संदर्भ -
मई 2021 के अंत में आए चक्रवात यास ने भारत की पूर्वी तटरेखा को बुरी तरह प्रभावित किया था, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्य इससे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। इस चक्रवात से यहाँ के समुदायों को बुनियादी ढांचे और आजीविका के लिए गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ा था। इस चक्रवात की भयावहता ने प्राकृतिक आपदाओं के प्रति विभिन्न क्षेत्रों की संवेदनशीलता को रेखांकित किया, इसने प्रभावी आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया उपायों की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान देना भी अनिवार्य बना दिया।
श्रधांजलि के अनुभव: एक केस स्टडी
- चनूरी गाँव में पली-बढ़ी श्रधांजलि पटनायक मानसून के मौसम में इस क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों और बाढ़ के निरंतर खतरे से अच्छी तरह वाकिफ हैं। उनके पिता, जो पेशे से एक किसान थे, ने उनमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रति समुदाय की संवेदनशीलता की गहरी समझ पैदा की, जिससे उनमें कम उम्र से ही आपदा प्रतिक्रिया के लिए काम करने का जुनून पैदा हुआ। जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, श्रधांजलि ने बदलाव लाने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान अर्जित कर नवीन अवसरों की तलाश की।
- अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान, श्रधांजलि ने आपदा तैयारी पाठ्यक्रमों में भाग लिया, जहाँ उन्होंने प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, निकासी प्रक्रियाओं और सामुदायिक लचीलापन के महत्व के बारे में सीखा। 2019 में, वह आपदा प्रतिक्रिया पहल और आउटरीच गतिविधियों में भाग लेकर रिलायंस फाउंडेशन युवा स्वयंसेवक कार्यक्रम में शामिल हुईं। कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, श्रधांजलि अपने समुदाय का समर्थन करने, राहत प्रयासों का समन्वय करने और स्वास्थ्य आपात स्थितियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग रहीं।
आपदा तैयारी में सबक
- सामुदायिक नेताओं में क्षमता निर्माणः अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम श्रधांजलि जैसे स्थानीय लोगों को आपदा तैयारी गतिविधियों में अपने समुदायों को प्रभावी ढंग से शामिल करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करते हैं। ये पाठ्यक्रम व्यक्तियों को जागरूकता बढ़ाने, संसाधन जुटाने और संकट के समय प्रतिक्रिया प्रयासों का समन्वय करने के लिए सशक्त बनाते हैं।
- सामुदायिक समर्थन और सामूहिक कार्रवाईः आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों की सफलता समुदाय के समर्थन और भागीदारी पर निर्भर करती है। साथी स्वयंसेवकों के साथ श्रधांजलि का सहयोग मानवीय सहायता देने और लचीलापन बढ़ाने में सामूहिक कार्रवाई की शक्ति का उदाहरण है। एक साथ काम करके, समुदाय गंभीर चुनौतियों से निपट सकते हैं और आपदाओं के बाद और मजबूत होकर उभर सकते हैं।
- आपदा पश्चात पुनर्स्थापन और लचीलेपन का निर्माणः आपदाओं के दौरान साहस और लचीलेपन के उदाहरण 'श्रधांजलि जैसे व्यक्तियों के लचीलेपन और दृढ़ संकल्प के लिए एक मिशाल के रूप में कार्य करते है, जिनके प्रयासों ने प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने समुदायों को मजबूत किया है। इन कहानियों का प्रकाशन साहस और नेतृत्व की प्रेरक प्रसंगों को प्रदर्शित करते है, जो प्रभावी आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया रणनीतियों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते है।इन प्रसंगों से कुछ सबक निम्नलिखित हैं -
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- कोविड-19 महामारी जैसी चुनौतियों के बीच सतत विकास और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए सक्षम उत्तरदाताओं के नेटवर्क को बढ़ावा देने कर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से जमीनी समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है।
- सामुदायिक लचीलेपन को मजबूत करने के लिए बहु-हितधारक साझेदारी का लाभ उठाने की आवश्यकता है, आजीविका के अवसरों को बनाए रखने के लिए नवीन ढांचे की पेशकश और महिला संघ (महिला स्वयं सहायता समूह) जैसी पहलों का उदाहरण इसमे सहायक होंगे।
- आपात स्थिति के दौरान प्रभावित समुदायों का प्रभावी ढंग से नेतृत्व और समर्थन करने, संसाधन जुटाने, राहत एवं सहायता की तत्काल जरूरतों की पहचान करने के लिए जमीनी स्तर पर स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- प्रदर्शन कार्यक्रमों के माध्यम से आपदा जोखिमों, पूर्व चेतावनी प्रणालियों और तैयारी उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, बाहरी सहायता पर निर्भरता को कम करना और संकटों से निपटने में सामुदायिक लचीलेपन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- स्थानीय ज्ञान, पारंपरिक प्रथाओं और स्थानीय प्राथमिकताओं एवं धारणाओं की समझ को एकीकृत करके ज्ञान के सह-उत्पादन को बढ़ावा देना एवं बेहतर संचार और अनुकूली क्षमता को सुविधाजनक बनाना चाहिए।
- पारंपरिक आपदा शमन विधियों का आदान-प्रदान करने के लिए 'सीखने वाले समुदायों' के माध्यम से ज्ञान-साझाकरण की सुविधा प्रदान करना, लचीला समुदायों के विकास में योगदान दिया जाना चाहिए।
- जलवायु परिवर्तन के आघातों से निपटने और इससे उबरने के लिए स्थानीय प्रणालियों को मजबूत करना, बदलते जलवायु परिप्रेक्ष्य में समुदायों की भलाई और समृद्धि सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
आपदाओं के प्रति भारत की बढ़ती संवेदनशीलता
हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं के प्रति भारत की संवेदनशीलता तेजी से बढ़ी है। चक्रवात तौकते और कोविड-19 महामारी जैसी घटनाओं ने व्यापक लचीलापन-निर्माण रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है। बाढ़, चक्रवात, लू और महामारी के तीव्र होने के साथ, जोखिमों को कम करने और लचीलापन बढ़ाने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता अनिवार्य हो गई है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण(DRR) की अनिवार्यता
आपदा प्रबंधन के लिए भारत का व्यापक दृष्टिकोण लचीलापन, अनुकूलन और सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों के महत्व पर बल देता है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) पर 10 सूत्री एजेंडा आपदाओं के खिलाफ देश के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए प्रमुख प्राथमिकताओं को रेखांकित करता है, जिसमें निरंतर सामूहिक कार्रवाई और स्थानीय नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रयासों का स्थानीयकरण
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए राष्ट्रीय मंच (एन. पी. डी. आर. आर.) आपदा जोखिम प्रबंधन प्रयासों के स्थानीयकरण के महत्व को दर्शाता है। स्थानीय विशेषज्ञता का लाभ उठाकर समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है और बहु-हितधारक साझेदारी को बढ़ावा देकर, भारत उभरते आपदा पैटर्न का प्रभावी ढंग से जवाब देने और जमीनी स्तर पर भेद्यता को कम करने की अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है।
आपदा जोखिम प्रबंधन में महिलाओं के नेतृत्व को सशक्त बनाना
प्रभावी आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए महिलाओं का नेतृत्व महत्वपूर्ण है। एनपीडीआरआर के तीसरे सत्र के दौरान स्थानीय लचीलापन बढाने में महिलाओं के नेतृत्व को सक्षम बनाने के महत्व पर प्रकाश डाला गया और आपदा तैयारी, प्रतिक्रिया एवं पुनर्प्राप्ति प्रयासों में महिलाओं के अद्वितीय योगदान को मान्यता दी गई।
निष्कर्ष:
'स्ट्रॉन्गर टुगेदर' में प्रलेखित कहानियाँ सामुदायिक लचीलापन निर्मित करने के लिए भविष्य की रणनीतियों को आकार देने में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। स्थानीय नेतृत्व, बहु-हितधारक साझेदारी को बढ़ावा और ज्ञान-साझाकरण को बढ़ावा देकर, भारत आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने और कमजोर समुदायों पर प्रभाव को कम करने की अपनी क्षमता को मजबूत कर सकता है।
चूंकि भारत और अन्य राष्ट्र जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं की बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, इस संदर्भ मे लचीलापन और अनुकूलन में निवेश सर्वोपरि हो जाता है। स्थानीय समुदायों व स्थानीय ज्ञान का लाभ उठाकर और सहयोगात्मक साझेदारी को बढ़ावा देकर, हम भविष्य के संकटों का सामना करने और उन पर काबू पाने में सक्षम लचीला ढांचा निर्मित कर सकते हैं।
सामूहिक कार्रवाई और साझा प्रतिबद्धता के माध्यम से, हम एक अधिक लचीले भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, जहां समुदाय प्रतिकूल परिस्थितियों में एक साथ मजबूत होकर खड़े हों। श्रधांजलि पटनायक की कहानी सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच अपने समुदायों की रक्षा के लिए अथक प्रयास करने वाले व्यक्तियों के लचीलेपन और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
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Source- ORF