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Daily-current-affairs / 30 Jan 2024

म्यांमार की अशांति: असंतोष, बदलाव और क्षेत्रीय प्रतिक्रिया

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संदर्भ:

  • वर्तमान म्यांमार के अशांत परिदृश्य को आकार देने में, पिछले तीन वर्षों की कई रणनीतिक बदलावों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसकी शुरुआत सैन्य तख्तापलट से हुई थी। इस तख्तापलट ने आंग सान सू की के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को गिरा दिया, जिसके कारण म्यांमार में व्यापक असंतोष फैल गया। इस असंतोष की प्रतिक्रिया में, लोगों ने बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया और संसद के अपदस्थ सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय एकता सरकार का गठन किया गया। इस प्रकार सेना, जातीय सशस्त्र संगठनों और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (पीडीएफ) के बीच निरंतर संघर्ष ने देश की राजनीतिक और क्षेत्रीय गतिशीलता को नया आकार दिया है|

शांति का क्षरण: जातीय सशस्त्र संगठन और पीडीएफ

  • तख्तापलट के एक अनपेक्षित परिणाम के रूप में म्यांमार में राष्ट्रीय एकता का ह्रास हुआ है। साथ ही सेना ने जातीय सशस्त्र संगठनों और पीडीएफ को क्षेत्रीय नियंत्रण सौंप दिया है। अराकान आर्मी, म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस आर्मी और तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी ने समन्वित हमले किए, जिससे देश की सम्पदा की काफी क्षति हुई, विशेषतः शान राज्य में। साथ ही साथ भारत की कालादान परियोजना का एक महत्वपूर्ण केंद्र, पलेत्वा इस समय अराकान आर्मी के नियंत्रण में है, जो म्यांमार के आंतरिक संघर्ष के भू-राजनीतिक प्रभावों को दर्शाता है।
  • इस क्षेत्रीय क्षति ने म्यांमार की सेना के लिए, ऐतिहासिक रूप से जातीय सशस्त्र समूहों से विद्रोह जैसी चुनौतियों को जन्म दिया है। हालाँकि, वर्ष 2010 और 2020 के बीच अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण कमजोर होने के बावजूद, म्यांमार की सेना ने अपनी वायु और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाया। फिर भी, एक रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार सशस्त्र बल उन क्षेत्रों में भी संघर्ष करते हैं जहां बमार जातीय समुदाय का प्रभुत्व है। इसके अलावा इस प्रतिरोध आंदोलन के साथ जुड़े सरकारी अधिकारियों, डॉक्टरों और पुलिस कर्मियों के छिटपुट विवरण बढ़ते आंतरिक असंतोष को उजागर करते हैं जो जातीय सीमाओं से परे है।

सैन्य सामंजस्य और आंतरिक असंतोष:

  • तख्तापलट के बाद नेताओं द्वारा निहत्थे नागरिकों के खिलाफ गोलाबारी के कारण आंतरिक विस्थापन बढ़ गया है और पड़ोसी देश शरणार्थी संकट से जूझ रहे हैं। यद्यपि म्यांमार की यह क्षति पूरी तरह से सैन्य अक्षमता के लिए जिम्मेदार नहीं है, बल्कि यह लोकप्रिय असंतोष का भी परिणाम है। रोजगार हेतु भर्ती चुनौतियाँ, सैन्य कर्मियों द्वारा जातीय सशस्त्र समूहों के सामने आत्मसमर्पण करने वाली रिपोर्टें और सीमा पार शरण लेने वाले सैनिक आदि सभी बढ़ते तनाव के साथ-साथ सैन्य एकजुटता को भी चिन्हित करते हैं। इसके अतिरिक्त पलायन को रोकने में विफल रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ कथित दंडात्मक कार्रवाई म्यांमार सेना के सामने आने वाली आंतरिक चुनौतियों को रेखांकित करती है।

चीन की रणनीतिक पहल:

