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Daily-current-affairs / 23 Oct 2024

वृद्धावस्था की समस्या से निपटना: भारत में वृद्ध व्यक्तियों के अधिकार और कल्याण - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

21वीं सदी में बुज़ुर्गों  की बढ़ती संख्या एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन है, जोकि जन्म दर में कमी और मानव की आयु में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण उभर रही है। यद्यपि बुज़ुर्ग जनसंख्या का निरंतर बढ़ता अनुपात चिंता का विषय प्रतीत हो सकता है। इसे मात्र आयु के संदर्भ में नहीं, बल्कि इससे जुड़ी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कमजोरियों के बीच जटिल अंतःक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए।

·        भारत में जनसांख्यिकीय बदलावों के परिणामस्वरूप वृद्ध जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे वृद्ध व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना अति आवश्यक हो गया है। बुजुर्गों की बढ़ती संख्या समाज और सरकार दोनों के लिए अवसरों और चुनौतियां प्रस्तुत करती है। उनकी गरिमा, अधिकारों और जीवन की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बुढ़ापे में उन्हें सम्मान और करुणा के साथ देखा जाए।

·        इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अपने 31वें स्थापना दिवस के अवसर पर 'बुजुर्गों के अधिकारों' पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य वृद्ध नागरिकों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों जैसे वित्तीय असुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता और सामाजिक अलगाव पर चर्चा करना था। विशेषज्ञों और अधिवक्ताओं को एक मंच पर लाकर, इस सम्मेलन ने व्यापक नीतियों के निर्माण और मौजूदा कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के महत्व को रेखांकित किया। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि वृद्ध व्यक्तियों को सम्मान के साथ सशक्त बनाया जाए, ताकि वे समाज में सार्थक योगदान दे सकें।

भारत में बुजुर्गों की वर्तमान जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य स्थिति:

·        भारत में बुजुर्ग जनसंख्या सदी के मध्य तक 319 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिसकी वार्षिक वृद्धि दर लगभग 3% है। इस जनसांख्यिकी में महिलाओं का अनुपात अधिक होगा, जिसमें लिंग अनुपात 1,000 पुरुषों पर 1,065 महिलाओं का अनुमानित है। विशेष चिंता का विषय यह है कि 54% बुजुर्ग महिलाएँ विधवा होंगी और इस जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करेगा।

·        बुजुर्गों की स्वास्थ्य स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, जहाँ एक चौथाई बुजुर्गों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जूझना पड़ता है। मधुमेह और कैंसर जैसी पुरानी बीमारियाँ उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी बढ़ती जा रही हैं, जिसमें 45 वर्ष से अधिक आयु के 20% लोग अवसाद और अन्य मानसिक रोगों से पीड़ित हैं।

भारत में बुजुर्गों की कमजोरियाँ:

भारतीय संदर्भ में बुजुर्गों को चार प्रमुख कमजोरियों का सामना करना पड़ता है:

1.     दैनिक जीवन की गतिविधियों में बाधा: अधिकांश बुजुर्ग व्यक्तियों को दैनिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

2.     बहु-रुग्णता: बुजुर्ग जनसंख्या में पुरानी बीमारियाँ प्रचलित हैं, जहाँ 75% लोग एक या अधिक पुरानी बीमारियों से ग्रसित हैं। चिंताजनक रूप से, 25% बुजुर्गों का स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित है, जबकि 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह प्रतिशत 20% से अधिक है।

3.     आर्थिक असुरक्षा: लगभग 20% बुजुर्ग गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं, जिनके पास कोई नियमित आय स्रोत नहीं है। इस कारण उन्हें तत्काल सामाजिक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।

4.     सामाजिक अलगाव: बदलते पारिवारिक ढाँचे, विशेषकर छोटे परिवारों की प्रवृत्ति, बुजुर्गों में सामाजिक अलगाव और भावनात्मक असुरक्षा को बढ़ा रहे हैं

भारतीय अनुदैर्ध्य (लॉन्गीट्यूडनल) आयु सर्वेक्षण (LASI, 2017-18) के अनुसार, लगभग 20% बुजुर्ग आबादी विभिन्न कमजोरियों का सामना करती है, जिनमें राज्यों के बीच उल्लेखनीय अंतर पाया गया है।

खाद्य असुरक्षा और कल्याण प्रावधानों की जागरूकता:

·        खाद्य असुरक्षा एक गंभीर समस्या है, जो 45 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 6% व्यक्तियों को प्रभावित करती है। ये लोग या तो कम भोजन ग्रहण करते हैं या कभी-कभी भोजन छोड़ने के लिए विवश होते हैं। साथ ही कल्याण प्रावधानों के प्रति जागरूकता चिंताजनक रूप से कम है। केवल 12% बुजुर्ग व्यक्तियों को "माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007" की जानकारी है, और केवल 28% को विभिन्न लाभ योजनाओं के बारे में पता है। इसके अलावा, IGNOAPS (इंडिया गवर्नमेंट ओल्ड एज पेंशन स्कीम), IGNWPS (इंडिया गवर्नमेंट न्यू विधवा पेंशन स्कीम) और अन्नपूर्णा जैसी योजनाओं को भी सीमित मान्यता प्राप्त है।

संरक्षण और सामाजिक एजेंसी की आवश्यकता:

