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Daily-current-affairs / 23 Jul 2024

धन विधेयक - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने संविधान पीठ के समक्ष उन याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है, जो केंद्र द्वारा विवादास्पद कानूनों/संशोधनों को पारित करने के लिए धन विधेयक मार्ग अपनाने को चुनौती देती हैं।

धन विधेयक की परिभाषा और वर्गीकरण

भारतीय संविधान में वित्तीय मामलों से संबंधित विशिष्ट प्रकार के विधेयकों को धन विधेयक और वित्तीय विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अनुच्छेद 110(1)(a) से (f) धन विधेयक को इस प्रकार परिभाषित करता है, जिसमें केवल छह विशिष्ट विषयों से संबंधित प्रावधान शामिल होते है:

  1. कराधान
  2. सरकारी उधार
  3. समेकित कोष या आकस्मिकता कोष से निकासी और व्यय
  4. समेकित कोष से विनियोग
  5. समेकित कोष पर व्यय
  6.  संघ या राज्यों के खातों की प्राप्ति और लेखा परीक्षा

अनुच्छेद 110(1)(G) में इन छह विषयों से संबंधित प्रासंगिक मामलों को भी शामिल किया गया है। धन विधेयकों के उदाहरणों में वे वित्त अधिनियम और विनियोग अधिनियम शामिल होते हैं, जो मुख्य रूप से कराधान और समेकित कोष से व्यय से संबंधित होते हैं। अनुच्छेद 117 में आगे वित्तीय विधेयकों दो श्रेणियों में विभाजित हैं:

  • श्रेणी I: इसमें अनुच्छेद 110(1)(a) से (f) में निर्दिष्ट छह मामले शामिल हैं और इसके अलावा कोई अन्य मामले।
  • श्रेणी II: इसमें छह मामले शामिल नहीं हैं, लेकिन समेकित कोष से व्यय शामिल है।

भारत में धन विधेयकों के प्रमुख प्रकार

  1. विनियोग विधेयक: यह विधेयक सरकार को निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए भारत के समेकित कोष से धन निकालने का अधिकार देता है। इसमें सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्ते, पेंशन, राज्यों को अनुदान और रक्षा एवं बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण जैसे व्यय शामिल होते हैं। विनियोग विधेयक को लोकसभा में पारित करने के लिए केवल साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है और इसे राज्यसभा की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती।
  2. वित्त विधेयक: वित्त विधेयक वार्षिक बजट प्रक्रिया का केंद्र होते हैं, इसमें आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अनुमानित राजस्व और व्यय संबंधी प्रावधान शामिल होते है। इसके माध्यम से नए करों को लागू किया जाता है या मौजूदा कर दरों को संशोधित किया जाता है। विनियोग विधेयक की तरह, वित्त विधेयक को पारित करने के लिए केवल लोकसभा में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है और इसे राज्यसभा की सहमति की आवश्यकता नहीं होती।
  3. अनुपूरक अनुदान की मांग: यह विधेयक उन व्यय प्रमुखों के लिए अतिरिक्त धन की मांग करता है, जो मूल बजट में शामिल नहीं थे। इसे वित्तीय वर्ष के दौरान अप्रत्याशित खर्चों या आपात स्थितियों से निपटने के लिए पेश किया जा सकता है। अनुपूरक अनुदान की मांग को पारित करने के लिए भी केवल लोकसभा में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है और इसे भी राज्यसभा की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती।
  4. वोट ऑन अकाउंट : वोट ऑन अकाउंट सरकार को आवश्यक व्यय को कवर करने के लिए एक सीमित अवधि के लिए भारत के समेकित कोष से धन निकालने की अनुमति देता है, आमतौर पर यह तब पारित किया जाता है जब तक नियमित बजट पारित नहीं हो जाता। यह विधेयक आमतौर पर नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में पेश किया जाता है यदि नियमित बजट उस समय तक अंतिम रूप से तैयार नहीं होता। इस विधेयक को भी पारित करने के लिए केवल लोकसभा में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है और राज्यसभा की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती।

धन विधेयकों के लिए प्रक्रिया

अनुच्छेद 109 के अनुसार, धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद, राज्यसभा के पास इसकी समीक्षा और सिफारिशें देने के लिए 14 दिन होते हैं, जिन्हें लोकसभा स्वीकार कर भी सकती है या नहीं भी। यह विशेष प्रक्रिया देश के वित्तीय मामलों के प्रबंधन में धन विधेयकों के महत्व को रेखांकित करती है। इन विधेयकों के अनुमोदन के लिए डिज़ाइन की गई प्रक्रिया लोकसभा में बहुमत के दृष्टिकोण को दर्शाती है जहां सत्तारूढ़ सरकार का महत्वपूर्ण नियंत्रण होता है। यह प्रक्रिया यू.के. के 1911 के दृष्टिकोण से प्रेरित है, जिसमें बजट पर हाउस ऑफ लॉर्ड्स की शक्ति को सीमित कर दिया गया था, और बजट अनुमोदन को निर्वाचित हाउस ऑफ कॉमन्स को आरक्षित किया था। ध्यातव्य है कि लोकसभा के अध्यक्ष के पास विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने की जिम्मेदारी होती है।

भारत में धन विधेयकों की प्रमुख विशेषताएं

  1. लोकसभा में पेश: धन विधेयक को केवल लोकसभा, संसद का निचला सदन, में पेश किया जा सकता है। इससे राज्यसभा पर लोकसभा की वित्तीय अधिकारिता सुनिश्चित होती है और वित्तीय मामलों पर त्वरित कार्रवाई होती है।
  2. साधारण बहुमत की आवश्यकता: धन विधेयक को पारित करने के लिए केवल लोकसभा में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है। इससे बिना राज्यसभा से देरी के वित्तीय नीतियों के त्वरित कार्यान्वयन की सुविधा मिलती है।  
  3. राज्यसभा की भूमिका: राज्यसभा धन विधेयक में संशोधन का सुझाव दे सकती है, लेकिन लोकसभा इन सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है। यह वित्तीय मामलों में लोकसभा की प्रमुख भूमिका को रेखांकित करता है और महत्वपूर्ण देरी को रोकता है।
  4. अध्यक्ष का प्रमाणन: लोकसभा के अध्यक्ष के पास किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने का विशेष अधिकार होता है। इसका निर्णय अंतिम होता है और इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, परिणामतःअध्यक्ष को वित्तीय विधायन पर पर्याप्त नियंत्रण मिलता है।
  5. राष्ट्रपति की स्वीकृति: लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद, धन विधेयक को स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है। राष्ट्रपति धन विधेयक को स्वीकृति देने से मना नहीं कर सकते, जिससे सरकार की वित्तीय नीतियों को राष्ट्रपति द्वारा वीटो के बिना कार्यान्वित किया जा सकता है।

धन विधेयकों के लिए विशेष उपचार क्यों?

  1. वित्तीय प्रभाव: धन विधेयक सीधे सरकार के खर्च और राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। इनके माध्यम से नए करों को लागू किया जा सकता है, सरकारी उधार को मंजूरी दी जा सकती, या विशिष्ट उद्देश्यों के लिए धन आवंटित कर सकते हैं। वित्तीय नियंत्रण की इस शक्ति की सावधानीपूर्वक जांच की आवश्यकता है।
  2. राजकोषीय कुप्रबंधन की रोकथाम: एक विशेष प्रक्रिया जिम्मेदार खर्च सुनिश्चित करती है और जल्दबाजी में वित्तीय निर्णयों के जोखिम को कम करती है जो अर्थव्यवस्था पर बोझ डाल सकती हैं।
  3. संसदीय नियंत्रण बनाए रखना: विशेष प्रक्रिया वित्तीय मामलों में लोकसभा (निचला सदन) की शक्ति को मजबूत करती है, जिससे धन विधेयकों पर अंतिम निर्णय लेने और सरकार की जिम्मेदारी सुनिश्चित होती है।

प्रमाणन और न्यायिक समीक्षा के मुद्दे

हालिया लोकसभा अध्यक्ष द्वारा किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने पर न्यायिक जांच का सामना करना पड़ा है। विशेष रूप से, 2016 का आधार अधिनियम, जिसमें नामांकन, प्रमाणीकरण और दंड से संबंधित प्रावधान शामिल थे, को व्यापक गैर-वित्तीय  प्रावधानों के बावजूद धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 4:1 के बहुमत के साथ मंजूरी दी, हालांकि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने असहमति व्यक्त करते हुए तर्क दिया कि अधिनियम धन विधेयक के मानदंडों को पूरा नहीं करता था।

2017 का वित्त अधिनियम, जिसने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण सहित विभिन्न न्यायाधिकरणों के पुनर्गठन से संबंधित विभिन्न अधिनियमों में संशोधन किया, को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने से विवाद उत्पन्न हुआ। इसे रॉजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक (2019) के मामले में चुनौती दी गई थी, जहां पांच-न्यायाधीशीय पीठ ने तर्क दिया कि आधार मामले ने धन विधेयक की परिभाषा में 'केवल' शब्द के निहितार्थों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया। तदनुसार, विवादास्पद संशोधनों को आगे की जांच के लिए सात-न्यायाधीशीय पीठ को भेजा गया।

निष्कर्ष

धन विधेयकों का वर्गीकरण और अनुमोदन संसद की कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य वित्तीय नीतियों के प्रभावी और जिम्मेदार कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना है। समय-समय पर न्यायिक समीक्षा और विवादों ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और सही उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया है। भविष्य में इन प्रावधानों पर न्यायिक निर्णय और विधायिका की प्रतिक्रियाएँ भारतीय लोकतंत्र में वित्तीय विधायन की दिशा निर्धारित करेंगी।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

1.    लोकसभा के अध्यक्ष की भूमिका की आलोचनात्मक समीक्षा करें कि वे किस प्रकार किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करते हैं। इस शक्ति के विधायी प्रक्रिया पर प्रभाव और लोकसभा एवं राज्यसभा के बीच सत्ता संतुलन में आने वाली संभावित चुनौतियों पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)

2.    आधार अधिनियम और वित्त अधिनियम को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रभाव का मूल्यांकन करें। इन वर्गीकरणों की न्यायिक जांच भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 की व्याख्या को कैसे प्रभावित करती है? धन विधेयकों के वर्गीकरण में उठाए गए मुद्दों को संबोधित करने के लिए क्या सुधार आवश्यक हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: हिंदू