सन्दर्भ:
हाल ही में भारत में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता ने बेहतर मौसम पूर्वानुमान प्रणालियों की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है। मानसून, जोकि भारतीय कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, अब तेजी से अप्रत्याशित होता जा रहा है। 2023 का मानसून सीजन विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहा, जिसमें कई राज्यों में भयंकर बाढ़ आई, जिससे लोगों की आजीविका और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
· ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) के शोध के अनुसार, भारत के लगभग 40% जिले जलवायु संबंधी खतरों का सामना कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में बाढ़ और शुष्क अवधि के दौरान सूखे जैसी चरम घटनाओं का संयोजन विशेष रूप से चिंताजनक है। पिछले एक दशक में मानसून के दौरान भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या में 64% की वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि पिछले 40 वर्षों के वर्षा डेटा के विश्लेषण पर आधारित है। यह स्थिति जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को उजागर करती है ।
उन्नत मौसम पूर्वानुमान की आवश्यकता:
· भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी बाढ़ के खतरे का सामना कर रही है, लेकिन बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में केवल एक-तिहाई लोग ही पूर्व चेतावनी प्रणालियों से जुड़े हुए हैं। यह स्थिति चक्रवात-प्रवण क्षेत्रों के साथ तीव्र विरोधाभास प्रस्तुत करती है, जहाँ सभी क्षेत्रों को पूर्व चेतावनी प्रणाली द्वारा कवर किया गया है। यह अंतर दर्शाता है कि बढ़ते चरम मौसम खतरों से निपटने के लिए भारत में मौसम पूर्वानुमान क्षमताओं को सुदृढ़ और समान रूप से लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।
· इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार ने सितंबर 2024 में "मिशन मौसम" को मंजूरी दी। इस महत्वाकांक्षी पहल का उद्देश्य भारत के मौसम अवलोकन नेटवर्क को बढ़ाना, पूर्वानुमान मॉडल में सुधार करना और मौसम संशोधन तकनीकों का विकास करना है।
· यह योजना मुख्य रूप से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत तीन प्रमुख संस्थानों द्वारा लागू की जाएगी:- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM)।
· 2,000 करोड़ रुपये की इस पहल का उद्देश्य मौसम अवलोकन क्षमताओं में वृद्धि करना है। इसके अंतर्गत विभिन्न उपकरणों का उपयोग कर मौसम डेटा संग्रह को सुदृढ़ किया जाएगा और वायुमंडलीय भौतिकी की बेहतर समझ के साथ मशीन-लर्निंग दृष्टिकोणों को एकीकृत कर पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार किया जाएगा।
मिशन मौसम के प्रमुख फोकस क्षेत्र:
1. पूर्वानुमान क्षमताओं का विस्तार:
o मौसम अवलोकन प्लेटफॉर्म की स्थापना: भारत के पश्चिमी तट और जलवायु-संवेदनशील शहरी केंद्रों में मौसम अवलोकन प्लेटफार्मों की स्थापना को प्राथमिकता दी जाएगी। वर्तमान में, भारत में केवल 39 डॉपलर मौसम रडार (DWR) स्थापित हैं, जिनमें से कुछ ही महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करते हैं। अहमदाबाद, बेंगलुरु और जोधपुर जैसे प्रमुख शहरी केंद्र, जो हाल के वर्षों में भीषण बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, रडार कवरेज की कमी का सामना कर रहे हैं।
2. मौसम संबंधी आंकड़ों तक स्वतंत्र पहुंच:
यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मौसम संबंधी डेटा शोधकर्ताओं और उद्यमियों के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हो, ताकि नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके। इस खुली पहुंच से रुझानों का विश्लेषण करने और स्थानीयकृत प्रारंभिक चेतावनी उपकरण विकसित करने में सहायता मिलेगी। अमेरिका और यूके जैसे देशों ने अपने मौसम संबंधी डेटा को सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाकर सफलतापूर्वक विभिन्न विश्लेषणात्मक उपकरण विकसित किए हैं, जो स्थानीय शासन को समर्थन प्रदान करने में सहायक रहे हैं।
3. मौसम संबंधी चेतावनियों का बेहतर संचार:
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) वर्तमान में वेब और मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से जिलेवार मौसम चेतावनियाँ प्रदान करता है, लेकिन उपयोगकर्ता अनुभव को और बेहतर बनाने की आवश्यकता है। संचार उपकरणों को सुदृढ़ करने के लिए सूचनात्मक वीडियो और गाइड के माध्यम से उपयोगकर्ताओं को शिक्षित किया जा सकता है, ताकि वे मौसम संबंधी चेतावनियों की बेहतर व्याख्या कर सकें। इससे नागरिकों को समय पर और प्रभावी रूप से कार्रवाई करने में मदद मिलेगी, जिससे जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
भारत में मौसम पूर्वानुमान की सफलताएँ:
भारत में मौसम पूर्वानुमान में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिससे सटीकता में सुधार, समय पर पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन क्षमताओं में वृद्धि हुई है। निम्नलिखित प्रमुख सफलताएँ इस क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति को उजागर करती हैं:-
1. उन्नत चक्रवात पूर्वानुमान प्रणाली:
भारत में चक्रवातों के समय पर और सटीक पूर्वानुमान के कारण एक विश्वसनीय प्रतिक्रिया और निकासी तंत्र की स्थापना संभव हो पाई है।