  • म्यांमार के बढ़ते आंतरिक कलह के बीच चीन ने अपने हितों की रक्षा के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति अपनाई है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, बीजिंग वैश्विक आलोचना से म्यांमार की सेना का बचाव करता है। इसके साथ ही, म्यांमार की उत्तरी सीमा पर जातीय सशस्त्र संगठन चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए हैं। यह संघर्ष की गतिशीलता में चीनी सहमति को उजागर करता है। हालांकि यह अफवाह भी है, कि बीजिंग चीनी नागरिकों को नुकसान पहुंचाने वाले आपराधिक सिंडिकेट को दबाने के लिए इस जातीय गठबंधन का उपयोग करता है। तथापि अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के बाद, चीन ने विद्रोहियों और म्यांमार सेना के बीच युद्धविराम कराया है। इस युद्धविराम की दीर्घकालिक स्थिरता अनिश्चित है, क्योंकि तख्तापलट करने वाले नेताओं और जातीय सशस्त्र समूहों दोनों पर बीजिंग का प्रभाव बाह्य हस्तक्षेप के साथ राष्ट्रीय पार्टियों के सहज संबंध को चिन्हित करता है।

आसियान का सीमित प्रभाव और थाईलैंड की भूमिका:

  • एक प्रमुख क्षेत्रीय भागीदार, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) ने भी म्यांमार के प्रक्षेप पथ को प्रभावित किया है। पाँच-सूत्रीय सहमति व्यक्त करने और म्यांमार सेना को अपने शिखर सम्मेलन में स्थान नहीं देने के बावजूद, आसियान का प्रभाव सीमित है। म्यांमार में आसियान के विशेष दूत के प्रयासों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे सभी हितधारकों के साथ सार्थक बातचीत संभव नहीं हो पाई है। कुछ आसियान सदस्य अपने परंपरागत मौन से हटकर खुलेआम म्यांमार तख्तापलट की आलोचना कर रहे हैं। लगभग 2,416 किलोमीटर की साझा सीमा के कारण अपने महत्वपूर्ण प्रभाव वाला थाईलैंड; म्यांमार के साथ कई मोर्चों पर जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में पिछले वर्ष, थाईलैंड के विदेश मंत्री ने म्यांमार के सैन्य नेतृत्व और जेल में बंद आंग सान सू की दोनों से बातचीत की थी। अतः म्यांमार के निर्वासित संगठनों और मानवीय प्रयासों के साथ थाईलैंड की सक्रिय भागीदारी, इस क्षेत्र में थाईलैंड की अहम् भूमिका को रेखांकित करती है।

भारत के रणनीतिक विचार:

  • साझा सीमा और ऐतिहासिक संबंधों के साथ भारत, म्यांमार के प्रक्षेप पथ को प्रभावित करने में एक अद्वितीय स्थान रखता है। इस अशांत माहौल में, भारत म्यांमार में विस्थापित समुदायों को राहत प्रदान करते हुए अधिक सक्रिय मानवीय दृष्टिकोण अपना सकता है। इस तरह की पहल अपने पूर्वी पड़ोसी को स्थिर करने में भारत के हितों के अनुरूप है और भारत में शरणार्थियों की आमद को कम करने में मदद कर सकती है। हालाँकि, इसके लिए भारत को तीन महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिरोधों से निजात पाना होगा।
    • सबसे पहले, तख्तापलट के खिलाफ असंतोष को कम करना, यद्यपि इसके तत्काल कम होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। साथ ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व के तहत चुनाव कराने का सेना का वादा शासन की अस्थिरता के कारण अधूरा है, जिसे संबोधित करने के लिए उसे लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है।
    • दूसरे, एक सशक्त नेता की अनुपस्थिति और सीमित अंतरराष्ट्रीय समर्थन के बावजूद, तख्तापलट के प्रतिरोध ने शासन संचालन में उल्लेखनीय लचीलापन प्रदर्शित किया है। इसे नियंत्रित करना आवश्यक है।
    • अंत में, म्यांमार का राजनीतिक परिदृश्य खंडित है, जिसपर विभिन्न क्षेत्रों में सेना, जातीय सशस्त्र संगठनों और पीडीएफ द्वारा अलग-अलग स्तर का नियंत्रण है। ऐसा प्रतीत होता है कि सेना अपने -क्षेत्रम को प्राप्त करने से ज्यादा खोती जा रही है, जिसके लिए सभी संबंधित हितधारकों के परामर्श से भारत की म्यांमार नीति के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।

