (MISS) उद्देश्य: 7% प्रति वर्ष की ब्याज दर पर रियायती अल्पकालिक कृषि ऋण प्रदान करना। प्रभाव: उधार लेने की लागत कम हो जाती है, इनपुट, प्रौद्योगिकी और टिकाऊ प्रथाओं में निवेश को प्रोत्साहन मिलता है। कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) लॉन्च: 2020 उद्देश्य: कृषि अवसंरचना परियोजनाओं के लिए मध्यम से दीर्घकालिक ऋण वित्तपोषण प्रदान करना। प्रभाव: बुनियादी ढांचे में निवेश को समर्थन, अपव्यय को कम करना और फसलों के मूल्य में वृद्धि। राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम उद्देश्य: दूध उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना। प्रभाव: बेहतर प्रजनन पद्धतियों और उन्नत प्रसंस्करण सुविधाओं के माध्यम से डेयरी किसानों की आजीविका में वृद्धि होगी। राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (एनबीएचएम) लॉन्च : 2020 उद्देश्य: वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना तथा शहद उत्पादन में वृद्धि करना। प्रभाव : फसल परागण को बढ़ावा देता है और मधुमक्खी पालन में लगे किसानों की आय बढ़ाता है। सूक्ष्म सिंचाई निधि (एमआईएफ) प्रारंभिक निधि : ₹5,000 करोड़ उद्देश्य : बागवानी एवं अन्य फसलों में सूक्ष्म सिंचाई की सुविधा प्रदान करना। प्रभाव : जल के कुशल उपयोग को बढ़ावा मिलता है, जिससे अधिक पैदावार और बेहतर गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है। परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) उद्देश्य : जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना। प्रभाव : टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है जो मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं और रासायनिक उपयोग को कम करते हैं। प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) लॉन्च : 2020 उद्देश्य : मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना। प्रभाव : मत्स्यपालकों के लिए जलकृषि प्रथाओं और बाजार तक पहुंच का समर्थन करता है। |
नीतिगत निहितार्थ और सिफारिशें:
- आयोग के अध्ययन के निष्कर्ष कई महत्वपूर्ण नीतिगत निहितार्थों का सुझाव देते हैं। सबसे पहले, फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता स्पष्ट है, खासकर पारंपरिक कृषि में लगे किसानों के लिए। नीतियों को प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और बाजार संपर्कों की पहुँच को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे ये किसान उच्च-मूल्य उत्पादन प्रणालियों में सहजता से प्रवेश कर सकें।
- विभिन्न कृषि गतिविधियों में आय सृजन में असमानताओं को समाप्त करना अत्यंत आवश्यक है। इसमें पारंपरिक फसलों पर निर्भर किसानों के लिए समर्थन प्रणाली को मजबूत करना शामिल है, जिसमें फसल किस्मों के अनुसंधान और विकास में निवेश और बेहतर सिंचाई सुविधाएँ प्रदान करना शामिल है।
- इसके अतिरिक्त कृषि सांख्यिकी में डेटा संग्रह और पारदर्शिता में सुधार अनिवार्य है। उत्पादन, खपत और बाजार की गतिशीलता के सटीक आंकड़े नीति निर्माताओं को जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे वे अधिक प्रभावी नीतियों और हस्तक्षेपों को विकसित कर सकते हैं। साथ ही उन्नत निगरानी और मूल्यांकन ढांचे विभिन्न किसान समूहों पर कृषि नीतियों के वास्तविक प्रभाव को समझने में सहायक होंगे।
निष्कर्ष:
नीति आयोग का अध्ययन एनडीए सरकार के तहत भारत के कृषि क्षेत्र में वृद्धि के ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करता है साथ ही यह महत्वपूर्ण चुनौतियों को भी उजागर करता है जिनका समाधान आवश्यक है। पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन की ओर बदलाव एक गतिशील कृषि परिदृश्य को दर्शाता है लेकिन इस वृद्धि की समावेशिता पर गंभीर चिंताएँ उठाता है। नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि सभी किसान, विशेषकर वे जो पारंपरिक फसलों पर निर्भर हैं, कृषि में प्रगति से लाभान्वित हो सकें। इस दिशा में प्रभावी प्रयास करते हुए, भारत एक अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ कृषि भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है, जो इसके विविध कृषक समुदाय की आजीविका को सशक्त करने में सहायक होगा।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: नीति आयोग के अध्ययन में उजागर की गई उपलब्धियों और चुनौतियों के आलोक में, भारत की कृषि वृद्धि के प्रति आयोग के निष्कर्षों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें? |
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस, पीआईबी