· उदाहरणस्वरूप, 2013 के चक्रवात फैलिन और 2020 के चक्रवात अम्फान की सटीक भविष्यवाणियों ने हजारों लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चक्रवातों का प्रभावी पूर्वानुमान लगाने की क्षमता ने अधिकारियों को पूर्व उपाय लागू करने और तटीय क्षेत्रों की कमजोर आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम बनाया है।
2. मानसून की भविष्यवाणी:
मौसम विज्ञान एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए दीर्घकालिक मानसून पूर्वानुमानों ने पिछले दशक में लगभग 100% सटीकता हासिल की है। यह सफलता भारत के लिए आवश्यक है, जहाँ कृषि मानसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर करती है। सटीक मानसून पूर्वानुमान किसानों को अपनी रोपण और कटाई गतिविधियों की योजना बनाने की अनुमति देता है, जिससे कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होती है।
3. परिवहन के लिए मौसम पूर्वानुमान:
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा विकसित 'विंटर फॉग एक्सपेरीमेंट' (WIFEX) ने कोहरे से संबंधित जानकारी के प्रसार में उल्लेखनीय सुधार किया है। यह पहल एयरलाइनों और यात्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से सर्दियों के महीनों में, जब कोहरा हवाई यातायात को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। कोहरे के सटीक पूर्वानुमान से सुरक्षा बढ़ती है और देरी कम होती है, जिससे परिवहन सेवाओं की समग्र दक्षता में सुधार होता है।
4. वायु गुणवत्ता निगरानी:
आईएमडी की वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) का उपयोग दिल्ली सहित प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर की निगरानी के लिए किया जा रहा है। यह प्रणाली वायु गुणवत्ता पर वास्तविक समय डेटा प्रदान करती है, जिससे अधिकारियों और नागरिकों को प्रदूषण के स्तर को समझने और आवश्यक सावधानी बरतने में मदद मिलती है। मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) वायु गुणवत्ता की जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ जागरूकता बढ़ाने, सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों और पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
5. भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा में वृद्धि:
आईएमडी को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक के रूप में मान्यता दी गई है।
o इसके अतिरिक्त, आईएमडी ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र के 'सभी के लिए शीघ्र चेतावनी' कार्यक्रम में योगदान दिया है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रयासों में इसकी भूमिका मजबूत हुई है।
मौसम निगरानी में चुनौतियाँ:
- रडार कवरेज की सीमाएँ:
भारत वर्तमान में वर्षा की निगरानी के लिए 39 डॉप्लर मौसम रडार (DWR) संचालित करता है, जिनका कवरेज उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों तक सीमित है। उदाहरण के लिए, पूरे पश्चिमी तट पर केवल पांच राडार स्थापित हैं, जबकि अहमदाबाद, बेंगलुरु और जोधपुर जैसे प्रमुख शहरों में, जहां बार-बार बाढ़ आती है, रडार की स्थापना नहीं की गई है। अरब सागर में चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारण संवेदनशील स्थानों पर अतिरिक्त मौसम निगरानी प्रणालियों की तत्काल स्थापना आवश्यक हो गई है। - डेटा सुलभता की चुनौतियाँ:
स्थानीयकृत विश्लेषणात्मक उपकरण विकसित करने के लिए मौसम संबंधी डेटा तक खुली पहुँच महत्वपूर्ण है। हालाँकि, IMD अपने आपूर्ति पोर्टल के माध्यम से डेटा प्रदान करता है, लेकिन डेटा की मात्रा और पहुँच पर प्रतिबंध हैं। इसके विपरीत, अमेरिका, यूके और फ्रांस जैसे देश अपने मौसम संबंधी आंकड़ों तक खुली पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे शोधकर्ताओं और उद्यमियों को स्थानीय सरकारों के लिए आपदा की तैयारी और प्रतिक्रिया में सहायता करने वाले नवाचार करने में मदद मिलती है। - उपयोगकर्ता सहभागिता बढ़ाने की आवश्यकता:
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने जिलेवार मौसम चेतावनियों के लिए एक प्रभावी वेब एप्लिकेशन विकसित किया है, फिर भी उपयोगकर्ता अनुभव में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है। वर्तमान परिदृश्य में, केवल चेतावनियाँ जारी करना पर्याप्त नहीं है, आवश्यक है कि उपयोगकर्ता इन चेतावनियों को सही ढंग से समझें और उस पर समयबद्ध तरीके से प्रतिक्रिया कर सकें। इस दिशा में 'मिशन मौसम' का ध्यान वीडियो और अन्य सूचनात्मक संसाधनों के माध्यम से जनता को शिक्षित करने पर केंद्रित होना चाहिए।
निष्कर्ष:
मिशन मौसम चरम मौसम की घटनाओं से उत्पन्न बढ़ते खतरों के प्रति भारत सरकार की त्वरित और आवश्यक प्रतिक्रिया का प्रतीक है। अवलोकन नेटवर्क का विस्तार और पूर्वानुमान क्षमताओं को उन्नत करने के माध्यम से, यह पहल देशभर में मौसम संबंधी जानकारी के प्रसार और समझ में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखती है। भारत जैसे देश में, जोकि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रहा है, मौसम पूर्वानुमान में सुधार केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: भारत में जलवायु परिवर्तन का मौसम के पैटर्न पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? कृषि, बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए सरकारी नीतियों को कैसे अनुकूलित किया जा सकता है? |