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Daily-current-affairs / 27 Feb 2025

भारत में माइक्रोफाइनेंस: विकास, चुनौतियाँ और आगे की राह

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सन्दर्भ:

माइक्रोफाइनेंस ,जिसे माइक्रोक्रेडिट भी कहा जाता है, उन व्यक्तियों और छोटे व्यवसायों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करता है, जिनकी पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली तक पहुँच नहीं होती। इसमें माइक्रो-लोन, बचत खाते, बीमा, प्रेषण (Remittances) और अन्य वित्तीय उत्पाद शामिल होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा देना और हाशिए पर मौजूद समुदायों को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सशक्तिकरण प्रदान करना है। महिलाओं को माइक्रोफाइनेंस का सबसे अधिक लाभ मिलता है, क्योंकि इससे वे आर्थिक गतिविधियों में अधिक भाग ले सकती हैं, बेहतर निर्णय ले सकती हैं और उनकी सामाजिक स्थिति मजबूत होती है।

  • भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र पिछले कई दशकों में विकसित हुआ है। यह क्षेत्र विनियामक (Regulatory) सुधारों, वित्तीय संकटों और संरचनात्मक परिवर्तनों से गुजरा है। वर्तमान में, माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI) और स्वयं सहायता समूह (SHG) सामूहिक रूप से लगभग 12-14 करोड़ परिवारों को सेवा प्रदान कर रहे हैं। इस क्षेत्र का कुल ऋण पोर्टफोलियो 7 लाख करोड़ है, जिसमें से 4 लाख करोड़ संयुक्त देयता समूह (JLG) ऋण से संबंधित है। हालाँकि, इस क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें अत्यधिक ऋणग्रस्तता ,बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA), विनियामक बाधाएँ और परिचालन अक्षमताएँ (Operational Inefficiencies) शामिल हैं।

भारत में माइक्रोफाइनेंस का विकास:

भारत में माइक्रोफाइनेंस की यात्रा सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं और नियामक ढांचे के अनुकूल होते हुए अनेक चरणों से गुजरी है।

प्रारंभिक नींव (1970-1990): मॉडल की स्थापना

    1974 में, स्व-रोजगार महिला संघ (SEWA) बैंक की स्थापना गुजरात में की गई, जो भारत की पहली माइक्रोफाइनेंस संस्था बनी। इसने स्व-रोजगार हेतु महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने की पहल की।

    1992 में, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) ने स्वयं सहायता समूह (SHG) लिंकेज पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की, जिसने SHG को बचत एकत्र करने और बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।

विनियामक मान्यता (2000-2010): माइक्रोफाइनेंस का विस्तार

    2004 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने माइक्रोफाइनेंस को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) के अंतर्गत शामिल किया, जिससे बैंकों को अपने कुल ऋण का एक निश्चित प्रतिशत माइक्रोफाइनेंस गतिविधियों के लिए आवंटित करना अनिवार्य हो गया।

    2010 में, आंध्र प्रदेश संकट के दौरान जबरन वसूली और अति-ऋणग्रस्तता जैसी समस्याएँ सामने आईं, जिसके कारण राज्य सरकार ने माइक्रोफाइनेंस गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए।

    2010 में, मालेगाम समिति का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के लिए नए नियामक मानदंड विकसित करना और जिम्मेदार ऋण देने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करना था।

    2015 में, माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (MUDRA) बैंक की स्थापना की गई, ताकि सूक्ष्म और लघु उद्यमों को माइक्रोक्रेडिट (Microcredit) तक आसान पहुँच प्रदान की जा सके।

2015 के बाद : विस्तार और चुनौतियाँ

    2016 में, विमुद्रीकरण (Demonetization) के कारण नकदी की कमी हो गई, जिससे उधारकर्ताओं के लिए ऋण चुकाना मुश्किल हो गया और माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFI) के लिए धन की उपलब्धता प्रभावित हुई।

    2017 में, वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने से एमएफआई के संचालन में नई चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित हुई।

    2018-2019 में, इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) और दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (DHFL) जैसे वित्तीय संस्थानों के संकट के कारण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC-MFI) के लिए वित्तपोषण में कमी आई, जिससे उनकी ऋण देने की क्षमता बाधित हुई।

