कीवर्ड्स : भारत संघ बनाम मोहित मिनरल्स, गुड्स एंड सर्विस टैक्स, जीएसटी काउंसिल, अनुच्छेद 279 ए, उच्चतम न्यायालय का निर्णय, अनुच्छेद 246 ए
चर्चा में क्यों?
- उच्चतम न्यायालय ने भारत संघ बनाम मोहित मिनरल्स के मामले में समुद्री वस्तु पर आईजीएसटी की वसूली की शुद्धता का निर्णय करते हुए, वस्तु तथा सेवा कर (जीएसटी) की भूमिका के बारे में सबसे बुनियादी मुद्दों में से एक पर विचार करने का अवसर दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जीएसटी परिषद का निर्णय बाध्यकारी नहीं है और केवल एक प्रेरक मूल्य रखता है। इसलिए, केंद्र और राज्य दोनों जीएसटी पर कानून बनाने के लिए अपनी स्वतंत्रता" बनाए रखते हैं।
इस सन्दर्भ में संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 279A: जीएसटी का प्रशासन और संचालन करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा GST परिषद का गठन किया जाएगा। इसके अध्यक्ष भारत के केंद्रीय वित्त मंत्री होते हैं, जिनके सदस्य राज्य सरकारों द्वारा मनोनीत मंत्रियों को होते हैं।
उच्चतम न्यायालय का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 246A(1) का केवल एक सत्यापन है। निर्णय के अनुसार , "अनुच्छेद 246 और 254 के अधीन होते हुए भी यदि यह खंड (2) के अधीन किसी बात के होते हुए भी, संसद को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, किसी राज्य के विधान-मंडल को भी, सातवीं अनुसूची की सूची 3 में (जिसे इस संविधान में ”समवर्ती सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है।
अनुच्छेद 279A(9): " वस्तु और सेवा कर परिषद का प्रत्येक निर्णय एक बैठक में, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के भारित मतों के कम से कम तीन-चौथाई बहुमत से, निम्नलिखित सिद्धांतों द्वारा लिया जाएगा, अर्थात्: -
- केंद्र सरकार के भार का भार डाले गए कुल मतों के एक तिहाई के बराबर होगा और,
- सभी राज्य सरकारों के मतों को मिलाकर उस बैठक में डाले गए कुल मतों का दो-तिहाई भारांक होगा।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय के संभावित प्रभाव:
- इससे पैंडोरा बॉक्स खुल सकता है जिससे राज्यों को अपने कानून में विशिष्ट संशोधन करने की अनुमति मिल जाएगी। इससे एकरूपता में कमी आ सकती है तथा जीएसटी शासन की नींव ही नष्ट हो सकती है।
- इससे केंद्र और राज्यों द्वारा अलग-अलग दरें ली जा सकती हैं।
- इसका सबसे निकृष्ट प्रभाव यह हो सकता है कि यह निर्णय जीएसटी परिषद की बैठकों में और अधिक प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा कर सकता है। तथा इसका सर्वाधिक बेहतर प्रभाव यह हो सकता है कि सदस्यों के बीच जिम्मेदारी की एक नई भावना को उत्पन्न कर सकता है।
- हालांकि कुछ राज्यों के लिए खुद को जीएसटी से हटना तथा कानून बनाना आकर्षक हो सकता है, उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि लंबे समय में, ऐसा अधिनियम उनके हितों के विरुद्ध कार्य करेगा, इसके अलावा करदाताओं के लिए परिहार्य अराजकता उत्पन्न करेगा।
- वस्तु और सेवाओं के लिए जीएसटी एक एक सामान्य राष्ट्रीय बाजार के लाभ और प्रणालीगत दक्षताओं से लाभ जो यह प्रदान करता है। राज्य में पृथक कानून से यह व्यवस्था प्रश्नगत होगी।
- व्यवसाय करने में जटिलताओं के कारण निवेशक ऐसे राज्यों से बाहर चले जाएंगे।
- इस निर्णय का यह प्रभाव भी पद सकता कि केंद्र राज्यों की चिंताओं और राजकोषीय दुविधाओं के प्रति अधिक सुलह करने का प्रयास कर सकता है।
कुछ अनुत्तरित प्रश्न:
- अब जबकि केंद्र द्वारा राज्यों को अपेक्षित राजस्व के नुकसान के लिए गारंटीशुदा मुआवजा जून में समाप्त होने के लिए निर्धारित किया गया है, क्या कोई राज्य अपने कर संग्रह को बढ़ाने के लिए किसी भी सामान या सेवाओं की आपूर्ति पर एक अलग दर का निर्णय ले सकता है?
