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Daily-current-affairs / 09 May 2024

जीवन के अंत में देखभाल के नैतिक और कानूनी आयाम - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ
जीवन की यात्रा में, मृत्यु एक निर्विवाद सत्य है, वो मंजिल जहां हर किसी को अंततः पहुंचना ही होता है। फिर भी, जिस तरह से अलग-अलग संस्कृतियां और समाज इस सच्चाई का सामना करते हैं, वो बहुत भिन्न होता है। रोनाल्ड रीगन के अपने प्रियजनों के बीच शांत निधन और अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन रक्षक मशीनों पर लंबे समय तक टिके रहने के उदाहरण जीवन के अंतिम चरण की देखभाल के विभिन्न परिदृश्यों को उजागर करते हैं। ये उदाहरण एक सम्मानजनक विदाई को लेकर उठने वाली नैतिक जटिलताओं और कानूनी अस्पष्टताओं को रेखांकित करती हैं, खासकर पश्चिमी देशों में अग्रिम निर्देशों के चलन और भारत में जीवन के  अंतिम समय के फैसलों में स्पष्टता और करुणा के लिए संघर्ष को देखते हुए यह जटिलताएँ अधिक स्पष्ट हैं।

रोनाल्ड रीगन और अटल बिहारी वाजपेयी के जवान के अंतिम चरण

 रोनाल्ड रीगन और अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन के अंतिम पल मार्मिक विचार प्रस्तुत करते हैं। अल्जाइमर रोग से लड़ाई के बावजूद परिवार के बीच रीगन का शांतचित्त से संसार त्यागना अंतिम क्षणों में गरिमा और पारिवारिक उपस्थिति के महत्व को दर्शाता है। इसके विपरीत, अटल बिहारी वाजपेयी की जीवन रक्षक मशीनों पर लंबे समय तक निर्भरता आधुनिक गहन देखभाल इकाइयों में निहित चुनौतियों और नैतिक दुविधाओं को रेखांकित करती है, खासकर इस संबंध में जब स्पष्ट निर्देशों और दयालु ढांचे का अभाव है। 

पश्चिमी समाज तेजी से अग्रिम निर्देशों की अवधारणा को अपना रहे हैं, जो व्यक्तियों को जीवन के अंतिम समय की अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की अनुमति देता है, वहीं भारत गहन चिकित्सा इकाइयों के बीच मृत्यु के नियमित चिकित्सीकरण से जूझ रहा है। यह असमानता केवल सांस्कृतिक मतभेदों को दर्शाती है बल्कि मृत्यु के सामने व्यक्तिगत स्वायत्तता और सम्मान की नैतिक आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।

नैतिक अनिवार्यताएँ और कानूनी चुनौतियां

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अनुसार, असाध्य बीमारी से जूझ रहे लोगों की पीड़ा कम करना और उन्हें राहत पहुँचाना चिकित्सा देखभाल का आधार है। हालांकि, व्यवहार में इन सिद्धांतों को लागू करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, जिसे कानूनी अस्पष्टता और सांस्कृतिक मान्यताओं ने और भी जटिल बना दिया जाता है। गहन देखभाल में होने वाली मौतों का सामान्यीकरण और जीवन के अंतिम चरण की देखभाल को नियंत्रित करने वाले व्यापक कानूनी ढांचे की कमी नैतिक दुविधाओं और अनिश्चितता से भरे परिदृश्य को जन्म देती है।

2023 मे दिए गये सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अग्रिम निर्देशों (advance directives) की वैधता को स्वीकार किया गया और असामान्य परिस्थितियों में जीवन रक्षक उपचार (life support) वापस लेने की अनुमति दी। यह मृत्यु-पूर्व निर्णय लेने की प्रक्रिया को स्पष्ट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके बावजूद, नागरिकों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच जागरूकता और समझ की कमी के कारण इन प्रावधानों के कार्यान्वयन में बाधा रही है। इसके अलावा, "निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia)" को जीवन रक्षक उपचार रोकने या वापस लेने के साथ जोड़कर देखने से मामला और जटिल हो जाता है। इससे मृत्यु-पूर्व देखभाल से जुड़े कानूनी और नैतिक विचारों की बारीकियों पर चर्चा करने की आवश्यकता रेखांकित होती है।