 

भारत और म्यांमार के बीच सहयोग:

  • इस समय भारत और म्यांमार एक व्यापक और विविध सहयोग साझा करते हैं, जो कई क्षेत्रों तक फैला हुआ है। इस साझेदारी में व्यापार और अर्थव्यवस्था, कनेक्टिविटी, विकास सहायता, रक्षा सहयोग, बहुपक्षीय जुड़ाव और मानवीय सहायता शामिल है।
  • वर्तमान में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में 2.18 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। यह शुल्क-मुक्त टैरिफ वरीयता योजना में म्यांमार की भागीदारी से सहायता प्राप्त है। भारत-म्यांमार मैत्री रोड, कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट और एशियाई त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं इस प्रकार की कनेक्टिविटी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • भारत आरम्भ से ही म्यांमार के विकास का समर्थन करने हेतु 2 अरब डॉलर के आसान ऋण देने और म्यांमार सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान जैसी पहल में योगदान देने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भारत-म्यांमार द्विपक्षीय सेना अभ्यास (IMBAX) जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यासों के माध्यम से रक्षा सहयोग स्पष्ट है, जो भारत के उत्तर-पूर्व में उग्रवाद संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है।
  • आसियान, बिम्सटेक और मेकांग गंगा सहयोग जैसे क्षेत्रीय संगठनों में म्यांमार की भागीदारी भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति के अनुरूप है, जो उनके द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक क्षेत्रीय/उप-क्षेत्रीय आयाम प्रदान करती है।
  • भारत ने समय-समय पर मानवीय सहायता, चक्रवात नरगिस जैसी आपदाओं पर तेजी से प्रतिक्रिया देने और म्यांमार में भूकंप के बाद सहायता प्रदान करके एकजुटता का प्रदर्शन किया है। इस सहयोग की बहुमुखी प्रकृति भारत-म्यांमार संबंधों की के महत्व को रेखांकित करती है।

 

निष्कर्ष:

  • चूँकि इस समय म्यांमार आंतरिक कलह और बाहरी दबावों से जूझ रहा है, इसके राजनीतिक परिदृश्य की दिशा अनिश्चित बनी हुई है। तख्तापलट के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में सेना की विफलता के परिणामस्वरूप जातीय सशस्त्र समूहों और पीडीएफ को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय नुकसान हुआ है। चीन की रणनीतिक चालें, आसियान का सीमित प्रभाव, थाईलैंड की सक्रिय भूमिका और मानवीय हस्तक्षेप के लिए भारत की क्षमता; ये सभी जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य के निर्माण में योगदान देते हैं। वर्तमान के प्रतिरोध आंदोलन का स्थायी लचीलापन और खंडित राजनीतिक परिदृश्य क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नेताओं द्वारा सूक्ष्म और सुनियोजित नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। अतः म्यांमार के भविष्य की जटिलताओं को दूर कर अधिक स्थायी तथा समावेशी म्यांमार का मार्ग प्रशस्त करने के लिए कुशल राजनयिक प्रयास, मानवीय पहल और क्षेत्रीय सहयोग अनिवार्य है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. म्यांमार सेना के क्षेत्रीय नियंत्रण और प्रतिरोध आंदोलनों को संबोधित करने की उसकी क्षमता पर आंतरिक असंतोष के प्रभाव का मूल्यांकन करें। व्यापक असंतोष की स्थिति में एकजुटता और नियंत्रण बनाए रखने में सेना के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. म्यांमार की राजनीतिक उथल-पुथल के जवाब में चीन, आसियान, थाईलैंड और भारत जैसे प्रमुख अभिनेताओं की क्षेत्रीय रणनीतियों का विश्लेषण करें। बाहरी प्रभावों ने राजनीतिक गतिशीलता को कैसे आकार दिया है, और इसका म्यांमार और व्यापक दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र की स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ता है? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- हिंदू