- इसका आईजीएसटी दरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जो केंद्र और राज्य GST दरों का योग है? जबकि अंतर-राज्यीय लेनदेन पर कानून बनाने की शक्ति केंद्र के पास है तो आईजीएसटी पर किस प्रकार कार्य होगा ?
- अलग-अलग दरें होने पर राज्यों के बीच आईजीएसटी का वितरण कैसे होगा?
- क्या अलग-अलग राज्यों में बंदरगाहों पर माल के आयात के लिए अलग-अलग IGST दर होगी?
- इसका जीएसटीएन ढांचे पर क्या प्रभाव पड़ेगा? वर्तमान में, रिटर्न दाखिल करना, इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाना, नोटिस जारी करना, रिफंड के दावे आदि सभी सामान्य जीएसटीएन प्लेटफॉर्म के माध्यम से किए जा रहे हैं। परन्तु ऐसे वातावरण में काम करना एक कठिन या लगभग असंभव कार्य हो सकता है जहां भिन्न-भिन्न कानून और दरें हों।
- क्या राज्यों को जीएसटी परिषद की चर्चाओं में भाग लेना उचित लगेगा? साथ ही, यदि निर्णय को लागू नहीं किया जा सकता है तो मतदान के अधिकार की प्रासंगिकता खो जाती है।
- जीएसटी परिषद द्वारा किए गए पिछले निर्णयों का भविष्य क्या हो सकता है? कोई
यह तर्क दे सकता है कि चूंकि इसे सर्वसम्मति से लिया गया था, इसलिए सर्वोच्च
न्यायालय की व्याख्या का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
केंद्र इस फैसले को कमतर आंकने की कोशिश क्यों कर रहा है? - केंद्र ने कुछ भी नई व्याख्या नहीं करने के रूप में फैसले को कम करने की मांग की है और यह रेखांकित किया है कि अलग-अलग राज्यों ने हमेशा जीएसटी परिषद में किए गए फैसलों का पालन किया है, भले ही ऐसे फैसले उनके हितों के खिलाफ गए हों।
- केंद्र ने यह कहा है कि वह यह है कि यदि कुछ राज्यों को जीएसटी के विपरीत चलने वाले अपने कर कानूनों का निर्माण करेगी तो इससे जीएसटी के पतन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इस प्रकार अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने, संग्रह में सुधार करने और करदाताओं को कई अप्रत्यक्ष लेवी के व्यापक प्रभावों से बचने में संकट आएगा ।
समय की मांग :
- हमें जीएसटी परिषद में राज्य कौशल की आवश्यकता है, भले ही न्यायालय ने कहा हो कि जीएसटी परिषद राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के लिए उतनी ही जगह है जितनी सहकारी संघवाद के लिए।
- राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के लिए अन्य मंच हैं। परिषद को संघवाद की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से परे रखना चाहिए ।
- राज्यों को परिषद में असहमति का अधिकार होना चाहिए और निर्णय लेने में सर्वसम्मति की भीड़ में उनकी आवाज नहीं डूबनी चाहिए।
- केंद्र राज्यों की मांगों को परिषद में समायोजित करके एक उदाहरण स्थापित कर सकता है, भले ही केंद्र को कुछ त्याग करना पड़े। क्योंकि अंततः , परिषद को सौहार्दपूर्ण ढंग से चलाने का उत्तरदायित्व केंद्र पर ही है।
निष्कर्ष:
- अगर जीएसटी ने करदाता के जीवन को बेहतर बनाया है - और निश्चित रूप से है - तो इसे काम करने की (मेक इट वर्क ) का उत्तरदायित्व केंद्र तथा राज्य दोनों का है। यह उनके हित में भी है।
- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: वैधानिक, नियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय,
- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधनो का एकत्रण ,आर्थिक वृद्धि तथा विकास, रोजगार से सम्बद्ध मुद्दे ।
मुख्य परीक्षा प्रश्न:
- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कि जीएसटी परिषद के फैसले केंद्र या राज्यों पर बाध्यकारी नहीं हैं, राज्यों को संघीय ढांचे में निर्णय लेने के लिए अधिक स्थान देगा। समीक्षा करें?