मृत्यु साक्षरता और उपशामक देखभाल की स्थिति

मृत्यु के विषय में बातचीत से कतराने वाले समाज में, "मृत्यु साक्षरता" को बढ़ावा देने वाली पहलें बहुत जरूरी हैं। लैंसेट आयोग का यह आह्वान कि मृत्यु और मृत्यु-शैया से जुड़ी बातचीत को परिवार और समाज में फिर से शुरू किया जाए, यह व्यक्तियों को मृत्यु का सामना शालीनता और तैयारी के साथ करने की शक्ति प्रदान करेगा खुला संवाद स्थापित करने और जीवन के अंतिम चरण की देखभाल के विकल्पों पर शिक्षा प्रदान करके, समाज व्यक्ति को अपने मूल्यों और इच्छाओं के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार दे सकता है।

आवश्यक स्वास्थ्य अधिकार के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में प्राथमिक देखभाल की मान्यता, जीवन के अंतिम चरण में सम्मान सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 

 विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि स्वास्थ्य में केवल बीमारी का होना ही शामिल नहीं है, बल्कि शारीरिक, सामाजिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी शामिल है। व्यापक उपशामक देखभाल सेवाओं तक व्यक्तियों को पहुंच प्रदान करके, समाज मृत्यु की परवाह किए बिना, हर इंसान की अंतर्निहित गरिमा का सम्मान कर सकता है।

निष्कर्ष

मानव अस्तित्व की जटिल दुनिया में, मृत्यु ही एकमात्र ऐसी सार्वभौमिक सच्चाई है जो धन, पदवी और शक्ति की सीमाओं से परे है। रोनाल्ड रीगन और अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन के अंतिम चरणों के वृत्तांत हमें इस बात की मार्मिक याद दिलाते हैं, कि मृत्यु के समय हर व्यक्ति का अनुभव भिन्न होता है। ऐसे समय में जब समाज अंतिम समय की देखभाल से जुड़े नैतिक और कानूनी पेचीदगियों से जूझ रहा है, यह सर्वोपरि है कि हम हर व्यक्ति की गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान बनाए करे।

एक सम्मानजनक अंतिम यात्रा सुनिश्चित करने के लिए, "मृत्यु साक्षरता" को बढ़ावा देना और उपशामक देखभाल को अपनाना महत्वपूर्ण हैं। खुली चर्चा करने और दयालुतापूर्ण अंतिम जीवन देखभाल प्रदान करने से, समाज यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि व्यक्तियों को शालीनता और सम्मान के साथ अपनी अंतिम यात्रा का सौभाग्य मिले ऐसा करने से, हम प्रत्येक मानव जीवन के मूल स्वरूप और सम्मान की पुष्टि कर सकते हैं और जीवन से मृत्यु तक की यात्रा को मानवीय अनुभव के एक अभिन्न अंग के रूप में सम्मानित करते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    व्यापक कानूनी ढांचे के अभाव में और गहन देखभाल से होने वाली मौतों के सामान्यीकरण के बीच; जीवन के अंत में देखभाल से जुड़े नैतिक विचारों और कानूनी चुनौतियों का मूल्यांकन करें। इन जटिलताओं को दूर करने के लिए संभावित रणनीतियों पर चर्चा करें और यह बताएं कि कैसे व्यक्ति अपने अंतिम क्षणों में स्वायत्तता और गरिमा बनाए रख सकता है।(10 marks, 150 words)

2.    आधुनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में निहित नैतिक दुविधाओं और सामाजिक प्रभावों को उजागर करते हुए, जीवन के अंत के अनुभवों के आसपास के अलग-अलग आख्यानों की जांच करें। सांस्कृतिक संदर्भों या व्यक्तिगत परिस्थितियों के बावजूद, दयालुता और गरिमापूर्ण जीवन के अंत में देखभाल प्रथाओं को बढ़ावा देने में "मृत्यु साक्षरता" और उपशामक देखभाल जैसी पहलों की भूमिका का विश्लेषण करें।(15 marks, 250 words)

 

 

 

 

 

 

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