·       बुजुर्गों द्वारा सामना की जाने वाली कमजोरियाँ अक्सर विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहार का कारण बनती हैं। इस संदर्भ में, लगभग 5% बुजुर्गों ने दुर्व्यवहार की शिकायत की है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के मामलों में। इन मुद्दों का समाधान करने के लिए, बुजुर्गों के लिए सामाजिक एजेंसी विकसित करने की दिशा में एक व्यापक आंदोलन की आवश्यकता है। समाज में बुजुर्गों के प्रति धारणा को दायित्व से मूल्यवान संपत्ति में बदलने के लिए अभिनव संस्थानों की स्थापना की जा सकती है।

पारिवारिक ढ़ाचे में परिवर्तन और बुजुर्गों के लिए आवास:

·        बुजुर्गों के आवास और परिवारिक ढांचे में परिवर्तन एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है, जो भारत की तेजी से वृद्ध होती आबादी से गहराई से जुड़ा हुआ है। जैसे-जैसे बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, परिवारों में औसत घरेलू आकार में कमी रही है, जिससे पारिवारिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं। यह स्थिति इस बात को उजागर करती है कि बुजुर्ग व्यक्तियों को परिवारों में समायोजित करने की प्रक्रिया में किस प्रकार की चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। अब कई बुजुर्ग एक ही घर में एक साथ रहने लगे हैं, जो केवल निर्भरता को बढ़ाता है, बल्कि देखभाल की आवश्यकता, सामाजिक सुरक्षा और वित्तीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को भी जन्म देता है।

भविष्य के बुजुर्ग: अवसर और चुनौतियाँ:

·        आज के बुजुर्गों की तुलना में कल के बुजुर्गों का आकलन करने पर लाभ और हानि दोनों का अनुमान लगा सकते हैं। भविष्य के बुजुर्ग व्यक्तियों को बेहतर शिक्षा, जीवन की तैयारी और आर्थिक स्वतंत्रता का लाभ प्राप्त हो सकता है। हालांकि, उन्हें दीर्घकालिक पुरानी बीमारियों के बढ़ते प्रचलन के कारण स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता से जुड़ी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

·        "स्वस्थ उम्र बढ़ने" की अवधारणा को केवल वर्तमान बुजुर्ग आबादी पर केंद्रित नहीं करना चाहिए, बल्कि भावी बुजुर्गों पर भी ध्यान देना आवश्यक है, जिससे वृद्धावस्था में वयस्कों के बीच स्वास्थ्य-संवर्धन उपायों की आवश्यकता स्पष्ट होती है। यद्यपि दैनिक गतिविधियों में सीमाएँ उम्र के साथ बढ़ने की प्रवृत्ति को दर्शाती हैं, लेकिन आशा है कि ये सीमाएँ भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवन के अंतिम चरणों तक स्थगित की जा सकेंगी।

बुज़ुर्गों की चुनौतियों से निपटने की रणनीतियाँ:

बुजुर्ग आबादी के सामने आने वाली चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए कई रणनीतियों को लागू किया जाना चाहिए:

1.     वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देना: वित्तीय स्वतंत्रता के लिए तैयारियों को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बुजुर्ग व्यक्ति उम्र बढ़ने के साथ स्वस्थ, सक्रिय और उत्पादक जीवन का आनंद ले सकें।

2.     बुजुर्गों को सशक्त बनाना: बुजुर्गों की सामाजिक स्थिति को मजबूत करने के लिए उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है। यह उनके अधिकारों और गरिमा को बढ़ाने में सहायक होगा। साथ ही नए प्रकार के संस्थानों की स्थापना आवश्यक है, जोकि बुजुर्गों को बोझ के बजाय मूल्यवान संपत्ति के रूप में मान्यता दें।

3.     सक्रिय जीवनशैली को प्राथमिकता देना: युवा गतिशीलता, सेवाओं के डिजिटलीकरण और सामाजिक बहिष्कार जैसे बदलावों को देखते हुए, भविष्य के बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए सक्रिय जीवन को प्राथमिकता देना आवश्यक है। इस दृष्टिकोण को "इक्विप लाइफ़" (EQUIP) के संक्षिप्त नाम में समाहित किया जा सकता है, जोकि सपनों, ऊर्जा, नवीनता, लालसा और प्रेरणा पर जोर देता है।

निष्कर्ष:

भारत में वृद्ध होती आबादी के संदर्भ में जनसांख्यिकीय बदलावों ने चुनौतियों और अवसरों दोनों को जन्म दिया है। बुजुर्गों की कमजोरियों की पहचान और उनके समाधान के लिए व्यापक नीतियों का कार्यान्वयन आवश्यक है, ताकि वृद्ध व्यक्तियों को उनकी गरिमा और सम्मान के अनुरूप व्यवहार मिल सके। भविष्य में, सामूहिक प्रयासों, जागरूकता बढ़ाने और बुजुर्गों के सशक्तीकरण की दिशा में ठोस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, ताकि वे समाज में सार्थक और सक्रिय भूमिका निभा सकें।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

भारत की तेजी से वृद्ध होती आबादी के संदर्भ में, बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा और कल्याण नीतियों पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करें। वर्तमान उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें और इस जनसांख्यिकीय समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली कमजोरियों को दूर करने के लिए रणनीतियों की चर्चा करें।