    2020-2021 में, कोविड-19 महामारी के कारण बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट पैदा हुआ, जिससे ऋण अदायगी में चूक (Loan Defaults) और परिचालन से जुड़ी समस्याएँ बढ़ गईं।

हालाँकि, इन चुनौतियों के बावजूद, तकनीकी प्रगति, बेहतर जोखिम मूल्यांकन और डिजिटल वित्तीय सेवाओं के विस्तार से माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र ने धीरे-धीरे सुधार किया। कोविड-19 के बाद की रिकवरी के कारण पिछले दो वर्षों में माइक्रोफाइनेंस ऋण पोर्टफोलियो और खातों में लगभग 50% की वृद्धि हुई।

भारत में माइक्रोफाइनेंस बिजनेस मॉडल:

1. स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups - SHG)

    स्वयं सहायता समूह (SHG) छोटे समूह होते हैं, जिनमें  सामान्यतौर पर 10-20 सदस्य होते हैं। ये सदस्य सामूहिक रूप से बचत करते हैं और जरूरत पड़ने पर उस बचत से ऋण लेते हैं।

    नाबार्ड (NABARD) का SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) दुनिया की सबसे बड़ी माइक्रोफाइनेंस पहल मानी जाती है, जो SHG को बैंक ऋण तक पहुँचने में मदद करता है।

    ये समूह सहकर्मी निगरानी मॉडल (Peer Monitoring Model) के तहत काम करते हैं, जिससे पारस्परिक जवाबदेही के जरिए ऋण चुकाने की दर अधिक बनी रहती है।

2. माइक्रोफाइनेंस संस्थान :

        एमएफआई (MFI) संयुक्त देयता समूह (Joint Liability Group - JLG) के तहत ऋण देते हैं, जिसमें 4-10 सदस्य मिलकर एक-दूसरे के ऋण की गारंटी लेते हैं। एमएफआई एक सख्त पुनर्भुगतान प्रक्रिया अपनाते हैं, जिससे वित्तीय अनुशासन बना रहता है।

        विनियामक निगरानी NBFC-MFI (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ) माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखती हैं और इन्हें RBI द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

3. माइक्रोफाइनेंस ऋणदाताओं के प्रकार:

    गैर सरकारी संगठन(NGO)-MFIये गैर-लाभकारी संगठन (Non-Profit Organizations) होते हैं, जोकि सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 या भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1880 के तहत पंजीकृत होते हैं।

    सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies) – प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS) जैसी संस्थाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्म वित्त सेवाएँ प्रदान करती हैं।

    धारा 8 के तहत कंपनियाँ ये कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत गैर-लाभकारी कंपनियाँ होती हैं, जो मुख्य रूप से वित्तीय समावेशन पर ध्यान देती हैं।

    गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था (NBFC) - इनका माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में लगभग 80% हिस्सा है और ये RBI द्वारा सख्त विनियमन के तहत आती हैं।

वर्तमान स्थिति और विकास रुझान

        माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र वर्तमान में 3 करोड़ से अधिक उधारकर्ताओं को सेवा प्रदान करता है।

        कुल बकाया ऋण: 7 लाख करोड़, महामारी के बाद तेजी से विस्तार हुआ

        रोजगार सृजन: यह क्षेत्र 130 लाख नौकरियों और भारत के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में 2% का योगदान देता है।

हालाँकि, बढ़ती देनदारियाँ और एनपीए वित्तीय तनाव के संकेत हैं।

        बढ़ते एनपीए:

o    ईएसएएफ स्मॉल फाइनेंस बैंक का सकल एनपीए सितंबर 2024 में बढ़कर 1,279.3 करोड़ (6.9%) हो गया, जो एक साल पहले 399.1 करोड़ (2.6%) था।

o    क्रिसिल का अनुमान है कि एसएफबी एनपीए वित्त वर्ष 24 में 2.3% से बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 2.9% हो जाएगा।

        संग्रह क्षमता में गिरावट:

o    वित्त वर्ष 2024 में संग्रह दक्षता 98% थी, जोकि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में घटकर 94% रह गई। यह माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में बढ़ते वित्तीय दबाव को दर्शाता है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस के समक्ष चुनौतियाँ

