प्रसंग:
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर, छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति पुलिस कलर अवार्ड समारोह में नक्सलवाद के खिलाफ राज्य की ओर से किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों पर बात की। उन्होंने बताया कि पिछले साल में 287 नक्सलियों को ढेर किया गया, 1,000 को गिरफ्तार किया गया और 837 ने आत्मसमर्पण किया, जिससे नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सकारात्मक बदलाव आया है। गृह मंत्री ने यह भी कहा कि 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा। यह सरकार के प्रयासों का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का प्रभाव कम करना और क्षेत्र में शांति और विकास लाना है।
· नक्सलवाद क्या है?
नक्सलवाद, जिसे वामपंथी उग्रवाद (LWE) भी कहा जाता है, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। यह एक सशस्त्र विद्रोह है, जो माओवाद के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य हिंसक तरीकों से राज्य की सत्ता को उखाड़ फेंकना है। इस आंदोलन की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी और यह भारत के कई राज्यों में फैल चुका है, खासकर उस क्षेत्र में जिसे 'रेड कॉरिडोर' कहा जाता है, जिसमें छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, बिहार और आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से शामिल हैं।
· ‘नक्सलवाद’ शब्द पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से लिया गया है, जहां 1967 में किसानों ने कम्युनिस्ट नेताओं चारू मजूमदार, कन्हू संताल और कानू सान्याल के नेतृत्व में विद्रोह किया था। शुरुआत में यह एक आदिवासी-किसान विद्रोह था, लेकिन बाद में यह एक बड़े वैचारिक संघर्ष में बदल गया, जिसे 2004 में दो समूहों के मिलकर बनवाए गए ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी)’ द्वारा संचालित किया गया।
· नक्सलवाद का मुख्य उद्देश्य भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को उखाड़ फेंककर मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों पर आधारित एक नई व्यवस्था स्थापित करना है। इसके लिए नक्सली हिंसा का सहारा लेते हैं, जिसमें एंबुश, बम विस्फोट और लक्षित हत्याएं शामिल हैं।
नक्सलवाद का विस्तार
नक्सलवाद का प्रभाव सबसे अधिक छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और बिहार में है, जो माओवादियों के विद्रोह से बुरी तरह प्रभावित हैं। इन क्षेत्रों में बड़ी आदिवासी आबादी, व्यापक गरीबी और पिछड़ापन है। नक्सलियों ने कमजोर समुदायों जैसे दलितों, आदिवासियों, कृषि श्रमिकों और बटाईदारों से समर्थन प्राप्त किया है, जो राज्य और निजी जमींदारों द्वारा शोषित महसूस करते हैं।
हाल के वर्षों में केरल, कर्नाटका और तमिलनाडु जैसे राज्यों में नक्सलियों की मौजूदगी बढ़ी है, जिनका उद्देश्य पश्चिमी घाटों को पूर्वी घाटों से जोड़ना है। नक्सलियों ने असम और अरुणाचल प्रदेश में भी घुसपैठ की है, जो भारत के लिए दीर्घकालिक सुरक्षा खतरा पैदा करता है।
नक्सलवाद के कारण
नक्सलवाद एक जटिल समस्या है, जिसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं:
· उपेक्षा और सामाजिक असमानता: नक्सली मुख्य रूप से गरीब और शोषित समुदायों से आते हैं, जैसे दलित और आदिवासी, जो भूमि और बुनियादी संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। यह असमानता राज्य के खिलाफ गुस्से को बढ़ाती है और उन्हें माओवाद के विचारों को अपनाने के लिए प्रवृत्त करती है।
· आर्थिक असमानता: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक विकास का अभाव नक्सलवाद के बने रहने का एक प्रमुख कारण है। खराब बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के अवसरों की कमी कट्टरपंथी विचारधाराओं के लिए उपजाऊ जमीन बन जाते है।
· भूमि और वन अधिकार: आदिवासी जो अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर करते हैं, उन्हें विभिन्न कानूनों और नीतियों के तहत उनके अधिकारों से वंचित किया गया है। इससे उनमें सरकार के प्रति अलगाव की भावना बढ़ी है, जिसका फायदा नक्सली उठाते हैं।
· राज्य की उपस्थिति की कमी: रेड कॉरिडोर के कई हिस्सों में सरकार की उपस्थिति कमजोर है, जिसके कारण नक्सली अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल रहे हैं।
भारत के लिए नक्सलवाद की चुनौतियां:
नक्सलवाद भारत के लिए कई प्रकार की चुनौतियां प्रस्तुत करता है:
