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Daily-current-affairs / 10 Oct 2024

संगठनों और समाज में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता: डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:  

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अवसाद और चिंता के कारण हर साल लगभग 12 बिलियन कार्यदिवसों का नुकसान होता है। कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करना संगठनों के लिए अनिवार्य है, क्योंकि ये मुद्दे प्रदर्शन में कमी, अनुपस्थिति में वृद्धि और कर्मचारियों के उच्च टर्नओवर का कारण बन सकते हैं। कर्मचारी संतुष्टि और उत्पादकता आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई हैं; इसलिए, एक स्वस्थ कार्यस्थल बनाना और तनाव को कम करने के उपायों को लागू करना महत्वपूर्ण है। इस वर्ष, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस "कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य" पर जोर देता है, जो संगठनों को कार्यस्थल में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। चूँकि दुनिया की 60% आबादी किसी किसी रूप में काम करती है, इसलिए सुरक्षित और सहायक कार्यस्थल बनाना महत्वपूर्ण है।

    • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, जो प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और देखभाल में सुधार के प्रयासों का समर्थन करने के लिए 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ द्वारा शुरू किया गया था।

 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य:

भारत, जोकि दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों में से एक है, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धन की कमी और मानसिक बीमारियों को लेकर कलंक का गहरा इतिहास मौजूद है। हालाँकि, हाल के घटनाक्रम इस दिशा में सकारात्मक बदलाव का संकेत देते हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे और नीतियों में सुधार की उम्मीद बढ़ी है।

 

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24:

केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 22 जुलाई, 2024 को आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य को व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास के लिए एक महत्वपूर्ण चालक के रूप में रेखांकित किया। सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

  • मानसिक विकारों की व्यापकता: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस) 2015-16 के अनुसार भारत में लगभग 10.6% वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं और विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के लिए उपचार उपलब्धता में अंतर देखा गया हैं।
  • शहरी बनाम ग्रामीण मानसिक स्वास्थ्य: सर्वेक्षण से पता चलता है कि शहरी मेट्रो क्षेत्रों (13.5%) में मानसिक रुग्णता की व्यापकता ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3%) की तुलना में अधिक है।
  • किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य: एनसीईआरटी के स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण सर्वेक्षण का हवाला देते हुए आर्थिक सर्वेक्षण ने किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट की एक चिंताजनक प्रवृत्ति को उजागर करता है, जोकि विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के कारण और भी बदतर हो गई है। निष्कर्ष बताते हैं कि 11% छात्रों ने चिंता की वृद्धि की सूचना दी, 14% ने अत्यधिक भावनाओं का अनुभव किया और 43% ने मूड स्विंग की सूचना दी।

 

मानसिक स्वास्थ्य का आर्थिक प्रभाव:

  • सर्वेक्षण में मानसिक स्वास्थ्य विकारों के आर्थिक प्रभावों को भी रेखांकित किया गया है, जोकि निम्नलिखित हैं:
  • उत्पादकता में कमी: मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण अनुपस्थिति, कार्य निष्पादन में कमी, विकलांगता और स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि के कारण उत्पादकता में महत्वपूर्ण हानि होती है।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: गरीबी, तनावपूर्ण जीवन स्थितियों, वित्तीय अस्थिरता और उन्नति के सीमित अवसरों के कारण मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ाती है, जिससे मनोवैज्ञानिक संकट में वृद्धि होती है।

 

