संदर्भ
दिसंबर 2023 में, चार भारतीय जलवायु वैज्ञानिकों ने आर्कटिक की एक अभूतपूर्व यात्रा शुरू की थी। यह यात्रा इस क्षेत्र में भारत के शीतकालीन अभियान के उद्घाटन को चिह्नित करती है। नॉर्वे के स्वालबार्ड में अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक अनुसंधान परिसर के भीतर स्थित भारत के शोध केंद्र, हिमाद्री की पृष्ठभूमि पर आधारित, यह प्रयास आर्कटिक अन्वेषण के प्रति भारत की विकसित रुचि और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ध्यातव्य हो कि हिमाद्री केंद्र से पहले केवल गर्मियों के दौरान इस तरह के मिशनों की मेजबानी की गई है, जबकि यह मिशन इसके विपरीत सर्दियों में किया गया है परिणामतः इस अभियान ने नई चुनौतियों का सामना किया, जिनमें अत्यधिक ठंडी और ध्रुवीय रातों में जीवित रहने जैसी मुश्किलें शामिल थी। इस साहसिक प्रयास ने भारत की आर्कटिक नीति में एक आदर्श बदलाव का संकेत दिया है, जो इस क्षेत्र में तेजी से गर्मी बढ़ने और वैश्विक जलवायु पैटर्न पर इसके संभावित प्रभावों, विशेष रूप से भारत को प्रभावित करने वाले वैज्ञानिक आंकड़ों से प्रेरित है।
भारत का आर्कटिक जुड़ावः एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
आर्कटिक के साथ भारत का जुड़ाव 1920 में पेरिस में स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुआ था, यह इस क्षेत्र को महत्व प्रदान करने की देश की प्रारंभिक मान्यता को दर्शाता है। हालाँकि, 2007 में भारत ने सूक्ष्म जीव विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और भूविज्ञान पर ध्यान केंद्रित करते हुए आर्कटिक क्षेत्र के लिए अपना पहला शोध मिशन शुरू किया। खुद को एक प्रमुख देश के रूप में स्थापित करते हुए, भारत 2008 में आर्कटिक अनुसंधान आधार स्थापित करने वाला चीन के अलावा एकमात्र विकासशील देश बन गया। 2013 में भारत को आर्कटिक परिषद से 'पर्यवेक्षक' का दर्जा प्राप्त हुआ परिणामतः स्वालबार्ड में भारत ने प्रमुख वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों को चालू किया, जिसमें आर्कटिक बर्फ प्रणालियों और ग्लेशियरों एवं भारतीय मानसून और हिमालयी क्षेत्र पर उनके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर बल दिया गया।
भारत के आर्कटिक मिशन के चालक
भारत की आर्कटिक नीति में बदलाव का श्रेय तीन प्राथमिक कारकों को दिया जा सकता है। सबसे पहले, त्वरित आर्कटिक वार्मिंग ने भारत को वैश्विक जलवायु प्रणालियों के परस्पर जुड़ाव और इससे निपटने के सक्रिय उपायों की आवश्यकता को पहचानते हुए अपने प्रयासों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया। दूसरा, आर्कटिक सागर मार्गों, विशेष रूप से उत्तरी समुद्री मार्ग के संभावित व्यापार गलियारों के रूप में उभरने से व्यापार दक्षता बढ़ाने और शिपिंग लागत को कम करने के लिए इन मार्गों का लाभ उठाने में भारत की रुचि पैदा हुई है। हालांकि, आर्कटिक में चीन की बढ़ती उपस्थिति से उभरी चिंताओं के साथ-साथ आर्कटिक मार्गों तक पहुंच के संबंध में रूस के रणनीतिक निर्णयों ने भारत की आर्कटिक अनिवार्यता में एक नवीन भू-राजनीतिक आयाम जोड़ा है। रूस-यूक्रेन संघर्ष से बढ़े क्षेत्रीय तनाव की पृष्ठभूमि में, भारत ने आर्कटिक हितधारकों के साथ रचनात्मक संबंधों को बढ़ावा देने और अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के बीच नाजुक संतुलन स्थापित करने की कोशिश की है।
भारत की आर्कटिक भूमिका पर बहस
भारत के आर्कटिक जुड़ाव ने अकादमिक और नीतिगत क्षेत्र में बहस छेड़ दी है, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए आर्कटिक वार्मिंग के प्रभावों पर अलग-अलग दृष्टिकोण को दर्शाता है। आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा पर बल देते हुए, समर्थक आर्कटिक संसाधनों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के व्यावहारिक आर्थिक दोहन की वकालत करते हैं। इसके विपरीत, संशयवादी संसाधन निष्कर्षण के पर्यावरणीय परिणामों के खिलाफ सावधानी बरतने की सलाह देते हैं और एक संतुलित नीतिगत ढांचे की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, जो आर्थिक हितों के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देता है। यह बहस भारत के आर्कटिक नीति परिदृश्य की जटिलता को रेखांकित करती है, साथ ही वैज्ञानिक साक्ष्य और दीर्घकालिक स्थिरता लक्ष्यों द्वारा निर्देशित सूचित निर्णय लेने की अनिवार्यता पर प्रकाश डालती है।
सहयोग की संभावनाएं और नॉर्वे की भूमिका
आर्कटिक परिषद के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में नॉर्वे भारत की आर्कटिक भागीदारी रणनीति को आकार देने में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दशकों के सहयोग के आधार पर, नॉर्वे और भारत ने आर्कटिक और अंटार्कटिक स्थितियों एवं दक्षिण एशिया पर इसके प्रभाव की जांच में घनिष्ठ सहयोग स्थापित किया है। हरित ऊर्जा और टिकाऊ उद्योगों पर भारत का जोर नॉर्वे की प्राथमिकताओं के अनुरूप है, जो अपशिष्ट प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर आधारित है। नॉर्वे के साथ रणनीतिक साझेदारी भारत को आर्कटिक परिषद के कार्य समूहों में अधिक भागीदारी प्रदान कर सकती है, जिससे समुद्री परिवहन, निवेश और जिम्मेदार संसाधन विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की सुविधा मिल सकती है। इसके अलावा, सतत संसाधन प्रबंधन में नॉर्वे की विशेषज्ञता भारत को एक समग्र आर्कटिक नीति ढांचा तैयार करने में सहायता कर सकती है जो पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक हितों के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान को संतुलित करता है।
एक स्थायी आर्कटिक भविष्य की ओर
आर्कटिक मिशन में सतत विकास के लिए भारत की अनिवार्य सहभागिता सर्वोपरि है। यद्यपि आर्कटिक संसाधनों के दोहन में आर्थिक अवसर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, अतः भारत को पर्यावरण प्रबंधन और जिम्मेदार शासन के सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए। आर्कटिक हितधारकों, विशेष रूप से नॉर्वे के साथ सहयोगात्मक प्रयास वैज्ञानिक अनुसंधान, जलवायु संरक्षण और टिकाऊ संसाधन प्रबंधन नवीन के लिए अवसर प्रदान करते हैं। आर्थिक, पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक आयामों को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर, भारत एक स्थायी आर्कटिक भविष्य के लिए वैश्विक प्रयासों में योगदान करते हुए आर्कटिक जुड़ाव की जटिलताओं को दूर कर सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न 1. भारत की विकसित आर्कटिक नीति के पीछे के चालकों पर चर्चा करें और वैज्ञानिक, आर्थिक एवं भू-राजनीतिक कारकों पर विचार करते हुए इस क्षेत्र में इसके जुड़ाव के प्रभावों का विश्लेषण करें। (10 marks, 150 words) 2. में नॉर्वे के साथ भारत के सहयोग के संभावित लाभों और चुनौतियों का मूल्यांकन करें, विशेष रूप से सतत संसाधन प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में स्पष्ट करें। (15 marks, 250 words) |
Source – The Hindu