· सुरक्षा खतरे: नक्सलियों के अंतरराष्ट्रीय विरोधी समूहों से जुड़ने और पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी संगठनों से संबंधों के कारण यह सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।
· आर्थिक प्रभाव: नक्सल हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बाधित करती है, जिससे निवेश में कमी आती है और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचता है।
· शासन की समस्या: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शासन व्यवस्था पूरी तरह से बाधित होती है, जहां लोग हिंसा, आतंक और उत्पीड़न का सामना करते हैं।
· सुरक्षा बलों पर लागत: नक्सलवाद से लड़ने के लिए सरकार को सुरक्षा बलों पर काफी धन खर्च करना पड़ता है, जिससे विकास कार्यों के लिए संसाधन कम हो जाते हैं।
सरकार का नक्सलवाद से निपटने का तरीका:
भारत सरकार ने नक्सलवाद से निपटने के लिए कई पहल की हैं, जिसमें सुरक्षा और विकासात्मक उपायों को शामिल किया गया है:
· केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) की तैनाती: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में राज्य पुलिस बलों की सहायता के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को तैनात किया गया है।
· सुरक्षा से संबंधित खर्च योजना: नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा संचालन के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है।
· खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना: सरकार ने खुफिया जानकारी एकत्र करने और साझा करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
· राज्यों के बीच बेहतर समन्वय: नक्सल प्रभावित राज्यों के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
· आईईडी (Improvised Explosive Devices) का मुकाबला: नक्सली अपने हमलों में आईईडी का उपयोग करते हैं, इसके लिए विशेष मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाई गई है।
· हवाई उपयोग: नक्सल विरोधी अभियानों में हवाई समर्थन और हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल बढ़ाया गया है।
आगे की राह:
नक्सलवाद से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए भारत को एक दोहरी रणनीति अपनानी चाहिए, जिसमें सुरक्षा उपायों के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक विकास भी शामिल हो। सरकार के प्रयासों को इन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:
1. विकासात्मक पहल: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उचित बुनियादी ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर सुनिश्चित करना जरूरी है। इससे स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त किया जा सकेगा और नक्सलियों के समर्थन आधार को कमजोर किया जा सकेगा।
2. आत्मसमर्पण और पुनर्वास: सरकार को नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने और समाज में पुनः समाहित होने के लिए आकर्षक नीति अपनानी चाहिए। छत्तीसगढ़ में यह पहले ही सकारात्मक परिणाम दिखा चुका है।
3. आदिवासियों के साथ विश्वास का निर्माण: आदिवासियों के भूमि और वन अधिकारों को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। सरकार को आदिवासी समुदायों की शिकायतों को हल करना चाहिए, ताकि उनके बीच से अलगाव की भावना कम हो सके।
4. सुरक्षा उपायों को और मजबूत करना: जबकि विकास जरूरी है, सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ अपनी कार्रवाइयों को जारी रखना होगा, ताकि उनके नेटवर्क को खत्म किया जा सके।
निष्कर्ष:
नक्सलवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, लेकिन सरकार की रणनीति अच्छे परिणाम दिखा रही है। छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में हाल ही में मिली सफलता यह दर्शाती है कि सुरक्षा और विकास दोनों में निरंतर प्रयासों से नक्सलवाद को हराया जा सकता है। हालांकि, लंबे समय तक शांति तभी संभव है जब हाशिये पर मौजूद समुदायों को राष्ट्रीय विकास में शामिल किया जाए और उनकी शिकायतों का समाधान किया जाए। सुरक्षा और विकास दोनों के संयोजन से भारत के पास नक्सल समस्या को हमेशा के लिए हल करने का अवसर है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: "नक्सलवाद के भारत के आर्थिक विकास और प्रभावित क्षेत्रों में शासन पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करें। इस चुनौती से निपटने के लिए विकास और सुरक्षा किस तरह साथ-साथ चल सकते हैं?" |