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Daily-current-affairs / 04 May 2024

मानक आवश्यक पेटेंट के संदर्भ में भारतीय न्यायपालिका और सरकार के प्रयास - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ

भारत में, स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों के लिए टेक्नोलॉजी सेक्टर की दिग्गज वैश्विक कंपनियों द्वारा मानक-आवश्यक पेटेंट (एसईपी) एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। यह पेचीदा मुद्दा भारत की मोबाइल फोन बनाने की मजबूत घरेलू इंडस्ट्री बनाने की कोशिशों को प्रत्यक्षतः प्रभावित करता है। अब तक, एसईपी को नियमित करने का काम ज्यादातर अदालतों के द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस मामले में अदालतें कोई ठोस फैसला नहीं दे पा रही हैं। यह समझना जरूरी है कि एसईपी दरअसल उन टेक्नोलॉजी के पेटेंट होते हैं जिन्हें अलग-अलग मोबाइल कंपनियों के फोन में इस्तेमाल करने के लिए जरूरी माना जाता है। ताकि सभी फोन एक-दूसरे के साथ आसानी से काम कर सकें। लेकिन चिंता की बात ये है कि इन जरूरी मानकों को तय करने का काम ज्यादातर निजी संस्थाएं करती हैं और भारत जैसे देशों का इन मानकों को तय करने में कोई खास दखल नहीं होता है। 

मानक आवश्यक पेटेंट का महत्व

टेक्नोलॉजी में SEP काफ़ी अहम होते हैं। ये सीडीएमए, जीएसएम और एलटीई जैसी उद्योग-मानक तकनीकों से जुड़े पेटेंट होते हैं।  ये मानक विभिन्न मोबाइल फ़ोन ब्रांडों के बीच अनुकूलता सुनिश्चित करते हैं, जिससे बाज़ार की मांग और नवाचार को बढ़ावा मिलता है। लेकिन, चिंता की बात ये है कि ऐसे मानक तय करने की प्रक्रिया ज़्यादातर निजी तकनीकी कंपनियों द्वारा की जाती है, जिसे इन कंपनियों के दबदबे वाले SSO(standard setting organizations)नियंत्रित करते हैं। इससे भारत जैसे देश, जिनका दूरसंचार क्षेत्र में कम नवाचार होता है, मानक तय करने में सीमित भूमिका निभा पाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि SEP मालिकों के पास महत्वपूर्ण शक्ति होती है, क्योंकि निर्माताओं को प्रतिस्पर्धा करने के लिए इन मानकों का लाइसेंस लेना होता है। लेकिन, इस दबदबे का मतलब पेटेंट होल्डअप हो सकता है, जहां अत्यधिक रॉयल्टी प्रतियोगिता को कमज़ोर कर देती है। उचित, तार्किक और गैर-भेदभावपूर्ण (FRAND) लाइसेंसिंग के ज़रिए आत्म-नियमन की मांग के बावजूद, कई मामलों में कंपनियों द्वारा अपनाए गए अपारदर्शी तरीकों ने अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है, यह क्वालकॉम जैसी कंपनियों पर विभिन्न क्षेत्रों में लगाए गए भारी जुर्माने से समझा जा सकता है।  

भारतीय न्यायपालिका की प्रतिक्रिया

भारत में, जब एसईपी (आवश्यक मानक अनिवार्य पेटेंट) के मामले सामने आते हैं, तो अदालतें कभी उन्हें बहुत सुस्ती से निपटाती हैं और कभी बहुत सक्रियता दिखाती हैं। खासकर, प्रतिस्पर्धा कानून से जुड़े मामलों में ये रुझान साफ दिखता है, उदाहरण के लिए, माइक्रोमैक्स की शिकायत पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने एरिक्सन की संभावित रूप से अनुचित एसईपी लाइसेंसिंग प्रथाओं की जांच की थी। लेकिन, इस जांच को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कई सालों तक चले इस मुकदमे ने ये स्पष्ट किया गया  कि अदालतों के लिए प्रतिस्पर्धा कानून और पेटेंट अधिकारों के बीच का रास्ता निकालना मुश्किल है। जब एक तरफ प्रतिस्पर्धा कानून के मुद्दे अदालतों में चल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली हाईकोर्ट ने एसईपी मालिकों द्वारा मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ दायर किए गए उल्लंघन के मुकदमों को आगे बढ़ाया। इन दोनों में अलग-अलग चल रहे मामलों से साफ पता चलता है कि अदालतें बड़ी समस्याओं को सुलझाने की बजाय सामने मौजूद कानूनी लड़ाई को सुलझाना ज्यादा जरूरी समझती हैं।

न्यायिक सक्रियता और इसके प्रभाव

दिल्ली हाई कोर्ट का लंबे मुकदमों के दौरान निर्माताओं से भारी जमा राशि भरने के लिए अंतरिम आदेश देने का तरीका विवाद का विषय बन गया है। ये "जमा" आदेश, न्यायिक सक्रियता की आड़ में उचित ठहराए जाते हैं और प्रतिवादियों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं। इस तरह के मामले उद्यमों को उनकी महत्वपूर्ण कार्यशील पूंजी से वंचित करते हैं। स्पष्ट कानूनी आधार के अभाव में भी, ऐसे उपाय जारी रहे हैं, जो न्यायपालिका की "न्याय करने की अंतर्निहित शक्तियों" को लागू करने की प्रवृत्ति को रेखांकित करते हैं। हालांकि, आलोचकों का तर्क है, कि इस तरह की सक्रियता, भले ही नेक इरादे से की गई हो, लेकिन प्रतिवादियों के खिलाफ संतुलन बिगड़ने का जोखिम रहता है, जिससे संभावित रूप से भारत की निवेश अनुकूल परिस्थितियाँ बाधित होती है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर प्रभाव

भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने की कोशिशों में न्यायपालिका का सक्रिय हस्तक्षेप और विलंब पैदा करने वाली जटिल प्रक्रियाएं, निवेश को आकर्षित करने में बड़ी रुकावट बन रही हैं। सरकार जहां प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम जैसी पहलों के जरिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे रही है, वहीं अदालती अड़चनें इन कोशिशों को कमज़ोर कर रही हैं। निर्माता रोज़गार पैदा करने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निवेश करते हैं, वहीं दूसरी तरफ, कई बार बहुराष्ट्रीय कंपनियां (एसईपी मालिक) ज्यादा लाभ कमाती हैं, लेकिन स्थानीय अर्थव्यवस्था में बहुत कम योगदान देती हैं। यह विषमता बताती है, कि भारत के मैन्युफैक्चरिंग हितों की रक्षा के लिए नियमन में सुधार कितना आवश्यक है। 

यूरोप से सबक और आगे का रास्ता

यूरोप की तरह, जहाँ मानक-आवश्यक पेटेंट (एसईपी) को नियंत्रित करने के नियम बनाए गए हैं, भारत में भी इस तरह के नियमों की आवश्यकता है। भारत के पास एसएसओ द्वारा चुने जाने वाले उपकरणों को नियंत्रित करने के लिए कोई नियम नहीं है, साथ ही विदेशी पेटेंट को लागू करने की अंतरराष्ट्रीय बाध्यता भी है। इसलिए, भारत को इन नियमों के अंतर को पाटने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। यूरोपीय संसद के नियम भारत के लिए एक उदाहरण बन सकते हैं और भारत इससे भी सख्त कानून निर्मित कर सकता है। आर्थिक नीति और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा को देखते हुए, भारत के लिए यह ज़रूरी है कि वह उचित एसईपी लाइसेंसिंग प्रथाओं को सुनिश्चित करने वाले नियमों का निर्माण करे। ऐसा करने से भारत की निर्माण क्षमता और वैश्विक तकनीकी क्षेत्र में छबि खराब हो सकती है।

निष्कर्ष
प्रौद्योगिकी, पेटेंट और प्रतिस्पर्धा के जटिल जाल में, भारत मानक आवश्यक पेटेंट की जटिलताओं से जूझ रहा है। न्यायपालिका की भूमिका, विवाद का एक केंद्र बिंदु बन गया है, जो पेटेंट अधिकारों और प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं के बीच अनिर्णय की स्थिति में है। चूंकि भारत एक विनिर्माण पावरहाउस बनने की दिशा में कदम उठा रहा है, अतः देश एसईपी के संदर्भ में नियामक शून्य को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। भारत की अनूठी चुनौतियों के अनुरूप समाधान तैयार करते हुए वैश्विक उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए साहसिक, निर्णायक कार्रवाई अनिवार्य है। निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा करने और भारत को प्रौद्योगिकी और नवाचार के विश्व मंच पर अपने सही स्थान की ओर ले जाने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करने का समय गया है। 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    मानक आवश्यक पेटेंट (एसईपी) भारत के प्रौद्योगिकी परिदृश्य में एक विवादास्पद मुद्दे के रूप में उभरा है, जिसका विनिर्माण क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है। एस. . पी. लाइसेंसिंग प्रथाओं द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें, न्यायपालिका की भूमिका और नियामक हस्तक्षेप की आवश्यकता पर प्रकाश डालें। (10 marks, 150 words)

2.    न्यायिक सक्रियता और मानक आवश्यक पेटेंट (एसईपी) के मुद्दों को संबोधित करने में देरी ने भारत के निवेश माहौल और विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं। एसईपी से संबंधित मुकदमेबाजी के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण के प्रभावों का मूल्यांकन करें और निर्माताओं और पेटेंट धारकों के सामने आने वाली चुनौतियों को कम करने के उपाय सुझाएं। (15 marks, 250 words)