मानसिक स्वास्थ्य और कार्य: नीति और सामाजिक परिप्रेक्ष्य

  • नियोक्ताओं और सरकार की भूमिका: मानसिक रूप से कार्य अनुकूल वातावरण बनाने के लिए नियोक्ताओं और सरकारों को सहयोग करना चाहिए। इसमें श्रम कानूनों को लागू करना, कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को लागू करना और सुरक्षित और समावेशी परिस्थितियों को सुनिश्चित करना शामिल है। बर्नआउट को रोकने, कार्यस्थल पर तनाव को कम करने और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों वाले कर्मचारियों का समर्थन करने के उद्देश्य से की जाने वाली पहले कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • सामाजिक न्याय और कमज़ोर समूह: कम वेतन वाली, असुरक्षित नौकरियों में काम करने वाले कमज़ोर समूह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से असमान रूप से प्रभावित होते हैं। सार्वजनिक नीतियों को सबसे ज़्यादा जोखिम वाले लोगों को सुरक्षा और संसाधन प्रदान करके इन असमानताओं को दूर करने की ज़रूरत है। यह सामाजिक न्याय और समानता के व्यापक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका पर ज़ोर देता है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों को सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो।
  • सामाजिक चुनौती के रूप में कलंक: मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा कलंक मदद पाने और रोज़गार बनाए रखने में महत्वपूर्ण बाधा बना हुआ है। जागरूकता कार्यक्रमों, प्रशिक्षण और समावेशी नीतियों के माध्यम से कलंक को कम करना सहायक कार्य वातावरण को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। यह व्यापक सामाजिक समावेशन में भी भूमिका निभाता है क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य कलंक के रुप में देखे जाने से स्वीकृति और कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
  • कर्मचारियों को आगे बढ़ने में मदद करना: मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले कर्मचारियों के लिए उचित कार्यस्थल सुविधाएँ सुनिश्चित करना आवश्यक है। नियोक्ता नियमित चेक-इन, ब्रेक, और कार्यों को धीरे-धीरे फिर से शुरू करने की पेशकश करके कर्मचारियों का समर्थन कर सकते हैं। ऐसे उपाय कर्मचारियों को उत्पादक बने रहने के साथ-साथ अपनी स्थितियों का प्रबंधन करने में मदद करते हैं, जिससे उनकी समग्र भलाई और नौकरी की संतुष्टि में योगदान मिलता है।
  • सरकारी कार्रवाई और सहयोग: मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और जोखिमों से बचाने वाली नीतियां बनाने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं और नागरिक समाज संगठनों के बीच सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं। एक साथ काम करके हितधारक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और ऐसे वातावरण को बढ़ावा दें जो व्यक्तियों को व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों तरह से आगे बढ़ने में सहायता करें।

सरकार द्वारा प्रमुख पहल:

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) : एनएमएचपी का उद्देश्य पूरे देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है। इसका एक मुख्य घटक जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) है, जिसे 767 जिलों में लागू किया गया है। यह कार्यक्रम आत्महत्या की रोकथाम, कार्यस्थल तनाव प्रबंधन, जीवन कौशल प्रशिक्षण और स्कूलों और कॉलेजों के  परामर्श पर केंद्रित है।
  • सुविधाओं में वृद्धि : सेवाओं में बाह्य रोगी परामर्श, मनोवैज्ञानिक-सामाजिक हस्तक्षेप और जिला स्तर पर 10 बिस्तरों वाली रोगी सुविधा शामिल है। 1.73 लाख से अधिक उप स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को आयुष्मान भारत योजना में अपग्रेड किया गया है। आरोग्य कल्याण केन्द्रों ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को अपने देखभाल पैकेज में एकीकृत किया है।
  • राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनटीएमएचपी) : 10 अक्टूबर, 2022 को शुरू किए गए एनटीएमएचपी का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल तक पहुँच में सुधार करना है। वर्तमान में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 53 टेली मानस सेल चालू हैं, जिन्होंने 08 अक्टूबर, 2024 तक 14.5 लाख से अधिक कॉल का सफलतापूर्वक निपटारा किया है।"
  • मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों को मजबूत करना : सरकार मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान दे रही है। इसके अंतर्गत, 2021 में प्रति लाख जनसंख्या पर मनोचिकित्सकों का अनुपात 0.75 से बढ़ाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार 3 प्रति लाख जनसंख्या तक पहुँचाने की योजना बनाई गई है। यह कदम मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक है।

 

निष्कर्ष:

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन दोनों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के महत्व पर प्रकाश डालता है। मानसिक स्वास्थ्य और कार्य के बीच एक गहरा संबंध है, जिसके लिए सरकारों, नियोक्ताओं और हितधारकों को सहायक और समावेशी वातावरण स्थापित करने की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ (WFMH) की वैश्विक पहलों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ाने, कलंक को कम करने और सेवाओं तक पहुँच में सुधार करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। भारत ने मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से सराहनीय प्रयास किए हैं, लेकिन सुलभ और कलंक-मुक्त देखभाल सुनिश्चित करने के लिए निरंतर सहयोग आवश्यक है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के समाधान में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन करें। देश में मानसिक स्वास्थ्य संकट में सामाजिक आर्थिक कारक कैसे योगदान करते हैं?

स्रोत: पीआईबी