1. परिचालन और संरचनात्मक चुनौतियाँ

    अत्यधिक ऋणग्रस्त (Over-Indebted) उधारकर्ता: कई लोग अलग-अलग संस्थानों से कई ऋण ले लेते हैं, लेकिन उनकी चुकाने की क्षमता कमजोर होती है।

    कमजोर संयुक्त देयता समूह (JLG) मॉडल: समूह के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी समान होती है, लेकिन जवाबदेही की कमी के कारण ऋण चूक (Default) के मामले बढ़ रहे हैं।

    कर्मचारियों का पलायन और धोखाधड़ी:  कर्मचारियों के संस्थाओ को छोड़ने की दर अधिक है, जिससे ऋण वसूली प्रभावित होती है। कुछ मामलों में धोखाधड़ीपूर्ण ऋण (Fraudulent Loans) देने की घटनाएँ भी देखी गई हैं।

2. . उधारकर्ता की ऋणग्रस्तता और वित्तीय दबाव:

    बढ़ता क्रेडिट कार्ड ऋण:2023 में बकाया शेष राशि 2.30 लाख करोड़ थी, जो 2024 में बढ़कर 2.71 लाख करोड़ हो गई। यह संकेत देता है कि लोग अधिक कर्ज ले रहे हैं, जिससे उनके लिए पुनर्भुगतान कठिन हो सकता है।

    विनियामक प्रतिबंध: RBI ने NBFC-MFI पर अनुचित ब्याज दर (Predatory Pricing) और उधारकर्ता मूल्यांकन में खामियों के कारण सख्त नियम लागू किए हैं।

3. बाहरी चुनौतियाँ:

    राजनीतिक हस्तक्षेप: चुनावों से पहले कई दल ऋण माफी का वादा करते हैं, जिससे लोग जानबूझकर ऋण नहीं चुकाते।

    प्राकृतिक आपदाएँ:बाढ़ और सूखे से लोगों की आय पर असर पड़ता है, जिससे वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं।

नीतिगत उपायों के माध्यम से माइक्रोफाइनेंस को मजबूत करना:

1.   मानकीकृत घरेलू आय मूल्यांकन: इसका उद्देश्य उधारकर्ताओं की वास्तविक पुनर्भुगतान क्षमता का सही मूल्यांकन करना है, जिससे अत्यधिक ऋणग्रस्तता को रोका जा सके और माइक्रोफाइनेस क्षेत्र में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित हो।

2.   क्रेडिट डेटा अपडेट: क्रेडिट ब्यूरो को उधारकर्ताओं के डेटा को 15 दिन के बजाय साप्ताहिक रूप से अपडेट करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

3.   आधार-आधारित केवाईसी: आधार आधारित उधारकर्ता पहचान प्रणाली लागू करने से ऋण दोहराव और डेटा विसंगतियों को रोका जा सकता है।

4.   मजबूत विनियामक निगरानी: आरबीआई को NBFC-MFI के लिए सख्त निगरानी तंत्र लागू करना चाहिए, ताकि अनुचित ऋण प्रथाओं (Predatory Lending Practices) को रोका जा सके।

निष्कर्ष:

माइक्रोफाइनेंस ने कम आय वाले परिवारों के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है और भारत की वित्तीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, यह क्षेत्र बढ़ते एनपीए, अधिक ऋण लेने वाले उधारकर्ताओं और विनियामक बाधाओं के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है। यदि उधारकर्ता मूल्यांकन को मजबूत किया जाए, पारदर्शिता बढ़ाई जाए और जिम्मेदार ऋण देने की प्रथाओं को अपनाया जाए, तो माइक्रोफाइनेंस की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है। प्रौद्योगिकी, डेटा-संचालित नीतियों और वित्तीय नवाचारों का उपयोग करके, माइक्रोफाइनेंस भारत में आर्थिक सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन के लिए एक प्रभावी उपकरण बना रह सकता है।

 

मुख्य प्रश्न: माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक बाहरी चुनौतियों पर चर्चा करें, जैसे कि ऋण-माफी अभियान और प्राकृतिक आपदाएँ। ये कारक उधारकर्ता की पुनर्भुगतान क्षमताओं और क्षेत्र के समग्र स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं?